गुप्तकाशी में एक जगह रूककर हमने चाय नाश्ता किया और और कुछ फोटो खींचे । उसके बाद गौरीकुंड की ओर चलने से पहले एक बहुत ही सुंदर झरना रास्ते म...
गुप्तकाशी में एक जगह रूककर हमने चाय नाश्ता किया और और कुछ फोटो खींचे । उसके बाद गौरीकुंड की ओर चलने से पहले एक बहुत ही सुंदर झरना रास्ते में आया तो वहां पर भी फोटो खिचाने का मोह नही छोड सके । झरना काफी उंचाई से आ रहा था और बहुत ही सुंदर लग रहा था । एक दो फोटो लेकर वहां से भी हम चलते बने । आगे गौरीकुंड पहुंचे तो वहां पार्किेग की समस्या दिखी । ये जगह छोटी है और यात्रा के सीजन में गाडियो की रेलमपेल में बडी बसे रास्ते में ही पार्क एक साइड में होनी शुरू हो जाती हैं और जो ड्राइवर हमेशा के लाने वाले हैं वे तो तीन से चार किलोमीटर पहले ही पहाडो में कोई भी ठीक सी जगह देखकर वहीं गाडी खडी कर देते हैं और यात्रियो को कह दिया जाता है कि आप जाओ ये 4 किलोमीटर का सफर और करो फालतू में ।
ऐसे लोग आपको पैदल सडको पर जाते मिल जायेंगे जिनकी गाडिया बडी बस होती हैं और उन्हे काफी पहले छोड देती हैं खैर हमारी तो बाइक थी सदाबहार नो पार्किग वाली फिर भी एक छोटी सी जगह बाइको को भी जगह दे रखी थी हमने भी वहीं पर खडी कर दी बाइक और तुरंत ही चढना शुरू कर दिया केदारनाथ के लिये । गौरी कुंड में हमने सिर्फ बाजार देखा जो कि केदारनाथ की चढाई के रास्ते में आता है और बाइक से केवल एक एक जोडी कपडे निकाले ताकि हम सुबह को नहा धोकर पहन सकें । 14 किलोमीटर की चढार्इ् में हम ज्यादा वजन नही ले जाना चाहते थे सेा बाकी के सामान को हमने दो बैगो में करके वहीं गौरीकुंड में ही एक अमानती सामान घर में रख दिया । अमानती सामान घर वाला प्राइवेट दुकानदार था और उसने हमें एक टोकन दे दिया । मैने आपको फूलो की घाटी और हेमकुंड की यात्रा के बारे में बताया ही था कि मेरी सोच ये रहती है कि जितनी एनर्जी हो सके बचायी जाये सो शुरू से तो नही पर कुछ दूर जाकर हमने घोडे वालो से पूछना शूरू कर दिया ।
एक किलोमीटर तक तो घोडे वाले पूरे मुंह फाडकर पैसे मांगते हैं उसके बाद कुछ नरमी आनी शुरू होती है एक घोडे वाला जो वापसी से खाली घोडा लिये आ रहा था हमें मिल गया और अकेला होने के कारण केवल 300 रू में हमने उस पर लवी को बिठा दिया ताकि उसे ज्यादा दिक्कत ना हो और घोडे की पूंछ पकडकर हम भी उसके साथ साथ चलने लगे । पर ये जो घोडे वाले होते हैं और इनके घोडे बहुत तेज चलते हैं शुरू शुरू में तो हम इनके साथ चलते रहे पर रामबाडा जो कि आधे रास्ते मे पडता है वहां तक हम बिलकुल बेकार हो गये । एक तो चार पांच दिन से बाइक पर थे और रोजाना 200 के आसपास बाइक चल रही थी दूसरे इस बार गंगोत्री में भी कोई चढाई नही चढनी पडी थी तो एकदम से तेजी से चढने से सांस भी फूल गया और एकदम से पैर दर्द करने लगे । रामबाडा में जाकर घोडे वाले ने भी रेस्ट लिया और हमने भी । दोपहर हो चुकी थी सो घोडे वाले से कहकर हमने खाने का भी आर्डर दे दिया और खाना खाने लगे ।
खाना खा पीकर लवी को तो घोडे पर बिठा दिया और लवी को कह दिया कि तुम चलो और हमें जहां पर घोडे वाले रोकते होंगे वहां मिलना । अब उसके बाद हम तीनो ने अपना जोर देखा कि क्या हम और भी पैदल चल पायेंगे । असल में सामान्य कोई भी व्यक्ति जब चढता है तो कहीं पर रूककर आराम भी कर लेता है पर घोडे वाले तो घोडे के साथ लगातार चलते हैं और सात किलोमीटर यानि रामबाडा में ही आराम करते हैं वो भी घोडे को पानी पिलाने और अपनी चाय के लिये तो तीनो निढाल थे और घोडे के साथ चलने के चक्कर में बढिया तरह थक चुके थे तो हमने भी घोडो की तलाश शुरू कर दी और थोडी सी दूर चलते ही हमें तीन घोडे 150 रू प्रति घोडे के हिसाब से मिल गये । अब एक और मुसीबत थी हम घोडे पर तो बैठ गये थे पर मौसम अचानक ही खराब होना शुरू हो गया था और हम तो ना तो गर्म कपडे लिये हुए थे और ना ही बरसात के लायक ।
एक दूसरी बात कि जैसे ही रामबाडा से उपर चढे तो ठंड और ज्यादा बढ गई थी और पिछली बार की तरह इस बार भी हमने गर्म कपडे नही लिये थे । बाइक पर इतना सामान कहां आता हैं ।थोडा और आगे चलने पर जब बारिश तेज सी हो गई तो हमने एक जगह बरसाती पन्नी जो कि 20 रू की मिल जाती है ले ली और उसे पहन लिया पर घोडे पर बैठने की वजह से वो पैंट को नही बचा पा रही थी बस उपर का शरीर बच सकता था । अब कर ही क्या सकते थे सो चलते रहे । अब हमें बर्फीली पहाडिया भी दिखनी शुरू हो गयी थी । मंदिर के पास पहुंचकर घोडे वाले ने अपने स्टैंड पर हमें उतार दिया जहां लवी पहले से ही एक दुकान में बैठकर चाय का आनंद ले रही थी पर भीग वो भी चुकी थी और गुस्सा थी । वजह पूछने पर पता चला कि हेमकुंट साहिब की तरह घोडे वाले ने मंदिर से कुछ पहले मैडम को गिरा दिया था । असल में घोडा को ठोकर लगने से थोडा बैलेंस बिगडा और मैडम जी गिरती गिरती गिर गयी । चोट तो नही लगी पर एक हंसी की बात जो उन्होने बताई कि मैने घोडे वाले को पैसे नही दिये जब मैने पूछा क्यों तो बोली अच्छा उसने मुझे गिरा दिया और मै उसे पैसे दे देती । इस बात को सुनकर हम लवी को गिरने की बात भूल गये और खूब ठहाके लगाये क्योंकि मुझे याद आ गया कि अगर सब्जी वाला सब्जी एक दिन खराब दे जाये तो अगले दिन जो उसकी शामत आती है वो ही घोडे वाले की हुई होगी । शायद मै होता तो ऐसा ना होता पर एक तो उसने लवी को गिरा दिया वो इसीलिये डरा होगा तभी उसने एक बार भी पैसो के बारे में कुछ नही कहा बल्कि माफी और मांगी ।
अब बारी थी मंदिर दर्शन की और ठहरने की जगह देखने की । बरसात में हमारे सबके कपडे भीग चुके थे और वाटर प्रूफ बैग ना होने की वजह से जो एक एक जोडी कपडे हमने नीचे से रखे थे उनमें भी हल्का हल्का पानी जा चुका था । दूसरा यहां तो हम बर्फ के पहाडो में ही थे और शाम का समय था ठंड अपने चरम पर थी । मंदिर को जाने वाले रास्ते पर कई पुजारी मिले जिन्होने हमसे पूछताछ शुरू कर दी । कहां से आये हो ? कौन सा गौत्र है ? क्यूं पूछ रहे हो महाराज ? तो बोले कि आपको पूजा करानी है तो आपके पंडे ही करायेंगे जो उस क्षेत्र के होंगे । हमने कहा हमें नही करानी पूजा वगैरा हम तो भगवान केदारनाथ के दर्शन करने आये हैं और उसके लिये किसी महाराज की जरूरत नही । इसके बाद कोई नही आया । मंदिर जाने वाले रास्ते पर दुकाने लगी थी जिस पर से हमने सबसे पहले बादाम की गिरी ली और एक एक मुठठी सबने खा ली कि कुछ तो गर्मी देगी ।
जब हम मंदिर में पहुंचे तो अंधेरा बस होने ही वाला था और हमने पहले मंदिर का रूख किया । मंदिर में बाहर जूते चप्पल निकाले , प्रसाद लिया और अंदर लाइन में लग गये । मंदिर में जब हमने दर्शन किये तो भगवान भोलेनाथ के दर्शन करके बडा अच्छा लगा । पहाडो के बीच बसे इस सुंदर तीर्थ स्थान को देखकर सारी थकान दूर हो जाती है जो यहां चढने में होती है क्योंकि यहां की चढाई सबसे कठिन है
है इसका उदाहरण इस बात से दिया जा सकता है कि 7000 फुट की उंचाई पर गौरीकुंड है तो केदारनाथ तक 14 किमी0 की चढाई में 7000 फुट ही और चढना होता है जिन लोगो को चढाई चढने की शक्ति नही होती वो घोडे कर लेते हैं पालकी और बच्चो व छोटे सामान को ले जाने के लिये भी किराये पर आदमी मिल जाते हैं । शाम के समय मंदिर और केदार घाटी का सौंदर्य कुछ अलग ही निखरकर आता है ।
मंदिर के अंदर पीले रेशमी वस्त्रो से सजे और सेाने चांदी के गहनो से सजे केदारनाथ् जी के स्वयंभू शिवलिंग को देखकर मन अगाध आस्था से भर जाता है मंदिर बाहर से देखने से इतना आकर्षक नही लगता जितना कि अंदर से । अंदर तो बहुत ही सुंदर कारीगरी की गई है और पत्थर के खंबो पर भी आकृतियां उकेरी गयी हैं दर्शन करके हम बाहर आये और फोटो वगैरा लिये । लवी को तो इतनी ठंड लग रही थी कि उसने मेरी एक शर्ट जो कि बैग् में थी और कम भीगी थी उसे सूट के उपर पहन लिया । वो तो ठंड से हमारी जान कुछ तो उस बरसाती पन्नी जो कि 20—20 रू की बरसात से बचने को ली थी , ने बचा रखी थी । मंदिर के पीछे से भी हमने एक फोटो लिया तब तक लाइटे जल चुकी थी अंधेरा फैलने के कारण ।
मंदिर से बाहर आकर हमने कपडे की दुकान देखी और एक दुकान से विनचीटर का सैट जिसमें कि उपर की जैकेट के अलावा नीचे का पाजामा भी होता है वो तीनो ने खरीदा इसके अलावा लवी ने एक शाल लिया और फिर हम निकले कमरे की तलाश में । जहां भी हम गये वहीं पर जगह नही मिली । काफी देर तक तलाश करने के बाद एक जगह थोडी दूर को चलकर हमें एक बंदे ने कमरे दिखाये जो हमें ठीक लगे पर वो 500 रू प्रति कमरा दे रहा था । मौसम बहुत सर्द था और हम गीले कपडो में थे हमें कपडे बदलने जरूर थे और खाना भी खाना था । रात के कम से कम आठ या नौ बज रहे होंगे हमने सोचा कि 500 रू ही सही पर कमरा अच्छा मिल रहा है सो दो कमरे ले लिये । कमरे में जाते ही हमें पता चला कि उन कमरो के पास में ही एक टिन का कमरा बना है जिसमें एक पहाडी लडका खाना और चाय बनाता है । इससे बढिया और क्या हो सकता था वो होटल की रूम सर्विस की तरह था हमारे कमरो के ठीक सामने । हमने पहले उसे चाय का और फिर खाना बनाने का आर्डर कर दिया । जब तक उसने रोटिया बनाई तब तक लवी ने हमारे बैग में जो कपडे थोडे से पानी जाने की वजह से गीले हो गये थे उन्हे सुखा दिया । इसके बाद खाना खाकर मै एक लोई खरीदने के लिये फिर से बाजार में उसी दुकान पर गया और वापिस आकर हम सोये ।
हमारा मन था कि हम सुबह सवेरे चलने से पहले एक बार और बाबा केदारनाथ जी के दर्शन करें इस यात्रा में हमारे पास कैमरा ना होकर नोकिया एन 70 मोबाईल था जिसकी अपनी एक सीमा होती है इसलिये शाम के फोटो थोडे कमजोर हैं मैने आपको इस लेख में बाबा केदारनाथ के बारे में अधिक जानकारी नही दी क्योंकि हमने अगली सुबह शांति और प्यार के साथ दर्शन किये थे जबकि शाम को जल्द बाजी में इसलिये मै इसका वर्णन अगले और इस सीरीज की समापन किश्त में करूंगा । साथ ही केदारनाथ यात्रा में दर्शन करने के बाद जब हम घर वापिस जा रहे थे तो हमारा मौत से साक्षात्कार हुआ जिसे आपके पढकर भी रौंगटे खडे हो जायेंगे उस अनुभव को बताने के लिये मेरे अगले लेख की प्रतीक्षा करें धन्यवाद
केदारनाथ से पहले एक शानदार झरना |
गुप्तकाशी में चाय की दुकान पर |
झरने के पास |
फोटो धुंधला है पर अकेले रवाना कर रहे थे सो सबूत है |
केदारनाथ जी का रास्ता |
रास्ते का एक और नजारा |
रास्ते में बहती जलधारा |
ऐसी हैं यहां बर्फ की चोटियां |
रास्ता और नदी और बर्फ तीनो एक साथ |
ये फोटो मोबाईल के फ्रंट कैमरे का है |
जय बाबा केदारनाथ की |
दर्शनो को जाते श्रद्धालु |
बारिश से क्या हाल है आपने देख् ही लिया होगा |
भोले बाबा के पहले दर्शन |
श्रद्धालुओ की भीड |
ठंड देखिये और मेरा त्याग एकमात्र सूखी शर्ट वो भी नही छोडी |
ये हमारे साथी आशू |
अंकित , कहता है मेरा फोटो नही देते |
मेरे पीछे मरकरी लाइट है |
जय बाबा केदारनाथ की |
सुबह आयेंगे बाबा जी |
nice post keep blogging
ReplyDeleteRegards,
Umesh Tarsariya
jai baba kedarnath ji ki....जय हो बाबा केदारनाथ जी की.....पत्नी के लिए इतना तो त्याग करना ही पड़ता है।
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