चूंकि हमने तो गाडी का पूरा टूर बुक कर रखा था इसलिये हमने पहले गंगटोक वाला लिफाफा खोलकर रात को उस पर लिखे लोकल बंदे को फोन कर दिया था कि हम ...
चूंकि हमने तो गाडी का पूरा टूर बुक कर रखा था इसलिये हमने पहले गंगटोक वाला लिफाफा खोलकर रात को उस पर लिखे लोकल बंदे को फोन कर दिया था कि हम देवराली में हैं और फलां होटल में रूके हैं । उसने हमें बता दिया था कि सुबह आपको एक छोटी गाडी लेने आयेगी । उसमें बैठकर आप वजारा स्टैंड आ जाओ । वहां से आपको बडी गाडी मिलेगी । सो हमने निर्देशानुसार कार्य किया और दूसरे टैक्सी स्टैंड पहुंच गये । ये टैक्सी स्टैंड बहुमंजिला है । नीचे प्रतीक्षारत लोगो की भीड थी । हमारी टैक्सी तो तय थी जो थोडी ही देर में आ गयी और उसमें बैठकर हम सब चल दिये
शहर के अंदर छोटी कारें टैक्सी के रूप में चलती हैं । इन कारो में नैनो , अल्टो और वैगन आर मैने ज्यादातर देखी पर लग्जरी गाडिया भी टैक्सी के रूप में हैं । यहां पर मैने पुलिस वालो को भी स्विटजर लैंड की पुलिस की तरह की वर्दी में देखा । कुल मिलाकर अगर आप यातायात सिस्टम या फिर सडको और अन्य चीजो को देखो तो लगेगा ही नही कि आप भारत में हो । ऐसा लगेगा जैसे किसी विदेश में हैं । सभ्य लोग , साफ सडके , नियमपूर्ण कानून , नम्र दुकानदार व पुलिस और खुली एवं स्वछंद लडकियां ये सब देखने के बाद आप अमेरिका या आस्ट्रेलिया की तुलना करने लगोगे
यहां पर आपको टैक्सी वाले घेरकर खडे नही होंगे । आपको चिपटेंगे नही बल्कि आप खुद पूछो या वे खूद पूछे पर नम्र भाव से उनमें से एक ही आदमी बात करेगा । दूसरी बात ये कि जो बात एक करेगा वही सब करेंगे यानि आपको काटेंगे तो पर बडे प्यार से और हां बाहरी आदमी का दखल इन्हे बिलकुल पसंद नही । दादागिरी में भी ये कम नही । ये तो दार्जिलिंग के निवासियो को भी फूटी आंख पसंद नही करते क्योंकि वो गोरखा हैं और इसीलिये हमारा जो एक ड्राइवर जो कि गोरखा था हर समय इनकी बुराई करता रहता था ।
हमने यहां पर काफी मंदिर देखे और बौद्धमठ भी पर हमने यहां पर कोई भिखारी नही देखा । किसी मंदिर में प्रसाद पैरो में पडा नही देखा । घरो पर फूलो को लगाने का इतना शौक है कि छज्जो पर भी गमले ही गमले और ऐसा लगा कई बार तो किसी फलावर शो में जाने की क्या जरूरत है हर घर में ही दस बीस किस्म के फूल लगे होते हैं । कुछ पर्यटक अपने बच्चो को संभाल नही पाते जो यूं ही किसी के अहाते में घुसकर फूल तोडने लगें या फिर सडको पर चिप्स के खाली पैकेट फेंकते जायें । या सही में कहें तो दिल्ली की गंदगी जब तक वहां पर ना फैलाकर आयें तब तक दिल्ली वाले कौन कहेगा
शहर के अंदर इन छोटी टैक्सियो के चलने की हर बात निश्चित है । इनके स्टैंड बने हुए हैं जहां पर ही ये अपनी टैक्सी रोक सकते हैं । हमारे यहां पर आटो वाले कहीं भी सवारी देखी तो ब्रेक मारकर खडे हो जाते हैं बिना इस बात के कि कोई पीछे भी चल रहो होगा । जहां पर इनके स्टैंड होते हैं वहां पर चाहे इन्हे लाइन में लगना हो सवारी चढाने या उतारने के लिये पर नियम से ही काम करते हैं । पैदल चलने वालो के लिये सडक के किनारे फुटपाथ बने हैं वो भी रैलिंग के साथ
अब आप सोचो कि वैगनआर गाडी आपके सामने रूकती है आप सोचते हैं कि इसमें बैठने का किराया क्या होगा ? कम से कम पन्द्रह रूपये और ज्यादा से ज्यादा तीस पैंतीस रूपये प्रति सवारी वो भी बाहर वालो से हो सकता है पर लोकल तो पांच सात किलोमीटर तक पन्द्रह रूपये ही है । पूरी गाडी बुक करने की बात करोगे तो लुट जाओगे , पकडे जाओगे कि टूरिस्ट हैं । चार आदमी से ज्यादा बैठेंगे नही तो बस बैठ जाओ ये धोखा नही होगा कि किराया कुछ भी मांग लिया और लडने लगे
9 june
सुबह साढे आठ बजे हम लोग टैक्सी में बैठकर चल दिये । ये एक टाटा सूमो थी और सबसे बढिया जो था इस टैक्सी में वो था इसका ड्राइवर । इतने भले , सभ्य और विनम्र बंदे से मै कभी नही मिला वो भी इतने यंग बंदे से । लगता था जैसे फूल झडते हो मुंह से बोल की बजाय , नही सर , हम ऐसा नही करते सर , नही सर ऐसा नही होता यहां पर ,
एक बार भी मुंह नही बना हर समय मुस्कुराहट चेहरे पर और इतने प्यार से बोला कि वापसी में अपनी गर्लफ्रैंड को भी बिठा लिया तो हमने एक बार भी ना नही की और उसकी गर्लफ्रैंड तो उससे भी आगे थी उसकी बाद में बताउंगा
थोडी दूर चलने के बाद एक चेकपोस्ट आया । यहां पर ड्राइवर ने हमारे सबके फोटो और पहचान पत्र ले लिये । सबसे सुंदर बात ये थी कि हमें ना कही जाना पडा ना ही लाइन में लगना था । यहां पर पर्यटको की काफी भीड थी पर हमारे समय बिताने के लिये झरनो के देश में एक और छोटा सा झरना था जिस पर हमने जब तक फोटोशूट किया तब तक उसने हमारा परमिट बनवा लिया था जो कि यूमथांग और नाथूला के लिये जरूरी होता है ।
झरने के फोटो खींचने के बाद हम लोग परमिट बनवाकर फिर से गाडी में बैठकर चल दिये । कोहरा या धुंध ने सडक को लपेट रखा था । इसके बाद एक जगह आर्मी एरिया आया । यहीं पर एक एटीम की तरफ इशारा करके ड्राइवर ने बताया कि आजकल जो एक्सिस बैंक का एड आता है उसमें यही एटीएम दिखाया जाता है सबसे उंचाई पर
रास्ते की स्थिति कुछ दूर तक सही रही उसके बाद वही पहाडी इलाके की परेशानी , सडके खत्म , कच्ची सडक पर फिसलन
भरे रास्तो पर सफर
कुछ जगहो से रास्ते को चौडा करने का काम चल रहा था इसलिये पहाड को तोडा जा रहा था । छांगू लेक से दो तीन किलोमीटर पहले ही हमारे ड्राइवर ने खाने नाश्ते के लिये रोक दिया । यहां पर काफी सारी दुकाने थी । ज्यादातर में गर्म कपडे थे क्योंकि प्लेन की सडी हुई गर्मी से आने वाले ज्यादातर पर्यटक यहां पर इतने ज्यादा इंतजाम से नही आते फिर यहां आकर गर्म मोजे , टोपी आदि लेते हैं । औरते तो यहां की चीज प्लेन में जाकर दिखाने के लिये लेती हैं
यहीं पर एक दुकान हमारे ड्राइवर की भी फिक्स थी । ये दुकान उसकी मित्र की थी पर पहले उसने जाहिर भी नही होने दिया । दुकान के अंदर दो लडकियां थी जो मजे से बैठी शराब पी रही थी । हमने मोमोज का आर्डर दिया क्योंकि हमने अब तक वे नही खाये थे । हमें पसंद भी आये । मा0जी अब इस उम्र में आकर रिस्क नही लेना चाहते थे सो उन्होने चाय के साथ बिस्कुट ही लिये ।
आगे चलने पर छांगू लेक आ गयी । यहां पर 10 रूपये प्रति सवारी टैक्स लगता है । ये छांगू लेक का मैंटीनेंस शुल्क है । छांगू लेक यहां की पवित्र झील है । यहां पर अगस्त में पूजा भी होती है । छांगू लेक को स्थानीय लोग छो गो लेक भी कहते हैं । गंगटोक से इसकी दूरी 40 किलोमीटर है । समुद्र तल से इसकी उंचाई 3700 मीटर के करीब है और इस झील का आकार एक अंडे की तरह से है । इस झील की लम्बाई एक किलामीटर है और गहराई 15 फीट के करीब है । इस झील के चारो ओर एक छोटी सी पगडंडी भी बना रखी है पत्थर की जिस पर इसका चक्कर लगाया जा सकता है । वैसे हमने कुछ साहसी लोगो को ही इस काम को करते देखा । सर्दियो में ये जम भी जाती है
Aapki touring mein variations hona accha lagta hai.
ReplyDeleteवाह, पर्यटन मित्रवत राज्य।
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगा , मेरे जैसे कंजूस या फिर कहे मजबूर लोग जो कही आ जा नही पाते आपके इन आलेखो को पढ कर और फोटो देख कर खुश हो लेते है कि हम भी वहा जा कर आ गए ा
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-02-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
ReplyDeleteआभार
बहुत खुबसूरत जगह है यह..
ReplyDeleteफोटो देखकर अच्छा लगा
खूबसूरत जगह है, घूमने के लिए।
ReplyDeleteशानदार।
ReplyDeleteखूबसूरत----
ReplyDeleteबहुत खूब.... बहुत ही सुन्दर झील है... मनु भाई
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