भटटा फाल में नहाने के बाद एक और जगह नहाने की तैयारी थी सहस्त्रधारा में । मसूरी से देहरादून के 30 किलोमीटर पार करने के बाद एक चौक आता है जहा...
भटटा फाल में नहाने के बाद एक और जगह नहाने की तैयारी थी सहस्त्रधारा में । मसूरी से देहरादून के 30 किलोमीटर पार करने के बाद एक चौक आता है जहां से एक रास्ता देहरादून शहर के लिये चला जाता है तो एक रास्ता रिषीकेश के लिये बाईपास हो जाता है । इसी रास्ते पर सहस्त्रधारा नाम का स्थल पडता है ।
देहरादून से इसकी दूरी करीब 12 किलोमीटर है । यहां का मुख्य आकर्षण है गंधक युक्त पानी का श्रोत जिसमें नहाकर लोग अपने चर्म रोगो की चिकित्सा करना चाहते हैं । लोग इसमें नहाते भी हैं और इस पानी को भरकर अपने घर भी लाते हैं । यहां पर प्राकृतिक गुफाऐं भी हैं जिनमें से पानी टपकता रहता है ।
फिलहाल तो ये स्थल पर्यटक जगह का रूप ज्यादा ले चुका है जहां पर लोग मौज मस्ती करने के लिये ज्यादा संख्या में आते हैं । वैसे तो यहां पर होटलो की भरमार है और एक प्राइवेट कम्पनी ने यहां पर उपर एक पहाड पर एक ऐसी जगह भी बना ली है जहां जाने के लिये आपको रोप वे में जाना पडता है । साथ ही वहां पर होटल और स्पा आदि की सुविधाये हैं । ये काफी महंगा है इसलिये अमीर लोग ही वहां पर जा पाते हैं ।
जिस धारा के पानी को रोक कर यहां पर स्वीमिंग पूल जैसे बना दिये गये हैं उसी के दूसरी ओर मंदिर भी है । ये काफी प्राचीन मंदिर है । जिसे द्रोण गुफा मंदिर के नाम से जाना जाता है । यहां पर रूकने के लिये गढवाल मंडल विकास निगम का रेस्ट हाउस भी है ।
यहां पर बौद्ध मंदिर भी है । यहीं नही जब आप देहरादून से रिषीकेश बाईपास को जाते हो बौद्धो की एक बहुत बडी आबादी और कई कालोनियां आपको यहां पर देखने को मिलती हैं । धार्मिक स्थलो को पर्यटक स्थल में तब्दील होते देखकर एक ही दुख् होता है कि जो बच्चे अपने मां बाप के साथ पहुंचते हैं वे यहां पर बेशर्म जोडो की रंगरलिया देखते हैं जिस पर किसी का भी कोई नियंत्रण नही होता है
प्रिय मनु, देहरादून का मूल निवासी होने के कारण मैं बचपन से ही सहस्त्रधारा घूमने जाता-आता रहा पर उत्तराखंड राज्य बनने के बाद वहां की सरकार ने विकास के बारे में अपनी अधकचरी बुद्धि का परिचय देते हुए प्राकृतिक शोभा से सुसज्जित स्थलों को व्यावसायिक पर्यटन स्थल बना डाला है। ऐसे में हम जैसे लोग जो पिछले चालीस से भी अधिक वर्ष तक इन प्राकृतिक स्थलों का आनन्द ले चुके हैं, इन स्थानों का परिवर्तित विकृत स्वरूप देख कर कुढ़ते हैं और यहां अब जाना भी पसन्द नहीं करते। एक जमाना था जब यहां पर सिर्फ एक खोखा था जहां चाय और पकौड़े मिलते थे और अब ..... सिर्फ खाना पीना ही रह गया है, सौन्दर्य तो गायब ही है।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन लाल बहादुर शास्त्री जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत कुछ बदल गया है सहस्त्रधारा में, प्राकृतिक आनंद तो खत्म ही हो गया।
ReplyDeleteVery informative supported with highlighting pics.The comments of other bloggers show the purity of place has deteriorated due to unchecked heavy commercialism.Sad.
ReplyDelete