हर की दून में रूकना चाहिये था रात को पर हम वहां करते ही क्या जब वहां पर हमारे अलावा कोई भी नही था । इसीलिये हमने उसी दिन वापसी का फैसला लिय...
हर की दून में रूकना चाहिये था रात को पर हम वहां करते ही क्या जब वहां पर हमारे अलावा कोई भी नही था । इसीलिये हमने उसी दिन वापसी का फैसला लिया और वो मौसम के कारण ठीक भी रहा । अगर मौसम खराब हो जाता तो बहुत दिक्कत हो सकती थी । गंगाड में दुकान वाले ने बताया था कि उनके देवता ने कहा है कि कल बर्फ पडेगी । कल यानि जिस दिन हम हर की दून में थे । हमारे चलने से पहले ही मौसम विभाग ने बताया था कि पश्चिमी विक्षोभ के कारण तीन दिनो तक बर्फ पडेगी पर वो भी फेल हो गया ।
हम बडे आराम से ट्रैक कर आये । दोनो में से किसी को भी कोई दिक्कत या परेशानी नही थी । रात को सोये भी बढिया से । सुबह उठते ही पता चला कि बलबीर जी तो आज कहीं बाहर जाने के लिये निकल गये । आज उनकी धर्मपत्नी और बेटी ने चाय नाश्ता आदि लाकर दिया । आज हमने रास्ते के लिये कुछ नही बनवाया क्योंकि आज तो हमें गंगाड में दुकान मिलनी ही थी । मैने तो सिवाय चाय के कुछ नही पीया खाया ।
बलबीर जी के परिवार के फोटो लिये । पहले फोटो में उनकी पत्नी और बेटी है । उनकी बेटी आज तक सांकरी के अलावा नीचे कहीं नही गयी पर हर की दून तो सैकडो बार जा चुकी है । बलबीर जी का छोटा बेटा अपनी भेडो को चराने के लिये मसूरी के जंगलो में गया हुआ था और कल ही आया था । आज वो हमारे साथ जाने का इच्छुक था पर घर पर अकेला होने की वजह से नही जा सका ।
दो रात रूकने के 300 और दो समय खाना और परांठे आदि के 700 के करीब रूपये बनते थे पर मैने और बीनू भाई ने 1000 रूपये बिना कोई बहस या सोचे दे दिये । हम एक हजार रूपये देते हुए भी झिझक रहे थे जैसा सत्कार उन्होने दिया था हमें उसके लिये ये बहुत कम लग रहे थे । बलबीर जी की धर्मपत्नी ने कहा कि आप रहने दो अगर आपके पास जाने के लिये कम हो तो । ये सुनकर हम तो भावविभोर हो गये । ये ही है मेहमाननवाजी और यहां पर पैसे की कीमत कुछ नही है ।
आठ बजे हम निकले तो मौसम खराब हो चुका था और गांव के रास्ते में मिले एक आदमी ने हमें घोषणा कर दी कि आज बर्फ पडेगी । हमने पूछा कि कब पडेगी तो उसने बताया कि अभी बूंदाबांदी होगी एक से दो घंटे और उसके बाद बर्फ पडेगी । उसकी बात अक्षरक्ष सत्य हुई जब गंगाड जाने तक हल्की हल्की बूंद सी पडती रही । गंगाड में हमने उसी दुकान में रूककर चाय और मैगी का आनंद लिया । इस दुकान का मालिक यहीं पर होमस्टे बनवा रहा है । लकडी का मकान अप्रैल तक बनकर तैयार हो जायेगा । उसके बाद गंगाड गांव में नही जाना पडेगा ।
यहां आने से पहले मैने पढा था एक जगह कि गंगाड मे आज भी द्रौपदी प्रथा है । यहां पर जमीन को बचाने के लिये चार या पांच भाई एक ही लडकी से शादी करते हैं । मैने उस बारे में बलबीर सिंह से पूछा तो उन्होने बताया कि हां ऐसा था पर हमारे बाप दादा के जमाने में अब तो नही है । मैने चाय वाले लडके से पूछा तो उसने हंसकर मना कर दिया कि हमें तो नही पता ।
गंगाड से चलने के बाद तालुका पहुंचने तक लगातार बारिश पडती रही । गंगाड से तालुका 9 किलोमीटर है और ये पूरा रास्ता ऐसा है कि केवल एक जगह ऐसी थी जहां पर हम अपने को छुपा पाये अन्यथा सारे रास्ते बारिश से बचने का कोई साधन नही था । अभी सुबह का समय था और तालुका से आने वालो की संख्या तो काफी थी ही साथ ही उपर से आकर तालुका जाने वालो की संख्या भी बहुत थी और पहाडी लोग हमें दौडकर पार कर रहे थे । मेरे कंधे पर आज फिर से रकसैक का दस किलो वजन था । मैने पोंछू भी पहन लिया पर यहां आकर पता चला कि पोंछू कितना भी बढिया लगे पर वो थोडी देर के लिये ही कामयाब है ।
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पोंछू पहनने के बावजूद कपडे गीले हो रहे थे । मुझे अंदर से काफी पसीना आता है तो अंदर पसीना और बाहर ठंडा पानी और उपर से मैने कुछ खाया नही था तो गंगाड से पहले तो मुझे उल्टी भी हो गयी । पर गंगाड में मैगी खाने के बाद कुछ आराम हुआ । हां उस मैगी का दो किलोमीटर चलने के बाद पता ही नही चल रहा था और जोर से भूख लगने लगी थी जो चाकलेट खाकर मिटायी । हर की दून या ओसला की तरफ अब कुछ नही दिख रहा था और बर्फ उंची चोटियो तक सीमित नही रही । हम बर्फ को अपने उपर पडते देख रहे थे और ऐसे में एक गलती और हुई कि ग्लव्ज होने के बावजूद हमने उन्हे बैग से निकालने के झंझट की वजह से हाथ ऐसे ही छोड दिये । हाथ में डंडे को पकडा होने की वजह से हाथो पर बर्फ पडती रही और तालुका पहुंचने के बाद देखा तो हाथ की अंगुलियां सीधी नही हो पा रही थी । मैने तालुका पहुंचने के बाद वहां के होटल में हाथ सेकने चाहे पर कुछ आराम नही पडा । होटल वाले ने मुझे एक जग गरम पानी दिया और बोला कि हाथ इसमें डाल लो तो आराम मिलेगा ।
उस वक्त मै चीखने को था जब मैने हाथो को गरम पानी में डाला । कुछ देर में नार्मल हुआ तो सबसे पहले कपडे बदले धीरे धीरे करके । बीनू भाई तब तक 10 किलो राजमा खरीद लाये 70 रूपये किलो । पहाडी राजमा वो भी बिना कीटनाशक आदि का । होटल वाले को पूछा कि खाने को क्या है तो उसने बताया कि गरमागरम खाना तैयार है तो लगा दे भाई । भूख जोरो की लगी थी और खाना बहुत बढिया लगा । खाने पीने के बाद सांकरी तक जाने के लिये गाडी के बारे में बात की तो पता चला कि जो बंदा हमें छोडने आया था उसने पहले ही बता रखा था कि दो बंदे आयेंगें । हमने सवारी के रूप में बात की तो गाडी वाले ने कहा कि आपको तो पूरी गाडी ही बुक करके ले जानी होगी । हमने पूछा कितने में तो उसने कहा कि जितने में आये थे । हम 600 रूपये में बुक करके लाये थे तो बोला उतने में ही जायेगी । अब मजबूरी थी तो जाना पडा ।
सांकरी पहुंचते ही गाडी में सामान पटका और चाय पी । थोडी चर्चा के बाद ये तय हुआ कि अभी 4 बजे हैं और ऐसे में सांकरी में रूकना बेकार है जबकि हमारे पास अपनी गाडी है तो आगे जितना हो सके आगे चलते हैं ।
आगे कहां पर चलें इसके लिये बीनू भाई ने सुझाव दिया कि यहां से 40 या 50 किलोमीटर आगे हनोल नाम की एक जगह है जो कि अच्छी बताते हैं और वहां पर रूकने का भी साधन है तो वहीं पर चलते हैं । बस फिर क्या था एक बार फिर से ओसला कि ओर देखा जहां अब सब पहाड उपर से सफेद हो चुके थे । ये नजारा रोमांचित कर रहा था कि एक बार और हो आयें हर की दून । सांकरी में बारिश और बर्फबारी रूक चुकी थी तो बादलो ने अलग से समां बांधा हुआ था । हमने मस्ती और मजे के साथ चलना शुरू किया ।
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Morning departure |
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osla village |
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ओसला के लिये पुल |
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उपर बर्फबारी हो रही है |
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सुंदर धारा |
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गंगाड गांव |
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चाय मैगी का आनंद |
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अभी बारिश है हल्की बहुत |
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यहां के बाद तेज बारिश हो गयी |
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एक पेड के नीचे |
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बारिश में छुपने की एकमात्र जगह |
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ताजा बर्फबारी के बाद पहाड |
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सांकरी से दिखते पहाड |
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गाडी तैयार है सांकरी में |
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सांकरी में बादलो का खेल |
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सांकरी में बादलो का खेल |
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सांकरी में बादलो का खेल |
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सांकरी में बादलो का खेल |
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सांकरी में बादलो का खेल |
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चल बेटा सेल्फी ले ले रे |