जहांगीर महल देखने के बाद हम इसके मुख्य द्धार से ही बाहर निकले और वहीं से नीचे को उतरकर राय प्रवीण के महल में गये । मधुकर शाह के ही प...
जहांगीर महल देखने के बाद हम इसके मुख्य द्धार से ही बाहर निकले और वहीं से नीचे को उतरकर राय प्रवीण के महल में गये । मधुकर शाह के ही पुत्र इंद्रजीत अपने पिता के बाद राजगददी के अधिकारी बने । लेकिन राजा बनने से पहले ही वे एक माधव लुहार की पुत्री पर फिदा थे । राजा बनने के बाद इंद्रजीत ने लुहार और उसकी पुत्री को भी ओरछा बुला लिया । यहां पर राजा ने अपनी प्रेयसी को अस्त्र , शस्त्र और शास्त्रो की पूरी दीक्षा दिलायी । उसके बाद इंद्रजीत सिंह ने उससे विवाह किया और उसे रायप्रवीण नाम दिया ।
यहां तक तो सब ठीक था पर इसके बाद विवाह होने के पश्चात राजा राय प्रवीण के प्रति पूरी तरह आसक्त हो गये । उन्होने जहांगीर महल के बराबर में ही अपनी रानी को महल बनाकर दिया । महाराज को शिथिल देखकर विरोधियो ने रायप्रवीण के सौंदर्य का बखान करते हुए अकबर को लिखा । इतनी तारीफ की कि अकबर ने इंद्रजीत को फरमान भेजा कि वो दरबार में रायप्रवीण को उपस्थित करे । राजा के लिये ये असहनीय था लेकिन साथ ही वो अकबर के सामने कमजोर और लाचार भी था इसलिये बुझे मन से उसने रायप्रवीन को भेज दिया । दरबार में अकबर के सामने जब रायप्रवीण पहुंची तो उसके सौंदर्य को देखकर अकबर ही नही बाकी बाकी दरबारी भी मंत्रमुग्ध हो गये । राय प्रवीण ने जब अपनी रचनाये सुनायी तो और भी वाहवाही हुई और अकबर ने राय प्रवीण को अपने हरम में रहने का आमंत्रण दिया । राय प्रवीण ने दो लाइने और सुनायी
विनती रायप्रवीण की सुनिये साहि सुजान ,
जूठी पातर भखत है वारी वायस स्वान
इसके बाद अकबर ने राय प्रवीण् को मुक्त कर दिया और उसको उपहार देकर विदा किया । इस बुद्धिमत्ता से रायप्रवीण ने अपने और ओरछा दोनो के संकट से मुक्त करा लिया । मैने आपको ये सब ऐसे ही सुनाया है जैसा कि मुकेश पांडेय जी ने मुझे बताया । राय प्रवीण का महल दो मंजिला ही है पर इसके सामने जगह काफी है । इसके बाद हम पहुंचे लक्ष्मी नारायण मंदिर ।
इस मंदिर को राजा वीर सिंह जी ने 1622 में बनवाया था । 1793 में पृथ्वी सिंह द्धारा इसका पुर्निर्माण कराया गया । ये इमारत मंदिर और किले का मिश्रित रूप है । किले जैसी बनावट है परन्तु मुख्य रूप से मंदिर है । इस मंदिर के अंदर की दीवारें सुंदर चित्रो द्धारा सजायी गयी हैं । हाल में कुछ अपने आप और कुछ को लोगो द्धारा खराब कर दिया गया है लेकिन उसके बाद भी दीवारो और छतो पर की गयी उल्लेखनीय कलाकारी मन मोह लेती है । मंदिर में झांसी की लडाई के अलावा कृष्ण भगवान के जीवन को भी चित्रो द्धारा दिखाया गया है । जहांगीर महल हो या ओरछा की अन्य कोई भी जगह , सभी से लक्ष्मीनारायण मंदिर आराम से दिखायी देता है और लक्ष्मीनारायण मंदिर से ओरछा को बडे आराम से देखा जा सकता है क्योंकि ये एक उंची सी पहाडी पर बसा है जहां तक जाने के लिय पक्का रास्ता बना है और गाडी भी आराम से मंदिर के द्धार तक ही चली जाती है । मंदिर में जाने के लिये टिकट है ।
हम शाम के 4 बजे लक्ष्मीनारायण मंदिर में पहुंचे थे । मंदिर को घूमने के बाद हम होटल बुंदेलखंड रिवर साइड गये । ये होटल बेतवा नदी के किनारे बना है और यहां के राजाओ का होटल है । ये होटल ओरछा के राजाओ ने ही बनाया है इसलिये उनकी शाही अंदाज इसमें साफ साफ झलकता है । होटल की गैलरियां और कमरे के साथ ही यहां का भोजनालय भी काफी शाही है । हम होटल की छत पर भी घूमें और उसके बाद होटल के पीछे की साइड में बहती बेतवा नदी के किनारे भी घूमें । होटल बुंदेलखंड रिवर साइड के बाद हम यहां ओरछा में नये बन रहे होटल ओरछा पैलेस भी गये । ये होटल बनकर लगभग तैयार है बस अभी तक शुरूआत नही हुई है ।
होटल ओरछा पैलेस मुझे सबसे अच्छा लगा । इसलिये नही क्योंकि ये भव्यता या बहुत पैसा लगाकर बनाया गया है बल्कि इसलिये क्योंकि इसे बनाने वाले ने पूर्णतया व्यवसायिकता पर ध्यान दिया है । ये होटल तो बनाया ही है पर उसके साथ साथ इसे इस तरह से बनाया गया है कि यहां पर तीन शादी एक साथ हो सकती हैं और तीनो के लिये अलग अलग हाल हैं जो कि पूर्णतया साउंड प्रूफ हैं । पूरे हाल को एक साथ या अलग अलग तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है । शादी में जो लोग रूके हैं उनके लिये कमरे थीम के अनुसार बनाये गये हैं और ऐसा भी सिस्टम है कि अगर वहां पर रूके लोग हवन आदि करना चाहें या फिर फेरे वहीं पर करना चाहें तो छत खुल जायेगी जिससे कि धुंआ बाहर जा सके अन्यथा बाकी सब वातानुकूलित है । और भी इतनी खूबियां हैं कि जिन्हे एक पोस्ट में गिनाना संभव नही है ।
घूमते घूमते अंधेरा हो गया तो रात के खाने के लिये हम पांडेय जी के साथ हम यादव होटल गये जो कि ओरछा से करीब 8 किलोमीटर दूर है । ये होटल बहुत प्रसिद्ध है और हमें भी यहां का खाना काफी बढिया लगा । बिल तो पांडेय जी के रहते देने का सवाल ही नही था । आज का दिन पांडेय जी ने हमारे लिये ऐसा बना दिया था जैसे हम बहुत ही वीआईपी हों और हमें हर चीज के बारे में प्यार से बताना और समझाना हमारे लिये यादगार बन गया था । जीवन में इस यात्रा को मै कभी भूल नही पाउंगा क्योंकि मुझे इस तरह सेआदत नही रही है । मै तो किसी शहर में घूमने के लिये यदि जा रहा हूं और वहां पर मेरे कोई रिश्तेदार रहते हों तो मै वहां पर जाने की सोचता नही और ना ही उन्हे बताता हूं । ऐसे में मुकेश पांडेय जी ने तो हमें जो प्यार और मान सम्मान दिया वो आज तक आपने मेरी किसी यात्रा में पढा नही होगा । इसके लिये मै फिर से पांडेय जी को धन्यवाद देना चाहूंगा ।
वापिस होटल में आकर हम सो गये और उसके बाद अगले दिन हमने सुबह सवेरे रूख किया चर्तुभुज् मंदिर का रूख किया । थोडी देर वहां पर घूमकर हम बेतवा नदी की तरफ चल दिये । कल जब हम यहां पर आये थे तो बेतवा अपने रोद्र रूप में थी । यहां ओरछा में ही नही पूरे मध्य प्रदेश में इस साल बंपर बारिश हो रही थी । पांडेय जी ने बता दिया था कि यहां की वाइल्ड लाइफ सेंचुरी यानि वन्य प्राणी उदयान में आप नही जा सकते क्योंकि वहां पर जाने का रास्ता केवल ये पुल ही है । ये वन्य प्राणी उदयान पानी से घिरा हुआ है । अब आज सुबह आश्चर्य ये था कि बेतवा अब पुल के नीचे से बह रही थी । पुल से लोग आ जा रहे थे तो हम भी पुल पार करके दूसरी ओर पहुंच गये । यहां जाकर पता चला कि आजकल सेंचुरी बंद है इसलिये हमें वापस आना पडा । लेकिन इधर आने का फायदा हुआ कि बेतवा और उसके किनारे बनी छतरियो और मंदिरो को एक अलग साइड से देखने का मौका मिला अब ओरछा से निकलने का समय हो चुका था और हमने बुझे से मन से ओरछा को विदा कहा क्योंकि हमें अपने अगले पडाव पर भी जाना था
ओरछा के बारे में यहां इस लेख को भी पढ सकते हैं बढिया जानकारी लिखी है mp tour-
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जहांगीर महल का दृश्य राय प्रवीण के महल से |
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राय प्रवीण के महल में चित्रकारी दीवारो पर |
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लक्ष्मी नारायण मंदिर से दिखता ओरछा |
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लक्ष्मी नारायण मंदिर से दिखता ओरछा |
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लक्ष्मी नारायण मंदिर |
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लक्ष्मी नारायण मंदिर के अंदरूनी चित्रकारी |
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लक्ष्मी नारायण मंदिर के उपर का दृश्य |
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लक्ष्मी नारायण मंदिर के उपर का दृश्य |
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चतुर्भुज मंदिर के अंदर मंदिर के दर्शन |
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चतुर्भज मंदिर से दिखता राजा का महल जहां से जो दर्शन करना चाहते थे महल में बैठे |
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चर्तुभुज मंदिर में |
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होटल बुंदेलखंड रिवर साइड की छत पर |
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सुहानी , मस्तानी शाम ओरछा की |
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होटल बुंदेलखंड रिवर साइड का प्रांगण |
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चर्तुभुज मंदिर |
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बेतवा नदी पर बना पुल |
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बेतवा के दूसरी ओर से दिखती छतरियां |
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बेतवा के दूसरी ओर से दिखती छतरियां |
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बेतवा वन्य प्राणी उदयान |
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बेतवा वन्य प्राणी उदयान |
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बेतवा वन्य प्राणी उदयान |
बढ़िया वर्णन किया मनु भाई । इस पोस्ट में तो कमल भाई को भूल ही गये ।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा यात्रा विवरण
ReplyDeleteअद्भुत यात्रा-वृतांत है यह । संलग्न चित्रों का तो कहना ही क्या ! रायप्रवीण को वह दोहा कहकर अकबर से मुक्ति पाने का उपाय संभवतः तानसेन ने बताया था । बहुत-बहुत आभार एवं अभिनंदन आपका इस आलेख के लिए जिसे उत्कृष्ट के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं कहा जा सकता ।
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