youth hostel shillong आज शिलांग पहुंचने का कार्यक्रम था । एनजेपी से गुवाहटी स्टेशन के लिये रात बैठै थे ट्रेन में । कल दार्जिलिंग में ठंड...
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आज शिलांग पहुंचने का कार्यक्रम था । एनजेपी से गुवाहटी स्टेशन के लिये रात बैठै थे ट्रेन में । कल दार्जिलिंग में ठंड थी तो शाम को एनजेपी में गर्मी और रात में जैसे बादल ही फट पडा हो । रात के 12 बजे से लेकर सुबह ट्रेन के पहुंचने तक बारिश रूकी ही नही । यही नही गुवाहटी से शिलांग पहुंचने तक भी बारिश नही रूकी ।
ट्रेन की खिडकी से जिधर भी देखो जल थल सब एक हो रहे थे । बादल बहुत घना था । सुबह साढे चार बजे की जगह 6 बजे ट्रेन रंगिया स्टेशन पहुंची थी । उसके बाद एक नदी आयी शायद ब्रहपुत्र थी । मुझे ब्रहमपुत्र इसलिये लगी क्योंकि बहुत चौडा पाट था । कई किलोमीटर का । रास्ते में और भी कई नदियां आयी । यहां के घरो पर ढलवा छत है और पहाडिया हैं छोटी छोटी ।
जब हम कामाख्या जंक्शन पहुंचे तो भी बारिश लगातार होती रही । कभी बहुत तेज तो कभी मंदी हो जाती पर खिडकी तो लगातार बंद ही रखनी पडी । एक तो बारिश होने की वजह से सब कुछ धुला धुला सा लग रहा था । वैसे भी रास्ते में कटहल , सुपारी , अनानास और केले के पेड खूब दिख रहे थे ।
स्टेशन पर उतरने के बाद हमने सामान उतारकर एक साइड रखा और औरतो को सामान के पास खडा करके हम बाहर शिलांग के लिये गाडी देखने आ गये । यहां पर शिलांग के लिये शेयर टैक्सी चलती हैं । नौ दस सवारी बिठाकर ले जाते हैं । हमने भी एक दो गाडी वालो से बात की तो एक गाडी वाले ने 1500 रूपये में बात फाइनल कर ली । चूंकि हमारे पास नौ सवारी थी इसलिये हमें किसी को गाडी में बिठाने की जरूरत नही थी और हमारे लिये शेयर टैक्सी भी अपनी गाडी की तरह काम कर रही थी ।
हमने जो पैकेज लिया था वो केवल सिक्किम और दार्जिलिंग का ही था और अब हम वहां से आ चुके थे । यहां से आगे हमें मेघालय और आसाम को घूमना था जिसके लिये ना हमने गाडी का पैकेज किया और ना होटल का । यहां तो जो मिल जाये वही चलना था ।
गाडी हमें लेकर चल पडी । जिस हाइवे पर हम चल रहे थे उसके एक तरफ आसाम था तो दूसरी ओर मेघालय और ऐसा बहुत दूर तक चलता रहा । रास्ते में एक जगह हमने चाय पीने के लिये गाडी रूकवा ली । यहां पर मा0 जी ने केले देखे तो उनका लेने के लिये मन ललचा गया पर ये केले कुछ अजीब से थे । साइज में भी और जब ले लिये और खाकर देखे तो पता चल गया कि ये जंगली केले हैं इसलिये उनका स्वाद हमें पसंद नही आया था
हम लोगो को तो कार्बेट के पके हुए केले खाने की आदत है ना तो हमें प्राकृतिक रूप से पके हुए केले भी कुछ कच्चे से और बकबके से लग रहे थे ।
जब शिलांग पहुंचे तो बडी गाडी वाली इस टैक्सी वाले ने हमें एक चौराहे पर रोक दिया । कारण पूछने पर उसने बताया कि हमारी गाडी यहीं तक जा सकती है अंदर पुलिस बाजार है जहां पर आपको होटल मिल जायेगा पर उसके लिये या तो थोडी दूर पैदल चलना पडेगा नही तो छोटी टैक्सी लेनी पडेगी । बारिश हो रही थी और हमारा सामान छत पर बंधा हुआ था । नौ जने और चार परिवार थे तो सामान भी आठ नौ बैग थे । मै गाडी की सीट पर आगे बैठा था और रास्ते में फोटो खींचता आ रहा था ।
जहां पर ड्राइवर ने गाडी रोकी वहीं पर सामने एक बस स्टाप बना हुआ था । ड्राइवर ने उपर उतरकर सामान एक एक करके हमें देना शुरू किया और हमने उसे ले जाकर बस स्टाप पर रख दिया । बारिश अभी भी जारी थी और हमने गाडी वाले को पैसे दिये और पैसे लेते ही वो गाडी वाला तुरंत ही चला गया । जाते वक्त वो कह रहा था कि मुझे अभी अभी फिर से सवारिया लेकर गुवाहटी जाना है । हमें इस बात से कुछ भी लेना देना नही था सो हमने ज्यादा ध्यान नही दिया । ना गाडी नम्बर पर ना किसी और बात पर क्योंकि यहां पर हमें इस गाडी का यूज एंड थ्रो की तरह से काम था ।
यहीं पर एक गलती हो गयी । मै जब गाडी की अगली सीट पर बैठा था तो मेरे हाथ में कैमरा था । जब आदमी को मंजिल पता हो तो वो पहले से तैयार हो जाता है । हमें पता नही था कि गाडी कहां पर रूकेगी तो हम तैयार नही थे घूमने की पोजीशन में ही बैठे थे । जैसे ही गाडी वाले ने बताया कि उतरिये और अपना सामान उतारिये । हम लोगो ने सबसे पहले सामने का बस स्टाप देखा जिस पर हम अपना सामान रख सकते थे और यही किया ।
मैने उतरने से पहले अपने हाथ में लिया कैमरा गाडी की सीट पर रखा और अपना सामान उतारने के बाद हिसार वालो ने गाडी वाले को पैसे दे दिये । मै अपने कैमरे को भूल गया । गाडी वाला गाडी लेकर फट से रवाना हो गया । हम कुछ देर खडे रहे बस स्टाप पर । उसके बाद एक मारूति आठ सौ कार वाला वहां पर रूका जो कि टैक्सी वाला था । उसने टूर के लिये पूछा तो हमने उसे बताया कि टूर तो बाद में करेंगे पहले तो हमें कमरा लेना है । उसने टूर के लालच में 100 रूपये मांगे कमरा दिखाने के ।
हम दो आदमी उस कार में बैठकर पुलिस बाजार में आ गये जो कि यहां का सबसे मशहूर बाजार है और छोटे से लेकर बडे बजट तक के होटल यहां पर मिलते हैं । हमने भी कई कमरे देखे पर कोई भी हजार रूपये से कम में तैयार नही हुआ । एक 600 रूपये में दे भी रहा था पर उस होटल का माहौल हमें पसंद नही आया क्योंकि हमारे साथ महिलाये भी थी । इसी बीच कार वाले ने हमें अगले दिन के टूर के लिये बुक करना शुरू कर दिया । मैने उससे कहा कि यार पहले कोई सस्ता और बढिया सा कमरा तो दिला तब तुझसे टूर करेंगे । तब वो बोला कि एक जगह है जहां पर कमरा बढिया और सस्ता भी है तो हमने कहा ले चल
वो हमें पुलिस बाजार से थोडी ही दूर मौजूद यूथ होस्टल पर ले आया । यूथ हास्टल का नाम पढते ही मै समझ गया कि यहां पर हमारा काम बन जायेगा पर मुझे शक था कि क्या वो बाहरी लोगो को कमरा देते हैं ? जब हमने बात की तो उन्होने बताया कि कमरे तो सब लगे हैं पर हां हाल खाली है । हाल में पन्द्रह बैड थे । हमने सारा हाल ले लिया क्योंकि हम नौ बंदे तो थे ही । यहां पर प्रति बैड के हिसाब से किराया था । आज शिलांग पहुंचने का कार्यक्रम था ।
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पूरा का पूरा हाल 1530 रूपये में था । शायद 100 रूपये प्रति बैड यानि डोरमैट्री था । वहीं कमरा 530 रूपये का था । व्यवस्थापक ने बता दिया था कि अगर आपको कल को भी रूकना हो तो कल कमरा मिल जायेगा । हमें इससे बढिया क्या था अब हम जब तक यहां थे तो निश्चिंत हो सकते थे । हाल में सबने सामान रखा और तय किया कि अब खाना खाने चलते हैं । मुंह हाथ धोकर खाना खाने के लिये चले तो मैने कैमरा याद किया कि फोटो लेते आयेंगें । जैसे ही बैग में ढूंढा कैमरा नही मिला तो मै सन्न रह गया । फिर तो --------------------------
NORTH EAST TOUR-
कल बताउंगा
यहां के ईष्ट |
बढिया लेख मेघालय मतलब बादलो का घर तो बारिस कहा रूकने वाली थी ,शायद कुछ डबल लेख लिखा है मतलब वाक्य दोबारा लिख दिये है
ReplyDeleteकैमरे की चिन्ता बढ़ा दी आपने, टैक्सी का मोबाइल नम्बर नहीं लिया था?
ReplyDeleteनही प्रवीण जी , पर टैक्सी का नम्बर जरूर मिल गया था जिसे कल की पोस्ट में बताउंगा
Deleteवैसे आपके ब्लॉग पेज का प्रारूप बहुत अच्छा लग रहा है।
ReplyDeleteकुछ साल पहले शिल्लोंग , चेरापूँजी ओर गुवाहाटी गया था .....याद ताज़ा हो गई...चेरापूँजी में एक खूबसूरत फॉल है ( Dainthlen fall ) वहाँ टॅक्सी वाले नही ले जाते क्यों की वो रोड से 7 kms अंदर है बाकी सब स्थान रोड के दाए या बाए ही हैं.
ReplyDeleteI wish you wrote in English so that I could enjoy it better :)
ReplyDeleteसभी फोटो में आखिर वाली ज़्यादा मस्त लगी
ReplyDeleteCamera kho gya! Par kyunki achi photo hain post mein, to yakeenan mil bhi gya hoga. :)
ReplyDeleteकेमरा गुम होने का दुख मुझे भी है ...क्योंकि बहुत सुन्दर जगह है....जहाँ केमरा गुम हुआ .:-(
ReplyDeleteवैसे ईमानदारी नाम की भी चिड़िया है इस दुनिया में, कैमरा तो छोटी सी चीज है ।
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