Kargil जब पटटी कर रहे थे डाक्टर तो साथ साथ हमसे पूछ भी रहे थे कि ये सब कैसे हुआ । हमने जैसा हुआ था वैसा बता दिया । पटटी करने के बाद उनम...
Kargil |
जब पटटी कर रहे थे डाक्टर तो साथ साथ हमसे पूछ भी रहे थे कि ये सब कैसे हुआ । हमने जैसा हुआ था वैसा बता दिया । पटटी करने के बाद उनमें आपस में कुछ सलाह हुई अपनी भाषा में और उसके बाद उन्होने हमसे पूछा कि क्या आप पुलिस में कंप्लेंट करोगे तो जब तक हम सोचते उससे पहले ही उन्होने बताना शुरू कर दिया कि यदि आप पुलिस में शिकायत दोगे तो वो आपको उसी जगह लेकर जायेंगें । उसके बाद उस कार वाले की तलाश करेंगें और हमे भी उन्हे अभी यहां पर बुलाना पडेगा । कार का नम्बर हमने देखा नही था वरना कुछ हो भी सकता था और शिकायत मै शिलांग में अपने कैमरे की कर के देख चुका था जहां मेरे पास बंदे की शिनाख्त भी थी और नम्बर भी पर क्या हम अपना घूमना छोडकर इसी काम में लगे रहते ।
मैने मना कर दिया शिकायत करने को । मिश्रा जी की नाक पर चोट लगी थी और घुटना छिल गया था । उनकी हथेली भी छिल गयी थी और काफी गुम चोट थी । मेरे केवल घुटने और जांघ पर थी क्योंकि मेरे हैलमेट की वजह से सिर बच गया था और मैने पैरो में जो नी गार्डस और हाथो में एल्बो गार्ड पहने थे उनकी वजह से इतनी ज्यादा चोट लगने से बच गयी थी । कोहनियो पर पहने एल्बो गार्डस बिलकुल टूट चुके थे बीच से । घुटने में चोट इसलिये लगी क्योंकि नी गार्ड नीचे को सरका हुआ था थोडा । डाक्टर और उनके पूरे कुनबे ने हमें ये समझाना शुरू किया कि आप कहीं भी ये मत कहना कि हमें गाडी ने चोट मारी वरना कहीं भी ये बात पता चली तो आपको ढूंढना शुरू कर देंगें पुलिस वाले । उसके बाद हमें भी दिक्कत होगी । इस बात से कहीं ना कहीं ये भी वहम हो रहा था कि शायद पर्यटको के प्रति यहां की पुलिस बहुत बढिया है वैसे डाक्टर परिवार ये बताने की कोशिश भी कर रहा था कि वो पैसे ऐंठने के लिये परेशान रहते हैं ।
हमने उन्हे विश्वास दिलाया कि हम नही कहेंगें । उन्होने हमें एंटीबायोटिक दिये 500 एमजी के कि इन्हे खाते रहना । हमारे पास दवाईयां थी और पटटी भी पर जब चोट लगने पर बाइक वाले ने बताया कि सांकू में डाक्टर है तो हम वहां की तरफ चल दिये क्योंकि मिश्रा जी की नाक पर जो चोट लगी थी मै उसको साफ करने की हिम्मत नही कर सकता था । मुझे चक्कर आ जाते या उल्टी हो जाती ।वरना बीटाडीन की टयूब और पटिटयां हमेशा मेरे पास रहती हैं । डाक्टर के साथ की लेडी ने मिश्रा जी से पूछा कि चाय पीयोगे तो आदतन मिश्रा जी ने हां कर दी । मैने मना किया कि रहने दो हम बाहर पी लेंगें पर मिश्रा जी ने अपना जुमला दोहरा दिया कि जब मिल रही है तो क्यों ना लें । मुझे हंसी आ गयी क्योंकि अक्सर इन इलाको में चाय नमकीन बनाते हैं पर जब हम बाहर आये तो उन महिला ने हमें जल्दी जाने को कहा । अब चाय की बात गायब हो गयी थी और मै मिश्रा जी की ओर देखकर मुस्कुरा दिया । हमने जूते पहने और बाहर आ गये ।
जब एक्सीडेंट हुआ तो मिश्रा जी बहुत ही हिम्मत दिखायी और जब बाइक वाला बंदा उनके खून को देखकर घबरा रहा था तो उन्होने कहा कि पहले मनु भाई के उपर से बाइक हटाओ । जब अस्पताल में डाक्टर ने दवाई लगानी शुरू की तो मिश्रा जी के हाथ कांप रहे थे । असल में चोट का अहसास गर्म गर्म में नही होता । बाद में होने पर हर दर्द महसूस होता है ।
साढे सात बजे हमें चोट लगी थी और साढे आठ बजे तक हमने अस्पताल में पटटी करा ली थी । कभी सोचा नही था कि इतनी हसीन वादियो में बसे इस अस्पताल में जाना पडेगा । अब आगे जाने के बारे में तो सोचना ही बेकार था और हम बिना इस बारे में चर्चा कियेे कारगिल की तरफ चल दिये । मैने एक बार कहा कि कारगिल चलते हैं कमरे पर और मिश्रा जी ने हामी भर दी । एक तो हमारे कपडे फट चुके थे । मिश्रा जी के भी लोअर और विंडशीटर और मेरी भी दोनो फट चुकी थी । जिस रास्ते को हमने ढाई घंटे में तय किया था अब वो अच्छा नही लग रहा था और हम एक घंटे में वापिस कारगिल पहुंच गये । आज हमारा चौथा दिन ही तो था । पहला दिन उधमपुर , दूसरा श्रीनगर , तीसरा कारगिल और आज हमें जंस्कार जाना था । साढे नौ बजे हम कारगिल आये तो सबसे पहले बाइक वाले की दुकान ही पडनी थी । होटल तो अभी करीब 4 किलोमीटर था सो तब तक बाइक ही सही करा लेते हैं ।
बाइक वाले ने भी चोट देखकर सब बात पूछी । अब जाकर कमरे में आराम करने का ही इरादा था इसलिये पहले बाइक मिस्त्री के पास रूक गये । वैसे भी उसने चेन सही कराने के लिये उसने आज के लिये बोला था वैल्डिंग कराने को । उसका काम थोडा बढ गया था । बाइक को फुटरेस्ट भी नया डलवाया । बैट्री जिसने कि घर से ही परेशान किया हुआ था पर थोडा बहुत सैल्फ ले रही थी उसको भी चैक करवाया । मिस्त्री ने बैट्री निकालकर देखी तो वो बहुत गर्मा रही थी । इतनी गर्म कि भभक रही थी तो उसने बताया कि बैट्री तो समझो खराब ही है और अगर इसे ऐसे ही लगाये रखा तो ये फट भी सकती है । मैने नयी बैट्री पूछी तो उसने काफी महंगी बतायी इसलिये मैने उससे कहा कि बैट्री के तार ही हटा दो । अब बाइक किक से ही स्टार्ट होनी थी ।हम सडक के अपनी साइड में चल रहे थे और कार वाले ने हमें ओवरटेक किया । हमें जहां पर चोट लगी वहां से दस बीस मीटर पहले ही अंधा मोड था । सडक बढिया जरूर थी पर छोटी तो थी ही और गाडी वाला फुल स्पीड में था । राइट साइड से उसने हमारी बाइक में मारा और उसकी कार के पहिये का कवर भी वहीं टूट कर गिर गया था । हम सीधे हाथ की साइड को ही गिरे इसलिये दोनो के सीधे हाथ और पैर में चोट थी और बाइक में किक भी सीधे पैर से ही मारनी थी । हमने बाइक मिस्त्री की दुकान पर बैठकर सांकू के रास्ते से लिया गया जूस और बिस्कुट खाये । मिस्त्री ने चैन के पीछे की प्लेट भी जब वैल्डिंग करके लगा दी तब हमारी बाइक का रिपेयर का काम पूरा हो गया था । साढे नौ बजे हम कारगिल पहुंचे और साढे दस बजे मिश्रा जी ने मुझसे वापिस चलने की इच्छा जतायी । उनका मन नही था अब घूमने का । मैने उन्हे बताया कि अब यहां से वापस श्रीनगर जाकर या आगे लेह जाकर ही वापस जाया जा सकता है । मनाली रोहतांग रोड का बिलकुल भी पक्का नही है कि वो खुला है या नही इसलिये वापस जाना श्रीनगर से ही ठीक होगा लेकिन एक बात सोचकर बताओ कि जिस रास्ते को हम तीन दिन में कारगिल आये हैं हो सकता है वापस जाने में 4 दिन लगें क्योंकि अब वो स्थिति नही है कि एक दिन में 735 किलोमीटर चलें । बजाय इसके अगर आपकी इच्छा हो तो लेह चलते हैं और जब तक हम मनाली पहुंचेगें तो रोहतांग खुल चुका होगा । आज 24 तारीख है और चार दिन हम अगर रोहतांग की साइड को चलें तो पक्का रोहतांग पार कर लेंगें क्योंकि 25 तारीख को खुलने की संभावित तिथि हम पढकर आये थे ।
मिश्रा जी इस बात पर तो मान गये पर अगली बात उन्होने रखी कि आप मुझे 27 तक घर पहुंचा दो ताकि मै अपनी शादी की सालगिरह पर घर पर जा सकूं जो कि 29 तारीख की है । अब मै फिर से हैरान था क्योंकि ये तो कोई पहाडो में पक्का वादा नही कर सकता कि तीन दिन में ही हम दिल्ली पहुंच जायेंगें या 4 दिन में । उधर मिश्रा जी का दिमाग चूंकि अब घूमने में नही था तो वो वहां भाभीजी के पास जा पहुंचा था कि चलो अगर घूमना नही तो सालगिरह ही सही । मिश्रा जी अभी शादी के बंधन में बंधे हैं और ये उनकी दूसरी सालगिरह होने वाली है । हम तो पक चुके हैं 13 साल हो जायेंगें इसलिये उनकी व्याकुलता जरा ज्यादा ही थी और उपर से भाभीजी भी फोन पर एक दो दिन से ताना दे रही थी कि आप सालगिरह पर भी घर नही होंगें । अब उनका मन पूरा का पूरा सालगिरह की ओर था पर मै ऐसा वादा नही कर सकता था इसलिये मैने उनको बोला कि अगर आप कहो तो अभी लेह चलते हैं और आप हवाई जहाज से कल ही दिल्ली पहुंच जाओगे ये सबसे सीधा और आसान रास्ता है सालगिरह मनाने का ।
कुल मिलाकर एक बात तो तय हो गयी कि हम लेह चलते हैं । पता नही क्यों चोट लगने के बाद जो मानसिक धारणा बनी उसे कमरे में बैठकर और उभार मिलता । हम हर बार चोट लगने के कारणो , कार वाले की मानसिकता , और भी बहुत सारी बाते । अब अगर हमें लेह जाना है तो हमें अभी निकल लेना चाहिये और दूसरी बात दिक्कत की ये थी कि हमारा सामान होटल में रखा है । हम ये बात कर ही रहे थे कि होटल के मालिक मुझे सडक पर दिखे । मैने उन्हे रोका और उनसे पूछा तो उन्होने बताया कि वो कहीं बाहर जा रहे हैं और होटल में कोई नही है पर जब उन्होने चोट देखी और सारा माजरा समझा तो उन्होने अपने भतीजे को फोन लगाया कि फलां कमरे में बैग रखा है उसे बाहर निकालकर दे देना । इसके बाद भी उन्होने अपने घर के पास में काम कर रहे एक मिस्त्री को भी फोन लगाकर यही बात कही । हमने उनका धन्यवाद किया और उनका मोबाईल नम्बर ले लिया । हम बाइक से होटल पहुंचे और वहां पर हमें पडौस में मिस्त्री मिला जो कि लकडी का काम कर रहा था ।
हमने वहां से अपना बैग लिया और अपने फटे हुए कपडे बदले । मैने विंडशीटर पहने रखी और लोअर बदल लिया । हमने मिस्त्री को भी धन्यवाद कहा और उसके बाद हम चल पडे लेह के लिये । मिश्रा जी का काम जूस से नही चलना था तो उन्होने चलते समय पांच केले ले लिये कारगिल से कारगिल से हम जंस्कार के लिये सीधे हाथ की तरफ गये थे नदी की जबकि अब हमने पुल से नदी को पार किया और उल्टे हाथ की तरफ आ गये नदी के । मुबलेख जो कि 35 किलोमीटर के करीब है वो हमारा पहला पडाव था । कारगिल से निकलते ही दस किलोमीटर तक तो ठीक ठाक सडक थी पर उसके बाद तो बीस किलोमीटर बहुत ही खराब सडक रही । सोच रहे थे अगर ऐसा रहा तो लेह कैसे पहुंच पायेंगें । लेह कारगिल से 230 के आसपास है । हम बारह बजे दिन के लेह के लिये चल पडे थे । थोडी देर बाद अचानक बारिश होने लगी । हमने पांच छह किलोमीटर बाइक तेज चलायी और उसके बाद चम्बा मुबलेख नाम की जगह आ गयी जहां पर मोनेस्ट्री भी है सडक पर ही । यहीं पर कई रैस्टोरैंट बने हुए थे और उन्ही में से एक में हमने खाना आर्डर कर दिया । खाना खाने तक बारिश बंद हो चुकी थी पर सामने पहाड पर नमिक ला नाम के पास को हमें पार करना था और वहां पर मौसम अभी भी खराब दिख रहा था ।
लेकिन ऐसे कब तक बैठे रहते इसलिये हम चल पडे और यहां से सडक शानदार थी । चढाई होने के बावजूद बाइक बडे मजे से नमिक ला पर पहुंच गयी और शुक्र है कि बारिश नही पडी ।
यहां एक बात आपको कहना चाहूंगा कि हो सकता है कि एक दो पोस्ट में फोटो और लेख का तालमेल ना दिखायी दे तो माफी चाहूंगा क्योंकि कुछ बाते पिछली पोस्ट की भी अगली पोस्ट में आ जाती हैं । मै तालमेल बैठाकर ही लिखना चाहता हूं पर कई बार आपको सुंदर फोटो भी दिखाने जरूरी होते हैं तो थोडा एडजस्ट कर लीजियेगा
मिश्रा जी इस बात पर तो मान गये पर अगली बात उन्होने रखी कि आप मुझे 27 तक घर पहुंचा दो ताकि मै अपनी शादी की सालगिरह पर घर पर जा सकूं जो कि 29 तारीख की है । अब मै फिर से हैरान था क्योंकि ये तो कोई पहाडो में पक्का वादा नही कर सकता कि तीन दिन में ही हम दिल्ली पहुंच जायेंगें या 4 दिन में । उधर मिश्रा जी का दिमाग चूंकि अब घूमने में नही था तो वो वहां भाभीजी के पास जा पहुंचा था कि चलो अगर घूमना नही तो सालगिरह ही सही । मिश्रा जी अभी शादी के बंधन में बंधे हैं और ये उनकी दूसरी सालगिरह होने वाली है । हम तो पक चुके हैं 13 साल हो जायेंगें इसलिये उनकी व्याकुलता जरा ज्यादा ही थी और उपर से भाभीजी भी फोन पर एक दो दिन से ताना दे रही थी कि आप सालगिरह पर भी घर नही होंगें । अब उनका मन पूरा का पूरा सालगिरह की ओर था पर मै ऐसा वादा नही कर सकता था इसलिये मैने उनको बोला कि अगर आप कहो तो अभी लेह चलते हैं और आप हवाई जहाज से कल ही दिल्ली पहुंच जाओगे ये सबसे सीधा और आसान रास्ता है सालगिरह मनाने का ।
कुल मिलाकर एक बात तो तय हो गयी कि हम लेह चलते हैं । पता नही क्यों चोट लगने के बाद जो मानसिक धारणा बनी उसे कमरे में बैठकर और उभार मिलता । हम हर बार चोट लगने के कारणो , कार वाले की मानसिकता , और भी बहुत सारी बाते । अब अगर हमें लेह जाना है तो हमें अभी निकल लेना चाहिये और दूसरी बात दिक्कत की ये थी कि हमारा सामान होटल में रखा है । हम ये बात कर ही रहे थे कि होटल के मालिक मुझे सडक पर दिखे । मैने उन्हे रोका और उनसे पूछा तो उन्होने बताया कि वो कहीं बाहर जा रहे हैं और होटल में कोई नही है पर जब उन्होने चोट देखी और सारा माजरा समझा तो उन्होने अपने भतीजे को फोन लगाया कि फलां कमरे में बैग रखा है उसे बाहर निकालकर दे देना । इसके बाद भी उन्होने अपने घर के पास में काम कर रहे एक मिस्त्री को भी फोन लगाकर यही बात कही । हमने उनका धन्यवाद किया और उनका मोबाईल नम्बर ले लिया । हम बाइक से होटल पहुंचे और वहां पर हमें पडौस में मिस्त्री मिला जो कि लकडी का काम कर रहा था ।
हमने वहां से अपना बैग लिया और अपने फटे हुए कपडे बदले । मैने विंडशीटर पहने रखी और लोअर बदल लिया । हमने मिस्त्री को भी धन्यवाद कहा और उसके बाद हम चल पडे लेह के लिये । मिश्रा जी का काम जूस से नही चलना था तो उन्होने चलते समय पांच केले ले लिये कारगिल से कारगिल से हम जंस्कार के लिये सीधे हाथ की तरफ गये थे नदी की जबकि अब हमने पुल से नदी को पार किया और उल्टे हाथ की तरफ आ गये नदी के । मुबलेख जो कि 35 किलोमीटर के करीब है वो हमारा पहला पडाव था । कारगिल से निकलते ही दस किलोमीटर तक तो ठीक ठाक सडक थी पर उसके बाद तो बीस किलोमीटर बहुत ही खराब सडक रही । सोच रहे थे अगर ऐसा रहा तो लेह कैसे पहुंच पायेंगें । लेह कारगिल से 230 के आसपास है । हम बारह बजे दिन के लेह के लिये चल पडे थे । थोडी देर बाद अचानक बारिश होने लगी । हमने पांच छह किलोमीटर बाइक तेज चलायी और उसके बाद चम्बा मुबलेख नाम की जगह आ गयी जहां पर मोनेस्ट्री भी है सडक पर ही । यहीं पर कई रैस्टोरैंट बने हुए थे और उन्ही में से एक में हमने खाना आर्डर कर दिया । खाना खाने तक बारिश बंद हो चुकी थी पर सामने पहाड पर नमिक ला नाम के पास को हमें पार करना था और वहां पर मौसम अभी भी खराब दिख रहा था ।
लेकिन ऐसे कब तक बैठे रहते इसलिये हम चल पडे और यहां से सडक शानदार थी । चढाई होने के बावजूद बाइक बडे मजे से नमिक ला पर पहुंच गयी और शुक्र है कि बारिश नही पडी ।
यहां एक बात आपको कहना चाहूंगा कि हो सकता है कि एक दो पोस्ट में फोटो और लेख का तालमेल ना दिखायी दे तो माफी चाहूंगा क्योंकि कुछ बाते पिछली पोस्ट की भी अगली पोस्ट में आ जाती हैं । मै तालमेल बैठाकर ही लिखना चाहता हूं पर कई बार आपको सुंदर फोटो भी दिखाने जरूरी होते हैं तो थोडा एडजस्ट कर लीजियेगा