अब लगा कि हम दूसरे देश में आ गये हैं । इसे गडडा चौकी कहते हैं । यहां पर जो सुरक्षाकर्मी थे उनका ध्यान हमसे ज्यादा साईकिल पर बोरे लि...
अब लगा कि हम दूसरे देश में आ गये हैं । इसे गडडा चौकी कहते हैं । यहां पर जो सुरक्षाकर्मी थे उनका ध्यान हमसे ज्यादा साईकिल पर बोरे लिये लोगो पर था । कुछ सब्जी लिये जा रहे थे और कुछ दुकान के साामान । हमने यहां पर कुछ सुरक्षाकर्मियो से नेपाल के अंदर घूमने का तरीका पूछा । वैसे तो वे हमें बाइक पर देखकर हैरान थे बोले कि क्या आप इसी बाइक से काठमांडू तक जाओगे । जब हमने उन्हे बताया कि हम काठमांडू ही नही पूरा नेपाल इसी बाइक पर घूमेंगे तो और भी आंखे खुल गयी ।
यहां पर भनसार नाम का कागज बनता है बाइक का परमिट मानिये इसे । पहले हमारे कागज चैक हुए बाइक के उसके बाद साइड में बने एक कमरे में बनी खिडकी के पास जाकर मै लाइन में लग गया । बाइक की आर सी और अन्य कागज देखकर उस कमरे में बैठी मैडम ने मुझसे दिनो की संख्या पूछी जितने दिन हमें नेपाल में बाइक से घूमना था । मेरे आठ दिन की संख्या बताने पर उसने मुझसे फीस ली जो कि 560 भारतीय रूपये थी । भनसार बनने के बाद हमें इशारा कर दिया गया कि साइड में बने ट्रैफिक पुलिस के पास एंट्री करा दीजिये । यहां पर नीली वर्दी में बैठे बंदे ने 50 रूपये में हमारी एंट्री कर दी । जब तक मैने ये सब काम कराया तब तक सहदेव ने 12 हजार रूपये के नेपाली 20 हजार रूपये बराबर में ही मनी एक्सचेंज वाले से बदलवा लिये थे ।
वैसे मैने सभी कागजो की फोटोस्टेट कई सैट में ले रखी थी लेकिन यहां पर किसी ने मेरे किसी पहचान पत्र या बाइक के किसी भी कागज की कोई कापी नही ली ।
हमें भूख लगी थी और हम नेपाल में एंट्री कर चुके थे । 8 घंटे बाद हम दूसरे देश में थे और अभी हमारे पास घर से लाये गये परांठे सुरक्षित थे । हमें दही की तलाश थी और महेंन्द्रनगर से पहले हमें रूकना नही थो जो कि यहां से दस मिनट की दूरी पर था । महेंद्रनगर में पहुंचने के बाद यहां के एक चौराहे पर बाजार में हलवाई की दुकान पर बैठ गये और दही ले ली । साथ में अपने परांठे खोल लिये और पेट भर लिया गया । यूपी के परांठे नेपाल की दही से खाकर तृप्त हुए तो ढाई बज चुके थे । 500 रूपये का पैट्रोल खटीमा से डलवाया था सुबह के 600 वाले से अलग । अब बाइक मंदी मंदी चलानी शुरू की क्योंकि हमें नेपाल घूमना था तो यहां कुछ देखना भी था । अगर पूरी स्पीड से बाइक भगाने लगे तो क्या देख पायेंगें । सबसे पहला अंतर तो जो यहां पर पाया वो भाषा का था । हिंदी शुद्ध स्वरूप में वाहनो के नम्बर से लेकर दुकानो तक पर लिखी थी और हमें जो कि हिंदुस्तान से आये थे उसे समझने में भी दिक्कत हो रही थी ।
एक जगह हमने रूककर एक लोकल बंदे से पूछा कि ये रास्ता पोखरा को ही जाता है तो उसने जो हमें बात कही वो हमेशा याद रहेगी । उसने बोला कि मुझसे पूछ लिया है पर किसी और से मत पूछना येे बात
मैने पूछा ऐसा क्यों भाई
उसने कहा कि नेपाल में एक ही सडक है जो यहां से लेकर पूरे नेपाल को क्रास करती हुई जाती है । इसके जैसी सडक तुम्हे कोई और नही मिलेगी । जो भी मिलेगी वो इससे बहुत छोटी और कच्ची रोड होगी । तुम्हे किसी से पूछने की जरूरत ही नही पडगी ।
उसकी ये बात पूरी तरह सही थी । ये हाइवे एक ही है जो सीधा चलता जाता है और ये जो एकमात्र राजमार्ग है नेपाल का वो भारत के सहयोग से ही बनाया गया है । सडक ज्यादातर जगह ठीक थी पर अधिकतर थोडी दूर पर पुलिया वगैरा आने पर उछलना पडता था । कार वालो को तो शायद इतनी दिक्कत ना होती हो पर बाइक तो दिक्कत करती थी । कुछ हमारे पास सामान भी ज्यादा ही था । उस सामान की वजह से सबसे बडी दिक्कत तो ये हो रही थी कि पीछे बैठै सहदेव को परेशानी होने लगी थी । वो बार बार आगे आकर बाइक चलाना चाहता था । इस बार हमने बाइक में बैठने में थोडा बदलाव किया और बैग को बीच में लिटा लिया । 50 किलोमीटर फिर से सहदेव ने बाइक चलायी ।
एक जगह चाय पीने को रोकी तो वहां पर शराब की बोेतले भरपूर लगी हुई थी । यही यहां का कल्चर है । लेकिन यहां के कल्चर की एक खास बात और देखी कि यहां पर सब बच्चो और मां बाप को पढने पढवाने का बहुत शौक है । बहुत सारे स्कूल देखे जिनमें दूर दूर से बच्चे आ रहे थे ।
यहां पर रास्ते में जगह जगह आर्मी वाले मिलते गये । आर्मी वाले दिखने में हमारे पुलिस वालो से भी सीधे । वैसे इस रास्ते पर जगह जगह परेड सी करते देखकर आर्मी वालो को मुझे ऐसा लगा कि शायद इस हाइवे को खतरा है तभी यहां पर इतनी सुरक्षा है । हम चलते रहे तब तक के लिये जब तक कि हमें कोई सही सी जगह ना मिल जाये रूकने के लिये । हमें ये तो पता था कि हम आज पोखरा तो नही पहुंच सकते । सुबह सवेरे गाजियाबाद से चलने के बाद 300 किलोमीटर पडा खटीमा और वहां से 21 किलोमीटर था बोर्डर । आगे एक दो जगह पूछने पर पता चला कि कोहलपुर में रूकने के लिये ठीक जगह मिल जायेगी । कोहलपुर महेंन्द्रनगर से 210 किलोमीटर है यानि की आज 530 किलोेमीटर बाइक चलायी जायेगी ।
हमें शाम होने लगी थी और रास्ते मे एक जगह संरक्षित वन क्षेत्र आया जिसमें जंगली जानवरो का आना जाना होने की वजह से रात के आठ बजे आवागमन या तो बंद होता है या फिर कानवाई लगाकर होता है । यहां इस क्षेत्र में कई जगह पर आर्मी चैकपोस्ट होती हैं जहां पर रूककर हर गाडी या बाइक वाले को हर बार एंट्री करानी होती है ।
रास्ते में चीसा पानी और लकीचूहा जैसी जगहें भी पडती हैं ।
Nepal yatra -
रास्ता पूछना ही नही है |
यहां पर एंट्री करानी होती है |
कोहलपुर का कमरा |
पढ़ने में आन्नद आ रहा है
ReplyDeleteWaiting for next post...............
ReplyDeletelooking forward for next posts on Nepal.
ReplyDeleteबेहद ही बेहतरीन और उम्दा प्रस्तुति.. भाई पढने में बांधे रखा आपने..
ReplyDeleteबढिया मनू भाई यात्रा मजेदार हो रही है..
ReplyDeleteCamera bahut shaandar hai lagta hai. Ekdam colourfull pics aa rahi hain. Shaandar post.
ReplyDeleteThanks,
Mukesh ....
Sir aapki yatra ko padhkar maza aa gaya hai
ReplyDeleteAb to hamara bhi man karne laga hai
अभी भी पहाड़ शुरू नहीं हुए हैं
ReplyDeleteआपकी यात्रा शानदार व् मेरे लिए प्रेरणादायक है
ReplyDeleteमजा आ रहा है भाई पढ़ने में
ReplyDeleteमजा आ रहा है भाई ज़ी
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