कोणार्क का सूर्य मंदिर वैसे तो विश्व में इकलौता सूर्य मंदिर कहा जाता है । मै इससे इत्तेफाक नही रखता क्योंकि मै तो अभी हाल में हिमाचल में स्...
कोणार्क का सूर्य मंदिर वैसे तो विश्व में इकलौता सूर्य मंदिर कहा जाता है । मै इससे इत्तेफाक नही रखता क्योंकि मै तो अभी हाल में हिमाचल में स्थित निरथ के सूर्य मंदिर को देखकर आया हूं जिसमें पूजा अर्चना भी होती है । कोणार्क में तो कभी पूजा अर्चना ही नही हुई । देखा जाये तो इस मंदिर का ता निर्माण कार्य पूरा ही नही हुआ तो इसे मंदिर कहा जाये य नही ये भी विचारणीय प्रश्न है ।
ओडिशा के पुरी शहर के पास मौजूद कोणार्क मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है । वास्तुकला से बने इस मंदिर की खास बात ये है कि यहां पर सूर्य देवता की सबसे पहली किरण पडती है । ये मंदिर इस हिसाब से बनाया गया है । यह मंदिर कलिंग वास्तुकला की उपलब्ध्यिो को उच्चतम स्तर है । जो भव्यता , उल्लास और जीवन सारी बातो को प्रदर्शित करता है ।
इसका निर्माण 1250 एडी में राजा नरसिंह देव के कार्यकाल में हुआ था । इस मंदिर के दोनो ओर 12 पहियो की 2 कतारे हैं । जिन्हे सात घोडे खींच रहे हैं । कहा जाता है कि सात घोडे सात दिन का जबकि 24 पहिये 24 घंटे का प्रतीक है । समुद्री यात्रा करने वाले इसे ब्लैक पगोडा कहते थे
इस मंदिर का निर्माण सूर्य के काल्पनिक रथ द्धारा किया गया है । इसके तीन तरफ उंचे उंचे द्धार हैं । पूर्व दिशा में मुख्य द्धार है जिधर से सूर्य उदय होता है । सबसे पहले प्रवेश करते ही हाथी की पीठ शेर की प्रतिमा है । मंदिर में जो पहिये हैं उनका व्यास 2.94 मीटर है और इनमें आठ आठ तीलियां लगी हैं । कहा जाता है कि इसे बनाने में 12 वर्ष लगे थे । यही नही इसे बनाने में हजारो कारीगरो की मेहनत लगी है । कारीगरो को एक बार काम शुरू होने के बाद यहां से जाने नही दिया गया ।
एक खास बात और है कि इस मंदिर को बनाने में इतने बडे बडे पत्थरो का प्रयोग किया गया है कि वो आस पास में कोई पर्वत ना देखकर लगता है कि इन्हे बहुत दूर से यहां पर लाया गया और यहां पर लाकर तराशा गया । इन पत्थरो को एक दूसरे के उपर ऐसे लगाया गया है कि इनके जोड दिखायी ना दें ।
ये जगह प्राचीन काल में समृद्ध रही होगी पर उसके बाद ये लुप्त हो गयी और इस जगह को झाड और जंगलो ने घेर लिया । बताया जाता है कि 1806 में इस जगह का दोबारा पता चला । करीब सौ सालो में जाकर इस मंदिर को पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को सौंपा गया । तब इसके खंडित होते स्वरूप को बचाने के लिये इसे अंदर से पत्थरो से भर दिया गया ताकि इसे ढहने से बचाया जा सके और कम से कम इसके स्वरूप को जिंदा रखा जा सके । इसे यूनेस्को द्धारा वल्र्ड हैरिटेज घोषित किया गया है ।
इसकी वैज्ञानिकता और अनुपात अद्भुत है।
ReplyDeletenice post,our old architecture is incomparable.
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं जानकारी भरा पोस्ट.
ReplyDeleteIt is true. Konark is not the only sun temple. One is near Nalanda too.
ReplyDeletesunder chitron ke saath achha varnan
ReplyDeleteshubhkamnayen
सुंदर चित्र और जानकारी भी। कई साल पहले की थी कोणार्क की यात्रा। इत्तेफाक से हम लोग अभी खजुराहो से लौटे हैं। दोनों जगह के मंदिरों में काफी समानता है। सूर्य मंदिर की बात नही कर रही हूँ.
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