way to kamru fort सांगला गांव अब मुख्य पर्यटक स्थल बन चुका है । यहां पर आसपास के गांवो के लोग अपना माल बेचने और खरीदने आते हैं । काफी...
way to kamru fort |
सांगला गांव अब मुख्य पर्यटक स्थल बन चुका है । यहां पर आसपास के गांवो के लोग अपना माल बेचने और खरीदने आते हैं । काफी सारे गेस्ट हाउस और होटल भी बने हुए हैं । देशी विदेशी पर्यटक सीजन में यहां पर आते हैं । मांसाहार यहां पर काफी मात्रा में खाया जाता है । लोगो में उनी वस्त्र तो पहनते ही हैं बाकी यहां पर आदमियो में जवाहर कट के कपडे पहनने का चलन काफी है । सांगला गांव में बौद्ध धर्म के मानने वाले काफी ज्यादा हैं
कमरू फोर्ट को दूर से देखकर मुझे हाल फिलहाल में आयी टर्मिनेटर 3 मूवी की याद आ रही थी । वैसे कमरू का ये रूप सांगला गांव से थोडा सा उपर से दिखायी देता है क्योंकि कमरू गांव सांगला के उपर है । उस मूवी में इसी तरह का गांव था और उसके ठीक उपर पहाड की गोद में एक ग्यारह मंजिल का लकडी का किला बना दिखायी देता है जिसमें क्लाइमैक्स की लडाई लडी जाती है ।
मै तो पहले ही इस किले को देखने के लिये जा चुका था पर जब जाट देवता ने बताया कि वे तो सांगला से आगे चितकुल के लिये निकल चुके हैं तो मुझे भी उनके साथ जाना पडा नही तो मै तो गेट तक पहुंच चुका था । अब चितकुल से वापस आते समय साढे तीन ही बजे थे । कल रात की तरह यहां भी राकेश से बहस शुरू हो गयी । बारिश तेज पडने लगी थी और उसका कहना था कि हम अभी चलते रहें और दस बीस किलोमीटर आगे जाकर कहीं पर टैंट लगायें । बस यही एक जिद पकडे था कि मुझे तो टैंट में ही सोना है । दूसरी ओर हमारी स्थिति ये थी कि मेरे और जाट देवता के पास कैमरा था और उसमें फोटो खींचने भी जरूरी थे । राकेश के पास फोन था फोटो खींचने के लिये और साथ ही पावर बैंक के रूप में 8000 एम एच की बैट्री तो उसे तो कोई चार्जिंग की जरूरत नही थी । मुझे तो एक परेशानी और भी थी कि जबसे दिल्ली से चले तब से एक रात टैंट में ही सोये थे ।
मेरी राय में टैंट बहुत अच्छा है तब तक जब तक हम जहां पर जा रहे हैं अगर वहां पर रूकने का साधन अच्छा और सस्ता नही मिलता है तो अपना टैंट बढिया है लेकिन अगर रूकने का साधन बढिया और सस्ता मिल जाये तो क्या कहने क्योंकि अगर किसी जगह आपसे 200 रूपये तक मांगे जायें और उसमें आप एक रात उसकी बिजली पानी बाथरूम गीजर इतना कुछ यूज कर रहे हों तो क्या हर्ज है पर अगर कहीं पर 500 से उपर ये सब है तो कोई जरूरत नही
यही सोचकर मैने राय रखी कि हम एक बार होटल में पूछ लेते हैं अगर सस्ता मिला तो ले लेंगे नही तो टैंट में ही रूकेंगें । सांगला के मेन चौक पर हमने पहले ही जिस होटल में पूछा उसने सिर्फ 300 रूपये मांगे । तीन आदमी तीन सौ रूपये यानि सौ रूपये प्रति आदमी । मै और जाट तैयार हो गये पर राकेश फिर भी अडा रहा कि नही मै तो अपने टैंट में ही सोउंगा । बडी मुश्किल से उसे समझाया भार्इ् तू कमरे में ही अपना टैंट लगा लियो फिर भी नी माना तो कह दिया तो जाओ आप अपना टैंट लगालो और सो जाओ जहां जी करे । पीछे पीछे आ गया भाई पर कमरे में आकर बोला कि मै तो जमीन पर सोउंगा । भाई मर्जी तेरी हम क्या कर सकते हैं ? इस तरह कमरा फाइनल हो गया और दिन के सवा चार बजे हमने कमरू का किला देखने का प्लान बनाया और राकेश की बाइक पर ही तीनो निकल पडे । सांगला के मेन चौक से किले की दूरी मात्र 500 मीटर ही होगी उसके बाद कुछ सौ सीढियां हैं
रास्ते में सेब के बाग ही बाग थे पर कहीं भी सेब की दुकान नही दिख रही थी । कमरू के गेट से आगे चलने पर सीढिया चढने लगे । कमरू किले से पहले कमरू देवता का मंदिर आता है और एक शिवजी का मंदिर है । उसे देखकर हम कमरू के किले में पहुंचे । यहां पर एक पुजारी थे जिन्होने हमें पहनने के लिये टोपी दी और कमर में बांधने के लिये कपडा
KINNAUR SPITI YATRA-
कमरू ग्राम के बारे में कहा जाता है कि ये राजा का गांव है । राजा का तिलक भी यहीं पर होता है । कमरू या कामरू शब्द बताया जाता है कि कामरूप का अपभ्रंश है । पहले इसी नाम से इस गांव को पुकारा जाता था । कहते हैं कि कामरूप देवी यहां पर आकर बस गयी थी । ऐसा माना जाता है कि उन्होने भगवान बद्रीनाथ से विवाह किया था और बाद में वे चितकुल में जाकर बस गयी ।
मंदिर परिसर में चार या पांच मंजिला किला है और उसी के टाप की मंजिल पर बताते हैं कि कामाक्षा देवी की मूर्ति थी जो कि कामाख्या मंदिर आसाम से ही लायी गयी थी । ये किला यहां के राजाओ का था जो कि अब यहां कभी कई साल में ही आते हैं । रखरखाव के अभाव मे जीर्ण शीर्ण हो चुका है और कामाख्या माता का मंदिर भी परिसर में नीचे बना दिया गया है । हमने माता के दर्शन किये तो पुजारी जी ने एक सेब दिया । माता के सामने और भी सेब रखे थे । लाल लाल किन्नौर के सेबो पर हमारी राल तो बहुत देर से टपक रही थी पर अब तक हमने यहां पर सेब तोडकर नही खाये थे । मैने सौ रूपये पंडित जी को दिये और पंडित जी से दो दो सेब सबके लिये मांगे । पंडित जी ने दे दिये । हम वहीं पर खडे होकर खाने लगे । पंडित जी से पूछा कि यहां पर लोगो के बागो में सेब टूटकर नीचे गिरे पडे हैं ना तो उन्हे लोग उठाते हैं क्या हम उन्हे उठाकर खा सकते हैं जबाब ना में था । फिर हमने पूछा कि यहां पर कोई सेब की दुकान नही मिली तो उन्होने बताया कि यहां सबके पास बाग हैं तो दुकान पर किसके लिये बेचें । यहां सब माल एक्सपोर्ट होता है
मंदिर की शैली और वास्तु आप बारीकी से फोटोज में खुद देख सकते हैं । साढे चार बजे हमने मंदिर में चढना शुरू किया तो दस मिनट में हम किले पर थे । यहां से सांगला घाटी का व्यू भी बहुत अच्छा दिखता है । पर जब हम सेब खा रहे थे तभी दोबार बारिश आ गयी । हमने नीचे उतरना शुरू किया पर सांगला घाटी बादलो से घिर चुकी थी । रास्ते में एक बंदा अंगूर लिये भी मिला । उपर की ओर बाग हैं अंगूर के । कमरे पर पहुंचकर कैमरा आदि रखकर हम खाने के लिये निकल पडे । कई जगह जगह ढूंढने के बाद एक चाय कम खाने की दुकान मिली जिस पर कढी चावल रोटी खायी । थाली 70 रूपये की थी । खाना खाकर मन तृप्त हुआ तो होटल के कमरे में पहुंचकर लम्बी तान दी
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रोचक यात्रा पढने मे मजा आया व कमरू का किला भी पुरानी शैली से बना है ओर टरमिनैटर३ देखनी पडैगी
ReplyDeletebahot acche ! mujhe photo bahut pasand aaye ! photography keliye achhi jagah hai ! TFS
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .. क्या खूबसूरत तरीके से बना है वो मंदिर .. और हिंदी में ब्लॉग पढने का मज़ा ही अलग है :)
ReplyDeleteछोटा सा किला
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