रनकाधार से आगे आबादी समाप्त हो गयी थी और वन क्षेत्र शुरू हो गया था । यहां के वन भी अजीब था । यहां पर पत्ते और पेड लाल रंग के थे । ये ज्यादा बारिश पडने की वजह से था या फिर धूप ज्यादा ना लगने की वजह से क्योंकि ये पेड इतने लम्बे थे कि सूरज की धूप कुछ ही जगहो पर आती थी
नीलगंगा , एक सुंदर जल प्रवाह जिसे देखकर मन करता है कि बस यहां पर ही समय ज्यादा से ज्यादा बिताया जाये । मै कुंवर सिंह से रास्ते में चलते हुए रनकाधार तक ज्यादा बात नही की क्योंकि तब हम चढ रहे थे ।
रनकाधार से नीलगंगा तक उतराई का रास्ता था । तो मैने उससे रूपकुंड के बारे में जानकारी करनी शुरू की ।
शुरू में कुंवर सिंह ने यही बताया कि पिछले कुछ दिनो में यहां पर बर्फ पडी है तो उपर कुछ लोगो ने खाना वगैरा बनाने की व्यवस्था की हुई थी पर वे दो दिन पहले नीचे आ गये हैं । हां इंडिया हाइक वालो ने अभी भी टैंट लगा रखे हैं तो खाने का इंतजाम उनसे भी हो सकता है नही तो अपने पास सामान तो है ही बना लेंगें
वैसे कुंवर सिंह बर्फ की बाते बता रहा था पर साथ ही उसने कहा कि आज तक मेरे साथ जो भी गया वो रूपकुंड करके ही आया है सो चाहे जैसा मौसम हो आपको रूपकुंड की यात्रा करवा के ही लाउंगा ।
रनकाधार से आगे आबादी समाप्त हो गयी थी और वन क्षेत्र शुरू हो गया था । यहां के वन भी अजीब था । यहां पर पत्ते और पेड लाल रंग के थे । ये ज्यादा बारिश पडने की वजह से था या फिर धूप ज्यादा ना लगने की वजह से क्योंकि ये पेड इतने लम्बे थे कि सूरज की धूप कुछ ही जगहो पर आती थी । मुझे बडा अजीब भी और सुंदर भी लगा ये जंगल । नीलगंगा आते ही मन खुश हो गया । इस धारा पर एक छोटा सा सीमेंट का पुल बना था
कुंवर सिंह ने बताया कि अब हमें यहां से लगभग 9 किलोमीटर की लगातार और खडी चढाई चढनी है इसलिये कमर कस लो । हम एक घंटे में ही यहां तक आ गये थे । अभी आठ बजे थे और मैने जाट को फोन मिलाया तो मिल नही पाया । कुंवर सिंह ने बताया कि पाताल गैरोली तक फोन चलेगा इसलिये वहां पर मिला लेना । चलो भाई
आप साथ चल रहे हो ना ? जाट देवता कहां है पता नही
रनकाधार से नीलगंगा तक उतराई का रास्ता था । तो मैने उससे रूपकुंड के बारे में जानकारी करनी शुरू की ।
शुरू में कुंवर सिंह ने यही बताया कि पिछले कुछ दिनो में यहां पर बर्फ पडी है तो उपर कुछ लोगो ने खाना वगैरा बनाने की व्यवस्था की हुई थी पर वे दो दिन पहले नीचे आ गये हैं । हां इंडिया हाइक वालो ने अभी भी टैंट लगा रखे हैं तो खाने का इंतजाम उनसे भी हो सकता है नही तो अपने पास सामान तो है ही बना लेंगें
वैसे कुंवर सिंह बर्फ की बाते बता रहा था पर साथ ही उसने कहा कि आज तक मेरे साथ जो भी गया वो रूपकुंड करके ही आया है सो चाहे जैसा मौसम हो आपको रूपकुंड की यात्रा करवा के ही लाउंगा ।
रनकाधार से आगे आबादी समाप्त हो गयी थी और वन क्षेत्र शुरू हो गया था । यहां के वन भी अजीब था । यहां पर पत्ते और पेड लाल रंग के थे । ये ज्यादा बारिश पडने की वजह से था या फिर धूप ज्यादा ना लगने की वजह से क्योंकि ये पेड इतने लम्बे थे कि सूरज की धूप कुछ ही जगहो पर आती थी । मुझे बडा अजीब भी और सुंदर भी लगा ये जंगल । नीलगंगा आते ही मन खुश हो गया । इस धारा पर एक छोटा सा सीमेंट का पुल बना था
कुंवर सिंह ने बताया कि अब हमें यहां से लगभग 9 किलोमीटर की लगातार और खडी चढाई चढनी है इसलिये कमर कस लो । हम एक घंटे में ही यहां तक आ गये थे । अभी आठ बजे थे और मैने जाट को फोन मिलाया तो मिल नही पाया । कुंवर सिंह ने बताया कि पाताल गैरोली तक फोन चलेगा इसलिये वहां पर मिला लेना । चलो भाई
आप साथ चल रहे हो ना ? जाट देवता कहां है पता नही
मैं पीछे पीछे आ रहा हूँ।
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