पिंडारी ग्लेशियर की इस यात्रा पर हमने इस मार्ग के आखिरी गांव खाती से सुबह 11 बजे अपनी यात्रा शुरू कर दी थी । हमारा पहला इरादा घर से बना था कि हम शाम के समय तक खरकिया में पहुंचकर शाम को एक घंटे का ट्रैक करके खाती गांव में रूकेंगें लेकिन सब अपने सोचे जैसा थोडे ही होता है । सुबह मिश्रा जी की वजह से हम लेट हो गये और उसके बाद भुवाली से रास्ता बदलने के कारण और भी देर हो गयी । हम रात को अंधेरे में पहुंचे और उस समय खाती पहुंचना असंभव था । अब आज का दिन हमें द्धाली तक ही पहुचंना था क्योंकि द्धाली से आगे पिंडारी ग्लेशियर तक यदि हम चले भी जायें
पिंडारी ग्लेशियर की इस यात्रा पर हमने इस मार्ग के आखिरी गांव खाती से सुबह 11 बजे अपनी यात्रा शुरू कर दी थी । हमारा पहला इरादा घर से बना था कि हम शाम के समय तक खरकिया में पहुंचकर शाम को एक घंटे का ट्रैक करके खाती गांव में रूकेंगें लेकिन सब अपने सोचे जैसा थोडे ही होता है । सुबह मिश्रा जी की वजह से हम लेट हो गये और उसके बाद भुवाली से रास्ता बदलने के कारण और भी देर हो गयी । हम रात को अंधेरे में पहुंचे और उस समय खाती पहुंचना असंभव था । अब आज का दिन हमें द्धाली तक ही पहुचंना था क्योंकि द्धाली से आगे पिंडारी ग्लेशियर तक यदि हम चले भी जायें 5 किलोमीटर तो वहां पर रूकने की कोई व्यवस्था नही है इसलिये 11 बजे यहां से निकलने के बाद 25 किलोमीटर से ज्याद ट्रैक संभव नही है ।
11 बजे गांव से चले तो पहले तो एक किलोमीटर के करीब चढाई आयी । उसके बाद थोडी तीखी उतराई से हम नदी किनारे पर आ गये । आपदा के कारण यहां का जो मुख्य रास्ता था वो बह गया इसलिये अब जोड तोड करके रास्ता बनाया गया है जिसके कारण रास्ता काफी लम्बा हो गया है । पहले ये 11 किलोमीटर था पर अब नदी के दूसरी तरफ हो जाने की वजह से 2 किलोमीटर लम्बा हो गया है । हालांकि हमें पहले पता नही था और हम नये बनाये रास्ते पर ही चलते रहे और दो किलोमीटर ज्यादा चलना पडा । गांव वाले तो नदी के पास पास ही चले जाते हैं पैदल और खच्चरो को लेकर । नदी में आपदा के कारण नदी का पाट काफी चौडा हो गया है और अब नदी अपने असली स्वरूप में इतनी चौडाई में नही है तो उस जगह को वो लोग आने जाने के लिये इस्तेमाल कर रहे हैं । उस रास्ते में एक फायदा ये है कि उतराई चढाई नही है जबकि जो रास्ता बनाया गया है उसमें नदी से उंचा बनाने के लिये उतराई चढाई बहुत ज्यादा है ।
तो पिंडर के किनारे पहुंचने के बाद यहां पर एक छोटा सा लकडी का पुल बना हुआ है जो कि बिलकुल अस्थायी है । यहां पर पुल बनने की तैयारी चल रही है । इस पुल को पार करने के बाद फिर से चढायी शुरू हो जाती है । गांव से नदी को पार करने तक हमें 40 मिनट लगी । इसके बाद अचानक से बारिश शुरू हो गयी । बारिश की वजह से हमने विंडशीटर और पोंछो निकालकर पहन लिये । 20 मिनट बाद ही एक सुंदर सा झरना आया जिसके पास एक दुकान बनी हुई थी । यहीं पर एक शेड बनाया गया है । खाती से द्धाली तक केवल एक ही जगह पर शेड बना हुआ था नही तो कहीं भी बारिश से बचने का रास्ता नही है ।
झरने के पास हमने बैठकर चाय पी लेकिन बारिश ने बंद होने का नाम नही लिया तो हमने बारिश में ही चलते रहने का फैसला लिया । पहाडो में बारिश कब बंद हो जाये पता नही चलता इसी आस में हमने चलना शुरू कर दिया । एक घंटे तक हम बारिश में ही चलते रहे । रास्ता नया बन रहा है इसलिये अभी पक्का नही है और कच्ची मिटटी का बारिश में बुरा हाल था । कई जगह रास्ता दो फुट और कई जगह केवल एक फुट चौडी पगडंडी ही थी जो कि उतरते समय काफी खतरनाक फिसलन लिये हुए थी । करीब दो बजे बारिश कुछ कम हुई और हमने अपना कैमरा निकालकर एक दो फोटो लिये । वैसे भी यहां जंगल में कोई खास फोटो आने नही थे । एक घंटा और चलने के बाद करीब 3 बजे हमें भूख लगी तो हमने खाती से जो परांठे पैक करवाये थे वो यहां पर बैठकर खा लिये । खाना खाने के बाद हमने फिर से चलना शुरू किया । अब तक हम नदी से काफी उपर चल रहे थे । एक घंटे बाद यानि 4 बजे हमें नीचे उतरकर नदी के पाट पर आना पडा क्योंकि इसके आगे रास्ता टूटा हुआ था । यहां पर हमें पहली बार द्धाली दिखायी दिया । पर द्धाली जितना पास दिख रहा था उतना था नही क्योंकि द्धाली तक पहुंचने के लिये पिंडर और कफनी दोनो नदियो को पार करना था और उसके साथ ही नदी के पास बडे बडे बोल्डर में से होकर निकलना था । यहां पर कोई तय रास्ता नही बना हुआ था और पिंडारी और कफनी के मिलने के बाद जो पिंडारी नदी बन जाती है उसे लकडी के तख्तो से बने पुल से पार किया । उसके बाद सीधे हाथ की तरफ से आती हुई कफनी नदी को पार किया और तब जाकर द्धाली में पहुंचे
शाम के पांच बजे हम द्धाली में थे । यहां द्धाली में रेस्ट हाउस है जिसका रेट 200 रूपये प्रति व्यक्ति है जबकि आस पास में ही तीन चार होटल बने हुए हैं जिनका रेट सौ रूपये प्रति व्यक्ति है । होटलो में अक्सर एक ही कमरा है जिसमें रसोई भी है दुकान भी और वहीं पर दो तीन तख्त मिलाकर आठ दस लोगो के सोने का इंतजाम है । चूंकि रसोई चलती रहती है तो कमरा गरम रहता है ये फायदा है पर इसका एक नुकसान ये भी है कि कई बार लकडी जलने के कारण कमरे में धुंआ भर जाता है । हमें सरकारी रेस्ट हाउस में कमरा मिल रहा था तो वहीं पर लिया क्योंकि वहां पर किचन अलग बना हुआ है । सरकारी वाले में भी कोई निजी कमरा नही है बस दो कमरे हैं जिनमें काफी सारे बेड हैं और अगर कोई बडा ग्रुप आ जाता है तो उसके लिये अलग से गददे बिछा दिये जाते हैं । एक और फायदे की बात ये है कि सरकारी रेस्ट हाउस में टायलेट हैं जबकि बाहर होटल में नही तो वहां पर आपको आसपास जंगल में जाना पड सकता है ।
11 बजे गांव से चले तो पहले तो एक किलोमीटर के करीब चढाई आयी । उसके बाद थोडी तीखी उतराई से हम नदी किनारे पर आ गये । आपदा के कारण यहां का जो मुख्य रास्ता था वो बह गया इसलिये अब जोड तोड करके रास्ता बनाया गया है जिसके कारण रास्ता काफी लम्बा हो गया है । पहले ये 11 किलोमीटर था पर अब नदी के दूसरी तरफ हो जाने की वजह से 2 किलोमीटर लम्बा हो गया है । हालांकि हमें पहले पता नही था और हम नये बनाये रास्ते पर ही चलते रहे और दो किलोमीटर ज्यादा चलना पडा । गांव वाले तो नदी के पास पास ही चले जाते हैं पैदल और खच्चरो को लेकर । नदी में आपदा के कारण नदी का पाट काफी चौडा हो गया है और अब नदी अपने असली स्वरूप में इतनी चौडाई में नही है तो उस जगह को वो लोग आने जाने के लिये इस्तेमाल कर रहे हैं । उस रास्ते में एक फायदा ये है कि उतराई चढाई नही है जबकि जो रास्ता बनाया गया है उसमें नदी से उंचा बनाने के लिये उतराई चढाई बहुत ज्यादा है ।
तो पिंडर के किनारे पहुंचने के बाद यहां पर एक छोटा सा लकडी का पुल बना हुआ है जो कि बिलकुल अस्थायी है । यहां पर पुल बनने की तैयारी चल रही है । इस पुल को पार करने के बाद फिर से चढायी शुरू हो जाती है । गांव से नदी को पार करने तक हमें 40 मिनट लगी । इसके बाद अचानक से बारिश शुरू हो गयी । बारिश की वजह से हमने विंडशीटर और पोंछो निकालकर पहन लिये । 20 मिनट बाद ही एक सुंदर सा झरना आया जिसके पास एक दुकान बनी हुई थी । यहीं पर एक शेड बनाया गया है । खाती से द्धाली तक केवल एक ही जगह पर शेड बना हुआ था नही तो कहीं भी बारिश से बचने का रास्ता नही है ।
झरने के पास हमने बैठकर चाय पी लेकिन बारिश ने बंद होने का नाम नही लिया तो हमने बारिश में ही चलते रहने का फैसला लिया । पहाडो में बारिश कब बंद हो जाये पता नही चलता इसी आस में हमने चलना शुरू कर दिया । एक घंटे तक हम बारिश में ही चलते रहे । रास्ता नया बन रहा है इसलिये अभी पक्का नही है और कच्ची मिटटी का बारिश में बुरा हाल था । कई जगह रास्ता दो फुट और कई जगह केवल एक फुट चौडी पगडंडी ही थी जो कि उतरते समय काफी खतरनाक फिसलन लिये हुए थी । करीब दो बजे बारिश कुछ कम हुई और हमने अपना कैमरा निकालकर एक दो फोटो लिये । वैसे भी यहां जंगल में कोई खास फोटो आने नही थे । एक घंटा और चलने के बाद करीब 3 बजे हमें भूख लगी तो हमने खाती से जो परांठे पैक करवाये थे वो यहां पर बैठकर खा लिये । खाना खाने के बाद हमने फिर से चलना शुरू किया । अब तक हम नदी से काफी उपर चल रहे थे । एक घंटे बाद यानि 4 बजे हमें नीचे उतरकर नदी के पाट पर आना पडा क्योंकि इसके आगे रास्ता टूटा हुआ था । यहां पर हमें पहली बार द्धाली दिखायी दिया । पर द्धाली जितना पास दिख रहा था उतना था नही क्योंकि द्धाली तक पहुंचने के लिये पिंडर और कफनी दोनो नदियो को पार करना था और उसके साथ ही नदी के पास बडे बडे बोल्डर में से होकर निकलना था । यहां पर कोई तय रास्ता नही बना हुआ था और पिंडारी और कफनी के मिलने के बाद जो पिंडारी नदी बन जाती है उसे लकडी के तख्तो से बने पुल से पार किया । उसके बाद सीधे हाथ की तरफ से आती हुई कफनी नदी को पार किया और तब जाकर द्धाली में पहुंचे
शाम के पांच बजे हम द्धाली में थे । यहां द्धाली में रेस्ट हाउस है जिसका रेट 200 रूपये प्रति व्यक्ति है जबकि आस पास में ही तीन चार होटल बने हुए हैं जिनका रेट सौ रूपये प्रति व्यक्ति है । होटलो में अक्सर एक ही कमरा है जिसमें रसोई भी है दुकान भी और वहीं पर दो तीन तख्त मिलाकर आठ दस लोगो के सोने का इंतजाम है । चूंकि रसोई चलती रहती है तो कमरा गरम रहता है ये फायदा है पर इसका एक नुकसान ये भी है कि कई बार लकडी जलने के कारण कमरे में धुंआ भर जाता है । हमें सरकारी रेस्ट हाउस में कमरा मिल रहा था तो वहीं पर लिया क्योंकि वहां पर किचन अलग बना हुआ है । सरकारी वाले में भी कोई निजी कमरा नही है बस दो कमरे हैं जिनमें काफी सारे बेड हैं और अगर कोई बडा ग्रुप आ जाता है तो उसके लिये अलग से गददे बिछा दिये जाते हैं । एक और फायदे की बात ये है कि सरकारी रेस्ट हाउस में टायलेट हैं जबकि बाहर होटल में नही तो वहां पर आपको आसपास जंगल में जाना पड सकता है ।
Pindar Kafni trek-
पिंडारी के रास्ते अभी बन ही रहे हैं |
दोपहर का खाना |
नीचे नदी के पास उतरने का समय |
सामने द्धाली का समय है |
ये पिंडर नदी पार कर रहे |
सामने द्धाली है पर उससे पहले कफनी नदी पार करनी है |
खाती से निकलते ही |
झरने के पास का पुल और चाय की दुकान |
बारिश के कारण खतरनाक हो चुके कच्ची मिटटी के रास्ते |
वैसे भी माशाअल्लाह रास्ते हैं |
द्धाली में नीचे बने होटल |
सरकारी रेस्ट हाउस |
बहुत आनंद आ रहा है पड़ कर अगले भाग का इंतजार रहेगा
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया विवरण फोटो कम है लेकिन बढ़िया है
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