लोमा कोई गांव नही है हालांकि सागा ला से आगे मील के पत्थरो पर लोमा ही लिखा आता है दिन के 2 बजे हम लोमा पहुंचे थे । यहां पर आर्मी का ठि...
लोमा कोई गांव नही है हालांकि सागा ला से आगे मील के पत्थरो पर लोमा ही लिखा आता है दिन के 2 बजे हम लोमा पहुंचे थे । यहां पर आर्मी का ठिकाना है छोटा सा । चेकपोस्ट पर मौजूद जवान काफी खुश था । बोला 6 महीने तक तो हम इंतजार करते हैं कि कोई आये बाहर का आदमी तो उससे बाते करें । अभी कुछ लोग आने लगेे हैं और दिल को तसल्ली होने लगी है कि हम भी दुनिया में रहते हैं वरना यहां तो आदमी को देखने को भी तरस जाते हैं ।
हम खुद ही पीछे के रास्ते में देख चुके थे कि जो नजारे हमें बहुत बढिया लग रहे थे वो केवल इसलिये क्योंकि हम यहां से गुजर रहे थे । अगर हमें ये कह दिया जाये कि यहीं पर रहो तो एक दिन या दो दिन तो अलग बात है उसके बाद तो कोई पैसे भी दे तो भी यहां ना रहा जाये । आर्मी वाले बंदे के साथ इसी बातचीत में हमने उससे पूछ लिया कि हनले किधर को जाना है और उसने भी बांयी तरफ को इशारा करके बता दिया । हम पुल पार करके बांये को मुड गये और चूंकि यहां भी 15 किलोमीटर तक कोई नही मिला तो चलते गये । हम बांये को जा रहे थे मतलब हम सागा ला से आये तो हम इस खुले मैदान के जिसमें से सिंधु जा रही है इस सामने वाले पहाड को देख रहे थे और अब इसी पहाड के बराबर से होकर जा रहे थे और हमें अब सागा ला दिख रहा था । फिर सडक पहाड के बराबर में से मुड गयी और हम सागा ला की सीध में चलने लगे । एक चेकपोस्ट आया और हमने उससे पूछा कि हनले कितनी दूर है तो रजिस्टर में एंट्री करने वाले जवान ने बताया कि आगे है और हमने एंट्री करके आगे चल दिये । यहां के बाद एक गांव आया और हमने एक औरत जो कि घर के बाहर साफ सफाई कर रही थी उससे पूछा कि सडक आगे कैसी है तो उसने कहा कि आगे बहुत खराब है । बात ही बात में वो पूछ बैठी कि आपको कहां जाना है तो हमने बताया कि हनले जाना है तो उसने कहा कि आप गलत आ गये हो हनले इधर नही है ।
हमें उसकी बात का विश्वास नही हुआ । दो दो पोस्ट पर आर्मी वाले बता चुके थे कि हनले इधर है पर जब उसने कहा कि मेरा बेटा हनले में पढता है तो अपना शक दूर करने के लिये हमने गांव के ही एक आदमी से और पूछा तो उसने भी यही बताया कि हनले के लिये आपको लोमा से सीधे जाना था । मैने मिश्रा जी को बोला कि वापस चलते हैं तो मिश्रा जी भडक गये बोले सुबह से 7 घंटे हो गये हैं ना खाना ना पीना और चले ही जा रहे हो पहले कुछ खायेंगें पीयेंगे उसके बाद कहीं चलेंगें । इस गांव में पूछा तो एक दुकान थी जिसमें चाय मिल सकती थी । चाय बनने को कह दिया और हम दुकान के बाहर धूप में बैठ गये । असल में हम दुंगती गांव में आ गये थे । ये गांव डेमचौक जाने वाले रास्ते पर है और डेमचौक में भी अक्सर चीन वालो की घुसपैठ की खबर आती रहती है । दुंगती से कोयल और वहां से डैमचौक इन जगहो का तो परमिट भी नही बनता है । हमारे पास हनले का ही परमिट था । गूगल मैप तो यहां से भी हनले का रास्ता दिखाता है पर दुकान वाले का कहना था कि यहां से रास्ता कितना खराब है आप सोच भी नही सकते । दुकान वाले का लडका आर्मी में पोस्टिंग था और अभी छुटटी आया हुआ था । उसकी पोस्टिंग फिलहाल देहरादून के पास चकराता में है । जब हमने उसे बताया कि हम कहां के रहने वाले हैं तो वो खुश होकर बोला कि हां मै उसी रास्ते जाता हूं दिल्ली से । चाय के साथ हमने बिस्कुट के पैकेट निकाल कर खा लिये । मिश्रा जी के नाराज होने की वजह से मै चुप था और जब तक उनहोने नही कहा कि चलो मैने चलने के लिये कहा ही नही । एक नयी जगह आकर खुशी तो हो रही थी पर साथ ही हनले जाने का समय भी तेजी से निकला जा रहा था । हम दो बजे लोमा में थे और तीन बजे यहां पर दुंगती में चाय पी रहे थे । अभी वापस लोमा जाने में एक घंटा और हनले को यहां से 60 किलोमीटर बता रहे थे ।
15 किलोमीटर में पोना घंटा तो 60 किलोमीटर में तो और भी समय लगेगा । सडक तो बढिया बनी थी दुंगती तक की पर बीच बीच में रेत भी आ रहा था जिसकी वजह से समय लगता था । यहां दुंगती से जो पहाड दिख रहे थे उनमें से कुछ तो बिलकुल रेतीले थे रेगिस्तान की रेत की तरह के और वो बहुत उंचे भी थे । मुझे घूमने के समय में आलस बिलकुल नही आता और भूख प्यास भी नही लगती । मिश्रा जी मेरे साथ आकर फंस गये थे । ना मै खाता हूं ना पीता हूं और उपर से चलता ही रहता हूं । हारकर मिश्रा जी चुपचाप बैठ गये बोले चलो जहां चलना है ।अब हम जैसे ही दुंगती से बाहर निकले तो एक जिप्सी मिली जिन्होने हमें देखकर रोक लिया । उन्होने हमसे पूछताछ कि तो पता चला कि वो बंदे हरियाणा के रहने वाले हैं और यहां पर ठेकेदारी का काम कर रहे हैं । उन्होने बताया कि उस जवान ने जिसने लोमा में हमें रास्ता बताया था उसी ने उन्हे ये कहकर भेजा कि आपको दो बंदे मिलेेंगें बाइक पर उन्हे वापस भेज देना और हनले का रास्ता बता देना क्योंकि बातो ही बातो में मुझसे गलती हो गयी और वो तुरंत निकल गये तो मै आवाज भी नही दे पाया
अब क्या करना अब तो दुंगती में मैने अपना मैप खोलकर भी देख लिया था और अब आगे से मैप पर ही ज्यादा भरोसा करेंगें क्योंकि ये आफलाइन मैप भले हो पर सटीक है । तो दुंगती से वापस चले और चार बजे के करीब फिर से लोमा पहुंच गये पर लोमा के तिराहे पर ही । चेकपोस्ट तो पुल पार करके था अब वहां क्या जाते । यहां से हनले जाने के लिये एक ही रास्ता है और हमें वापसी में भी यहीं से वापिस आना है । एक रास्ता हनले से शी मोरिरी के लिये और भी निकलता है पर वो भी बहुत ज्यादा खराब स्थिति में है इसलिये उससे नही जायेंगें
हनले की रोड बहुत बढिया थी और तीन बजे दुंगती से चलने के बाद हम पांच बजे हनले पहुंच गये । ये दो घंटे का समय भी इसलिये लगा क्योंकि हम हर दो चार किलोमीटर पर रूक ही जाते थे । पर लददाख बाइक लेकर क्यों जाना पसंद करते हैं लोग इसलिये क्योंकि बाइक को रोकने का झंझट नही होता । ना बार बार खिडकी खोलना और ना बार बार ड्राइवर को कहना । जहां हर मोड पर नजारे बदलते हों वहां आप मन मसोसकर बैठे रहो कार में तो ऐसे घूमने का क्या फायदा इसलिये लददाख यात्रा करो तो बाइक से करो और अगर कार से करो तो उससे करो जिसे आप खुद चला रहे हों ताकि किसी को रोकने के लिये कहना या सुनना ना पडे । अब क्या करना अब तो दुंगती में मैने अपना मैप खोलकर भी देख लिया था और अब आगे से मैप पर ही ज्यादा भरोसा करेंगें क्योंकि ये आफलाइन मैप भले हो पर सटीक है । तो दुंगती से वापस चले और चार बजे के करीब फिर से लोमा पहुंच गये पर लोमा के तिराहे पर ही । चेकपोस्ट तो पुल पार करके था अब वहां क्या जाते । यहां से हनले जाने के लिये एक ही रास्ता है और हमें वापसी में भी यहीं से वापिस आना है । एक रास्ता हनले से शी मोरिरी के लिये और भी निकलता है पर वो भी बहुत ज्यादा खराब स्थिति में है इसलिये उससे नही जायेंगें
ऐसे में हम दो घंटे बर्बाद करने के बाद जो कि हम गलती से डेमचौक वाली सडक पर चले गये थे वापस आये तब भी हम पांच बजे हनले में थे । हनले एक बहुत छोटा सा गांव है जो कि यहां पर मौजूद वेधशाला और मोनेस्ट्री के कारण प्रसिद्ध है । मोनेस्ट्री तो लददाख के गांव गांव में हैं जैसे हमारे यहां पर मंदिर होते हैं । वेधशाला जरूर यहां का आकर्षण है पर वो भी हर आदमी के लिये नही है क्योंकि उसकी कार्यप्रणाली को समझना हर किसी के बस की बात नही और ये सादी दूरबीन जैसी भी नही कि कोई भी दस रूपये का टिकट लेकर देख ले । फिर भी हनले आना था उसके पीछे क्या कारण हो सकता है ।
मेरी अपनी नजर में हनले आने का एकमात्र कारण है लदाख क्षेत्र को घूमना और वो सबसे बढिया कैसे किया जा सकता है जब तक आप इस क्षेत्र की सडको को नही नापोेगे तब तक इसे सही से नही जान पाओगे । लददाख में घूमने के लिये एक महीना भी कम है । यहां हर क्षेत्र की अलग विशेषता है हर जगह अलग तरह की संरचना के और अलग मिटटी के पहाड हैं । हनले के रास्ते में सडको के किनारे भी लाल रंग की मिटटी है और पूरे के पूरे लाल रंग के पहाड भी हैं । दुंगती गये तो वहां पर पूरे रेत के पहाड दिखे । लोमा से सिंधु नदी को बहते देखकर लगता नही कि ये इलाका इतना वीरान हो सकता है क्येांकि वहां पर जीवन के लिये सब चीज हैं केवल पानी की वजह से । हनले के रास्ते में भी कई जगह ऐसे मैदान हैं जिनमें चरवाहो ने अपने दल बल के साथ डेरा डाला हुआ है । इन चरवाहो के टैंट के ही घर होते हैं और वो भी ज्यादातर सफेद जैसा कि मैने पहले बताया और अक्सर आपको इनके हर डेरे के पास इनकी अपनी गाडी मिलेगी । कुछ जगहो पर तो पत्थर का बाडा बनाया हुआ भी मिलता है यानि ये हर साल इसी जगह पर आते होंगें । भारतीय सेना के लिये भी इनसे ज्यादा मददगार कौन होगा । जितने ज्यादा लोग ये ध्यान रखते हैं उतने तो हमारे सैनिक भी नही हैं । आपको याद होगा कि कारगिल की घुसपैठ की सूचना भी चरवाहो ने ही सबसे पहले दी थी । भारत की सीमाओ को सुरक्षित रखने में इनका योगदान कम नही है और वो भी हर बार्डर पर । खैर हनले क्षेत्र अपने आप में देखने लायक है और जैसा कि हमें चोट लगी थी और चोट लगने के बाद वापस अपने घर जाना था पर फिर भी हमने अपना बनाया हुआ रूट तय किया । एक तरीका ये भी हो सकता था कि हम पेंगोंग से वापस चांग ला को पार करके मनाली को निकल जाते पर हमने अपने परमिट का पूरा सदुपयोग किया । क्या पता कल किसी विषम परिस्थिति की वजह से ये क्षेत्र देखने का मौका मिले या ना मिले क्योंकि अक्सर चुशुल एरिया का परमिट सेना के उपर होता है । भले आपको परमिट मिला हो पर अगर सेना की ना है तो ना ही होती है और वो आगे जाने नही देते । लेह लददाख में एक ही एरिया में परमिट जारी होता है अब और वो है चुशुल से हनले होकर माहे पुल तक और वो हम देख रहे हैं तो इसलिये ख्रराब होते मौसम को देखकर मैने वापस अभी चलने का निश्चय किया ।
मिश्रा जी फिर से गरम हो गये कि हम इतनी दूर हनले आये तो गांव के अंदर तो घूमकर ही चलेंगें एक चक्कर मोनेस्ट्री तक लगा आयें । मैने उन्हे समझाया कि अगर हम गांव का और मोनेस्ट्री का चक्कर लगायेंगें तो एक घंटा कम से कम चाहिये तो फिर आज हनले में ही रूकना पडेगा और मै इसके लिये भी तैयार हूं आप तैयार हो जाओ कि अगर आप यहां घूमना चाहते हो तो फिर यहीं रूको और अगर आप चलना चाहते हो तो फिर देर ना करो क्येांकि मौसम खराब और समय रात का होने जा रहा है । मिश्रा जी चलना भी चाहते थे वापस पर घूमना भी चाहते थे । मैने समझाया कि दोनो संभव नही है और आप जो पांच मिनट दस मिनट कह रहे हो वो भी कहने की बात है समय तो लगना ही है इसलिये आप दोनो में से एक विकल्प चुनो । जब वो असमंजस की स्थिति में दिखे तो मैने ही वापस चलने का फैसला लिया और मिश्रा जी जैसे तैसे बात मानकर बाइक पर बैठ गये । हम वापस एक घंटे में लोमा में थे
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लददाखी गधे भी यहां पर बहुतायत में हैं क्योंकि बढिया चारागाह है |
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दुंगती डेमचोक रोड से दिखता लोमा |
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दुंगती की ओर |
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चीन की तरफ का नजारा |
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विशाल चारागाह |
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जी हम सामने सागा ला से आये हैं जो सबसे नीची जगह दिख रही है लेकिन इस चारागाह का चक्कर काट कर |
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दुंगती गांव |
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दुंगती गांव |
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दुंगती गांव |
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दुंगती गांव के सामने रेत का पहाड |
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हनले को सडक |
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हनले को सडक |
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हनले के रास्ते में |
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हनले के रास्ते में |
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हनले के रास्ते में |
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हनले के रास्ते में |
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हनले के रास्ते में |
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हनले के रास्ते में |
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हनले के रास्ते में |
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हनले के रास्ते में |
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हनले वेधशाला |
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पहाड की चोटी पर हनले मठ है |
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फोटी ला की तरफ |
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मिश्रा जी प्रसन्न मुद्रा में (केवल फोटो के लिये वरना तो गुस्सा ही थे ) |
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पहाड की तलहटी में छोटा सा हनले गांव है । |
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और मै इस वादे के साथ कि अगली बार फोटी ला भी आउंगा |
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वापसी लोमा की तरफ |
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वापसी लोमा की तरफ |
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वापसी लोमा की तरफ |
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वापसी लोमा की तरफ |