लाखामंडल के लिये रास्ता मेन रोड से 5 किलोमीटर है । गाडी के लिये ठीक रास्ता बना हुआ है मंदिर गांव के बीचोबीच है पर एक रास्ते ने हमें भ्रमित ...
हम जिस क्षेत्र में है उसे केदार लाखामण्डल के नाम से जाना जाता है । ऐसा बताते हैं कि इसी स्थान पर पांडवो को जीवित जलाने के लिये लाखामंडल का निर्माण किया गया था । इसलिये ये आदिकेदार क्षेत्र में लाखामंडल के नाम से प्रसिद्ध हुआ है । जब पांडव अज्ञातवास में थे उसी समय यहां पर धर्मराज युधिष्ठिर द्धारा शिवलिंग की स्थापना की गयी थी । जो कि आज भी मंदिर प्रांगण में विघमान है । इसी लिंग के सामने दो द्धारपालो की मूर्तियां हैं जो कि पश्चिम की ओर मुंह करके खडे हैं ।
इस शिवलिंग की विशेषता यह थी कि कोई मृत्यु को प्राप्त हुआ आदमी भी अगर इन द्धारपालो के सम्मुख रख दिया जाता तो पुजारी के द्धारा अभिम़त्रित जल को छिडकने से वो जीवित हो जाता था । लेकिन वो इस प्रकार का जीवित होता कि अगर उसने मरते समय राम राम नही कहा हो तो राम राम कह ले और अगर गंगाजल नही पिया हो तो गंगाजल पी ले । अर्थात कुछ क्षणो के लिये ही जीवित हो पाता था । उसके बाद उस प्राणी को बैकुंठ धाम प्राप्त होता था ।
अगर किसी स्त्री को पुत्र की इच्छा है तो वो शिवरात्रि की रात को शिवालये के मुख्य द्धार के सामने बैठकर पूरी रात ज्योति को एकटक निहारती रहे और शिव मंत्र का जाप करती रहे तो एक वर्ष के भीतर उसकी इच्छा पूरी होती है ऐसा बताया जाता है । यहां पर जप , तप , यज्ञ हवन आदि करने का भी उत्तम फल प्राप्त होता है ।
भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण काल बारहवी तेरहवी शताब्दी का माना जाता है । यहां पर मिलने वाले अवशेषो से ज्ञात होता है कि यहां पर बहुत सारे मंदिर रहे होंगें क्येांकि अभी भी खुदाई में यहां पर मूर्तियां और शिवलिंग मिलते रहते हैं पर वर्तमान में यही एक मंदिर सही अवस्था में हैं । मंदिर परिसर से ही एक शिलालेख मिला है जिसमें लिखा है कि सिंहपुर के राजपरिवार से सम्बंधित राजकुमारी राजकुमारी ईश्वरा ने अपने पति चंद्रगुप्त जो जालंधर के राजा का पुत्र था के निधन पर उसको सदगति देने हेतु इस मंदिर का निर्माण कराया था । ये शिलालेख छटवी शताब्दी का है । इस बात की पुष्टि यहां से निकली इंटे और मंदिर की संरचना करती हैं । यह मंदिर हूबहू केदारनाथ की प्रतिमूर्ति है । ज्यादातर यहां से निकले हुए शिलालेख और मूर्तिया एएसआई के अधीन हैं और वो कमरो में बंद हैं । हम जब यहां पर गये तो वो कमरा बंद था ।
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हमें यहां पर एक लोकल बंदे मिले जिन्होने हमें मंदिर दिखाना शुरू कर दिया । मैने उन्हे पुजारी समझा । वो हमें मंदिर परिसर में ही दूसरे किनारे पर स्थित शिवलिंग के पास ले गये । इस शिवलिंग की खास बात ये हैं कि ये इतना विचित्र है कि जब बीनू ने इस शिवलिंग की फोटो अपने फेसबुक पर डाली तो एक कमेंट ये आया कि इस पर पालिश की गयी होगी । जबकि इस पर कोई पालिश नही की गयी और करीब 50 साल पहले ये शिवलिंग खुदाई में मिला । इस शिवलिंग पर जल अर्पित करने पर आप इसे शीशे की तरह देख सकते हो । ऐसा ही अहसास होता है । आप कैमरे से लिये गये फोटो भी देख सकते हो ।
बाद में इन्ही महाशय ने हमे प्रसाद भी दिया । हमने भी इन्हे दक्षिणा दे दी । बाद में बातचीत में पता चला कि ये पहले फौज में थे और श्रीनगर में ही इनकी ट्रैनिंग हुई थी । लेकिन इसके बाद इन्होने हमें अंदर का मंदिर खोलकर दिखाया । फिर बोले कि यहां का फोटो एएसआई वाले लेने नही देते पर आप ले लो । हमने फोटो लिये और चल दिये वापस । ये क्षेत्र बरसात के बाद काफी सुंदर दिखता होगा । दिख तो अब भी रहा था पर उस समय पर यहां पर पेडो ओर खासकर अखरोट सेब आदि के पेड जो कि अब सूखे दिख रहे थे उन पर हरियाली काफी रहती होगी । यहां पर एक काफी बडा स्टेडियम भी बना हुआ है । यही सब देखते हम वापस अपने रास्ते की ओर चल दिये ।