अगले दिन हम सोकर उठे और जूनागढ घूमने के लिये तैयार हो गये । चूंकि हम रूके ही गिरनार पर्वत की तलहटी में थे और वहां पर जहां से सीढियां शुरू ह...
अगले दिन हम सोकर उठे और जूनागढ घूमने के लिये तैयार हो गये । चूंकि हम रूके ही गिरनार पर्वत की तलहटी में थे और वहां पर जहां से सीढियां शुरू होती हैं तो हमें ज्यादा समय नही लगा और हम सीढियो के पास पहुंच गये । यहां आने तक हमने इस जगह का सोचा नही था ये तो सोमनाथ जी में कम समय लगने की वजह से जूनागढ आ गये थे । जब हमने एक दो जगह सीढियो की संख्या लिखी देखी तो हमारे साथ के मा0 जी और लाला जी दोनो और उनकी धर्मपत्नियों ने भी हाथ खडे कर दिये । असल में इन सीढियो की संख्या दस हजार के करीब है ।
मै और लवी तो चलने को तैयार थे पर दस हजार सीढी चढना और उतरना इतना कम समय नही है कि हम उन दोनो परिवारो को इंतजार करने को कहते इसलिये हमने साथियो के साथ ही चलना तय किया और गिरनार की चढाई को छोडकर जूनागढ शहर को ही घूमने की सोची
यहां के बारे में भी हमें ज्यादा कुछ पता नही था सो एक दो आदमी से पूछा तो उसने बताया कि आप किला देख लो । वैसे भी यहां पर एंट्री करते समय हम एक किले की बडी बडी दीवारे देख चुके थे । एक दो बडे से गेट से भी निकलना हुआ था । ऐसे में हम पूछते पूछते किले पर पहुंच गये जिसे अपरकोट कहते हैं । पुरानी इमारतो से भरपूर इस जगह पर गाडी के जाने की सुविधा है । बस किले के गेट पर जाने के बाद आपको गाडी को एक साइड में रोककर टिकट लेना पडेगा । यहीं पर गाइड भी खडे रहते हैं । एक दो ने हमसे कहा कि हम साथ चलें पर हमने मना कर दिया ।
ये किला काफी बडा है और इसे पैदल घूमना काफी दुष्कर है । जिनके पास अपनी गाडी ना हो तो वो यहां से आटो वगैरह ले सकते हैं । किले के गेट तक यहां काफी रिहाईश है पर वे लोग पर्यटको से ज्यादा मतलब नही रखते । किला शाम को 6 बजे तक खुला रहता है ।
नीलम और माणिक — किले में घुसते ही सबसे पहले दो तोप के दर्शन हुए जो कि शहर की ओर को मुंह करके रखी गयी थी । वैसे मेरे अनुमान से जब ये रखी गयी थी तब शहर यहां नही बल्कि किले में ही बसता होगा । चूंकि किला काफी उंचाई पर है इसलिये किले से शहर का बहुत ही बढिया नजारा दिखता है । इन तोपो के नाम नीलम और माणिक हैं । इन्हे तुर्क लोग इजिप्ट से लाये थे दमन और दीव की रक्षा करने के लिये पुर्तगालियो से ।
रनक देवी पैलेस अब जामा मस्जिद ---थोडी दूर ही रनक देवी पैलेस है जो कि बाद में मुस्लिम राजाओ ने यहां पर कब्जा करने के बाद जामा मस्जिद में बदल दिया गया । ये जगह 140 पिलरो पर खडी है । और उन सबमें कहीं भी फोटो खिंचवा लो सब बढिया ही दिखते हैं । आजकल इस जगह का हाल काफी बुरा है और इसमें रखरखाव की कमी की वजह से कबूतर ही अपना ठिकाना बनाये हुए हैं ।
इसी की सीढियो से उपर जाने के बाद गिरनार पर्वत का बहुत अच्छा नजारा दिखता है पर यहां पर कब्र भी काफी संख्या में है । सारी कब्रो पर वही हरा कपडा है जो पीर बाबाओ के यहां मिलता है ।
इस जगह के बाद हमने दो कुंए देखे जो कि काफी गहरे थे इन कुंओ को ऐसे बनाया गया था कि इनमें दो साल तक पानी की आपूर्ति हो सकती थी युद्ध के समय में । इसलिये इनमें जाने के लिये कई स्तर पर सीढियां हैं
बौद्ध गुफाऐं — अपरकोट की ही एक चटटान पर ये महत्वपूर्ण गुफा समूह स्थित है । सतह से नीचे की ओर तराशकर तीन तलो में बनायी गयी इन गुफाओ के हर दीर्घा के खंडो को उभारदार बनाया गया है । यहां आकाश की ओर को खुले करके तराशकर तीन कमरे बनाये गये हैं । दक्षिण की ओर से घुमावदार सीढियो द्धारा पहले कक्ष में प्रवेश किया जा सकता है जो चारो ओर से ढके गलियारे से घिरा एक कुंड है । इस कुंड में बरसाती पानी एकत्र किया जाता है ।
आदि गुफाऐं —-यहां पर केवल दो ही मंजिलो के फर्श हैं । सबसे निचले तल में उत्कृष्ठता से तराशे गये स्तम्भ हैं । जिसके आधार , शीर्ष और मध्य में अलंकृत नमूने हैं । अष्टभुजाकार आधार , उभारदार लकीरो से अलंकृत पशु आकृतियो वाले ये स्तम्भ हैं । ये सातवाहन कला और यूनानी शक कला का प्रभाव लगते हैं । यहां पर उत्खनन में तीसरी चौथी सदी के मृदभांड और तांबे के सिक्के प्राप्त हुए हैं । स्थापत्य कला के आधार पर इन गुफाओ को लगभग दूसरी शताब्दी का माना जा सकता है ।
NORTH INDIA YATRA-
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बढिया घुमक्कड़ी
ReplyDeletevery bful fort
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