चिलका झील के रोमांचक सफर के बाद हम लोग वापस पुरी पहुंच गये । पुरी शहर में जगन्नाथ मंदिर के पास जगन्नाथ प्रभु के स्नान व दर्शन का कार्यक्रम...
चिलका झील के रोमांचक सफर के बाद हम लोग वापस पुरी पहुंच गये । पुरी शहर में जगन्नाथ मंदिर के पास जगन्नाथ प्रभु के स्नान व दर्शन का कार्यक्रम चरम पर था और अब तो वहां पर तिल रखने की भी जगह नही बची थी । मै तो पहली पोस्ट में आपको वहां की गर्मी से उबलने की तस्वीरे दिखा ही चुका हूं । यहां पर प्रशासन की ओर से भरतनाटयम या कथक मै सही नही जानता पर उस जैसे नृत्य का भी आयोजन किया गया था ।
लोग एक दूसरे को धकिया रहे थे । हमारा कमरा तो बिलकुल मंदिर के पास ही था । जिस पंडा जी ने हमें ये कमरा उपलब्ध कराया था उनकी मंशा तो हमारी खाल उतारने की थी पर हमने पहले ही सब तय कर लिया था । बाकी श्रद्धापूर्वक में हमने छोड दिया था पर कमरे का किराया तय होने के कारण कम से कम हम निश्चिंत थे
यहां पुरी में हम खाना खाने के लिये रथयात्रा मार्ग पर ही स्थित बालाजी भोजनालय में जाया करते थे । हम तीन दिन तक यहीं पर गये क्योकि ये हमें यहां के सब भोजनालय में बेस्ट लगा । एक तो ये फुल एसी है दूसरी बात यहां पर 60 रूपये की थाली है जिसमें सारी चीजे शामिल रहती हैं । दूसरे समय दूसरी सब्जियां मिलती हैं । अब एक घंटा तो हम एसी में गुजार लेते और उपर से स्वादिष्ट खाना तो फिर कहीं और क्यों जाना
आज एक दिन बाद ही रथयात्रा के रथो का काम भी अचानक उछाल लेता दिखायी दिया । जो रथ आपने मेरी पहली पोस्ट में भी देखे होंगें कि केवल पहियो तक थे अब वे अपनी उंचाई तक जा चुके थे । कारीगर अपनी पूरी तन्मयता से लगे थे । समय भी नजदीक आ रहा था ऐसे में काम भी जल्दी पूरा होना ही चाहिेये था ।
रात को सोने के बाद सुबह उठते ही अगले दिन हमारा लक्ष्य था भुवनेश्वर और कोणार्क को घूमना । हमने पैकेज बस के बारे में मालूमात की जिसका पैकेज तो बढिया था पर वो बंधा समय हमें सूट नही आता जिसे पहले दिन हमने चिलका झील में झेला था । फिर उनके खाने की व्यवस्था बढिया नही होती । इसलिये हमने गाडी करने की सोची पर वो काफी महंगे पैसे बता रहा था । तभी एक आटो वाले ने हमसे पूछा कि आपको क्या घूमना है ?
जब हमने उसे अपना कार्यक्रम बताया तो उसने कहा मै ले चलूंगा । आटो में ? कम दूरी भी नही थी कि आटो में चला जाये फिर हम चार आदमी थे । आटो में तीन पिछली वाली सीट पर बैठते और एक को ड्राइवर के बराबर में बैठना पडता । पुरी से कोणार्क करीब 35 किलोमीटर है और कोणार्क से भुवनेश्वर 66 के करीब फिर वहां से नंदनकानन 20 किलोमीटर है शहर से और वहां से पुरी फिर से 60 किलोमीटर से ज्यादा पडेगा । यानि कुल मिलाकर 150 किलोमीटर से उपर का सफर है आटो से एक दिन में
वैसे तो मै अपनी जाब पर जाने के लिये बाइक से इतना सफर एक दिन में कर देता हूं पर यहां मामला आटो का था और मेरे साथ और लोग भी थे । पर जब मा0 जी ने हां भर दी तो मैने भी हां कर दी तीन पहियो के वाहन पर त्रिकोण के सफर पर यानि पुरी से कोणार्क , कोणार्क से भुवनेश्वर और भुवनेश्वर से पुरी
मनु भाई,
ReplyDeleteयह नृत्य ओडिशी है...