kumbh mela held here जब हम नासिक में पहुंचे तो रात के 12 बज चुके थे । हम होटल को ढूंढने में ज्यादा समय बिताने के पक्ष में नही थे और महिला...
जब हम नासिक में पहुंचे तो रात के 12 बज चुके थे । हम होटल को ढूंढने में ज्यादा समय बिताने के पक्ष में नही थे और महिलाये सब आराम से सो रही थी । नासिक में भी घुसने से पहले ही एक काफी बडे होटल के सामने गाडी रूकवा ली । हमारे साथी लालाजी मना करने लगे कि यहां पर कमरा महंगा मिलेगा पर मै और मा0जी पूछने चले गये ।
होटल के रिसेप्शन पर मौजूद आदमी ने बताया कि कमरो का रेट 1000 से शुरू है डबल बैड के लिये । हमने इतना महंगा लेने में असमर्थता जतायी तो उसने कहा कि हमारे पास एक फैमिली रूम है अगर आप लेना चाहें तो 1100 रूपये का है पर उसमें दो कमरे हैं आपस में जुडे हुए और एक ही अटैचबाथ है । हमने कमरा देखा । हम एक ही परिवार से तो नही थे पर मिलने वाले थे आपस में और फिर दस दिन से साथ घूम रहे थे तो हमें ऐसे कमरेे में रूकने में कोई परेशानी नही थी । दोनो कमरो के बीच में एक दरवाजा था और कमरे बडे और एलसीडी टीवी लगे थे । वैसे भी हमें रात बितानी थी क्योंकि अब रात के एक बजे से सुबह आठ नौ बजे तक हम जब तक सोकर उठते तब तक चैकआउट टाइम हो जाना था ।
वैसे भी यहां पर लाइट के अलावा जेनरेटर की व्यवस्था थी । इसका फायदा हमें तब पता चला जब लालाजी हमारे साथ इस होटल में रूकने को तैयार नही हुए और आगे कहीं रूकने की बात कहकर गाडी लेकर चले गये । वे आगे जाकर पता नही किस होटल में रूके जिसमें रात को लाइट चली गयी और फिर फिल्म बनी जिसका नाम था गीत गाया मच्छरो ने । म्हारे यहां कहते हैं कि चखोरिया गादला पीवे है वही काम हुआ लालाजी का ।
हम तो आराम से सोकर उठे और होटल में ही चाय नाश्ता कमरे में मंगाकर किया । उसके बाद हमने लालाजी को फोन किया कि गाडी यहां पर भिजवा दो । हम सब गाडी में बैठकर लालाजी के पास पहुंचे तो उन्होने बताया कि हम सारी रात सो नही पाये तो हम हंसने लगे । आगे तय ये हुआ कि आज की रात भी यहीं पर रूकना है क्योंकि नासिक बडा शहर है और आज का पूरा दिन यहां पर घूमना है इसलिये लालाजी की बात फिर से मानकर हम शहर में घुस गये । यहां पर जैन धर्मशाला ढूंढते ढूंढते किसी और की धर्मशाला मिल गयी जो कि काफी पुरानी थी पर लालाजी को सस्ती होने की वजह से पसंद आ गयी थी। वैसे हम उनकी बुद्धि को जानते थे पर क्या करें अगर साथ में चलना है तो बहुत बाते पीनी पडती हैं
वहीं पर तीन कमरे ले लिये और उसके बाद हम गोदावरी नदी के किनारे बने घाट पर जा पहुंचे । हमें गाडी से उतारकर ड्राइवर ने एक जगह देख ली जहां उसने लगे हाथ गाडी धो डाली । नासिक की ये जगह बिलकुल हर की पौडी की तरह है । यहां पर भी घंटाघर है और हर की पौडी की तरह ही नहाने का साधन है । वैसे भी कुंभ मेला जो कि हर 12 साल में लगता है वो जिन चार जगहो पर लगता है नासिक उनमें से एक है ।
यहां पर पहले हमने घाट के किनारे पर स्थित मंदिरो को घूमा जिनमें से शिव मंदिर काफी पुराना और सुंदर था । उसके बाद यहां पर एक बांध के तरीके से गिर रही पानी की धारा के पास बैठकर काफी फोटो खिंचाये । फिर जब हम घाट पर घूम रहे थे तो एक दो आटो वाले हमारे पास आये और हमसे नासिक को घूमने को लेकर बात करने लगे ।
हमें भी यही था कि अपनी गाडी हो तो गाइड लेना बढिया होता है ताकि वो हमें रास्तो की भूल भुलैैयया से बचा सके इसलिये हमने उनसे बात करनी शुरू की । 200 रूपये आटो के हिसाब से आटो तय हो गया । एक आटो में तीन आदमी आने थे और हम छह लोग थे । मै और लवी अलग अलग आटो में हो गये क्योंकि बुजुर्गो को इस उम्र में क्या अलग अलग करें ।
NORTH INDIA YATRA-
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