दक्षिणेश्वर काली मंदिर जो कि हुगली यानि गंगा के तट पर बसा है वहां सेलोग ज्यादातर बेलूर मठ जाते हैं जो कि रामकृष्ण परमहंस मिशन का मुख्यालय भी...
दक्षिणेश्वर काली मंदिर जो कि हुगली यानि गंगा के तट पर बसा है वहां सेलोग ज्यादातर बेलूर मठ जाते हैं जो कि रामकृष्ण परमहंस मिशन का मुख्यालय भी है । यहां तक जाने का एक और मकसद पर्यटको के लिये हुगली में नाव में सफर करना और लोकल लोगो के लिये शहर की भीड भाड से बचकर कम समय और कम पैसे में ज्यादा सफर करना रहता है । 
हम भी नाव में बैठने के लिये चल दिये । नाव में बैठने के लिये लाइन लगी थी । गंगासागर वाले हादसे से हमने सीखा तो बहुत कुछ पर फिर भी यहां पर नाव में बिना सुरक्षा इंतजाम यानि लाइफ जैकेट के बैठना पडा । क्या करें दिन भर में पर्यटको के अलावा लाखो लोग इधर उधर होते हैं । किस किस को लाइफ जैकेट पहनायेंगें वे । नदी में पानी की कमी नही है और ना ही उछलती लहरो की । नाव में हावडा ब्रिज के नीचे से निकलना मजेदार होता है । दस रूपये किराया प्रति व्यक्ति लेकर ये नाव बंदे को दूसरे कोने पर पहुंचा देती है। 
मठ में हमें ज्यादा देर घूमने को नही मिला क्योंकि शाम हो चुकी थी और मठ जल्दी ही बंद भी हो जाता है । मठ के बंद होने के पन्द्रह मिनट पहले ही मठ के स्वयंसेवक पर्यटको को बाहर निकालने के काम में लग जाते हैं और ये काम बडी तत्परता और अनुशासन से करते हैं ।
हमने एक दो बहाने बनाने की कोशिश भी करके देखी पर बेकार रहा । मठ से फिर से हम वापस नाव में बैठने के लिये चल दिये । मठ तक के रास्ते में कुछ चाय और नाश्ते की दुकाने भी हैं जिस पर हमने ठंडा और चिप्स आदि ले लिये ।
ये मठ स्वामी विवेकानन्द के अथक प्रयासो द्धारा बनवाया गया है । इस मठ के शिल्प में हिंदू , मुस्लिम और ईसाई तीन शैलियो का मिश्रण है । यहां से रामकृष्ण परमहंस मिशन का सारा कार्य संचालित होता है । मंदिर हुगली के किनारे तो बसा ही है साथ ही सुंदर इमारतो के अलावा घूमने फिरने के लिये काफी बडा एरिया सुंदर बागीचो से भरा है । 
इस मठ में भी रामकृष्ण परमहंस की मूर्ति और विवेकानन्द स्मारक है । यहां पर वह कक्ष भी है जिसमें विवेकानन्द रहा करते थे । यहा पर पुस्तक विक्रय कक्ष भी है जिसमें से हमने भी यहां से सम्बंधित पुस्तके खरीदी ।इस मठ का निर्माण 1898 में हुआ था । वैसे यहां तक जाने के लिये हावडा स्टेशन से बस या टैक्सी भी मिल जाती है ।
अब समय था वापस जाने का । नाव से वापस हम फिर से वापस काली मंदिर आये क्योंकि हमारी टैक्सी यहीं पर खडी थी । जब हम मंदिर से निकले तो बाहर की मार्किट में हमने रोसगुल्ला देखा । जी हां बंगाली रोसगुल्ला जिसे हमारे यहां पर स्पंज भी कहते हैं । ये कहा जाता है कि ये रोसगुल्ला सिर्फ और सिर्फ गाय के दूध से ही बनता है और कोलकाता की इस मिठाई को हम कैसे छोड सकते थे । पिछली बार के सफर में चमचम हाथ लगी थी और इस बार रोसगुल्ला टैक्सी वाले ने हमें सियालदाह रेलवे स्टेशन पहुंचा दिया । हम उतरे थे हावडा पर और जा रहे थे सियालदाह से । यहां से आज रात को हमारी ट्रेन थी जिसने हमें सुबह न्यूजलपाई गुडी रेलवे स्टेशन पर पहुंचा देना था । 
टैक्सी वाले को पैसा देकर हम स्टेशन पर आये । अभी गाडी आने में तीन घंटे से ज्यादा थे । गर्मी इतनी थी कि सरकार ने स्टेशन पर भी गर्मी से बीमार होकर या गश खाकर गिरने वालो के लिये डाक्टर की सहायता लगा रखी थी । हमने यहीं पर एक जगह पंखे के नीचे अपनी चादर बिछा ली और आराम करने लगे । इस बीच फ्रेश होने या पानी आदि लेने के लिये हममें से कोई इधर उधर भी चला जाता । इसी चक्कर में किसी ने मेरी चप्पले उठा ली ।
जब ध्यान पडा तो हम सबने अपनी चप्पले इस बार चादर के नीचे रख दी और अपने सामान पर और भी ज्यादा ध्यान रखने लगे । इसके बाद मै और मा0 जी वहीं सियालदाह स्टेशन के पास में ही बनी मार्किट में गये जहां से मैने बाटा के शो रूम से नये सैंडिल खरीदे । यहां पर अच्छे रैस्टोरेंट से हमने खाना भी पैक करा लिया ताकि ट्रेन के बेकार खाने से बचा जा सके क्योंकि हमारे पास समय था और अगर समय ना ही मिले तो ही मजबूरी में भारतीय रेल का खाना खाना पडता है ।
आज का खर्च 8 जून का चार आदमियो का
700/- Car
32/-किराया नाव का आना जाना 8/.प्रति व्यक्ति
160/-खाना
NORTH EAST TOUR-
और ये लो जी आ गया न्यू जलपाई गुडी स्टेशन , इसकी सैर कल करेंगें 
| हावडा के नीचे से | 
| नाव स्टैंड | 
| दक्षिणेश्वर में मेला जैसा हेाता है | 
| प्रसाद की दुकाने | 
| आप भी खाईये रोसगुल्ला | 
| Njp | 
 
 
							     
							     
							     
							     
 
 
 
 
 
 
 
 
 
सांस्कृतिक केन्द्र है बेलूर मठ। रसगुल्ला तो देखकर बस खाने का मन करने लगता है।
ReplyDeleteमजे आ गए रसोगुल्ला देखकर
ReplyDeletewaah bahut sundar ..rasgulle ka jawab nahi ....
ReplyDeleteLoved the photos. Thank you. Gave me a peek at home.
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति को आज की जगजीत सिंह जी की 73वीं जयंती पर विशेष बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteदक्षिणेश्वर से बेलूरमठ तक नाव का किराया अभी 10 रुपए ही है, वाह। मतलब कलकत्ता में मंहगाई का असर नहीं हुआ है।
ReplyDeleteभाई जी वो बाली ब्रिज है जिसे आपने उपर हावड़ा ब्रिज बता रखा है । दक्षिणेश्वर से बेलुर मठ के रास्ते में हावड़ा ब्रिज नहीं पड़ता ।कृपया सुधार लें ।
ReplyDeleteवर्णन तो ठीक है, लेकिन विनय जी ने ठीक लिखा है,वो बाली ब्रिज ही है ...
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