shani singnapur नासिक से निकलकर हमारा आज का लक्ष्य था शिरडी सांई मंदिर और शनि सिंगनापुर । नासिक से शिरडी 90 किलोमीटर के करीब दूर है शि...
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shani singnapur |
नासिक से निकलकर हमारा आज का लक्ष्य था शिरडी सांई मंदिर और शनि सिंगनापुर । नासिक से शिरडी 90 किलोमीटर के करीब दूर है शिरडी तक पहुचंने का रास्ता ज्यादा अच्छा नही था । ये सिंगल रोड की तरह था और बढिया से प्लेन भी नही था । जब हम शिरडी पहुंचे तो दोपहर थी और हमने जाते ही सबसे पहले कमरा ढूंढना शुरू किया । थोडी ही देर में हमने एक होटल की दूसरी मंजिल पर तीन कमरे चार सौ रूपये प्रति कमरे के हिसाब से ले लिये । कमरो में सामान रखकर हमने थोडी देर आराम किया क्योंकि होटल वालेे ने बता दिया था कि अभी दर्शन नही होंगें । शाम के समय हम दर्शनो के लिये लाइन में लग गये ।
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यहां पर वीआईपी दर्शन भी टिकट लेकर हो जाते हैं पर हम तो सादी लाइन में ही लगे रहे । करीब दो घंटे में जाकर नम्बर आया जहां पर गरीब फकीर को सोने के सिंहासन पर बैठा देखा । सोने के मुकुट को लगाये वहां पर दान की हुंडियो में अपार दौलत लुटायी जा रही थी । जो सनातन धर्म के होकर देवी देवताओ के मंदिरो में भी नही जाते वे यहां बाबा के लिये पागल हुए जा रहे थे । अपने को तो यहां पर घूमना था इसलिये देखना जरूर था । बाकी दर्शन ता मैने आज तक उसके अलावा किसी सांई मंदिर के नही किये जबकि हमारे आसपडौस में भी पता नही कितने साईं मंदिर हैं । सबसे बडा ढकोसला तो ये है कि इन लोगो ने इस पाखंडी बाबा के नाम के आगे राम जोड दिया है और नाम के पहले ओम ताकि पहले से आंखे मूंदे बेवकूफ लोग इसे हिंदू ही मानें और ये यकीन तब पुष्ट हो जाता है जब आप किसी सांई अंधभक्त से बात करो तो
बिलकुल बिना किसी जानकारी के वो चमत्कारो की बात करने लगता है । अमूमन मै किसी को भी इस बात के लिये छेडता नही पर किसी किसी की बात सुनकर गुस्सा इतना आ जाता है कि उसके बाद जो मै बोलता हूं तो उसे अपने आप पर शर्मिंदगी आती है कि सारे देवी देवताओ को छोडकर बस बाबा ने ही उस पर कृपा क्यों की ?
खैर मंदिर से निकलकर हम लोग भोजनालय में गये जहां शिरडी संस्थान के द्धारा भोजनालय का संचालन किया जाता है और इस जगह पर दस हजार लोग बैठकर खाना खा सकते हैं । खाना काफी सस्ता मेरी याद में शायद दस रूपये का था । इसे प्रसाद बताया जाता है । दोपहर को जब हम आये थे तो मंदिर के सामने की काफी दुकानो में से एक में खाना खाया था । वहां पर एक तो गर्मी थी और उपर से उनकी भटटी में निकल रही गर्मी ने दिक्कत बना थी पता नही कैसे कैसे खाना खाया ।
रात को अपने कमरे में आराम करने के बाद सुबह सवेरे हम तैयार होेकर जब चले तो हमें शनि सिंगनापुर के लिये गाडी मोड दी । शनि सिंगनापुर शिरडी से ज्यादा दूर नही है । थोडी ही देर में हम वहां पर जा पहुंचे । यहां मंदिर से पहले दुकाने लगी थी जिसमें धोती किराये पर मिल रही थी और खरीदने से भी । हमें बताया गया किसे ही दर्शन मिलेंगें बस । मै इस ढोंग के खिलाफ हूं । मै शनिदेव को मानता हूं और मैने मु0नगर से लेकर प धोती पहनकर ही आप शनिदेव महाराज पर पास से जाकर तेल चढा सकते हो नही तो आपको दूर लाइन में ता नही कितनी जगह उन की प्रतिमा पर तेल दान किया है पर कहीं ऐसी शर्त नही मिली तो उन शनिदेव में और इनमें क्या अंतर है । मैने धोती नही पहनी जबकि हमारे साथ के लालाजी ने तो तुरंत धोती ले ली ।
मंदिर काफी बडा है और दर्शन आराम से हुए । मुझे कोई गम नही था इतने बडे मंदिर में शनिदेव को पास से ना छू पाने का क्योंकि मेरे विचार में हमें अपने मन से मानना काफी है । अगर पास से छूने से ही कोई चमत्कार होता तो फिर सब लोग ही छूते पर यहां तो महिलाओ को भी छूना मना है तो फिर मै भी उनके साथ ही हो लिया ।
यहां पर जिस चमत्कार को हम देखने आये थे उसे भी साक्षात देख लिया । यहां के होटल से लेकर गांव के घरो तक में दरवाजे नही हैं । जिन घरो में दरवाजे हैं भी उनमें कुत्ते बिल्ली को रोकने के लिये अस्थायी दरवाजे हैं जो अलग से रखे रहते हैं और रात को उन्हे सटा दिया जाता है । यहां तक कि टायलेट और बाथरूम में भी दरवाजे नही हैं । यहां टायलेट और बाथरूम को ऐसा बनाया जाता है कि कोई भी उसमें सीधे सीधे ना देख सके तो एक दीवार बीच मेें और भी आ जाती है ।
केवल यही देखने के लिये हम गांव में घूमे और गांव वालो से बात की । गांव वालो ने बताया कि ये सब शनिदेव का प्रताप है कोई चाहे तो चोरी करके देख ले अंधा हो जायेगा । दो किलोमीटर के दायरे में शनिदेव का आर्शीवाद है । खुल्ला चैलेंज
यहां पर जिस चमत्कार को हम देखने आये थे उसे भी साक्षात देख लिया । यहां के होटल से लेकर गांव के घरो तक में दरवाजे नही हैं । जिन घरो में दरवाजे हैं भी उनमें कुत्ते बिल्ली को रोकने के लिये अस्थायी दरवाजे हैं जो अलग से रखे रहते हैं और रात को उन्हे सटा दिया जाता है । यहां तक कि टायलेट और बाथरूम में भी दरवाजे नही हैं । यहां टायलेट और बाथरूम को ऐसा बनाया जाता है कि कोई भी उसमें सीधे सीधे ना देख सके तो एक दीवार बीच मेें और भी आ जाती है ।
केवल यही देखने के लिये हम गांव में घूमे और गांव वालो से बात की । गांव वालो ने बताया कि ये सब शनिदेव का प्रताप है कोई चाहे तो चोरी करके देख ले अंधा हो जायेगा । दो किलोमीटर के दायरे में शनिदेव का आर्शीवाद है । खुल्ला चैलेंज
यहां से निकलकर हम चल पडे अपने अगले पडाव अजंता एवं अलोरा गुफाओ की ओर
NORTH INDIA YATRA-
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ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन जल ही जीवन है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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