बुलंद दरवाजा अंदर की ओर से फतेहपुर सीकरी पहुंचते ही बस ने मुझे मेन रोड पर उतार दिया । यहां से 5 रूपये देकर मै आटो के द्धारा बुलंद दरवाजा...
बुलंद दरवाजा अंदर की ओर से |
फतेहपुर सीकरी पहुंचते ही बस ने मुझे मेन रोड पर उतार दिया । यहां से 5 रूपये देकर मै आटो के द्धारा बुलंद दरवाजा की ओर जाने वाली रोड पर उतर गया । इस रोड पर जब मै चढ रहा था तो एक लडका मेरे पास आया और बोला कि मै आपको बुलंद दरवाजा और दरगाह दिखा दूंगा और आपको टिकट भी नही लेना पडेगा । क्यों टिकट नही लगेगा ? मेरे पूछने पर उसने बताया कि मै दरगाह में पढने वालो में से हूं और आप मुझे सौ रूपये देंगे तो मै आपको सब चीज घुमा भी दूंगा और टिकट भी नही लगेेगा ।
मै पहली बार यहां पर आया था पर पता नही क्यों मेरा मन उसकी बातो को नही माना और मै चलता रहा । वो मेरे पीछे पीछे तब तक चलता रहा जब तक उसने सौ रूपये से तीस रूपये कहकर हार नही मान ली । उसके बाद जब उसने कुछ उग्र सी बात कही तो मैने उससे कहा कि मै दरगाह को मानता ही नही तो फिर मै किसी से डरता नही मै टिकट ही लूंगा । इतने में ही तेज बारिश एकदम से दोबारा शुरू हो गयी जो लोहागढ से भी ज्यादा तेज थी और पचास मीटर का रास्ता मैने भागकर तय किया और बारिश में ही बुलंद दरवाजा की इमारत के ही दूसरे गेट में पहुंच गया । यहां पर जूते निकालकर ही अंदर जाने देते हैं ।
मैने सोचा कि अगर बारिश बंद ही नही हुई तो जूते ही क्यों निकालने इसलिये मै बारिश हल्की होने तक वहीं पर खडा रहा । बल्कि मुझे लग रहा था कि बारिश बंद नही होगी इसलिये मैने कुछ फोटो वहीं से भी ले लिये । पर थोडी देर में बारिश बंद हो गयी और मैने जूते निकाल दिये । यहां पर मौजूद कई लोगो ने भी कहा कि हम आपको दिखा लाते हैं पर मैने मना कर दिया । अंदर इमारत के चारो ओर गलियारा है जिसमें उल्टे हाथ की ओर सबसे पहले बच्चो के पढने के लिये बनाये गये करीब अस्सी कमरे हैं । उसके बाद कब्रो का सिलसिला शुरू हो जाता है । महिलाओ की कब्र अलग से पहचानी जा सकती हैं । यहां पर महिला कब्र का चित्र मैने दिया है उन पर ये निशान बना होता है । बीच में सफेद रंग की दरगाह है और सामने की ओर नमाज पढने के लिये मस्जिद । इसके बाद बुलंद दरवाजा है । यहां पर मैने एक बंदे को कैमरा देकर अपना फोटो भी खिंचवा लिया ।
बुलंद दरवाजा घूमने के बाद मै जोधाबाई के महल की ओर चल दिया जो कि जोधाबाई का महल ना होकर एक हरम है और यहां के गाइडो ने लोगो को मिसगाइड कर दिया है ।
फतेहपुर सीकरी का बुलंद दरवाजा विश्वविख्यात है । जमीन से 280 फुट उंचा ये गेट अकबर के बनवाये हुए भवनो में सबसे प्रसिद्ध है । गेट तक पहुचंने के लिये 53 सीढियां हैं । अकबर को पुत्र प्राप्ति ना होने पर उसने प्रसिद्ध सूफी संत सलीम शेख चिश्ती से प्रार्थना की और उसको पुुत्र प्राप्ति हुई ऐसा कहा जाता है । इस खुशी में अकबर ने अपनी राजधानी ही यहां पर बनाने का निश्चय कर लिया पर कुछ सालो करीब 15 साल के अंदर ही उसने अपनी राजधानी आगरा में बदल दी क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि यहां पर पानी की काफी कमी थी ।
बुलंद दरवाजे में आज भी लगे हुए पुराने किवाड ऐसे ही हैं । दरवाजे पर यात्रियो ने जो मन्नत पूरी होने पर घोडे की नाल ठुकवा दी हैं वो भी दिख जाती हैं । इसका निर्माणकाल 1602 में कहा जाता है । शेख सलीम चिश्ती की दरगाह सामने घुसते ही है जो कि सफेद संगमरमर की बनी है और उसमें बनी जाली दूर से देखने पर काफी सुंदर लगती है । ये जगह दो गांवो के नाम से जानी जाती है एक गांव का नाम फतेहपुर है और दूसरे का सीकरी । दोनो गांव एक दूसरे से मिले हुए हैं । अकबर ने यहां पर चित्तौड के राणा संग्राम सिंह को हराया था और इसी की याद में उसने एक गांव का नाम फतेहपुर रख दिया था ।
शेख सलीम चिश्ती की कृपा से अकबर को जो बेटा प्राप्त हुआ उसका नाम
शेख के नाम पर ही सलीम रखा गया । अकबर ने यहां पर राजधानी के लिये सब सुख सुविधाऐं जुटा दी । उसने यहां पर अनेक भवन बनवाये जिसमें पंचमहल और दीवाने खास
, बीरबल का महल आदि भवन थे पर पानी की कमी की वजह से जब उसने आगरा में राजधानी ले जाने का निश्चय किया तो यहां पर उजाड हो गया और वो उजाड होता होता आज एक छोटा सा कस्बा ही रह गया है जबकि एक समय में ये जगह आगरा से भी उन्नत थी और देश विदेश के व्यापारी यहां पर अपना सामान बेचने और खरीदने के लिये आया करते थे ।
Agra Bharatpur yatra series -
वैसे कुछ इतिहासकार इस दरवाजे का निर्माण् हिंदु राजाओ द्धारा किया जाना बताते हैं । इसके लिये वो जो तर्क देते हैं वो ये हैं कि इस दरवाजे के निर्माण में अष्टकोण का प्रयोग किया गया जो कि हिंदू स्थापत्य कला में होता है । इसके अलावा द्धार की कमान के दोनो ओर कोनो के स्कंधो पर बने कमल के छत्र भी हिंदू शैली के ही हैं । किवाडो पर घोडे की नाल लगाना भी राजपूतो में चलन रहा है ।
इस गलियारे में मदरसे के कमरे हैं |
जगह जगह कब्र ही हैं |
जगह जगह कब्र ही हैं |
ये औरत की कब्र है इन पर ये निशान होता है |
फतेहपुर गांव |
जामा मस्जिद |
मनु प्रकाश त्यागी और बुलंद दरवाजा |
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ख्वाजा सलीम चिश्ती की दरगाह |
These are excellent photos made more interesting by the wonderful clouds. You were lucky to be there on a rainy day :)
ReplyDeleteयात्रा लेख पढ कर अच्छा लगा.फोटो तो मस्त है ही.
ReplyDeleteNice post manu.. Excellent photos.
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