कहते हैं कि इस जगह का नाम पहले निरालीधार था । पर जैसा कि जनश्रुति है कि चौदहवी शताब्दी में कन्नौज के राजा जसधवल ने यात्रा की परम्पराओ को ना मानते हुए इस जगह पर नर्तकियो से नाच गाना करवाया तो वे देवी रूप के कारण शिला में यानि पत्थर में बदल गयी । इसी वजह से इस जगह को पातर नौचानियां कहते हैं ।
पत्थर नौचाणी या पातर नौचानी या पातर नौचानियां कई नामो से इसे पुकारा जाता है । नंदा देवी राजजात यात्रा जो कि हर साल होती है और बारह साल में एक बार काफी बडी होती है उसमें इस जगह के बारे में भी कहानी है
फोटो खिंचवाने की बात अलग है लेकिन वैसे यहां से पैर फिसला तो डेढ से दो फुट के रास्ते को पार करके बेदिनी बुग्याल को टाटा कहकर नीचे खाई में ही गिरेंगें ।
वैसे मेरे आज के दिन में ही लगातार चलने का कारण ये भी है कि मै पहली बार अकेला सफर पर निकला और वो भी इतनी दुर्गम यात्रा पर । देखते हैं कि जाट कब तक आ पाता है । कुंवर सिंह ने बताया था कि पातर नौचानियां में भी कुछ उपर चढकर नेटवर्क आ जाता है घाट का सो मै सोच रहा हूं कि शायद पातर नौचानियां जाकर ही जाट से बात हो जाये तो पता चल जाये कि वो कहां तक आ गया है । या पूरी रूपकुंड यात्रा अकेले ही करनी पडेगी
ये वो जगह है जहां से हम इसी पहाड जिस पर हम चल रहे हैं इसके सीधे हाथ की साइड में आ जाते हैं । इस जगह से पहले बर्फ थी पर इसके बाद पातर नौचानियां तक बर्फ नही थी क्योंकि हम इधर पहाड की ओट में थे । यहां से लगातार ढालान है और यहां से पातर नौचानी आधा रास्ते में ओर था । ये कुदरत का करिश्मा ही है कि पहाड के एक तरफ तो बर्फ का साम्राज्य है जबकि एक ओर बर्फ का नामोनिशान तक नही है । पर हां ठंड बढती ही जा रही है और ठंडी हवाऐं बहुत तेज हैं
ये है पहाड की सीधे हाथ वाली साइड । बेदिनी बुग्याल उल्टे हाथ पर है हम एक पहाड की चोटी पर चढकर दूसरी साइड को हो गये हैं
कहते हैं कि इस जगह का नाम पहले निरालीधार था । पर जैसा कि जनश्रुति है कि चौदहवी शताब्दी में कन्नौज के राजा जसधवल ने यात्रा की परम्पराओ को ना मानते हुए इस जगह पर नर्तकियो से नाच गाना करवाया तो वे देवी रूप के कारण शिला में यानि पत्थर में बदल गयी । इसी वजह से इस जगह को पातर नौचानियां कहते हैं ।
ये रास्ता दुर्गम है और खतरनाक भी । अभी तक तो पातर नौचानियां दिखायी नही दिया है पता नही कहां है चलो कब तक नही मिलेगा ? आप सब मेरे साथ चल रहे हैं तो कब तक बचेगा
फोटो खिंचवाने की बात अलग है लेकिन वैसे यहां से पैर फिसला तो डेढ से दो फुट के रास्ते को पार करके बेदिनी बुग्याल को टाटा कहकर नीचे खाई में ही गिरेंगें ।
वैसे मेरे आज के दिन में ही लगातार चलने का कारण ये भी है कि मै पहली बार अकेला सफर पर निकला और वो भी इतनी दुर्गम यात्रा पर । देखते हैं कि जाट कब तक आ पाता है । कुंवर सिंह ने बताया था कि पातर नौचानियां में भी कुछ उपर चढकर नेटवर्क आ जाता है घाट का सो मै सोच रहा हूं कि शायद पातर नौचानियां जाकर ही जाट से बात हो जाये तो पता चल जाये कि वो कहां तक आ गया है । या पूरी रूपकुंड यात्रा अकेले ही करनी पडेगी
ये वो जगह है जहां से हम इसी पहाड जिस पर हम चल रहे हैं इसके सीधे हाथ की साइड में आ जाते हैं । इस जगह से पहले बर्फ थी पर इसके बाद पातर नौचानियां तक बर्फ नही थी क्योंकि हम इधर पहाड की ओट में थे । यहां से लगातार ढालान है और यहां से पातर नौचानी आधा रास्ते में ओर था । ये कुदरत का करिश्मा ही है कि पहाड के एक तरफ तो बर्फ का साम्राज्य है जबकि एक ओर बर्फ का नामोनिशान तक नही है । पर हां ठंड बढती ही जा रही है और ठंडी हवाऐं बहुत तेज हैं
ये है पहाड की सीधे हाथ वाली साइड । बेदिनी बुग्याल उल्टे हाथ पर है हम एक पहाड की चोटी पर चढकर दूसरी साइड को हो गये हैं
कहते हैं कि इस जगह का नाम पहले निरालीधार था । पर जैसा कि जनश्रुति है कि चौदहवी शताब्दी में कन्नौज के राजा जसधवल ने यात्रा की परम्पराओ को ना मानते हुए इस जगह पर नर्तकियो से नाच गाना करवाया तो वे देवी रूप के कारण शिला में यानि पत्थर में बदल गयी । इसी वजह से इस जगह को पातर नौचानियां कहते हैं ।
ये रास्ता दुर्गम है और खतरनाक भी । अभी तक तो पातर नौचानियां दिखायी नही दिया है पता नही कहां है चलो कब तक नही मिलेगा ? आप सब मेरे साथ चल रहे हैं तो कब तक बचेगा
वाह महाराज खूब सैर कारवाई आपने ... जय हो !
ReplyDeleteबुद्धिमान बनना है तो चुइंगम चबाओ प्यारे - ब्लॉग बुलेटिनआज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (11-02-2013) के चर्चा मंच-११५२ (बदहाल लोकतन्त्रः जिम्मेदार कौन) पर भी होगी!
सूचनार्थ.. सादर!
बहुत बढ़िया सफ़र...
ReplyDeleteआनन्द आया..
आभार
अनु
बहुत सुन्दर प्रस्तुति संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग आप भी जाने अफ़रोज़ ,कसाब-कॉंग्रेस के गले की फांस
ReplyDeleteAisa laga jaise hum bhi apke sath safar me hai ... wahh
ReplyDeletehttp://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post_11.html
West side of the mountain may not have snow because it is exposed to the sunlight. That is the reason, in Himalayas, East side of the mountains are more forested. In Vaastu Shastra - West is the direction of fire. That's why kitchen is recommended in West side. East side is the direction of water that's why bathroom is recommended in East side.
ReplyDeleteThat's why east sides are more green and more snowy.
डगर वाकई बहुत कठिन है ...
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