Kartik swami temple जबरदस्त जगह है यहां पर आप 3 दिन भी ऐसे बिता सकते हैं कि पता नही चले । चाय नाश्ता करने का इंतजार करने के बाद फिर से देखा तो सामने के पहाड और Kartik swami temple वाला पहाड पूरी तरह गायब हो चुके थे बादलो की वजह से और ऐसे में हो भी सकता था कि मौसम खुले और फिर से दिख और हो सकता था कि पूरा दिन ऐसा ही रहे
आज की यात्रा वृतांत कार्तिक स्वामी मंदिर रूद्रप्रयाग Kartik Swami Temple, Rudra Prayag उत्तराखंड का --------रानीखेत से द्धारहाट और चौखुटिया होते हुए कर्णप्रयाग जाना था हमें । इससे आगे इसी रास्ते पर गैरसैंण आना था और उससे आगे आदि बद्री । आदि बद्री के दर्शन मै रूपकुंड यात्रा में कर चुका था और आदि बद्री के सामने ही चांदपुर गढी के अवशेष हैं । इस पुराने दुर्ग को देखना भी चाहते पर बारिश की वजह से रदद कर दिया । चौखुटिया तक तो सडक फिर भी ठीक थी पर उसके आगे संकरी हो गयी । यहां से हम पांडव खाल को भी गये जहां पर मै औली जाते हुए होकर गया था । पांडवखाल के लिये हम जिम कार्बेट पार्क की तरफ से आये थे और भिकियासेंण और पांडवखाल होकर जोशीमठ गये थे । पांडवखाल बहुत सुंदर जगह है और यहां से पूरी घाटी का बढिया नजारा दिखायी देता है । आज बारिश की वजह से फोटो नही ले पा रहे थे । बारिश ऐसी थी कि कहीं तेज तो कहीं बूंदाबांदी से भी कम । चौखुटिया से सीधी रोड पर जाने की बजाय दाहिने हाथ को मुड गये । मैने मैप मोबाईल में लगा रखा था सो अहसास हुआ करीब 2 किलोमीटर जाने पर कि हम गलत आ गये हैं । एक बंदे से पूछा तो उसने बताया कि बच्छूबाण होकर इधर को भी कर्णप्रयाग पहु्ंच जाओगे पर मैप के हिसाब से ये उल्टा घूमकर जाता हुआ लग रहा था ।
सो गाडी मोड ली और फिर से सही रास्ते पर आ गये । यहां से आगे गैरसैंण आया जो कि उत्तराखंड की राजधानी बनने के लिये राजनीति के तराजू में कभी कम तो कभी ज्यादा होता रहता है । सारे नेता इसे राजधानी बनाने के लिये कहते हैं पर देहरादून में सारे कार्य हो रहे हैं और निर्माण भी और वो इतने हो चुके हैं कि गैरसैंण अगले 20 वर्ष में भी उसके आज के बराबर नही पहुंच सकता । गैरसैंण के बाजार में एक लाइन गाडिया खडी थी और एक लाइन बची थी जिसमें से दूसरी साइड से आने वाले वाहनो की वजह से 15 मिनट रूकना पडा । अभी यहां पर इन्फ्रास्ट्रक्चर कुछ भी नही है । यहां से आदि बद्री जाने वाली रोड और छोटी हो गयी और बहुत देखकर गाडी को गुजारना पडता दूसरी गाडी के बराबर से । पांडवखाल से चौखुटिया तक उतराई थी तो गैरसैंण से आदि बद्री तक चढाई । चौखुटिया क्षेत्र में खेती बहुत शानदार है और अगर बारिश ना होती तो आपको दूर दूर तक फैले खेत के नजारे दिखाता । नदी किनारे होने के कारण पानी की कोई कमी नही है ।
आदि बद्री से सडक चौडी हो जाती है काफी पर आदि बद्री से पहले ही एक जगह अचानक पांच बच्चियो ने घेर लिया । होली का तिलक लगाया और चंदा लिया । मैने फोटो खींचना चाहा तो वे मना करने लगी । मैने पूछा कि आपको फोटो क्यों नही खिंचवाना है तो उनमें से एक ने फटाक से जबाब दिया कि हम क्या कैटरीना कैफ हैं जो हमारा फोटो खींचोगे । मैने कहा कि कैटरीना कैफ कोई तुमसे बढिया थोडे ही है तो तब उन्होने फोटो खींचने दिया । जरा सा आगे चले कि पाचं लडके मिले । हमने उन्हे बताया कि हमने चंदा पीछे दे दिया है पर उन्होने कहा कि उन लडकियो ने हमें अलग कर दिया है और उनके पास 45 रूपये भी इकठठे हो गये हैं जबकि हमारे पास 30 ही हुए हैं । दस रूपये उन्हे भी दिये । जब उनसे पूछा कि इन पैसो का क्या करोगे तो जवाब था कि दावत करेंगे लास्ट के दिन । दावत में क्या होेगा तो उन्होने बताया कि सामान लायेंगें और मैगी मूगी बनायेंगेे । उनके इस जवाब को हम बहुत देर तक सोचते रहे क्योंकि मैगी की दावत भी लग्जरी हो सकती है ये हमने कभी सोचा ही नही था ।
कर्णप्रयाग पहुंच गये और यहां पर बाजार को पार करके जाने की बजाय उपर से होकर गये और वहां से यूटर्न लेकर रूद्रप्रयाग से आने वाली सडक पर ही आ गये । यहां से उल्टे हाथ को एक पुल बना हुआ है जो कि pokhri को रास्ता जाता है । नागनाथ pokhri यहां से 30 किलोमीटर के करीब है और सडक बढिया बिलकुल नही है साथ ही बहुत छोटी है । अंधे मोडो पर जब उपर से अचानक गाडी आती है तो कई जगह किसी एक को गाडी पीछे लेनी पडती है । इस रोड पर बस भी चलती है वैसे दिन में एक या दो बार । pokhri तक जाने के रास्ते में और कर्णप्रयाग आने तक भी कई बार हम कोहरे के बादल में फंसे और दिखायी देना बंद हो गया । ये कोहरा pokhri तक इतना ज्यादा था कि लाइटे जलानी पडी और साथ ही गाडी के चारो इंडिकेटर भी । उसके बाद भी दस फुट से ज्यादा दिखायी नही दे रहा था । pokhri से थोडा पहले एक जगह यात्री शेड मिला तो उसमें रूककर फोटो ली घाटी की जिसमें बादल हमसे बहुत नीचे छाये हुए थे ।
बारिश और मौसम खराब के कारण ठंड भी काफी बढ गयी थी और pokhri के बाद हमें मोहनखाल तक जाना था जो कि करीब 15 किलोमीटर और था । वहां से Kartik swami temple के बेस कैम्प गांव कनकचौरी तक जाना था । इस रोड पर एक तो छोटे होने की दिक्कत और उपर से पहाड की साइड से सडक को खोदकर पाइप डाले जा रहे थे जिसकी मिटटी सडक पर ही रखी गयी थी । बारिश का पता नही होगा इस मौसम में तो अचानक हुई बारिश से वो मिटटी सडक पर फैल गयी थी और ऐसे में बाइक पर होते तो निश्चित फिसलते । बडी मुश्किल से कनकचौरी गांव तक पहुंचे और उस समय तक अंधेरा हो चुका था । यहां गांव में एक होटल जो कि रोड पर ही है उससे पूछा तो उसने बताया कि हमारे यहां तो यात्री काफी हैं तो कमरे फुल हैं आप मायादीप वाले होटल में पता कर लो । मायादीप वालो की खाने की दुकान भी गांव के गेट के सामने ही थी । वहां 4 लोग खाना भी खा रहे थे । मायादीप होटल वालो के गांव के गेट के अंदर जाकर और सडक से थोडा नीचे काटेज बने हुए हैं ।
हमें काटेज दिखाये तो उन्हे पसंद ना करने का कोई कारण नही था पर उनका रेट महंगा था । मायादीप काटेज वाले अपनी साइट Kartik swami temple डाट इन भी चलाते हैं और वैसे तो लग्जरी काटेज बनाये हुए हैं पर आज यहां पानी की सप्लाई बंद थी । एक बाल्टी पानी केवल मिल सकता था टायलेट जाने के लिये । हर काटेज में पानी गर्म करने के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले गीजर टाइप जुगाड रखे थे उसमें भी कुछ पानी था जो सुबह मुंह हाथ धोने के काम आ जायेगा । सो हमने ये काटेज फाइनल किया और थोडी देर काटेज वालो से बात की तो वो काफी पैसे कम करने को तैयार हो गये । हमने सामान रखा और सीधे नींद ली क्योंकि बाहर बारिश हो रही थी और ठंड इतनी ज्यादा थी कि कहीं जाने का मूड नही था ।
खाना भी होटल वाले हमारे कमरे में ही पहुंचा गये और उसके बाद हमने काफी देर तक बात करते रहे और बात करते करते ही सो गये । रात को ठंड काफी थी और सुबह काटेज के बाहर बर्फ पडी थी हल्की हल्की तो निश्चित रात को तापमान जीरो के आसपास या थोडा कम रहा होगा । सुबह फ्रेश हुए और जो थोडा पानी गर्म था स्टील के बर्तन जैसे गीजर में उसमें मुंह हाथ धो लिये । बाहर मौसम साफ नही था और बादल छाये थे पर कहीं ना कहीं सूरज भी निकलने की कोशिश कर रहा था
मौसम को देखकर हम उपर तक जा पहुंचे जहां बस स्टैंड है । यहां कुछ पल के लिये ही सूरज की चमक पीछे से पडी और वो पडी Kartik swami temple से दिखने वाली बर्फ की चोटियो पर । सूर्योदय का ये नजारा बेहद मनमोहक था जिसमें बर्फ से ढके पहाड अलग ही रंग में दिखायी दे रहे थे । ये खुशी दो या तीन मिनट ही रही होगी कि फिर से पीछे सूरज को बादलो ने घेर लिया और सामने दिख रहे Kartik swami temple बर्फ के पहाडो को धुंध ने घेरना शुरू कर दिया । थोडी सी दूर ही Kartik swami temple वाला पहाड दिख रहा था । उसपर भी पूरी तरह धुंध छायी हुई थी जिसमें से कभी वो चमकता तो कभी ढक जाता । हम चाय पीने के लिये एकमात्र खुली दुकान पर पहुंचे और चाय पीने के साथ साथ यहां के लोगो से चर्चा की मौसम के बारे में । यहां पर बारिश पिछले दो दिन से पड रही है और आज मौसम खुलना मुश्किल है ऐसा सबका कहना था
नीचे से भी बादल उपर की ओर उठ रहे थे और पूरी घाटी को उन्होने घेर लिया था । इस नजारे को कैद करने के लिये मै इस बार अपने नये कैमरा को लाया था जो कि पाकेट वाला है । मै ये भी टैस्ट करना चाहता था कि पाकेट कैमरा के साथ घूमना कैसा लगता है क्योंकि 4 साल से गले में डालने वाला कैमरा ही लेकर घूम रहा था । बुरांश यहां पर जबरदस्त खिले हुए थे और बहुत सारी प्रजातियो की चिडिया भी यहां पर काफी दिख् रही थी । कुल मिलाकर Kartik swami temple जबरदस्त जगह है यहां पर आप 3 दिन भी ऐसे बिता सकते हैं कि पता नही चले । चाय नाश्ता करने का इंतजार करने के बाद फिर से देखा तो सामने के पहाड और Kartik swami temple वाला पहाड पूरी तरह गायब हो चुके थे बादलो की वजह से और ऐसे में हो भी सकता था कि मौसम खुले और फिर से दिख और हो सकता था कि पूरा दिन ऐसा ही रहे । कुल मिलाकर जिस व्यू के लिये Kartik swami temple को जाना जाता है वो मिलना मुश्किल लग रहा था । यहां कनकचौरी गांव से 3 किलोमीटर का Kartik swami temple ट्रैक है जो उपर Kartik swami temple तक जाता है । Kartik swami temple मंदिर में भी रूकने की जगह मंदिर से 200 मीटर नीचे धर्मशाला है जहां पर रूकने की व्यवस्था है ।
अब हमने सामान कुछ खास समेटना नही था सो फट से यही फैसला लिया Kartik swami temple तक फिर कभी फिर आयेंगें और आना भी चाहिये ऐसी जगह दोबारा । गाडी उठायी और धीरे धीरे आनंद लेते हुए इस क्षेत्र का चल दिये । जैसे कर्णप्रयाग से कनकचौरी तक के रास्ते में या कहिये कि कर्णप्रयाग से रूद्रप्रयाग के बीच में कनकचौरी से पहले पोखरी नागनाथ जैसी सुंदर जगह आयी थी जहां पर सुंदर घाटी में तैरते हुए बादल थे ऐसा ही नजारा कनकचौरी से रूद्रप्रयाग के बीच में Chopta गांव में मिला । उसे देखकर आंखे झपकने का मन नही किया । काफी देर तक वहां पर फोटो खींचते रहे और वहीं बैठकर सडक किनारे अपने पास रखे सूखे सामान खाते पीते रहे । ये Chopta असल में तुंगनाथ वाला Chopta नही है और गूगल मैप में कई बार मुझे इस पर गलतफहमी हो जाती थी क्योंकि ये उस Chopta से ज्यादा दूर भी नही दिखता है । Chopta गांव से नीचे उतरे तो नीचे की तरफ हरे भरे क्यारी खेत बहुत सुंदर दिखायी दे रहे थे । उनके बीच में सडक भी ऐसी दिख रही थी जैसे कि अक्सर लोग विदेशो की दिखाते हैं । एक खास बात ये थी कि उपर हर तरफ बादल ही बादल थे जबकि नीचे की तरफ मौसम साफ था । कई बार तो मन किया कि वापस Kartik swami temple चलते हैं पर फिर वही बात आ जाती कि दिखना कुछ नही है तो मन मारकर नीचे की तरफ ही वापस चल दिये ।
अब हमने सामान कुछ खास समेटना नही था सो फट से यही फैसला लिया Kartik swami temple तक फिर कभी फिर आयेंगें और आना भी चाहिये ऐसी जगह दोबारा । गाडी उठायी और धीरे धीरे आनंद लेते हुए इस क्षेत्र का चल दिये । जैसे कर्णप्रयाग से कनकचौरी तक के रास्ते में या कहिये कि कर्णप्रयाग से रूद्रप्रयाग के बीच में कनकचौरी से पहले पोखरी नागनाथ जैसी सुंदर जगह आयी थी जहां पर सुंदर घाटी में तैरते हुए बादल थे ऐसा ही नजारा कनकचौरी से रूद्रप्रयाग के बीच में Chopta गांव में मिला । उसे देखकर आंखे झपकने का मन नही किया । काफी देर तक वहां पर फोटो खींचते रहे और वहीं बैठकर सडक किनारे अपने पास रखे सूखे सामान खाते पीते रहे । ये Chopta असल में तुंगनाथ वाला Chopta नही है और गूगल मैप में कई बार मुझे इस पर गलतफहमी हो जाती थी क्योंकि ये उस Chopta से ज्यादा दूर भी नही दिखता है । Chopta गांव से नीचे उतरे तो नीचे की तरफ हरे भरे क्यारी खेत बहुत सुंदर दिखायी दे रहे थे । उनके बीच में सडक भी ऐसी दिख रही थी जैसे कि अक्सर लोग विदेशो की दिखाते हैं । एक खास बात ये थी कि उपर हर तरफ बादल ही बादल थे जबकि नीचे की तरफ मौसम साफ था । कई बार तो मन किया कि वापस Kartik swami temple चलते हैं पर फिर वही बात आ जाती कि दिखना कुछ नही है तो मन मारकर नीचे की तरफ ही वापस चल दिये ।
Kartik swami-
कर्णप्रयाग में कार्तिक स्वामी या पोखरी का रास्ता बांये तरफ पुल से |
पोखरी के रास्ते में |
पोखरी के रास्ते में |
पोखरी के रास्ते में |
पोखरी के रास्ते में |
पोखरी नागनाथ से दिखता घाटी का नजारा |
पोखरी नागनाथ से दिखता घाटी का नजारा |
पोखरी नागनाथ से दिखता घाटी का नजारा |
कनकचौरी से पहले मोहनखाल में |
मायादीप होटल की काटेज |
काटेज के अंदर |
कनकचौरी गांव से सुबह बर्फ की पर्वतमालाऐं दिखती हुई |
कनकचौरी गांव से सुबह बर्फ की पर्वतमालाऐं दिखती हुई |
कनकचौरी गांव से सुबह बर्फ की पर्वतमालाऐं दिखती हुई |
कनकचौरी गांव से सुबह बर्फ की पर्वतमालाऐं दिखती हुई |
कनकचौरी गांव से सुबह बर्फ की पर्वतमालाऐं दिखती हुई |
चिडियो की अठखेलियां |
चिडियो की अठखेलियां |
चिडियो की अठखेलियां |
कनकचौरी गांव |
कनकचौरी गांव की दूसरी साइड में भी होटल था |
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शालिनी श्रीवास्तव |
शालिनी श्रीवास्तव |
चोपता गांव की घाटी |
चोपता गांव की घाटी |
मनु भाई कैमरा पास हो गया है, फोटो मस्त आए है।
ReplyDeleteमनु भाई कैमरा पास हो गया है, फोटो मस्त आए है।
ReplyDeleteरास्ते का बहुत सुंदर वर्णन आपने किया ,मंजिल से ज्यादा खूबसूरत रास्ते वाली बात चरितार्थ हुई |आपके जाने के दो तीन दिन बाद हम भी उसी जगह थे ,कनक चौरी और कार्तिक स्वामी वाकई गज़ब की सुन्दरता लिए हुए हें|बाद में मौसम साफ़ हो गया था इसलिए हम भी उस सोंदर्य का रसास्वादन कर पाए |
ReplyDeleteलाजवाब लेख मनु भाई ...!
ReplyDeleteएक बार फ़िर से पढूंगा कल ।
फोटो सच में बहुत अच्छे आये हैं ।
बहुत ही sandar लेखन यात्रा और jankari, फोटो भी बहुत ही सुंदर और sandar h, मन बहुत uttsahit हो रहा है dhanyabad bhaiya
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