जैन मंदिर में काले रंग के महावीर स्वामी सोमनाथ में ज्योर्तिलिंग और भालका तीर्थ के दर्शन करने के बाद हमारा यहां पर रूकने का इरादा नही थ...
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जैन मंदिर में काले रंग के महावीर स्वामी |
सोमनाथ |
में ज्योर्तिलिंग और भालका तीर्थ के दर्शन करने के बाद हमारा यहां पर रूकने का इरादा नही था । हम सुबह द्धारका से चले और सोमनाथ पहुंचे थे । गुजरात की बढिया सडको पर थकान तो ज्यादा होनी नही थी इसलिये सोमनाथ से जूनागढ तक का सफर और करने का फैसला किया ।
जब हम जूनागढ में पहुंचे तो शाम होने ही वाली थी इसलिये सबसे पहले रूकने की व्यवस्था देखने की सोची । हमारे साथ लालाजी थे जिनकी पहली और अंतिम चाह केवल और केवल श्वेताम्बर जैन स्थानको मे ही रूकने की होती थी । हम भी इसलिये नही बोलते थे क्योंकि हमने जैन स्थानको में जो रूकने की व्यवस्था देखी वो बहुत ही सुंदर और स्वच्छ होने के साथ साथ किफायती भी थी । उदयपुर जैसे शहर में 200 रूपये में कमरा मिलना बडी आश्चर्य की बात थी ।
यही नही जैन स्थानको में रूकने के अलावा शुद्ध और सात्विक खाना भी उपलब्ध हो जाता है । बस एक तो वहां पर समय होता है निश्चित और दूसरी बात कि कई जगहो पर आपको पहले ही खाने का आर्डर देकर बताना होता है कि हम शाम को खाना खायेंगें । इसके अलावा जमीन पर बैठकर खाना मिला कई जगह और उसमें तीखे मसाले और चटपटा कुछ नही था पर वो शुद्धतम था ।
खैर यहां भी हम जैन स्थानक या धर्मशाला को पूछते हुए बिलकुल गिरनार पर्वत की तलहटी में पहुंच गये जहां से गिरनार को जाने वाली सीढिया शुरू होती हैं । वहां पर एक गेट बना हुआ है उसी से कुछ पहले जैन स्थानक था । ये जैन स्थानक अपेक्षाकृत काफी पुराना था और कमरे आदि भी पुराने थे । जैन बंधु जाते ही अपना परिचय आदि और हमें पारिवारिक सदस्यो के रूप में दर्ज करवा देते थे । जैन स्थानको में जैन लोगो के लिये ही रूकने की व्यवस्था उपलब्ध है ।
इस जैन स्थानक में अन्य की तरह ही जैन मंदिर था । जहां पर भगवान महावीर काले पत्थर की प्रतिमा के रूप में विराजमान थे । हमें बताया गया कि ये स्थानक काफी प्राचीन है और इसकी काफी मान्यता है । इसी स्थानक के बीचोबीच एक कीर्ति स्तम्भ भी बना है । रात को हम सबने खाना यहीं पर खाया और फिर यहां के बाजार में भी घूमें । लम्बे सफर पर थे इसलिये रात को कमरे में आकर अपने कपडे आदि धो लिये । चूंकि कल हमें काफी समय तक जूनागढ को भी घूमना था इसलिये कपडो के कमरे में सूखने की संभावना बढिया थी ।
बाजार में घूमकर हम रास्ते में दिखायी दिये एक मंदिर में भी गये जिसमें कुंड भी बना था और बहुत सारे लोग इसके रूके हुए पानी में बडी श्रद्धा से नहा रहे थे पर इस जगह का नाम मै अब भूल गया हूं । इसका नाम दामोदर कुंड था शायद उसके बाद हमने बाजार घूमा । जूनागढ में दो बाते हैं एक तो किले की दीवार है और दूसरा अपरकोट । अपरकोट थोडा उंचाई पर है और ज्यादातर देखने वाली जगहें उसी में हैं । किले की दीवारे तो जूनागढ में आते जाते भी दिख जाती हैं ।
NORTH INDIA YATRA-
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कीर्ति स्तम्भ जैन तीर्थ में |
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जैन धर्मशाला |
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मंदिर दर्शन |
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जूनागढ बाजार |
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