गुलमर्ग से पहले टनमर्ग और खिलनमर्ग नाम की दो जगहे और आती हैं । गुलमर्ग जितना सुंदर है उतनी ही सुंदर ये दोनो जगहे भी हैं । गुलमर्ग तो एक घिर...
गुलमर्ग से पहले टनमर्ग और खिलनमर्ग नाम की दो जगहे और आती हैं । गुलमर्ग जितना सुंदर है उतनी ही सुंदर ये दोनो जगहे भी हैं । गुलमर्ग तो एक घिरी हुई सी जगह है जबकि गुलमर्ग के पास कि ये देानो जगहे खूबसूरत घाटी में हैं और गुलमर्ग से वापसी आते हुए इस घाटी का बेहतरीन नजारा दिखता है ।
तो एक जगह पर गाड़ी रुकवाई गई और यहां से कई फोटो लिए गए इन सब में सबसे अच्छा फोटो जो कि केवल जूम करने पर आ रहा था वह था पास में एक घाटी का जहां से छोटी सी नदी आ रही थी उस नदी के आसपास पेड़ तो थे ही पर बाकी पूरी जगह बर्फ में घिरी हुई थी।
घाटी में बने मकानों को टीन की चादरों से कवर किया गया है जहां बर्फ पड़ती है ऐसी जगह पर टीन ही सबसे शानदार होती है बहुत से लोगों ने इन चादरो को लाल और हरे रंग से रंगा हुआ था । जो टीन अपने ओरिजिनल रंग में होती हैं वह सूरज की धूप पड़ने पर दूर से चमक मारती हैं और पता चल जाता है कि वहां पर कोई घर है । बर्फ से ढकी हुई पहाड़ की चोटीयो ने भी समा बांध के रखा था । उधर मौसम ठंडा होने के कारण सर्दी काफी थी और गाड़ी से निकलने के बाद काफी ठंड लग रही थी इसलिए वापस गाड़ी में जल्दी ही बैठ गए जैसे ही गुलमर्ग से नीचे उतरे वैसे ही बर्फ खत्म होती चली गई ।
श्रीनगर में पहुंचने के बाद गाड़ी वाले को उसका पैसा दे दिया गया और कल के लिए उसी से बात कर ली गई । पहलगाम जाने के लिए बंदा 2000 रुपए मांग रहा था गाड़ी बड़ी थी आरामदायक थी इसलिए हमने 2000 रुपए के लिए भी हां कर दिया आज शिकारे में बैठने का मन था लेकिन कम समय की वजह से वह प्रोग्राम रद्द करना पड़ा हम वापस अपने होटल में आ पहुंचे । यहां पर अपने होटल वाले को हमने जाते समय सुबह खाने का आर्डर दिया था तो उससे कह दिया कि थोड़ी देर में खाना भिजवा दे । खाना आया भी और हमने खाया भी और काफी अच्छा भी था लेकिन इस खाने की वजह से हमें इस होटल वाले से लड़ाई भी लड़नी पड़ी हुआ यू की बंदे ने जो खाना भिजवाया वह काफी ज्यादा था और उसने उसके रेट भी बहुत ज्यादा लगाये उसने हमें पहले ना पूछा ना हीं हमने उससे खाने का रेट पूछा जैसे हमें हाउसबोट में खाना मिला था हमने सोचा उसी की तरह नॉर्मल रेट होंगे लेकिन जब हमारे होटल से जाने की बारी आई तो बिल बहुत ज्यादा था खाने का लेकिन हमें देना पड़ा क्योंकि यह हमारी गलती थी कि हमने पहले से रेट मालूम नहीं किए थे आज काफी थकान हो चुकी थी इसलिए सब जल्दी ही सोने चले गए सुबह सवेरे मैं सबसे पहले उठ गया
सूर्य पहाड़ियों के पीछे से निकल रहा था और इस वक्त काफी रंग आसमान में बिखरे हुए थे । मेरे होटल के सामने वाली खिड़की में एक बाज बैठा था उसका फोटो लिया तो वह उड़ गया । उसके बाद एक कौवे ने काफी देर तक समय बिताने का मौका दिया इसके बाद मैं होटल से निकल कर डल झील के किनारे आ गया और कुछ देर तक कोशिश की थी की सूर्य के रंगों को कैद करता हूं लेकिन ऐसा ज्यादा देर तक नहीं हुआ और सूर्य अपने पूरे रंग रूप में आ गया उसके बाद मैं वापस होटल पहुंचा और देखा कि तब तक सब जाग चुके थे । हमने होटल में नाश्ता करना उचित नहीं समझा और गाड़ी वाले को फोन लगाया तो वो रोड पर आ चुका था और हम तैयार होकर पहलगाम के लिए चल दिए । पहलगाम तक जाने के रास्ते में श्रीनगर से निकलना में ही ज्यादा समय लगाता है हमें इस बात को ड्राइवर ने पहले ही बता दिया था कि यदि आप सवेरे निकलोगे तो जल्दी से जा पाओगे इसलिए हमने खुद ही अपने उठने में जल्दी की ।
हम झेलम के किनारे चलते जा रहे थे यह रास्ता अनंतनाग तक भी जाता है और बीच में पहलगाम के लिए अलग हो जाता है रास्ते में झेलम के किनारे हमने बहुत सारी लोकल हाउसबोट को देखा जो की नदी में डेरा डाले पड़ी थी । कई जगह हमने देखा कि लोगों ने नदी को पार करने के लिए एक रस्सी बांधी हुई है और उस रस्सी पर वह अपनी लोकल नाव को बिना चप्पू चलाए ही ले जाते हैं वह रस्सी को पकडे पकडे चलते रहते हैं और ऐसे ही आराम से पहुंच जाते हैं । जब भारत में बाढ़ के नाम की त्राहि मची हुई थी न्यूज चैनलों ने उस समय यहां के बारे में हल्ला मचाया हुआ था । अब देखो तो नदी में इतनी शांति की बिना चप्पू चलाए रस्सी पकड़ कर नौका पार कराया जा रहा था अब आप इस से अंदाजा लगा सकते हैं । श्रीनगर से काफी दूर निकलने के बाद हाईवे शुरू हो जाता है उस हाईवे पर की बाढ़ की तबाही के निशान देखे जा सकते हैं लेकिन अब कि नहीं पहली जोकि सितंबर अक्टूबर के आस-पास आई थी । उस बाढ़ ने रोड को बर्बाद करके रख दिया था इसलिए कई जगह सड़क बनाने का काम भी चल रहा था मैंने ड्राइवर से पूछा कि अब भाजपा और पीडीपी की पार्टी वाली सरकार से क्या उम्मीद है तो उसका कहना था कि अभी तो यह लोग आए हैं देखिए क्या करते हैं । अब खुला मैदान आ गया था जिसके बीच में हाईवे था और दोनों तरफ लंबे चौड़े खेत थे उन खेतों में हरियाली थी और उन खेतों के दूर बर्फ के पहाड़ दिखाई दे रहे थे । यह बहुत बढ़िया नजारा था जिसे कैद करने के लिए हम दो-तीन बार गाड़ी रोक कर उतरे हालांकि ड्राइवर ने बताया कि आप सड़क किनारे जो आर्मी के जवान देख रहे हैं वह इसीलिए खड़े हैं कि यहां कभी भी कुछ भी हो जाता है इसलिये ज्यादा देर नही रूकना
झेलम नदी के किनारे एक गांव आया जहां से रुक कर हमारे ड्राइवर ने अपने घर के लिए सिलबट्टा खरीदा । उसका कहना था कि यही सिलबट्टा श्रीनगर में काफी महंगा मिलता है जबकि यहां पर सस्ता है । यहां इस गांव में इस तरह के काम की काफी दुकानें थी यह लोग नदी और पहाड़ों के आसपास से पत्थर लाते हैं और उसे छैनी हथौड़े से तराश कर कई चीजें बनाते हैं
Nice photo...manu bhai
ReplyDeleteशानदार यात्रा मनु भाई ! फोटुओं ने तो दिल जीत लिया
ReplyDeleteशानदार मनुभाई उतनी ही सुन्दर फोटोग्राफी
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