अमर सागर से निकलने के बाद जैसलमेर से सम को जाने वाली रोड पर आ जाते हैं पर यहां से भी सम के लिये दो रास्ते निकलते हैं । एक रास्ता सीधे सम क...
कुलधारा गांव एक खाली गांव है जिसमें कोई नही रहता और ये करीब 200 साल से वीरान पडा है । यहां पर जो गाइड था उसके अनुसार तो ये कहानी थी कि यहां पर राजा का काफिला गुजरा तो उसने यहां के लोगो से धन की मांग की । यहां के लोग उतने धन की मांग पूरी करने में असमर्थ थे और रातोरात पंचायत बैठी जिसने एक खतरनाक फैसला लिया और अपने बसे बसाये गांव को छोडकर हजारो लोग अपनी गृहस्थी सब ऐसे ही छोडकर यहां से चले गये और पाली के पास जाकर बसे । वैसे वो गाइड दूसरे ग्रुप को समझा रहा था ।
मैने जब कुलधारा गांव के गेट पर स्कूटी रोकी तो यहां पर भी पर्ची कटनी थी वो भी 50 रूपये की । पर्ची कटवाकर मै गांव में पहुंचा । गांव में सब कुछ खंडहर है केवल एक मंदिर और तीन चार मकानो के जिन्हे शायद सरकार ने पुनर्निमाण कराया है । कहते हैं कि जैसलमेर से 18 किलोमीटर दूर इस गांव को पूरे वैज्ञानिक तरीके से बसाया गया था । कुलधारा में करीब 6 सौ घर थे और सभी ब्राहमण थे । यही नही ये भी कहा जाता है कि यहां पर उस पलायन में आसपास में बसे 84 गांव खाली हुए थे जिनमें से कुलधारा सबसे बडा था ।
वैज्ञानिकता ये थी कि ईंट पत्थर से बने इस गांव के घरो में गर्मी का अहसास नही होता था । घरो को ऐसा बनाया गया था कि हवा सीधे हर घर से होकर गुजरती थी । यहां पर भरी गर्मी में आने वाले 50 डिग्री में भी यहां के घरो में शीतलता का अनुभव करते हैं । तमाम घर झरोखो के जरिये एक दूसरे से जुडे हुए थे जिससे कोई भी बात एक कोने से दूसरे कोने तक बडे आराम से पहुंचाई जा सकती थी । हर घर में चारो ओर कमरे और बीच में दालान है । कमरो के नीचे तहखाने भी बनाये गये थे जो शायद और अधिक शीतलता के लिये थे ।
आजकल इस गांव को भूतिया कहा जाता है और यहां पर रात को आने की मनाही है । दिन में ये पर्यटको से भरा रहता है । सम जाने वाले ज्यादातर पर्यटक पैकेज में आते हैं और पैकेज में उन्हे कुलधारा गांव जरूर दिखाया जाता है क्योंकि सम के धोरो पर तो शाम को ही जाया जा सकता है ।
ऐसा बताते हैं कि यहां के निवासी ब्राहमण बहुत ही उदयमी थे और उन्होने बरसात के पानी को भी बढिया तरह से रोकने का तरीका बनाया था जिससे कि रेत उसे सोखे नही । वे यहां पर खेती और पशुपालन करते थे । उस समय में यहां पर हरियाली और धन की कमी नही थी पर जैसा कि मैने बताया कि कई किवदंतिया हैं यहां के उजडने के बारे में तो उनमें से एक ये भी है कि दीवान सालिम सिंह नाम के किसी दीवान की बुरी नजर यहां की किसी लडकी पर पड गयी और उसने गांव वालो को उस लडकी को सौंप देने या फिर अंजाम भुगतने को तैयार रहने को कहा । गांव वालो ने बेटी को देना मंजूर नही किया और यहां से एक ही रात में गांव खाली कर दिया । यहां से गांव खाली करते समय उन्होने श्राप दिया ऐसा बताते हैं कि ये गांव कभी दोबारा नही बसेगा । यहां पर ऐसा कहा जाता है कि कई लोगो ने बसने की कोशिश की पर वे भाग गये । यही नही कई लोगो का तो पता ही नही चला ।
बस तबसे ये खंडहर पडे हैं जिन्हे बाद में सरकार ने पर्यटन स्थल में तब्दील कर दिया । यहां पर सोना या दौलत दबे होने की भी अफवाह है इसलिये जगह जगह गढढे खुदे मिलते हैं जो कि लोग दौलत के लालच में खोद देते हैं । यहां से 16 किलोमीटर पर खाबा फोर्ट है । रास्ते में एक दो गांव और भी पडते हैं । इनमें से एक गांव में बहुत बडी दो टंकी बनायी हुई थी जिनमें से एक जानवरो के पानी पीने और कपडे आदि धोने के लिये और दूसरी सिर्फ पानी पीने की थी पर ये टंकी जमीन पर ही बनी हुई थी । जब खाबा फोर्ट आया तो दूर से ही दिखना शुरू हो गया था पर जब रास्ता सीधा सामने से बंद होकर उल्टे हाथ को जाने लगा और दो किलोमीटर का बोर्ड आया तो बडा अचम्भा हुआ । उल्टे हाथ को जाकर फिर एक पहाडी को काटकर रास्ता बनाया गया है और फिर हम उस पहाडी पर पहुंच जाते हैं जिस पर खाबा फोर्ट बना हुआ है । वैसे खाबा फोर्ट के केवल खंडहर ही बचे थे जिन्हे अब पुनर्निमाण करके बनाया जा रहा है । नीचे गहराई में गांव के खंडहर पडे हैं पर कुछ घर भी दिखायी दिये । दूर काफी हरियाली थी । यहां पर भी दस रूपये का टिकट था । यहां से नजारा बढिया दिखता है । ये खाबा गांव भी उन्ही पालीवाल ब्राहमणो का गांव था जिसे वे छोडकर चले गये ।
यहां पास ही में खाबा डेजर्ट कैम्प बना हुआ है । मैने यहीं पर स्कूटी खडी की और अंदर आ गया । कैम्प में टैंट लगे हुए है और रेत अंदर तक जमा हुआ है । मेरे अंदर पहुंचने पर दो तीन लोग बैठे थे और एक छोटा सा लडका उनके लिये कुछ बना रहा था । वहां पर पहले से मौजूद लोग प्रवासी भारतीय थे और अपने लोकल परिजनो के साथ गुजरात से यहां पर घूमने के लिये अपनी कार में आये हुए थे । सभी मुस्लिम थे पर आप उन्हे देखकर कह नही सकते । उनकी मुझसे बात हुई और उन्होने मेरे बारे में काफी जानकारी ली । मैने छोटे लडके को अपने लिये पकौडे का आर्डर दे दिया । काली चाय और पकौडे खाने तक वे सब निकल गये उसके बाद उस छोटू ने मुझे बताया कि उसके बडे भाई का ये होटल है और वो भी अपना होटल बना रहा है । उसने मुझे टैंट भी दिखाये और हट भी । टैंट में रूकने का किराया 5000 है एक रात का जबकि हट का 6000 है । हाल ही मे हुई एयरलिफट फिल्म की शूटिंग इसी इलाके में भी हुई थी और अक्षय कुमार इसी होटल में रूके थे । उनका फोटो भी यहां पर लगा हुआ था। मैने चाय पकौडो के पैसे पूछे तो उसने कहा जो चाहे दे दो । असल में वो मेरा बहुत अच्छा दोस्त बन गया थोडी ही देर में । वैसे यहां पर पकौडो की प्लेट ही सौ रूपये की थी पर मैने 50 दिये तो उसने हंसकर रख लिये । मैने उससे विदा ली और कहा कि कभी फिर आया तो जरूर मिलूंगा । तो भाई लोगो अगर यहां रूकने का इरादा हो तो मेरा नाम ले देना दस प्रतिशत डिस्काउंट मिल जायेगा