manimahesh to hadsar ,मणिमहेश से हडसर तक वापसी का सफर

इस बार मैने सुंदरासी वाला रास्ता पकडा जिसे हम सामने से देखते हुए आये थे । इस रास्ते पर गौरीकुंड से आगे चलते ही रास्ते को लगभग सौ मीटर तक बर्फ ने ढका हुआ था और उस पर अभी ज्यादा लोग चले भी नही थे । इस वजह से उसमे एक आदमी के दो पैर रखने से भी कम जगह बनी थी चलने के लिये । विधान के साथी और दोनो मराठा तो अपनी तेजी से मजबूर इस बार भी काफी आगे निकल गये थे और वे इस बार शार्टकट और तेजी से मार रहे थे । हालांकि उतरते समय कच्चे पक्के रास्तेा को नही चलना चाहिये ये खतरनाक होता है । चढने से उतरना ज्यादा कठिन होता है क्योंकि चढने में केवल सांस फूलने की और थकान की समस्या रहती है लेकिन उतरने में आपकी एक गलती से आपका पैर मुड सकता है आप फिसल भी सकते हो । खैर संदी







अब बारी थी वापस उतरने की और उतरने में सबसे ज्यादा डर की वजह थी लगातार ढालान । इस बार मैने सुंदरासी वाला रास्ता पकडा जिसे हम सामने से देखते हुए आये थे । इस रास्ते पर गौरीकुंड से आगे चलते ही रास्ते को लगभग सौ मीटर तक बर्फ ने ढका हुआ था और उस पर अभी ज्यादा लोग चले भी नही थे । इस वजह से उसमे एक आदमी के दो पैर रखने से भी कम जगह बनी थी चलने के लिये । विधान के साथी और दोनो मराठा तो अपनी तेजी से मजबूर इस बार भी काफी आगे निकल गये थे और वे इस बार शार्टकट और तेजी से मार रहे थे । हालांकि उतरते समय कच्चे पक्के रास्तेा को नही चलना चाहिये ये खतरनाक होता है । चढने से उतरना ज्यादा कठिन होता है क्योंकि चढने में केवल सांस फूलने की और थकान की समस्या रहती है लेकिन उतरने में आपकी एक गलती से आपका पैर मुड सकता है आप फिसल भी सकते हो । खैर संदीप जी अभी राजेश जी को लेकर आ रहे थे और विपिन ने मेरे मुंह से इस रास्ते की ज्यादा ही तारीफ सुनकर इस बार इस रास्ते से जाने का फैसला कर लिया था  । बाद में मैने बुराई भी की इस रास्ते की पर अब क्या हो सकता था पर एक काम मैने कर दिया । पूरी चढाई मैने 12 किलो के बैग को लेकर चढी या विधान ने चढी । विपिन खाली हाथ मजे से आया था । मैने अपना बैग उसके कंधे पर टांग दिया कि भाई अब तो उतराई है और मैने अपना वजन भी कम कर दिया था ।

MANIMAHESH YATRA-




 अभी गर्म बनियान
, टोपा और चादर के साथ साथ छतरी और पानी की बोतल कैमरा वगैरा सब मेरे पास ही थे । बस एक जोडी कपडे उस बैग में थे । विधान से मेरा मिलना पूरी मणिमहेश की चढाई और उतराई के दौरान सिर्फ पांच मिनट के लिये हुआ था ये भी एक अजीब बात थी । तो मै इस वक्त इस बर्फ के फिसलन भरे ढालान पर अकेला ही रह गया था । खैर जैसे तैसे मैने चलना शुरू किया । रास्ते से जितनी उंचाई तक बर्फ थी उतनी  ही नीचे तक भी थी यानि कोई चांस नही था अगर फिसल गये तो बचने का । उपर से ये बर्फ भी समतल नही थी बल्कि उतराई यानि ढालान पर थी । चढते समय तो इतनी दिक्कत पेश नही आयी होगी लेकिन उतरते वक्त सबको परेशानी महसूस हुई । किसी के हाथ में कोई डंडा या लाठी भी नही थी । मै एक बार बीच में रूक गया और पहले एक फोटो खुद लिया । कोई लोकल भी तो दूर दूर तक दिखायी नही दे रहा था जो मेरा फोटो ले सकता । मेरी चप्पल भी कल बंदर घाटी के रास्ते को आते हुए टूट गयी थी आगे से और मै उसी से काम चला रहा था । उस रास्ते पर पत्थर ज्यादा थे जबकि इस रास्ते पर नही । जैसे तैसे एक दो बार बैठकर  इस रास्ते को पार किया और आगे की ओर चल पडा । इस बार तो संतोष में भी जान आ गयी थी और कल जिसे पकड पकड कर चढना पडा था आज वो दनदनाता हुआ मुझसे आगे निकल गया । मै अपनी चाल चले जा रहा था ।



यहां के लोग कितने मेहनती होते हैं इसका अंदाज हम कभी नही लगा सकते । रास्ते में कुछ लोकल मिले जो लकडी के तख्ते लेकर चढ रहे थे । मैने एक से बात की तो वो बोला कि घोडे वाला जितने वजन को एक बार में लेकर जाता है वो मै देा बार में लेकर जाता हूं । ऐसे ही मै दो बार में घोडे वाले के एक बार के बराबर पैसे लेता हूं । तो बात बराबर हुई वो घोडे वाले घोडे के घास पानी दवा पानी पर खच्र करता है जबकि मेरा ये खर्चा नही होता । उससे बात करने के बाद देा बार और बर्फ आयी रास्ते में पर ये ज्यादा लम्बी नही थी गसुंदरासी पहुंचने पर देखा कि मराठा पाटी इकठठे मैगी बनवाकर खा रही थी । मैने भी अपनी मैगी का आर्डर दे दिया और उनके साथ बैठकर खायी । एक और जिक्र करना चाहूंगा कि यहां पर पानी का मैनेजमैंट गजब का है । रास्ते में जो दुकाने हैं वे अपने से थोडी उंचाई पर एक पाइप डाल देते हैं और उस पाइप में उपर से आ रहे तेज गति के पानी से ऐसा प्रेशर बन जाता है कि वो उस दुकान तक बडे आराम से पानी देता है वो भी बिना किसी मोटर के और चौबीसो घंटे । य​ही नही हडसर में भी मैने यही इंतजाम देखा । वहां पर भी पानी के लिये पाइप डाले हुऐ थे पर वे काफी मोटे थे जिन्हे फोटोज में भी आप रास्ते में पडे हुए देख सकते हो । सुंदरासी से आगे चलने पर हमें रास्ते में कुछ लोकल लोग मिले जो उपर दर्शनो के लिये जा रहे थे । उनमें से ज्यादातर इसलिये जा रहे थे क्योंकि बाद में यात्रा शुरू हो जाने पर वो इस तरीके से दर्शन नही कर पायेंगें जैसे कि अब कर ले



इनमें दो औरते भी मिली । औरते नही एक औरत और एक लडकी जो अपने साथ एक भेड भी लिये थी और उसके गले में माला वगैरा पहनाकर उन्होने टीका आदि लगा रखा था । मै समझ तो गया कि ये ऐसा बलि चढाने के लिये होता है पर फिर भी मैने पूछा अपना शक दूर करने को । वे औरते बिलकुल् अपनी लोकल भाषा में बोल रही थी । पर फिर भी कुछ कुछ उन्होने यही माना कि वेा इसकी बलि चढायेंगी पर कहां । क्योंकि मणिमहेश में तो कोई ऐसी ना तो जगह है ना हमने सुना पढा देखा है तो उन्होने कोई स्पष्ट जबाब सा नही दिया । खैर उनकी इजाजत लेकर उनका एक फोटो खींचा और आगे को चल दिये । रास्ते में दो चीजे और साफ साफ दिखायी दी । एक तो झरना और दूसरा रावण घाटी का रास्ता । असल में बंदर घाटी वाले रास्ते में चलते चलते काफी उंचाई पर चला जाता है रास्ता और गौरी कुड में जाकर नीचे उतरता है जबकि यहां पर गौरीकुंड में जाकर चढाई शुरू होती है रास्ते में किनारे किनारे  चलती हुई नदी दूर दूर तक कई जगह बर्फ से ढकी थी और पानी नीचे को जा रहा था । हमारे भैरो बाबा हमें फिर से​ मिल गये थे । इस बार वो संतोष के साथ चल दिये थे । मैने कुछ देर रूककर जाट देवता का इंतजार किया क्योंकि वो उपर से मुझे आते हुए दिखायी दे गये थे । उसके बाद जाट देवता और मै धन्छो तक साथ साथ रहे और वो कुत्ता भी हमारे साथ साथ ही चलता रहा  । जाट देवता ने अब उसे भगाने को ​कोशिश शुरू कर दी थी क्योंकि उनका मानना था कि इस तरह तो ये हमारे साथ नीचे तक ही चलता जायेगा और फिर नीचे जाकर इसे वहां के कुत्ते परेशान करेंगे या फिर हो सकता है ये यहां के किसी लोकल आदमी का हो और नीचे जाकर भटक जाये तो खामव्खाह हम पर पाप चढेगा ।




पर वो तो मानने को ही तैयार नही था । वो आगे चलता तो कभी उंचाई पर खडा होकर हमें देखता रहता और फिर जब हम एक या दो मोड  नीचे उतर जाते तो वो शार्टकट रास्ते से उतरकर पहले खडा हो जाता और हमें चिढाकर दिखाता । उसने हमारा मन लगा दिया था सफर में और हमने उसके खाने का पूरा ध्यान रखा था कल से । हर कोई उसकेा कुछ ना कुछ खाने को दे देता था । आज कल का उलट हो रहा था । कल हम उंचाई से विपिन को देख रहे थे आज विपिन हमें देखता जा रहा था । कल जो फोटो में रास्ता मैने आपको दिखाया था जो कि लहराते सांप की तरह खडी चढाई थी उस पर आज हमें उतरना था । बडा मुश्किल हो रहा था  धन्छो तक जाना क्योंकि लगातार उतरने में अपने पैरो को रोकना बडा मुश्किल होता है । मै वही चाल चलता हूं उतरने में भी जो कि चढने में चलता हूं । जाट भाई भी मेरे साथ साथ ही चलते रहे । विपिन अपने रास्ते पर हमारे बराबर ही चल रहा था और हमने उसे इशारा करके बता दिया था कि धन्छो में मिलेंगे । उसने भी अपनी दूरबीन से देखकर हाथ हिला दिया



धन्छो में पहाडी बच्चे मिले कुछ जिन्हे देखकर ऐसा लगा कि क्यों नही जीवन में इतनी निश्छलता और सादगी आ जाती है जिसे जीवन भर ऐसा ही रखा जा सके । बच्चे अपनी खेलकूद में मस्त थे और जब हमने उनसे कहा कि उनके फोटो खींचने हैं तो सबने बडे प्यार से बिना कुछ पूछे खिंचवा लिये । बाद में हमने उन्हे 20 रू दिये कि वो पांच छह बच्चे आपस में बांट लेंगे । बच्चो की आंखो में जो उस वक्त चमक थी और उनके चेहरे पर जो उल्लास था वो देखने लायक था ।




धन्छो में मै ,विपिन , जाट देवता  और  संतोष मिल गये । यहां कुछ देर हमने उसी दुकान पर आराम किया जिस पर आते वक्त सबसे पहले रूके थे और उसके बाद चाय और मैगी खायी । डेढ घंटे तक हमने राजेश जी का इंतजार किया । राजेश जी के आने के बाद ही हम लोग नीचे के लिये चले । इस बार चलने से पहले हमने अपने साथ आ रहे कुत्ते को भी चकमा दिया और एक एक करके निकल गये । क्योंकि ये कुत्ता हमें धन्छो में ही मिला था तो यहीं का होगा ये सोचकर उसे यहीं पर छोड दिया धन्छो से थेाडा नीचे चलते ही एक रास्ता उपर की ओर कट गया । इस पर लिखा था कि आप यहां से भी हडसर जा सकते हैं और दूरी है 4 किमी0 । जबकि मुख्य रास्ते से भी दूरी 4 किमी0 थी तो जाट देवता को कहा तेा वो बोले कि हम तो उसी रास्ते से जायेंगे जिससे आये थे । मै रूककर थोडा इंतजार किया । पीछे से विपिन आया तो मैने उससे पूछ तू बता भाई क्या इरादा हे


मुझे पता था कि विपिन के ना करने का सवाल ही नही है । संतोष भी हमारे साथ हो लिया था । अब हम तीनो जिस रास्ते पर चले वो रास्ता नदी के किनारे ना होकर कुछ दूर तक तो प्लेन चला पर उसके बाद काफी उंची चढाई आ गयी । एक फायदा तो हुआ कि लगातार उतरते रहने के कारण चढने में ठीक लग रहा था पर कुछ दूर जाते ही अहसास हो गया कि हम गलत रास्ते पर आ गये हैं और ये बंद रास्ता है जिसका अब प्रयोग नही होता । ये शायद सबसे पहला रास्ता था क्योंकि यहां भंडारो के चबूतरे और दुकानो के चबूतरे भी थे पर सब बंद थे पता नही कितने सालो से और उन पर घास उग गयी थी । घना जंगल था और हम नीचे के रास्ते से और उंचे चढ गये थे । हम सबने लम्बे लम्बे डंडे ले लिेये क्योंकि यहां पर तितलियां भी थी तो गिरगिट और सांप वगैरा भी एक दो दिखायी दिये । विपिन तो फोटो खींचने में मस्त था पर मैने तो एक लम्बा सा लठ तोड लिया था



गयहां पर कई जगह रास्ता बंद था । जहां पेड टूटकर गिर गये थे वहां से किसी ने सालो से उन्हे हटाया नही था । चीड के फल रास्ते में जगह जगह टूट टूट कर गिरे हुऐ थे । हम आवाज लगाते भी तो किसे दूर दूर तक सुनने वाला कोई नही था । जहां जहां रास्ता बंद था वहां पर नीचे उतरने के लिये डंडे बडे काम आये । पर एक जगह बडी अजीब स्थिति आ गयी थी । यहां पर भूस्खलन से दो ढाई फीट चौडा रास्ता टूट चुका था और दूसरी ओर खडा पहाड था जिस पर चढा नही जा सकता था । उस पर कैसे जायें । वापिस जायें तो कम से कम डेढ किलोमीटर चलना पडेगा जो हमारे बस में नही था । तभी हमने वहां पर उपर से टूटकर गिरे हुऐ पेड देखे उनके टुकडे इधर उधर पडे थे उनमें से तीन चार लम्बे लम्बे टुकडे उठाये मैने और संतोष ने और उस गढढे पर रख दिये । हांलांकि ये पेड की छाल जैसे थे और हमें विश्वास नही था कि ये हमारा वजन सह जायेंगे या नही ।तो हमने अपने साथ लिये हुए डंडे जो कि लगभग सात आठ फुट के थे उनको नीचे जहां मिटटी थी वहां पर टिका टिका कर उस जगह को पार किया । बडा नाजुक क्षण था एक बार बैलेंस बिगडने या थोडा सा भी तख्ते के टूटने की स्थिति में मौत तय थी पर भोलेनाथ की कृपा से हम पार हो गये । अब हम सोच रहे थे कि इस रास्ते से जल्दी से पीछा छूटे कैसे भी । हमें ये भी नही पता था कि ये रास्ता कहां जाकर निकलेगा । अचानक उतराई शुरू हो गयी वो भी काफी खडी । एक किलोमीटर तक उतरने के बाद उस रास्ते का मिलन सीधे हडसर से एक किलोमीटर पहले हमारे जाने वाले रास्ते में हो गया । यहां से हमने फिर से नया रास्ता पकडा जो कि नदी किनारे ही जा रहा था । वो क्या है ना आदत सुधरती जो नही ...........



इस बार हम गेट वाले रास्ते से ना होकर नीचे खच्चरो वाले रास्ते से
मुख्य सडक पर आ गये जहां से वापिस हमें मेन रोड से वापिस चलकर हडसर अपने होटल तक जाना था । ये रास्ता खच्चरो के लिये बना था और जब हम होटल पहुंचे तो सब लोग गाडी में अपना और हमारा सामान रखकर रेडी थे और हमारी ही इंतजार हो रही थी । दिन के करीब 2 बजे थे और सब चलने की जल्दी में थे पर हमारे सामने उस रास्ते के नजारे और खतरे घूम रहे थे ।




चलो अब चलते हैं आगे भरमौर के चौरासी मंदिर में जो कि चौरासी मंदिरो का समूह है
इस पोस्ट में 2200 से अधिक शब्द हैं




































COMMENTS

BLOGGER: 6
  1. beautiful post,very good photos.that crossing on flimsy barks must be avoided.life is the most precious gift God has blessed us with.travel but safely.

    ReplyDelete
  2. मनभावन चित्रों तथा सुंदर लेखन शैली ने वृत्तांत को जीवंत कर दिया.पढ़ते हुये रोमांचित हो उठे हैं.बधाई.

    ReplyDelete
  3. भाखड़ा नागल वाली पोस्ट पर सुबह बहुत बड़ा कमेन्ट किया था, ऐन वक्त पर गलती से पेज बंद हो गया :(
    आनंद आया पढ़कर, आज पहली बार ही इस ब्लॉग पर आना हुआ है लेकिन अब तक जितना पढ़ा है, वो बहुत अच्छा लगा|
    जाट देवता को आईसक्रीम का भोग लगाते रहे न ? :)

    ReplyDelete
  4. इन सुरम्य वादियों में किसका मन न रमेगा!

    ReplyDelete
  5. Awesome pics. And you are right. The innocent and happy expressions on those kids' faces made me smile.

    ReplyDelete

Name

A,5,ADVENTURE,117,AGRA BHARATPUR YATRA,8,airasia,1,almora,1,AMRITSAR YATRA,7,ANDAMAN,63,ANDHRA,4,ASSAM,6,badrinath,1,badrinath yatra,6,BATH TOUR,12,BEACH,50,beautiful way,1,bhuntar,1,bijli mahadev,1,BIKE TOUR,240,birds,19,blogging tips,1,bridge,1,bridge camera,1,Bus yatra,11,camera,1,canon x50 hs,2,car hire,1,car tour,3,CAR TRIP,140,char dham,1,chhatisgarh,1,CITIES,111,combodia,1,coonnoor,1,cricket,1,DADRA NAGAR HAVELI,2,dalhousie,1,daman and deev,1,data teriff,1,Dayara dodital,11,DELHI,19,DELHI PLACES TO SEE,16,dewal to lohajung,1,domain name,1,elephaSIKKIM,1,English Post,2,facbook news,2,featured post,1,flight,1,flowers,7,FORTS,15,gangotri,3,goa,2,google page rank,1,Guest Post,8,GUJARAT,8,gurudwara rewalsar,1,Har ki doon,1,hill stations,2,HILLS,336,HILLS.,1,HIMACHAL,169,Himachal pradesh,12,HISTORICAL,65,hkd and auli,17,hotels,1,indonesia,1,itinerary,5,JAMMU & KASHMIR,35,kamaksha devi BIKE TOUR,1,kampty fall,1,KARERI YATRA,13,KARNATAKA,8,Kartik swami,3,KASHMIR YATRA,12,Kedarkantha Tadkeshwar,7,kedarnath,1,KEDARNATH YATRA,7,keral,8,KINNAUR SPITI YATRA,40,kosi river,1,kotdwar,1,Kuari pass,12,lake,61,lake photos,1,landscape,1,lansdwone,1,Leh laddakh,24,light effects,1,lohagarh fort,1,lohajung,1,madhya pradesh,3,MAHARASHTHRA,13,Manali,1,manikaran,1,manimahesh,1,MANIMAHESH YATRA,21,MAUT KA SAFAR,5,meghalaya,18,Mix writing,8,moon. night shot,2,mp tour,10,mumbai,1,munsyari,2,munsyari yatra,23,mussorie,1,nag tibba,2,naina devi rewalsar,1,nanda devi rajjat yatra 2013,1,nature,343,NAU DEVI YATRA,5,Nepal,26,Nepal yatra,25,net setter,1,night shot,2,North east,2,NORTH EAST TOUR,62,NORTH INDIA YATRA,28,odisha,18,parks,37,people,3,photography,177,Pindar Kafni trek,5,PUNJAB,7,rajasthan,40,ramshila,1,RELIGIOUS,192,rent a car,1,rewalsar,2,RIVER,43,ROADS,166,roopkund yatra,84,Savaari car rentals,1,school function,1,search engine . how to submit my blog in search engine,2,seo tips,1,shakumbhri devi,2,Shimla,2,sikkim,15,skywatch,2,SNOW,2,SOLO BIKE YATRA,88,south india,2,SOUTH INDIA TOUR,30,spiti,1,sunset,8,super zoom camra,2,tamilnadu,10,technology,3,terrorism attack,1,Thar and alwar,23,TRAIN TOUR,72,Travel,27,travel guide,22,Travel Tips,1,travel with bus,35,trekking,127,uttar pradesh,23,UTTRAKHAND,189,uttranchal,5,VARANSI YATRA,2,WEST BANGAL,12,zoom shot,1,अलेक्सा,1,अलेक्सा रैंक,2,अल्मोडा,1,उत्तराखंड,4,उत्तरांचल,4,कुन्नूर,1,कोसी नदी,1,दक्षिण भारत,1,दिल्ली,2,पूर्वोत्तर भारत,1,बाइक यात्रा,4,मजेदार चुटकुले और चित्र,1,महाराष्ट्र,1,मिश्रित,5,हिंदू धर्मस्थल,1,हिमाचल प्रदेश,8,
ltr
item
TravelUFO । Musafir hoon yaaron: manimahesh to hadsar ,मणिमहेश से हडसर तक वापसी का सफर
manimahesh to hadsar ,मणिमहेश से हडसर तक वापसी का सफर
इस बार मैने सुंदरासी वाला रास्ता पकडा जिसे हम सामने से देखते हुए आये थे । इस रास्ते पर गौरीकुंड से आगे चलते ही रास्ते को लगभग सौ मीटर तक बर्फ ने ढका हुआ था और उस पर अभी ज्यादा लोग चले भी नही थे । इस वजह से उसमे एक आदमी के दो पैर रखने से भी कम जगह बनी थी चलने के लिये । विधान के साथी और दोनो मराठा तो अपनी तेजी से मजबूर इस बार भी काफी आगे निकल गये थे और वे इस बार शार्टकट और तेजी से मार रहे थे । हालांकि उतरते समय कच्चे पक्के रास्तेा को नही चलना चाहिये ये खतरनाक होता है । चढने से उतरना ज्यादा कठिन होता है क्योंकि चढने में केवल सांस फूलने की और थकान की समस्या रहती है लेकिन उतरने में आपकी एक गलती से आपका पैर मुड सकता है आप फिसल भी सकते हो । खैर संदी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjZuv_4RHiqUD6UO8rWfUvJi4bVOJG_eCBF-KSY6aw9G9ZNLaGy4ZpT2W4gYMU8ywee7SONaBvaVarSltLumFvGQCxTMlB1LUVvG5c-xlp0sIJ5M8ofWv8jfdVHRBzMkSUerBxz6WbZDIU/s640/Picture+841+copy.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjZuv_4RHiqUD6UO8rWfUvJi4bVOJG_eCBF-KSY6aw9G9ZNLaGy4ZpT2W4gYMU8ywee7SONaBvaVarSltLumFvGQCxTMlB1LUVvG5c-xlp0sIJ5M8ofWv8jfdVHRBzMkSUerBxz6WbZDIU/s72-c/Picture+841+copy.jpg
TravelUFO । Musafir hoon yaaron
https://www.travelufo.com/2012/09/manimahesh-to-hadsar.html
https://www.travelufo.com/
https://www.travelufo.com/
https://www.travelufo.com/2012/09/manimahesh-to-hadsar.html
true
3208038011761466705
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content