दुगडडा के जिस होटल में हम रूके थे वहां पर होटल के नीचे दो तीन मंजिल बनी थी जिनमें कमरे बनाये हुए थे । पहाडो में ये आम बात है कि सडक क...
दुगडडा के जिस होटल में हम रूके थे वहां पर होटल के नीचे दो तीन मंजिल बनी थी जिनमें कमरे बनाये हुए थे । पहाडो में ये आम बात है कि सडक किनारे कोई भी बिल्डिंग बनाने के लिये नीचे से कालम उठाकर बनाना पडता है तो बाद में जरूरत के हिसाब से नीचे वाली मंजिलो में कमरे भी बना लिये जाते हैं । कल का दिन तो हमने ऐसे ही बर्बाद कर दिया था क्योंकि हमारी कोई मंजिल नही थी । आज मंजिल तय की तो सुबह उठना जरूरी था और सब उठ भी गये पर होटल वाले अभी जागे नही थे । कमल सिंह उर्फ नारद को दो पहाडी बंदे मिल गये और वो रात भर पार्टी करता रहा था उनके साथ । हमने होटल वालो को काफी आवाज देकर उठाया और तब वहां से बाहर निकले । होटल वाले ने साफ मना कर दिया कि अभी नाश्ता वगैरा कुछ नही मिलेगा । गाडी में बैठकर ताडकेश्वर महादेव की तरफ चल दिये । सुबह होती जा रही थी और सुंदर से इन पहाडो में बडी अच्छी लगती है सुबह । लैंसडोन से नीचे की तरफ ही कट गये इससे पूरा लैंसडोन बच जाता है । यहीं एक दुकान पर रूककर पहले चाय बिस्कुट खाये ताकि पेट में कुछ पड जाये । इसके बाद चढाई का रास्ता शुरू हो गया । ताडकेश्वर यहां से ज्यादा दूर नही है और उससे पहले रास्ते में केवल एक ही ढंग का रैस्टोरैंट पडता है उसके बाद मंदिर तक कोई बढिया रैस्टोरैंट नही है । यहीं पर गाडी रोककर परांठो का आर्डर दे दिया । टाइगर रिर्सोट या होटल कुछ ऐसा नाम है उसका । यहां से परांठे खाने के बाद हम मंदिर की तरफ चले । एक गेट बना हुआ आता है चखुलियाल का जिससे आगे बीरोंखाल को रास्ता जाता है और बांये हाथ ताडकेश्वर मंदिर को । हम बांये हाथ को मुड गये और पांच किलोमीटर उतराई के बाद ताडकेश्वर मंदिर की पार्किंग आ गयी ।
पार्किंग का कोई शुल्क नही था और हम वैसे तो नहाये धोये नही थे पर मंदिर में दर्शन के लिये चल दिये । पार्किंग से भी करीब एक किलोमीटर नीचे की ओर चलना पडता है मंदिर के लिये । रास्ता बना हुआ है और मंदिर से पहले तो रास्ते पर बाकायदा टीन शेड डाला हुआ है । मंदिर बहुत ही सुरम्य वातावरण और लोकेशन पर स्थित है । ऐसी शांति और सुंदरता कि यहां से जाने का मन ना करे । रूकने के लिये दो धर्मशाला भी बनी हुई हैं । जब हम गये तब कई जने यहां पर भंडारा कर रहे थे अलग अलग । काफी भीड थी लोकल लोगो की । ताडकेश्वर महादेव की यहां इस इलाके में काफी मान्यता है और साथ ही ये मंदिर इसलिये भी प्रसिद्ध है कि यहां पर ताड के पेड केवल एक निश्चित एरिया में ही होते हैंं जो कि मंदिर परिसर में है । इसके अलावा यहां पर ताड कहीं बोने उगाने की बहुत कोशिश की गयी पर नही हुआ । मंदिर में दर्शन करने के बाद फोटो खींचने का दौर शुरू हुआ । कमल सिंह उर्फ नारद इस मामले में बहुत चालाक है कि खुद सबके लिये माडल बन जाते हैं । सबसे अपनी फोटो खिंचवाते हैं । काफी समय मंदिर में बिताने के बाद हम यहां से चले और कार्तिक स्वामी की राह पकडने की सोची । कार्तिक स्वामी जाने के लिये रूद्रप्रयाग जाना है तो बीनू ने रैस्टोरैंट वाले , जहां हमने परांठे खाये थे , उससे आगे के रास्ते के बारे में पूछताछ कर ली थी । एक रास्ता तो सीधा सा हमें भी पता था कि यहां से लैंसडोन वापस जायें और वहां से पौडी होकर श्रीनगर , रूद्रप्रयाग । दूसरा रास्ता बीनू को होटल वाले ने बता दिया था कि बीरोंखाल से होकर भी आप श्रीनगर निकल जाओगे । बीनू पहाडी बंदा है और बहुत सज्ज्न और मासूम सा भी तो जैसा होटल मालिक ने बताया लोकल होने के नाते उसने यकीन कर लिया । हमने भी बीनू पर यकीन कर लिया और चल पडे एक नये और अंजान रास्ते पर ।
साढे 8 बजे हमने नाश्ता किया था और नौ बजे हम गेट के पास से मंदिर के लिये मुडे । साढे नौ बजे मंदिर पार्किंग और साढे दस बजे वापस उसी गेट पर आ गये थे चखुलियाल वाले पर । यहां से बीस पच्चीस किलोमीटर चले तो कहीं भी श्रीनगर या और किसी बडे शहर का बोर्ड पर नाम नही दिखा जबकि सभी जगह हरे रंग वाले नये बोर्ड लगे हुए थे और इसके अलावा आजकल एक लाल रंग के साइड में बोर्ड लगाये जाते हैं वो भी पर उन सभी पर नये नये नाम दिखायी दे रहे थे । एक जगह रोककर दो बुजुर्गो से पूछा कि हमें श्रीनगर जाना है तो उन्होने आश्चर्य से देखा और बोला कि यहां से कैसे जाओगे यहां से तो बहुत लम्बा पडेगा । पर हमारा मासूम बीनू नही माना और आगे चलकर एक और से पूछा तो उसने बताया कि थलीसैंण होकर चले जाओगे आराम से और हम फिर चल पडे । एक जगह और वैसे ही पूछ लिया तो उसने भी वही बात कही कि यहां से तो आपको तीन गुना पडेगा पर अब हिसाब लगाया कि लैंसडोन के लिये जाते हैं तो वो भी कम नही पडने वाला है और वापसी जाने से बढिया है कि एक नया रास्ता देखने को मिलेगा तो इसी को चलते हैं । कुल मिलाकर अब हमारे लिये मजबूरी बन गयी थी कि हम इसी रास्ते को चलें लेकिन हमें ये नही पता था कि ये रास्ता हमारी जान निकाल देगा ।
रास्ते में बीरोंखाल , रिखणीखाल , सिरवाणा , सिद्धखाल , दुनांव , हयूंदी ,जैसे गांव पडते हैं । बीरोंखाल , बैजरों , धूमाकोट , मरखोला , पनास जैसे और कई जगह आती हैं । इनमें बैजरों और बीरोखाल बडे बाजार हैं । बीरोंखाल से थलीसैण 30 किलोमीटर के करीब है एक बजे हम बीरोंखाल थे और दो बजे तक थलीसैंण पहुंचे । यहां पर बाजार देखकर हम खाने के लिये रूक गये क्योंकि भूख लग चुकी थी बहुत जोरो की । होटल के बिलकुल मिला हुआ ठेका था तो पियक्कडो की महफिल जमी और फिर खाना खाया गया । यहीं पर कुछ ट्रक वाले बैठे थे तो उनसे रास्ते के बारे में पूछताछ की तो उन्होने बताया कि यहां से श्रीनगर सीधा नही आता है । श्रीनगर जाने के लिये आपको पौडी होकर जाना ही पडेगा इसलिये यहां से पाबौ जाओ जो कि 55 किलोमीटर है और पौडी यहां से 80 किलोमीटर है । इसका मतलब ये हुआ कि श्रीनगर पौडी से पडता है 30 किलोमीटर आज का पूरा दिन सफर में ही गुजर जाना है । दिल तो कर रहा था कि मासूम से बीनू को कुछ कह दें पर उसके बाडी स्ट्रक्चर को देखकर कुछ मन नही हुआ । सुबह 6 बजे से उठकर शाम के 7 बजे तक श्रीनगर पहुंचे थे । लैंसडोन से श्रीनगर करीब 120 किलोमीटर है ।
जबकि लैंसडोन से थलीसैंण भी इतना ही है और थलीसैंण से श्रीनगर 120 पडने वाला था । मतलब आज का पूरा दिन सफर में ही कटेगा । बस अपने मन को तसल्ली देने वाली एक ही बात थी कि एक नया क्षेत्र देखने को मिल रहा था । जिस क्षेत्र से हम गुजर रहे थे ये पर्यटको के लिये बिलकुल अंजान है । दूर देहात का एरिया और वो भी इतना कमजोर सा क्षेत्र कि ज्यादातर गांवो में पुराने पत्थर की छत के मकान या फिर कच्चे मकान बने थे । बैजरो , बीरोंखाल और एक दो बाजार को और छोड दें तो पर्यटको की आवाजाही ना होने की वजह से पूरे रास्ते ऐसा गांव देखने को नही मिला सडक पर जिसमें चाय की दुकान हो । पूरे रास्ते बिना गांव के भी चाय की दुकान या गुमटी लगी नही मिली । पहाडो को देखने से लग रहा था कि कभी यहां पर काफी बहार थी । पूरे के पूरे पहाडो पर क्यारियां बनी थी खेती के लिये जिनमें अब घास उगी थी या सूखा था । ऐसा लग रहा था कि पलायन और पानी दो चीजो ने यहां इस क्षेत्र को मार दिया है । एक राहत की बात ये थी कि इस पूरी सडक की कंडीशन बहुत ही बढिया थी । पहाडो में कार से 30 किलोमीटर प्रति घंटा का औसत ही आ पाता है बमुश्किल और वो भी यहां पर इसलिये आ पाया क्योंकि सडक पर ट्रैफिक नाम की चीज नही थी । पूरे रास्ते एक या दो बस मिली और प्राइवेट गाडी भी ना के बराबर । इतनी निश्चिंतता कि बच्चे सडक पर नेट बांधकर बालीबाल खेल रहे थे ।
इसे क्या कहा जायेगा समझ नही आता । गांव में हो तो पता नही लेकिन पूरी रोड पर हमें एक दो जगह ही स्कूल दिखे और प्राथमिक स्वास्थय केन्द्र तो बिलकुल दिखायी नही दिये । हां नजारे बहुत बढिया थे । एक जगह बहुत सुंदर झरना सडक किनारे और कई जगह नदी के साथ साथ गांव के नजारे बहुुत बढिया थे । अब जब हमें पूरे दिन गाडी चलानी ही थी तो फिर जल्दी क्या करनी तो आराम से फोटो खींचते चलते रहे । पौडी नजदीक आया तो एक बार फिर से कार्तिक स्वामी पहुंचने के लिये चर्चा शुरू हो गयी । पौडी से श्रीनगर का तो एक घंटा ही लगना था और श्रीनगर से रोड बहुत चौडी हो जानी थी तो रूद्रप्रयाग जा भी सकते थे । रात के 8 या 9 बजे तक हम यदि रूद्रप्रयाग पहुंच भी जाते तो कल कार्तिक स्वामी जा सकते थे पर श्रीनगर से अगर सुबह चलें तो कल रात किसी समय तक घर पहुंचेंगें इसलिये कार्तिक स्वामी का कार्यक्रम कुछ समय के लिये स्थगित कर दिया गया और श्रीनगर में ही होटल ढूंढना शुरू कर दिया । होटल सडक किनारे ही मिल गया और गाडी खडी करके हमने कमरे में पनाह ली । आज का दिन बहुत थकान भरा था जिसमें 250 किलोमीटर गाडी चलायी और एक नया क्षेत्र देखने को मिला । कल का क्या होगा और क्या करेेंगें कल ही देखते हैं ।
Kedarkantha Tadkeshwar-
जब गाडी के आने का समय निश्चित हो तो ही ऐसा हो सकता है |
हमारे जैसी छोटी गाडी होगी तो नेट को थोडा उपर कर दिया जायेगा |
एकांत और सुंदरता |
और ये लहराती नागिन जैसी सडकें |
इक्का दुक्का देखने को कोई मिल जाता कभी कभी |
हमें पुल पार करके दांये हाथ को बैजरो जाना है |
ये मोड पर सडक कुमाउं और गढवाल को मिलाने वाली सडक से मिलती है |
यहां पहले खेती बढिया होती होगी |
मेहनतकश पहाडी औरतें |
रास्ते में ही पडा ये झरना |
ये सब झौंपडियां पशुओ के लिये हैं गांव से अलग |
गांव उपर बसा हुआ है । |
यू के आकार में नदी |
अपनी रामप्यारी |
नशे में धुत कमल कुमार सिंह उर्फ नारद लाल शर्ट में और शशि भाई |
पौडी से पहले बरसाती नाले , नदी पर बसा गांव |
सूर्यास्त का समय |
पौखाल , टिहरी बांध के पास एक जगह |
पौखाल का नवोदय विदयालय |
बढ़िया पोस्ट मनु भाई
ReplyDeleteआप सभी मुसाफ़िर हो, इसलिए गलत रास्ते का चुनाव भी आप सभी के लिए एक नया अनुभव बन गया और कुछ नया, कुछ अनदेखा, अनछुआ सा देखने का सबब भी !
हालाँकि ताड़केश्वर अभी तक मैं नहीं जा पाया, आपकी पोस्ट ने एक बार फिर से यह बात याद दिलाई 😞
फोटो बढ़िया हैं, और आप सभी का सफ़र अच्छे से जारी है, आशा है कि अगली सुबह कुछ नया रोमाँचक लेकर आएगी 💐
बढ़िया यात्रा विवरण मनु भाई...👍
ReplyDeleteमासूम बीनू के दूकानदार पर भरोसा करना एक तरह से आपके लिए फायदेमंद ही रहा नयी दुनिया...नए नज़ारे देखने को मिले आपको..उस क्षेत्र के भौगोलिक ज्ञान में भी वृद्धि हुई....और हमें भी फ़ायदा हुआ मस्त नज़ारे देखने को मिले....
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ReplyDeleteमासूम बीनू , नशे में धुत्त कमल कुमार तो रास्ता तो भूलना ही था । जो सफर प्यार से कट जाये वो प्यारा है, सफर ! अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर फोटोग्राफी । प्राकृतिक सुंदरता को दर्शाती पोस्ट।
ReplyDeleteAwesome pics
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "एयरमेल हुआ १०६ साल का “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteयात्रा कठिन रही पर रास्ते की इतनी सुन्दर दृष्यावली मन को मुग्ध कर गई.
ReplyDeleteतो आप हमारे गांव भी घूम आये काफी विस्तार से लिखा है....बीरोंखाल से 6 किमी. दूरी पर मेरा गांव है।
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