होली का त्यौहार यानि रंगो का त्यौहार और हम उत्तरांचल में थे । वैसे तो हमारे यहां भी होली से तीन चार दिन पहले गुब्बारा फेंक और रंग मार होल...
होली का त्यौहार यानि रंगो का त्यौहार और हम उत्तरांचल में थे । वैसे तो हमारे यहां भी होली से तीन चार दिन पहले गुब्बारा फेंक और रंग मार होली कहीं कहीं शुरू हो जाती थी पर अब वो बात नही रही । अब तो लडाई होने लगी हैं तो ये सब बंद हो गया है । पर तीन दिन के इस मिनी प्रवास में हमें उत्तरांचल की होली के बढिया दर्शन हुए । यहां पर होली पांच दिन की मनती है । हम ठीक चार दिन पहले पहुंचे थे और यहां पर होली मन रही थी ।
पहले तो हम होली की वजह से डर रहे थे कि जैसी होली हमारे यहां पर होती है अगर ऐसी होने लगी तो हम तो फंस जायेंगें । इसलिये पहली बार तो गाडी भी बडी सोच समझकर और तेजी से निकाली । फिर कुछ दूर जाकर हम रूक गये । गाडी से निकले और जूम का भरपूर उपयोग करते हुए दूर से ही होली खेलते हुए पहाडी लोगो के फोटो ले लिये । जहां पर हम रूके थे इस गांव का नाम था जाख रावत और यहां पर इतनी बढिया लोकेशन थी कि पूछो मत । यहां पर पहाडो में भी एक समतल सी जगह थी । चारो ओर खेती और हरियाली ही हरियाली । खेतो से आती एक अलग सी ही खुशबू और चिडियो की चहचहाहट । थोडी दूर जाकर देखा कि आगे एक गाडी भी गिरी हुई फथी खाई में । शायद मारूति 800 की कीमत कम होने की वजह से मालिक ने उठाने की कोशिश ही नही की । थोडी दूर जाने के बाद एक और सुंदर सी लोकेशन आयी जिस पर हमने काफी फोटो लिये । जब हम फोटो ले रहे थे तो तीन लडके एक बाइक पर आये और हमसे बाते करने लगे । कहने लगे कि हमारे साथ होली खेलिये । मना किया तो बोले कि चलो हमारा फोटो ही ले लो । उनमें से एक के पास ईमेल आई डी भी थी अपनी । मजे में थे होली के नशे में और अपनी धुन में मस्त् थे । चारो ओर सन्नाटा था कोई काम पर नही था आज । बस आवाज सुनायी देती थी तो केवल और केवल होली के नगाडो की
चित्र तो बहुत बढिया है, लेकिन टेक्स्ट शुरु होने से पहले ही खत्म हो गया।
ReplyDeleteरोचक चित्र, व्यक्त कथा क्रम
ReplyDeleteमनु भाई राम-राम.एक महिने बाद आप नजर आए है.सुन्दर चित्रो के साथ.आपने सही कहा गाडी वाले ने इसलिए ही गाडी नही उठाई क्योकी उठाने की लागत गाडी की किमत से ज्यादा होती.
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