दूसरी तैयारी थी एक अदद साथी की । वैसे तो लोग 500 सीसी की बुलेट पर भी अकेले जाते हैं पर जैसे अकेले जाने के बहुत सारे फायदे हैं वैसे नुकसान भ...
मेरी धर्मपत्नी आजकल बिजनेस संभाल रही हैं तो आजकल उनकी व्यस्तता बहुत बढ गयी है और वो अक्सर मेरे साथ नही जा पाती । वैसे हम दोनो ने कई साल तक साथ घूमा और बाइक पर भी उन्होने मेरे साथ यात्राऐं की हैं पर अब वो भी बिजनेस संभालने के चक्कर में कम ही जा पाती हैं ये बात अलग है कि आजकल वो मुझसे ज्यादा कमा रही हैं । हम दोनो पिछले साल प्लेन से कश्मीर गये थे उसके बाद अभी तक नही गये हैं । उनका जाने का मन था पर हम दोनो में से एक ही जा सकता था और वो मै था क्योंकि मै कम से कम स्कूल से तो फ्री था इसलिये उनका तो कैंसिल ही था । मैने अपने पिछले यात्रा जो कि दयारा से डोडीताल की थी उसके साथी प्रकाश मिश्रा से पूछा तो उन्होने कहा कि वो नही जा पायेंगें । मैने फेसबुक पर स्टेटस लिखा तो मुझे कई फोन और मैसेज आये । उनमें से कुछ तो पूछ रहे थे तैयारी के लिये और जाने के लिये तैयार थे पर एक फोन सुबह सुबह ललित शर्मा जी जो कि बहुत बडे घुमक्कड और ब्लागर हैं उनका आया ।
फोन पे सीधे बोले कि मै चल रहा हूं । ललित जी इतने बडे घुमक्कड हैं कि अपने आपको घुमककड कहलाने वाले कई लोग उनके सामने तुच्छता की श्रेणी में हैं हम जैसे भी कभी कभी प्रशंसा में सोच लेते हैं कि हम घुमक्कड हैं लेकिन असली घुमक्कडी वो ही करते है जो बाल की खाल निकाल लेते हैं । पुरातत्व से लेकर आधुनिकता के समावेश तक उनके पास हर तरह की घुमक्कडी उनके पास है सिर्फ यात्रा वृतांत लिख देना उनका काम नही है हमारी तरह । तो उनका फोन आने के बाद कोई गुंजाइश तो रही नही किसी और को कहने की और दो बंदे ऐसे हो गये जिनके पास अपनी बाइक नही थी पर वो भी चलने को तैयार थे । इसके अतिरिक्त तीन बंदो के फोन आये जो अपनी बाइक से साथ चलने को तैयार थे ।
इनमें से एक बंदा आजमगढ से अवनीश था जो कि लददाख जाने के लिये बहुत उत्साहित था । औरो का तो कार्यक्रम नही बन पाया पर अवनीश तय समय पर पर आजमगढ से अपनी बाइक ट्रेन में रखकर ले आया । इस बीच उसके साथी जो कि पीछे बैठने वाला था उसका कार्यक्रम रदद हो गया तो उसने मुझे कहा । मैने उसको बोला कि पीछे बैठने वाले बहुत हैं और तुम आ जाओ बस । ललित शर्मा जी ने तैयारिया शुरू कर दी थी । उनकी उम्र पचास के पास है और इस हिसाब से मुझे लग रहा था कि कहीं वो पीछे बैठने से परेशान ना हो जायें और हम उस हिसाब से ना चल पायें जैसा कि मै चलता हूं तो दिक्कत हो जायेगी । मैने उनके रिजर्वेशन से पहले एक बार पूछा कि देख लो आपको परेशानी तो नही होगी तो उन्होने कहा कि नही ऐसा कुछ दिक्कत मेरी तरफ से नही होगी तो मै निश्चिंत हो गया । सभी लोग मुझसे ही सामान की लिस्ट मांग रहे थे जो मै उनको दे रहा था । इसी बीच प्रकाश मिश्रा जी का फोन आया कि मै भी चलूंगा तो मेरे सामने धर्मसंकट हो गया । बाइक तो एक ही है और उस पर ज्यादा से ज्यादा दो बंदे जा सकते हैं । मिश्रा जी को मै अपने साथ ले जाना चाहता था क्योंकि मुझमें खुद 85 किलो वजन है और मिश्रा जी हल्के फुल्के से युवा हैं जो कि अगर कहीं दिक्कत हुई तो बाइक में धक्का भी लगा सकते हैं जबकि ललित जी से मै कहता हुआ भी शर्म मानूंगा । तो मैने मिश्रा जी को बोला कि अपनी तैयारी करते रहना मै किसी और बाइक पर भी लेकर चलूं तो भी आपको ले चलूंगा ।
अपने एक मित्र हैं रमेश शर्मा जी उधमपुर वाले । उन्हे मित्र कहना वैसे उचित ना होगा क्योंकि वो तो पिता जैसे हैं पर चूंकि आभासी दुनिया से मिलन हुआ तो मित्रता ही अक्सर कहा जाता है । रमेश जी की उम्र तो काफी है पर जज्बा घुमक्कडी का उच्च स्तर पर बना हुआ है । वो अक्सर मित्रो से मिलने भी आ जाते हैं । मेरी उनसे मुलाकात नही हुई थी पर लददाख् यात्रा के मददेनजर बात हुई और वो भी बहुत उत्सुक थे पर मेरी बाइक पर ललित जी के जाने की वजह से वो बाइक का जुगाड भी ढूंढ रहे थे । इसी बीच ललित जी का फोन आय जाने से करीब तीन दिन पहले कि उन्हे कुछ स्वास्थय समस्या हो गयी है । ललित जी को स्वास्थय समस्या अभी हो गयी इसका मतलब ये है कि वो अगर बाइक पर दस घंटे बैठ गये तो उनके साथ ये स्थिति दोबारा हो सकती है और ऐसे में वो तो मुझे छोड कर चले आयेंगें और मै किसी ऐसे साथी को बुला भी नही पाउंगा जो कि बहुत ही लालायित है जाने के लिये तो इसलिये मैने और ललित जी ने यही फाइनल किया कि वे नही जायेंगें ।
अब रमेश जी और प्रकाश मिश्रा को बताया तो दोनो तैयार हो गये पर मै रमेश जी को लेकर उसी भावना से सशंकित था जैसा कि ललित जी के साथ हुआ वैसा रमेश जी के साथ भी हो सकता है इसलिये मिश्रा जी को पूछा तो उन्होने कहा कि वो अभी बरेली हैं और वहां से देवरिया जायेंगें और उसके बाद वहां से दिल्ली के लिये बैठ जायेंगें । मिश्रा जी की हां होने के बाद मैने रमेश जी को मना किया दुखी मन से पर रमेश जी भी जुगाड में लग गये थे कि वो हमारे साथ चलेंगें ही । जाने से एक दिन पहले अवनीश का फोन आया । हमें 21 की सुबह 4 बजे निकलना था और 20 को वो अपनी बाइक लेकर दिल्ली आ गये और जब उन्होने फोन किया कि हम आ गये हैं तो उन्होने कहा कि हम होटल लेकर दिल्ली ही रूक जायेंगें और कल आपके साथ निकलेंगें तो मैने कहा कि मेरे घर पर रूको होटल की क्या जरूरत है । मैने लोकेशन शेयर कर दी और वे घर आ गये । घर आकर मैने उनका सामान देखा । उनके दो बडे बैग् और किसी फौजी के स्लीपिंग बैग् थे उनके पास जो कि बहुत वजनी थे । इतना सामान बांधते खोलते रोज परेशान हो जायेंगें इसलिये मैने उन्हे सुझाव दिया कि सैडल बैग ले आओ करोल बाग से । उनके पास आज आधा दिन था इसलिये वे बाइक मेरे घर खडी करके चले गये । उनके जाने के चार घंटे बाद करीब उनके घर से फोन आया मेरे फोन पर ।
फोन करने वाले ने बताया कि वो अवनीश के भाई हैं और उनके साथ जो दूसरा लडका है उसके पिता का हार्ट अटैक से देहान्त हो गया है । अवनीश का फोन रोमिंग में किसी कारण से नही मिल रहा था इसलिये उन्होने मेरे फोन पर किया था । उन्होने बताया कि इसी समय उसको पिता को बीमार बता कर भेज दो और अवनीश को बोल दो कि जैसा समझ आये वैसा करे । अगर घूमने जाना चाहे तो जाये और वापस आना चाहेे तो आये । मैने अवनीश को फोन किया उसके पोस्टपेड बीएसएनएल पे जो वो नया लेकर आया था लेह के लिये । मैने अवनीश को स्थिति बतायी और डेढ घंटे बाद वो मेरे घर पर थे । अजीब परिस्थिति बनी हुई थी और अवनीश का साथी रोने लगा था । शायद उसे वहम हो गया था । अवनीश के सामने बडी विकट समस्या थी । वो जहां जाब करता था वहां से सैलरी बनाने के लिये पेन ड्राइव लेकर आया था कि 20 दिन के लिये जा रहा हूं । आफिस वालो ने छुटटी नही दी तो मैडिकल ले आया । सैलरी कहीं भी नेट मिलने पर वहीं से बनाकर डाल देगा नही तो दस दिन लेट हो जायेगी और क्या । बाइक को ट्रेन में रखकर आजमगढ से लाया वो भी तब जब आजमगढ में दंगे चल रहे थे ।
मैने उससे पूछा कि क्या मन है तो उसने कहा कि ये मेरे गांव का ही नही परिवार का भी है और मेरा मन घूमनेे का है पर इसे अकेला छोडने का भी नही है । यही बात उसके साथी ने भी कही कि वो अकेला नही जा पायेगा अब तो रात के आठ बजे कोई ट्रेन मिल भी जाती तो उसमें बाइक तो बुक होनी नही थी । बाइक बुक करने का मतलब था कि अगले दिन रात को चलना जो कि संभव नही था क्योंकि ऐसे हालात में घर पहुंचना जरूरी था तो उन दोनो ने बाइक पर ही जाने का फैसला किया । 800 किलोमीटर का सफर मुश्किल भी नही होता पर जब दो दिन से सफर में हों और सोये भी ना हो ठीक से तब मुश्किल होता है इसलिये भरे मन से मैने उन दोनो को विदा किया । सही से मुलाकात भी ना हो पायी ।
अवनीश के सिम की बात पर याद आया कि काफी सारी रिसर्च के बाद पता चला कि लेह में वैसे तो पोस्टपेड मोबाईल ही काम करता है पर उसमें भी और कम्पनियो के मुकाबले बीएसएनएल का नेटवर्क ही काम करता है । पहले मेरे साथ ललित जी चल रहे थे और उन्होने नया सिम भी निकलवा लिया था इसलिये मैने जरूरत नही समझी खुद निकलवाने की । तीन दिन पहले ही ललित जी का कैंसिल हुआ और इतनी जल्दी सिम लेने का एक ही तरीका था कि अपने मित्र नरेश सहगल जी जो कि इसी विभाग में हैं उनसे कहा जाये । एक बार कहा तो नरेश जी ने तुरंत हां कर दी कि आपको नया सिम मिल जायेगा जब आप अम्बाला आओगे । हमें अम्बाला होकर ही जाना था इसलिये अब सिम की कोई परेशानी नही थी । मिश्रा जी भी 20 की सुबह देवरिया से ट्रैन में बैठ लिये थे और 21 को सुबह 3 बजे वो गाजियबाद पहुंचेगें और 4 बजे मेरे साथ बाइक पर चल देंगें । बडा अजीब सा लग रहा था कि अवनीश अब साथ नही जा पायेगा ।
मै बडी मुश्किल से सो पाया क्योंकि सुबह 3 बजे जागना भी था । तीन बजे रात को ही मिश्रा जी का फोन आ गया कि वो उतर गये हैं और प्रताप विहार पहुंचने वाले हैं । मिश्रा जी के फोन आने के बाद 3 बजे मै दोबारा उठा और चार बजे मैने घर से प्रस्थान किया यात्रा के लिये । इससे पहले मै मिश्रा जी के कमरे पर नही गया था । उनके घर जाने के बाद वो नहाये और हम साढे चार बजे उनके घर से निकले । मैने मिश्रा जी को कहा था कि वो सिर्फ एक छोटे पिठठू बैग में ही सामान लें केवल अपने कपडे क्योंकि बाकी सब सामान मैने रख लिया है । वहां जाने पर देखा कि उन्होने पिठठू बैग तो लिया है पर बडे वाला । एक बैग् जो कि मैने आपको बताया मैने टैंट और स्लीपिंग बैग के लिये लिया था वो भी होने के बाद सामान काफी ज्यादा हो गया था फिर भी हम चल दिये ।
त्यागी जी प्रणाम
ReplyDeleteरोज एक किस्त आ जायेगी या इंतजार करना पडेगा।
त्यागी जी प्रणाम
ReplyDeleteरोज एक किस्त आ जायेगी या इंतजार करना पडेगा।
तैय्यारी के मामले में वो फ़ालतू का एक सिम गले पड़ गया, उसे अब बजाना पड़ेगा। दो चश्मे ले रखे हैं, जो मैं लगाता नहीं, वो तुम्हारे ही काम आएगें। सत्तु मंगवाया था वो सुभाष शर्मा जी को दे आया। बाकी चीजें तो काम आ जाएंगी। चलो फ़िर कभी देखेगें। कौन सा मुल्ला मर गया…………… और हाँ भाई अभी पचास के लवे धोरे भी नहीं पहुंचा हूँ, पहुंचुंगा तो फ़ेसबुक डौंडी पीट देगा अपने आप। :) :) :)
ReplyDeleteAvnish ka samaan dekh ke dukh hua. Itni excitement aur taiyyari ke baad trip par na ja paana...par bhagwaan ke plans aur marzi ke aage kuch nahi chalta.
ReplyDeleteअवनीश और उसके मित्र के साथ हुए हादसे से बड़ा दुःख हुवा :(
ReplyDeleteमेरे मित्र के साथ २००७ में ऐसा ही हुवा था , वो पुणे- से लेह लद्दाक के लिए बाइक से निकले था , तो अचानक पता चला की उसके पिताजी को हर्टअटैक आया ,तो ट्रिप कैंसिल करना पड़ा ......