डोडीताल पहुंचने के बाद बहुत मन को आराम और सूकुन मिला । यही वो असली यात्रा थी जिसके लिये हम आये थे । दयारा बुग्याल से डोडीताल का सफर हम...
यहां पर हमने काफी फोटो लिये अपने आपस में तीनो ने । एक दो बंदे यहां पर रात को अपना टैंट लगाकर रूके हुए थे ।अभी साढे बारह बजे थे और हमने तय कर लिया था कि दो बजे हम यहां से चल देंगें । क्योंकि हमारा सामान तो कचेरू में यहां से सात किलोमीटर पहले था ही साथ ही हमारा पोर्टर वीरेन्द्र भी वहां पर बैठा हुआ था और उसको हम केवल दूध देकर आये थे कि वो उसे बना कर पी ले पर फिर भी हमें उसके लिये खाना तो लेकर जाना ही था । हमें पता नही था और हमसे ये गलती हुई कि हम उसे मांझी तक नही लेकर आये वरना मांझी में चाय की दुकान पर उसका बढिया इंतजाम हो जाता ।
अब काफी फोटो खींचने के बाद हमारे परांठो का बुलावा आ गया और हमने तीन तीन परांठे चाय के साथ खाये । चाय भी दो दो बार ली गयी आखिर अभी तक दयारा से चलने के बाद चाय पी ही कहां थी । जब बिल बना तो साढे आठ सौ रूपये का था । परांठा पचास रूपये का और चाय बीस रूपये की थी । यहां पर एक बात और बतानी जरूरी है कि जब हम दिल्ली से चले तो हर बंदे के पास चार पांच हजार रूपये की राशि नकद में थी और बाकी के लिये सब एटीएम के भरोसे रहते हैं जो कि कोई गलत बात भी नही है । ऐसे में मैने भी पैट्रोल और गैस डलवा ली थी और जब उत्तरकाशी पहुंचे तो एकलव्य भाई ने अमित तिवारी जी को 3000 रूपये दे दिये कि सबसे इकठठा कर लो और आप खर्च करो । लगे हाथ मैने भी एक हजार दे दिये और मेरी जेब में सिर्फ 500 रूपये बचे थे । एकलव्य के साथ भी ऐसा ही था और उसके पास भी छह सात सौ रूपये थे । मै उत्तरकाशी में तिलक भाई के यहां पर लेट गया और फिर सबके साथ चले तो हम बाजार को नही गये तो कहीं से एटीएम से निकालने का मौका नही मिला । अमित भाई ने दयारा से आगे जाते हुए हमें टोका नही और हम ऐसे ही निकल आये । हमारी बहुत बडी गलती थी पर हमें प्रकाश मिश्रा जी ने बचा लिया । मिश्रा जी से मैने पूछा कि आपने भी अमित भाई को तीन हजार रूपये दिये हैं क्या तो उन्होने बताया कि उन्होने कोई पैसा किसी को नही दिया था । सुनकर जान में जान आयी और मैने कहा कि अब आप ही पेमेंट करना । उन्होने परांठो का पेमेंट कर दिया और हमने वीरेन्द्र के लिये भी दो तीन परांठे बंधवा लिये । हमारे खाना खाने के समय ही यहां पर एक अंग्रेज आया जिसके साथ गाइड भी था । उससे थोडी देर बात करने के बाद हम वापसी चल पडे । डोडीताल को विदा कहने का समय आ गया था ।
यहां से चलते ही हमें रास्ते में काफी सारे खच्चर आते हुए मिले । पूछने पर पता चला कि कई बडे ग्रुप आ रहे हैं । खच्चरो में काफी सामान लदा था जिनमें बडे गैस सिलैंण्डर भी थे जिन्हे देखकर पता चलता था कि काफी लग्जरी वाला टूर था और ये देखकर दुख हुआ कि अंडो की क्रेट भी लाई जा रही थी । पहले तो ये उत्तराखंड वाले ऐसे पवित्र और धार्मिक स्थानो को खुद गंदा करने में सहयोग करते हैं क्योंकि अगर ये लोग जो कि यहां के निवासी हैं ऐसी गंदगी ना फैलाने दें तो किसी की हिम्मत नही है कि वो यहां पर डिमांड करे पर पैसा सब कुछ करा देता है इसी तर्ज पर यहां और ऐसे पवित्र स्थलो पर मांस और अंडा खाना भी बुरा नही माना जाता पर जब अति हो जाती है और केदारनाथ जैसी विपदायें आती हैं तब सारा दोष दिया जाता है बाहरी आदमियो को । अरे बाहरी आदमी क्या बिना आपकी मर्जी और सहमति के ये सब कुछ कर सकता है । केदारनाथ में भी अति ही हो चुकी थी । शराब शबाब और कबाब का दौर वहां पर आम बात थी और लोग इसलिये वहां पर जाया करते थे कि महंगे हिल स्टेशन के 2000 या उससे उपर के कमरे लेने की बजाय केदारनाथ में 200 का कमरा मिलेगा और ठंडक होगी तो पीने का मजा आयेगा वो अलग ।
खैर इसमें हमारी ओर से ज्यादा कुछ नही किया जा सकता इसलिये हमने अपना आगे का सफर जारी रखा और मांझी होते हुए कचेरू पहुंच गये । यहां पर वीरेन्द्र हल्की सी आग जलाये बैठा था और उसने सारा सामान एक किलोमीटर और आगे ले आया था कचेरू से भी । पानी की उम्मीद में वो आगे आया था और यहां पर भी पानी नाम को ही था पर पहाडी और वो भी अगोडा का रहने वाला होने की वजह से उसे यहां पर आ रहे खच्चर वालो और पोर्टर से काफी चीजे मिल गयी थी जिसमें पानी भी था । हम आठ किेलोमीटर आ गये थे और एकलव्य भाई के पैर में दर्द बढता जा रहा था । मैने एक जगह रूककर उनके पैर में वोलिनी स्प्रे लगा दिया जिससे दर्द में आराम मिला । दो बजे चलकर हम चार बजे तक वीरेन्द्र के पास पहुंच गये थे जो कि आठ किलोमीटर था यानि एक घंटे में चार किलोमीटर की औसत चाल आ रही थी । यहां से आगे एक जगह पडती है धारकोट । यहां पर एकलव्य भाई को दवा लगायी थी । यहां से संगमचटटी दिखने लगती है । धारकोट में हम पांच बजे पहुंचे थे । यहां पर एकलव्य भाई के पैर का दर्द हद से ज्यादा बढ गया था और अब हमने सोच लिया था कि आज केवल अगोडा तक ही पहुंचेंगें । एकलव्य भाई की चाल एक किलोमीटर प्रति घंटा हो चुकी थी और दोनो पोर्टर शार्टकट मारने के चक्कर में थे । मैने उन दोनो को अपने साथ लिया और एकलव्य भाई के निकलने तक उन्हे बिठाये रखा । मिश्रा जी को एकलव्य भाई के साथ कर दिया जिन्होने अपनी कहानी सुना सुना कर एकलव्य भाई का दिमाग खा लिया । बाद में हंसकर बता रहे कि आज कोई सुनाने को मिला ।
धारकोट से बेबरा गेट नाम का पडाव चार किलोमीटर था और वहां तक पहुंचने में सात बज गये । यानि इस बार दो घंटे में चार किलोमीटर । इस रास्ते में मै तो दोनो बंदो के साथ शार्टकट से उतरा । बेबरा गेट बहुत सुंदर जगह है और यहां पर डोडीताल के लिये जाने वाले बंदे कैम्प करते हैं । ये अगोडा गांव से दो किलोमीटर के करीब आगे है और गांव से दूर रहना पसंद करने वाले यहां पर जरूर रूकते हैं क्योंकि यहां पर खाओ पीयो और मजा करो वाली स्थिति है । कुछ होटल भी यहां पर बने हुए हैं और दुकाने भी हैं । अभी तो केवल एक ही दुकान खुली थी और उस दुकान के परिसर में टैंट लगाये दो लडके थे जिन्होने नीचे अपना हाफ रखा था और उपर मेज पर चिकन । दुकान वाले को बोल दिया कि अपने घर जाओ हमें किसी चीज की जरूरत नही सुबह आ जाना । बेबरा गेट पर हमें अंधेरा हो गया था । एकलव्य भाई और मै साथ साथ चल रहे थे । यहां पर मैने मिश्रा जी को कहा कि वो दोनो पोर्टर को साथ लेकर आगे जायें और गांव में सही सी जगह देखकर टैंट लगा लें । खाना मिलता हो तो ठीक है वरना खाना भी बनाना शुरू करें । मिश्रा जी दोनो को लेकर आगे निकल गये । मैने नदी के पानी से दोनो बोतले भरी और एकलव्य भाई की बोतल में और अपनी बोतल में इलैक्ट्राल और ग्लूकोन डी मिला लिया । अब हमारी कोल्ड ड्रिंक तैयार थी । बेबरा गेट से आगे अंधेरा घुप हो चुका था और ऐसे मेें पैर दर्द वाले बंदे का पैर इधर उधर पड जाये तो दिक्कत हो जाती है इसलिये मैने अपने मोबाईल की टार्च जला ली और हम दोनो धीरे धीरे चलने लगे । यहां पर मोबाइल का नेटवर्क आने लगा था । इससे पहले सिर्फ धारकोट मेें ही मोबाईल के सिग्नल और नेट आता है ।
हम धीरे धीरे चल रहे थे और एक जगह दो रास्ते दिखे । गांव कहीं दूर दूर तक नही दिख रहा था क्योंकि ऐसे अंधेरे में हमें उम्मीद थी कि गांव की लाइट वगैरा दो चार दिखने लगेंगी दूर से पर ऐसा बिलकुल नही मिला तो फोन करके मिश्रा जी से पूछा तो उन्होने रास्ता बताया । आठ बजे हम गांव में पहुंचे तो देखा कि गांव में डोडीताल की तरफ से आने वाले रास्ते पर सबसे पहले भारत लाज बना हुआ है और मिश्रा जी और हमारे दोनो र्पोर्टर वहीं पर हैं और टैंट नही लगा है । अब ये क्यों हुआ ये तो आगे बताना पडेगा
Dayara dodital-
Dodital lake and temple |
tyagi ji at lake |
Dodital lake |
A view in the way |
hum yahan se aaye the |
on the way |
virender waiting for us |
Beautiful way |
Beautiful way |
Beautiful way |
virender at dharkot |
sunset |
way to down |
sunset |
Bebra gate |
Bebra gate |
Bebra gate |
Bebra gate |
Bebra gate |
just before village |