Kareri Trek , dharamshala , Himachal पिछला साल हिमाचल प्रदेश के नाम रहा । हिमाचल प्रदेश की यात्राऐं करके इसे मथने की पूरी कोशिश की गयी । ...
Kareri Trek , dharamshala , Himachal |
पिछला साल हिमाचल प्रदेश के नाम रहा । हिमाचल प्रदेश की यात्राऐं करके इसे मथने की पूरी कोशिश की गयी । इसी क्रम मे एक बार जाटदेवता संदीप पंवार के साथ घूमने की चर्चा हो रही थी तो उन्होने बताया कि हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में घूमने का कार्यक्रम बन रहा है । करेरी गांव और करेरी झील को होते हुए धौलाधार की पहाडियो को पार करके हिमाचल के चंबा में उतर जायेंगें ।
प्लान रोमांचक था । जाट देवता ने मुझे बताया कि एक बंदे का फोन आपके पास आयेगा जो इस टूर के बारे में चर्चा करेगा । इसके बाद मेरे पास राकेश विश्नोई का फोन आया । राकेश एक बिजनेसमैन है और मूल रूप से राजस्थान के बीकानेर के पास के रहने वाले हैं । हमने इस टूर के बारे में चर्चा की और मैने उन्हे अपना और अपने एक ममेरे भाई गौरव के नाम का बस का टिकट बुक कराने को कह दिया ।
कह तो दिया पर घर में ही विरोध शुरू हो गया । कुछ दिनो पहले ही केदारनाथ में प्रलय आने के कारण मेरे तो क्या जिसको देखो उसके घरवालो ने मना कर दी थी । कई लोग तो ऐसे थे जिन्होने बरसात में ही ना जाने के लिये रोक लगायी हुई थी । वैसे बरसात में पहाडो पर जाना सच में समझदारी नही है पर क्या करें जैसा सौंदर्य आपको पहाडो का बारिश में देखने को मिलता है ऐसा कभी नही मिल सकता । अब एक ही काम हो सकता है या तो खूबसूरती पर मर मिटो या जान की फिकर करो
मैने अब तक जो भी यात्राऐं की हैं वो किसी भी टैंट या स्लीपिंग बैग या किसी भी और उपकरण के बगैर की हैं । पर इस बार जाट देवता और राकेश की लम्बी प्लानिंग थी । उन्होने टैंट और स्लीपिंग बैग खरीद लिये थे । मुझसे पूछा कि क्या आपके लिये भी स्लीपिंग बैग लेना है तो मैने सोचा कि ले लेते हैं जब घुमककडी करनी है तो इन चीजो की जरूरत तो पडेगी ही । अब दूसरी बारी थी उनके बताने की कि कुछ छोटी चीजे और चाहियें । मैने कहा भाई जो आप ले रहे हो मेरे लिये भी ले लो । उन्होने एक छडी जिसमें टार्च लगी थी और एक पानी की बोतल एल्यूमीनियम की
इन तीनो चीजो के पैसे मैने दिल्ली बस में चलते समय राकेश को दे दिये थे । टैंट के बारे में मुझे जाट देवता ने बताया कि वो तो राकेश ने अपने लिये ही लिया है । अगर वो सबके लिये कहते तो मै भी अपना शेयर दे देता । टैंट की कीमत शायद 6000 के आसपास थी और ये चार लोगो के लिये था ।
राकेश ने बस के टिकट आनलाइन बुक कर दिये थे । बस को दिल्ली में मजनू का टीला से चलना था । मै और मेरा भाई गौरव त्यागी काफी घंटे पहले घर से निकल पडे । जाट देवता ने हमें सही से नही बताया कि ये मजनू का टीला में बसे उनके घर के बहुत पास हैं और हम पहले किसी मैट्रो स्टेशन पर और उसके बाद आटो पकडकर मजनू का टीला पहुंचे ।
यहां पर काफी बसे थी धर्मशाला जाने के लिये और इनमें सफर करने वाला ज्यादातर तिब्बती , लामा और विदेशी थे । हम जैसे तो उनके मुकाबले कम ही दिख रहे थे । बस आराम से मिल गयी और सीट भी । शाम के 7 बजे बस चल पडी । मै तो हिमाचल बस से पहली बार जा रहा था । काफी कोशिश करने के बाद भी नींद बहुत देर में आयी । उसके बाद बस खाने के लिये रात के दस बजे के बादबस में केवल एक बोतल पानी की मिली थी । चूंकि घर से तो शाम के 4 बजे निकले थे तो खाना हमने दोपहर का ही खाया था । ढाबे पर मै और गौरव खाना खाने के लिये उतरे । सौ रूपये की थाली सबसे सस्ती थी पर मजबूरी थी इसलिये खाया ।
बस में हम पैक हो जाते हैं । देखने को जो कुछ मिल जाये बहुत है । फोटो खींचने की तो सोचना ही बेकार है । वैसे मै इस रास्ते पर पहले भी आ चुका था बस कांगडा से धर्मशाला वाला रास्ता नया था । सुबह का उजाला हो चुका था । हमें धर्मशाला से 6 किमी0 पहले अपर सकोह में उतरना था । इस जगह पर राकेश विश्नोई ने कमरा लिया हुआ है किराये पर । वो पूरे साल में दो या तीन बार इस कमरे पर आ जाता है घूमने के लिये । एक बाइक भी खडी हुई है ताकि आसपास में घूमने के लिये जा सकें ।
जाने से पहले जिस बारिश की वजह से डर लग रहा था उसी बारिश ने धर्मशाला में घुसते ही हमारा स्वागत किया । हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गयी थी । बस से उतरने के पचास कदम पर ही कमरा था । सबसे पहले तो हम सब फ्रेश हुए फिर आराम करने लगे । बडी परेशानी हो गयी थी । घूमने के नाम के आओ और कमरे में बंद हो जाओ ये तो बडी दिक्कत की बात है । काफी देर तक इंतजार करने के बाद भी जब बारिश के रूकने की आशा नही दिखी तो फिर यही सोचा कि कमरे में बैठे रहने से बढिया है धर्मशाला चलकर देखा जाये । कुछ बात की जायें पैकेज वालो और कोई गाइड तलाश कर लिया जाये जो हमें धौलाधार की पहाडियो से पार उतरने में सहायता कर सके ।
बस अपना सारा सामान लेकर हम सब धर्मशाला के लिये एक लोकल बस में चल दिये । यहां की बसो में वो भी लोकल बसो में भी आपको विदेशी मिल जायेंगें । ऐसे ही हमारी बस में एक अंग्रेज लडकी बैठी थी और उसके पास में एक लोकल औरत बैठी थी जिसकी एक छोटी लडकी भी पास में ही थी । दोनो मां बेटी उल्टी कर रही थी । बस में भीड भी बेइन्तहा थी पर मैने उस अंग्रेजन के मुंह पर जरा सी भी शिकन नही देखी । उससे ज्यादा शिकन तो हमारे यहां की कोई लडकी होती तो वो दिखा चुकी होती नाक भौं सिकोडकर ।
धर्मशाला में उतरकर हमने एक दो जगह गाइड या पोर्टर लेने की बात करी तो सबने यही कहा कि इस समय सही समय नही है धौलाधार की पहाडियो को पार करने के लिये । लोकल बंदे भी तैयार नही थे । वो बस हमें बार बार भागसू नाग से थोडा उपर जाने के लिये सलाह दे रहे थे । हमने सोचा कि इन्हे गोली मारो हम तो अपने मन की ही करेंगें ।
यहां पर भी हम बारिश से बचने की बार बार सोचे जा रहे थे । जाट देवता और राकेश ने एक फोंचू नाम का एक कपडा खरीद रखा था जो वाटर प्रूफ था । उन्होने ये 600 रूपये का लिया था । इतनी बारिश में ये इतने काम की चीज थी कि पूछो मत । उस बडे से कपडे में आदमी अपने बैग और सारे सामान के साथ पूरी तरह से ढक सकता था । पर हम दोनो के पास ऐसा कुछ नही था तो हमने छतरी खरीद ली वहीं पास की दुकान से । छतरी से हम बच जाते तो साथ में दो दो मीटर पन्नी भी खरीद ली जिससे कि बैग के उपर बांधकर बैग के सामान को बचा सकें ।
KARERI YATRA -
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वाह, इसमें आनन्द आया होगा, आगे की प्रतीक्षा है।
ReplyDeleteखूबसूरत फोटोओ के साथ शुरुआत अच्छी रही....
ReplyDeleteआपने सही ही कहा बारिश मे पहाड एक अलग ही रूप मे दिखता है हरियाली फैली हुई चारो ओर,पत्तियो पर पडी बारिश की बुंदे.मन मोह लेती है...
ReplyDeleteबहुत बढिया शुरूआत फोटो देखकर मजा आ गया.
Aarre waah, aap jaatdevta sandeep j ke saath bhi ghoomte hain...bahut badhiya. Mcleodganj mein kaafi din rehne ke bawajood Kareri Trek nahi suna. Haan Triund aur phir aage snowline tak jaana bahut adventurous raha.
ReplyDeleteAb Kareri ki baari hai.
Thanks for sharing the details about the trek. :)
bhut khubsurti se describe kiya hai apne. perfect. kafi time se mere plan m h. but jana nhi ho pa rha. iski jgh dusre trek kr liye. but uf..... your kareri trek blog bhut helpful rehega mere liye.
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