मजनू का टीला , दिल्ली का एक ऐसा इलाका जिसे मिनी तिब्बत कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी । सहदेव दलाल के साथ एक दिन के लिये दिल्ली घ...
मजनू का टीला , दिल्ली का एक ऐसा इलाका जिसे मिनी तिब्बत कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी । सहदेव दलाल के साथ एक दिन के लिये दिल्ली घूमने का कार्यक्रम बनाया गया । वैसे तो ये कार्यक्रम नेपाल जाने से पहले का है पर लिखा जा रहा है नेपाल यात्रा के बाद । तो मै बस में बैठकर आई एस बी टी आ गया और वहां से सहदेव ने अपनी बाइक पर मुझे ले लिया । सबसे पहले हम मजनू का टीला में गये । वैसे यहां से गुजरते हुए मै कई बार बाहर से इस इलाके को देख चुका हूं और ये ऐसी जगह है कि आप दिल्ली में किधर से भी आओ तो इस जगह को देखकर आपको ध्यान आ जायेगा कि आप यहां से एक बार पहले भी होकर गये थे ।
हमने बाइक पतली सी गली के अंदर को ही ले ली । आगे थोडा दूर में खुली सी जगह थी जो कि एक चौक की तरह था और उसके दो ओर दो मंदिर बने थे । हम मंदिर में गये बाइक को वहीं पर खडे करने के बाद । दोनो ही मंदिरो में बौद्ध धर्म के प्रतीक और वही सब दिखाई दिया जो कई जगहो पर बौद्ध मठो में हमने देखा है । मंदिरो में चढावे के रूप में चढाई गयी तिब्बती करेंसी के नोट आकर्ष्ति करते हैं । युवा बौद्धो को जाप में तल्लीनता से लगे देखकर अलग ही अनुभूति होती है ।
यहां पर हर चीज का जुडाव तिब्बत से है । नारे भी लिखे हैं तो तिब्ब्त के समर्थन में । तकरीबन हर दुकान में एक स्टीकर जरूर लगा होगा सेव तिब्बत । जब हम घूम रहे थे उन दिनो चीन के राष्ट्रपति का भारत आने का कार्यक्रम था तो यहां के लोगो ने बैनर लगाये हुऐ थे कि चीन ने जैसे 1962 में धाोखा दिया था वैसे ही वो फिर देगा और भारत उसे याद करें । इन तिब्बती लोगो ने अपना देश छोडा पर बहुत से अन्य रिफयूजियो की तरह अपनी आबरू नही छोडी अपनी संस्कृति नही छोडी । उसकी याद को साथ रखते हुए भारत में ही तिब्बत बना दिया । यहीं मजनू का टीला से हिमाचल के धर्मशाला आदि के लिये बसे चलती हैं क्योंकि यहीं से उन्हे सबसे ज्यादा सवारी मिलती होंगी । यहां आकर एक बार को ऐसा लगता है कि हम ही तिब्बत में आ गये हैं ।
इन तंग गलियो से जिनकी पहचान तिब्बतियो ने गर्म कपडो के अच्छे स्त्रोत के रूप में बना दी है हम दिल्ली की सडको पर फिर से निकल पडे और इस बार हमारा लक्ष्य था संजय वन
हमने बाइक पतली सी गली के अंदर को ही ले ली । आगे थोडा दूर में खुली सी जगह थी जो कि एक चौक की तरह था और उसके दो ओर दो मंदिर बने थे । हम मंदिर में गये बाइक को वहीं पर खडे करने के बाद । दोनो ही मंदिरो में बौद्ध धर्म के प्रतीक और वही सब दिखाई दिया जो कई जगहो पर बौद्ध मठो में हमने देखा है । मंदिरो में चढावे के रूप में चढाई गयी तिब्बती करेंसी के नोट आकर्ष्ति करते हैं । युवा बौद्धो को जाप में तल्लीनता से लगे देखकर अलग ही अनुभूति होती है ।
यहां पर हर चीज का जुडाव तिब्बत से है । नारे भी लिखे हैं तो तिब्ब्त के समर्थन में । तकरीबन हर दुकान में एक स्टीकर जरूर लगा होगा सेव तिब्बत । जब हम घूम रहे थे उन दिनो चीन के राष्ट्रपति का भारत आने का कार्यक्रम था तो यहां के लोगो ने बैनर लगाये हुऐ थे कि चीन ने जैसे 1962 में धाोखा दिया था वैसे ही वो फिर देगा और भारत उसे याद करें । इन तिब्बती लोगो ने अपना देश छोडा पर बहुत से अन्य रिफयूजियो की तरह अपनी आबरू नही छोडी अपनी संस्कृति नही छोडी । उसकी याद को साथ रखते हुए भारत में ही तिब्बत बना दिया । यहीं मजनू का टीला से हिमाचल के धर्मशाला आदि के लिये बसे चलती हैं क्योंकि यहीं से उन्हे सबसे ज्यादा सवारी मिलती होंगी । यहां आकर एक बार को ऐसा लगता है कि हम ही तिब्बत में आ गये हैं ।
इन तंग गलियो से जिनकी पहचान तिब्बतियो ने गर्म कपडो के अच्छे स्त्रोत के रूप में बना दी है हम दिल्ली की सडको पर फिर से निकल पडे और इस बार हमारा लक्ष्य था संजय वन
such amazing pictures... am sharing it :-)
ReplyDeleteएक अलग ही अनुभूति देता पोस्ट !
ReplyDeleteबहुत शानदार पोस्ट ! सुना बहुत है लेकिन इतना सुन्दर होगा , घूमने लायक होगा , सोचा ही नहीं !!
ReplyDeleteवाह ..बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर |
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