इस एक किलोमीटर तक घोडे और खच्चर वालो का रास्ता अलग था वो हडसर से आगे जा रही सडक से होकर आये थे नीचे नदी के किनारे किनारे और एक किलोमीटर जाने के बाद हम लोग भी नदी के किनारे पर आ गये थे । नदी के किनारे किनारे ये रास्ता बस 200 मी तक गया है उसके बाद उपर चढना शुरू हो जाता है । वैसे मणिमहेश झील से निकल रही इस नदी के किनारे किनारे ही चलना होता है पर इसके पास एक दो जगह ही पहुंच पाते हैं । यहां पर सबसे पहला पडाव धन्छो का है जो कि लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर है
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सुबह 5 बजे जाट देवता ने उठा दिया कि नहा धो लो । सब धीरे धीरे नहा धोकर तैयार हो गये और अपना सामान हमने यहीं पर छोडना तय किया । बस उपर के लिये एक एक जोडी कपडे तौलिया और गर्म कपडे जो लोग लाये थे उन्होने एक एक पिठठू बैग छोटे वाला अपना ले लिया।
मै तो गाडी में रखने के हिसाब से बैग लाया था जिसमें काफी ज्यादा सामान था पर उस बैग से चढाई तो नही चढी जा सकती थी सो मैने विधान से पूछा । विधान जल्दी में चला था तो उनके पास इतना कम सामान था कि दोनो बंदो के पास एक एक छोटा पिठठू बैग था और उसमें से भी दोनो को सारा सामान ले जाना नही था । विधान के साथी महोदय ने तो एक पालिथिन में तौलिया वगैरा रखे और चल दिये । मैने विधान से उसका बैग मांगा तो उसने सहर्ष दे दिया और उसने अपना सामान विपिन के बैग में रख दिया । विपिन ने भी कोई खास सामान नही रखा था गर्म कपडे वगैरा तो विपिन और विधान का एक बैग हो गया और मेरा अलग ।
मैने अपने बैग में काफी सामान रख लिया था जिसमें एक जोडी कपडे , तौलिया , बनियान , मोजे , गर्म बनियान , एक गर्म चादर और दवाईया रख ली थी । एक पानी की बोतल और छतरी भी रखी थी । संदीप भाई अपने साथ एक विशेष पालिथिन लेकर आये थे जिसमें पिठठू बैग पैक किया जा सकता था और ये पालिथिन मेरे पास अब भी रखी है । ये बढिया जुगाड था और उन्होने यहां पर दिखाने से पहले किसी को नही बताया था । मै बाहर निकलकर आया होटल से । मेरा बैग सबको भारी दिखायी दे रहा था और सब इस बात को कह रहे थे कि तुम कैसे लेकर जाओगे । मैने विधान से बोला कि तुम्हारा मेरा और विपिन तीन का सामान दो बैग में है तो तीन आदमियो पर दो बैग हुए । एक आदमी खाली रहेगा वो बारी बारी से दोनो में से किसी एक का बैग लेकर चलेगा । होटल के एक कमरे में सामान रखकर हम सब बाहर आने लगे । बाहर आकर हमने दुकान से सबके लिये एक एक बिस्कुट का पैकिट लिया मीठे वाले और एक एक नमकीन का पैकेट भी लिया । सब चाय बनवाकर पीने लगे जाट देवता के सिवाय क्योंकि जाट तो चाय भी नही पीते । मैने पांच चाकलेट और कुछ टाफी भी अपने लिये रख ली । यहां पर हम जिस होटल में रूके हुए थे उस के पीछे जो पहाड था और उस पर रास्ता था वो आप चित्र में देख सकते हैं हमारे होटल के सामने से ही मणिमहेश जी की यात्रा का गेट बना हुआ था । उस गेट से पहले कुछ सीढिया थी और सीढिया चढकर गेट में एन्ट्री करने के बाद शिव परिवार की मूर्तिया लगी हुई थी जो कि काफी सुंदर थी । अभी सब लोग अपने चलने की सैटिंग में लगे थे और सुबह के साढे छह बज चुके थे ।
मैने मराठा संतोष तिडके के साथ चलना शुरू कर दिया संदीप भाई को बोलकर कि हम धीरे धीरे चल रहे हैं आप आ जाईयेगा । क्योंकि संदीप भाई के चलने के बारे में तो कोई शुबहा ही नही था पर राजेश जी की स्थिति हम सब लोग समझ रहे थे । वो शायद चढ नही पायेंगे तो उन्हे संदीप भाई अपने साथ लेकर चले थे । मराठा पार्टी के चारो आदमी और मै एक साथ चले । विधान जी भी संदीप भाई के साथ थे । विधान पहले भी ट्रैकिंग पर जा चुका था तो उसके बारे में भी चिंता की जरूरत नही थी । पर इस सारी पार्टी में सबसे छुपे रूस्तम निकले विधान के साथ आये उनके मित्र । वे जो चले हैं तो सबसे आगे निकले और सबसे पहले पहुंचे । पहला एक किलोमीटर तो पहले थोडी सी चढाई और उसके बाद उतराई आने में बडे आराम से उतर गया ।
इस एक किलोमीटर तक घोडे और खच्चर वालो का रास्ता अलग था वो हडसर से आगे जा रही सडक से होकर आये थे नीचे नदी के किनारे किनारे और एक किलोमीटर जाने के बाद हम लोग भी नदी के किनारे पर आ गये थे । नदी के किनारे किनारे ये रास्ता बस 200 मी तक गया है उसके बाद उपर चढना शुरू हो जाता है । वैसे मणिमहेश झील से निकल रही इस नदी के किनारे किनारे ही चलना होता है पर इसके पास एक दो जगह ही पहुंच पाते हैं । यहां पर सबसे पहला पडाव धन्छो का है जो कि लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर है और वहां पर खाने पीने की सुविधा मिल जाती है । घोडे और खच्चर वालो से पूछने पर पता चल गया कि झील पर भी दो दुकाने अभी लगी है और वहां पर भी मैगी और खाने के साथ साथ रूकने की सुविधा मिल जायेगी । ये सुनकर अच्छा लगा क्योकिं ये बात तय हुई थी कि अगर दो या तीन बजे तक भी पहुंच गये तो फिर दर्शन करके
आज ही वापस आने की कोशिश करेंगे चाहे धन्छो तक ही आ पायें । मराठा संतोष् की पार्टी में दो बंदे जो कि मुश्किल से 50 किलो वजन के होंगे वे तो आगे भाग लेते थे और आगे जाकर बैठ जाते थे जैसे ही हम उनके पास जाते और सोचते कि अब बैठेंगे वे उठकर भाग लेते । ये देखकर मुझे अपने बचपन की याद आ गयी जब मै अपनी मां के साथ नीलकंठ की चढाई पर गया था तो मै ऐसा ही करता था । भाग भाग कर चढ जाता और जैसे ही मां पास आती तो फिर से आगे भाग लेता चाहे वो कितना भी डांटती । मै अपनी उसी कछुआ चाल से चल रहा था जो आज तक की चढाई चढने में मेरा अनुभव था कि चाहे कितनी भी देर हो जाये पर तेजी नही करनी है और सीढियो से जितना हो सके बचना है । मेरा साथ केवल मराठा संतोष तिडके दे रहा था । वे 2000 किलोमीटर से उपर बाइक चला कर आये थे । मेरे तो पैर जाम हो जाते हैं
इतनी बाइक या गाडी चलाने वाले के साथ एक दिक्कत ये होती है कि उसका एक पैर जो कि ब्रेक पर रखा होता है वो ज्यादा दर्द कर रहा होता है । दो किलोमीटर की चढाई चढने के बाद भी हमें अपना कोई साथी दिखायी नही दे रहा था पीछे आता हुआ । नीचे हडसर में ज्यादा गर्मी भी नही थी तो ठंड भी नही थी । जब हम नदी के पास से चढना शुरू हुए तो चढाई की वजह से पसीना आना शुरू हो गया लेकिन नदी के ठंडे पानी की फुहारो की वजह से इतना महसूस नही हो रहा था । रास्ते में कोई आदमी जाता या आता नही मिला जो यात्री हो बस लोकल के आदमी या घोडे और खच्चर वाले मिले
सफर की शुरूआत में एक बोर्ड लगा था जिस पर रास्ते का नक्शा बना था ये पिछले साल का था । क्योंकि जब पिछले साल यात्रा हुई तो पुलिस और मैडिकल के भी कैम्प लगे होंगे । हम तो अभी यात्रा शुरू होने से डेढ महीने पहले जा रहे थे और केवल दुकान लगाने वाले लोग अपनी तैयारी में लगे हुए थे । घोडे खच्चर वाले सीमित होने के कारण ये लोग कुछ दिन पहले से अपनी दुकान लगाना शुरू कर देते हैं चूंकि सारा सामान घोडो और खच्चरो पर ही जाता है तो ये लोग धीरे धीरे ले जाते रहते हैं और फिर अपना स्टाक इकठठा कर लेते हैं । यात्रा के दिनो में फिर इन खच्चर वालो के रेट भी काफी हो जाते हैं इस बीच इन दुकान वालो को हम जैसे बेमौसम वाले भी नसीब हो ही जाते हैं । जिससे दाल रोटी का खर्चा भी निकल आता है ।
रास्ता बडा सुहावना शुरू हो गया था । जब हडसर से चले तो सामने जहां तक नजर जा रही थी वहां तक उपर से आ रही नदी दिखायी दे रही थी लग रहा था जैसे वहीं तक जाना है । रास्ते में धन्छो तक दो जगह नदी को पार किया जिसमें एक छोटा सा पुल था केवल एक आदमी के जाने लायक और एक जगह एक ही साथ दो पुल बने थे । उसी के पास एक साधु बाबा ने कुटिया बना रखी थी । इस पुल पर खच्चर वगैरा भी जा सकते थे । संदीप भाई ने शुरू में ही बता दिया था कि इस नदी के किनारे किनारे ही चलना है तो रास्ता पूछने की कोई जरूरत नही पडेगी और बस यही भूल हो गयी थी । रास्ता तो नदी किनारे किनारे ही था पर एक नही था बल्कि कई थे और संदीप भाई हमारे साथ नही थे । धन्छो तक एक भी दुकान नही आयी थी । आगे आगे ये भी दिखायी दे गया था कि रास्ता कोई बना हुआ नही है बस जो पत्थर पडे हैं इन्ही पर निशान लगा रखे हैं ।
रास्ते की दूर से पहचान हो जाये इसलिये इतनी तो मेहनत कर रखी थी कि सभी रास्तो के पत्थरो पर सफेद पुताई कर रखी थी । रास्ते में कई जगह नदी सुंदर छोटे छोटे झरने में बदल जाती थी । वैसे तो कुछ जगह किलोमीटर भी लिख रखे थे जिनसे ये पता चलता रहता था कि हम कितनी दूर आ चुके हैं । सुंदर मनभावन नजारे दिल को छू लेने वाले थे पर हमें क्या पता था कि ये तो शुरूआत है और हम कुछ अदभुत नजारे देखने वाले हैं एक शुक्र की बात ये थी कि अभी खच्चर वाले भी ज्यादा नही थे नही तो इतने से रास्ते पर जब लाखो की संख्या में श्रद्धालु आते होंगे और उसी रास्ते पर घोडे वाले चलते होंगे तो यहां तो गिरने की पूरी गुंजाइश रहती होगी और पूरे रास्ते में कहीं कोई रेलिंग नही है सिवाय हडसर से 500 मी चलने के बाद थी बस
धन्छो से एक किलोमीटर पहले नदी पार करने के बाद जो पहले हमने नदी के सीधे हाथ पर चढना शुरू किया था उसे छोडकर हम नदी के बांये हाथ पर आ गये तो वहां पर हरा भरा रास्ता शुरू हो गया । एक मोड सा आया और वो घाटी जो हमें चलते समय दिखायी दे रही थी आंखो से ओझल हो गयी । अब हमें अपने साथी दिखायी देने की संभावना ना के बराबर थी । धन्छो से 100 मी पहले एक दुकान थी चाय की । मैने और संतोष ने इससे पहले कहीं भी कोई ब्रेक नही लिया था लगभग पांच किलोमीटर की चढाई हम लोग लगातार चढे थे पर उसकी वजह थी हमारी कछुआ चाल । संतोष के तीन साथी और विधान का एक साथी हमसे आगे निकल गये थे और उन्होने इस पहले पडाव पर भी रूकना जरूरी नही समझा था । हम सब अलग अलग हो गये थे । फोन यहां पर चल नही रहा था कि किसी से सम्पर्क हो जाये तो अब एक ही रास्ता बचा था कि मै और संतोष इस दुकान पर रूक गये और चाय बनवाकर पी । एक पानी की बोतल ली और मैगी का आर्डर दिया ।
अब तक का सफर बढिया रहा था और हम पहले पडाव तक पहुंच गये थे हमने सोचा कि एक घंटे यहां पर रूकते हैं और पीछे आ रहे साथियो का इंतजार करते हैं इसके बाद ही हम आगे चलेंगें । मै तो दुकान के आगे पडी एक बैंच पर लम्बा होकर सो गया । यहां पेड बडे अंदाज में झुके हुए थे । इसका कारण आगे बताउंगा और कैसे हम लोग सब बिछड गये और अलग अलग रास्तो पर चले गये । कैसे हमें नये नये रास्ते मिले और सबसे अलग क्या खूबसूरत चीज मिली वो अगली पोस्ट में बताउंगा मणिमहेश झील के सफर में
सफर की शुरूआत में एक बोर्ड लगा था जिस पर रास्ते का नक्शा बना था ये पिछले साल का था । क्योंकि जब पिछले साल यात्रा हुई तो पुलिस और मैडिकल के भी कैम्प लगे होंगे । हम तो अभी यात्रा शुरू होने से डेढ महीने पहले जा रहे थे और केवल दुकान लगाने वाले लोग अपनी तैयारी में लगे हुए थे । घोडे खच्चर वाले सीमित होने के कारण ये लोग कुछ दिन पहले से अपनी दुकान लगाना शुरू कर देते हैं चूंकि सारा सामान घोडो और खच्चरो पर ही जाता है तो ये लोग धीरे धीरे ले जाते रहते हैं और फिर अपना स्टाक इकठठा कर लेते हैं । यात्रा के दिनो में फिर इन खच्चर वालो के रेट भी काफी हो जाते हैं इस बीच इन दुकान वालो को हम जैसे बेमौसम वाले भी नसीब हो ही जाते हैं । जिससे दाल रोटी का खर्चा भी निकल आता है ।
रास्ता बडा सुहावना शुरू हो गया था । जब हडसर से चले तो सामने जहां तक नजर जा रही थी वहां तक उपर से आ रही नदी दिखायी दे रही थी लग रहा था जैसे वहीं तक जाना है । रास्ते में धन्छो तक दो जगह नदी को पार किया जिसमें एक छोटा सा पुल था केवल एक आदमी के जाने लायक और एक जगह एक ही साथ दो पुल बने थे । उसी के पास एक साधु बाबा ने कुटिया बना रखी थी । इस पुल पर खच्चर वगैरा भी जा सकते थे । संदीप भाई ने शुरू में ही बता दिया था कि इस नदी के किनारे किनारे ही चलना है तो रास्ता पूछने की कोई जरूरत नही पडेगी और बस यही भूल हो गयी थी । रास्ता तो नदी किनारे किनारे ही था पर एक नही था बल्कि कई थे और संदीप भाई हमारे साथ नही थे । धन्छो तक एक भी दुकान नही आयी थी । आगे आगे ये भी दिखायी दे गया था कि रास्ता कोई बना हुआ नही है बस जो पत्थर पडे हैं इन्ही पर निशान लगा रखे हैं ।
रास्ते की दूर से पहचान हो जाये इसलिये इतनी तो मेहनत कर रखी थी कि सभी रास्तो के पत्थरो पर सफेद पुताई कर रखी थी । रास्ते में कई जगह नदी सुंदर छोटे छोटे झरने में बदल जाती थी । वैसे तो कुछ जगह किलोमीटर भी लिख रखे थे जिनसे ये पता चलता रहता था कि हम कितनी दूर आ चुके हैं । सुंदर मनभावन नजारे दिल को छू लेने वाले थे पर हमें क्या पता था कि ये तो शुरूआत है और हम कुछ अदभुत नजारे देखने वाले हैं एक शुक्र की बात ये थी कि अभी खच्चर वाले भी ज्यादा नही थे नही तो इतने से रास्ते पर जब लाखो की संख्या में श्रद्धालु आते होंगे और उसी रास्ते पर घोडे वाले चलते होंगे तो यहां तो गिरने की पूरी गुंजाइश रहती होगी और पूरे रास्ते में कहीं कोई रेलिंग नही है सिवाय हडसर से 500 मी चलने के बाद थी बस
धन्छो से एक किलोमीटर पहले नदी पार करने के बाद जो पहले हमने नदी के सीधे हाथ पर चढना शुरू किया था उसे छोडकर हम नदी के बांये हाथ पर आ गये तो वहां पर हरा भरा रास्ता शुरू हो गया । एक मोड सा आया और वो घाटी जो हमें चलते समय दिखायी दे रही थी आंखो से ओझल हो गयी । अब हमें अपने साथी दिखायी देने की संभावना ना के बराबर थी । धन्छो से 100 मी पहले एक दुकान थी चाय की । मैने और संतोष ने इससे पहले कहीं भी कोई ब्रेक नही लिया था लगभग पांच किलोमीटर की चढाई हम लोग लगातार चढे थे पर उसकी वजह थी हमारी कछुआ चाल । संतोष के तीन साथी और विधान का एक साथी हमसे आगे निकल गये थे और उन्होने इस पहले पडाव पर भी रूकना जरूरी नही समझा था । हम सब अलग अलग हो गये थे । फोन यहां पर चल नही रहा था कि किसी से सम्पर्क हो जाये तो अब एक ही रास्ता बचा था कि मै और संतोष इस दुकान पर रूक गये और चाय बनवाकर पी । एक पानी की बोतल ली और मैगी का आर्डर दिया ।
अब तक का सफर बढिया रहा था और हम पहले पडाव तक पहुंच गये थे हमने सोचा कि एक घंटे यहां पर रूकते हैं और पीछे आ रहे साथियो का इंतजार करते हैं इसके बाद ही हम आगे चलेंगें । मै तो दुकान के आगे पडी एक बैंच पर लम्बा होकर सो गया । यहां पेड बडे अंदाज में झुके हुए थे । इसका कारण आगे बताउंगा और कैसे हम लोग सब बिछड गये और अलग अलग रास्तो पर चले गये । कैसे हमें नये नये रास्ते मिले और सबसे अलग क्या खूबसूरत चीज मिली वो अगली पोस्ट में बताउंगा मणिमहेश झील के सफर में
यात्रा का आनन्द आ रहा है, अबकी बार सभी पैराग्राफ़ अलग-अलग कर दिये गये है अच्छे लग रहे है।
ReplyDeletevery well written.A few photographs are really beautiful.You seem to be turning into quite some photographer.The bent trees,flowers and some of the valleys with streams of water and mountains are beautifully photographed.keep it up.
ReplyDeleteमन्नू भाई, बहुत ही रोमांचक यात्रा,आप के साथ घूमते रहते है,धन्यवाद .
ReplyDeleteBahut hi khubsurat nazaro ke sath -sath romanch bhi badhta hi jaa raha hai.
ReplyDeleteबहुत सुंदर विवरण . जय शिव शम्भू
ReplyDeleteक्या नज़ारे हैं यार!! रश्क होता है तुम लोगों से|
ReplyDeletebeautiful and lovely photographs. Thanks for sharing.
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ReplyDeleteकुछ गलत सलत लिख दिया था मनु भाई ?
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