जून 2010 की बात है मै और धर्मपत्नी जी माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिये गये थे । हमने तीन दिन बाद का वापसी का आरक्षण कराया था जम...
जून 2010 की बात है मै और धर्मपत्नी जी माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिये गये थे । हमने तीन दिन बाद का वापसी का आरक्षण कराया था जम्मू से वापसी आने का । चूंकि हर बार हम माता के यहां पर जाते हैं तो एक दिन जाने का और उसी रात को उपर भवन में रूकना । दूसरा दिन वापसी और कटरा में विश्राम और तीसरा दिन जम्मू जाकर घूमने और रात को वापसी इस तरह का रहता है । पर इस बार एक दिन ज्यादा हो गया ।
दर्शन भी मात्र एक दिन में ही कर लिये । जिस दिन हम दर्शन करने के लिये चले उसी दिन रात को वापस कटरा आ गये । अब हमारे पास पूरे तीन दिन थे जो कि हमें कटरा में ही काटने थे जो कि हम कर नही सकते थे । दो रास्ते थे एक तो ये कि हम आरक्षण कैंसिल कराके आज रात को ही बस से चल दें जो कि थोडा तकलीफदेह होता पर यहां पडे रहने से ज्यादा नही । दूसरा तरीका दिमाग में आया कि क्यों ना कश्मीर घूम लिया जाये । अपने होटल के आसपास में खुली दुकानो मे से एक दो ट्रैवल एजेंसी पर पता किया और एक एजेंसी से पैकेज ले लिया ।
ये पैकेज तीन दिनो का था जिसमें नयी इंडिका कार हमारे साथ रहनी थी तीन दिनो के लिये और साथ ही कश्मीर में दो रातो का रूकने का भी पैकेज था । हमें उस समय ज्यादा जानकारी नही थी इसलिये आधा पैसा एडवांस देकर हम गाडी में बैठ लिये । मै और पत्नी जी दोनो ही थे इसलिये पिछली सीट पर आराम से बैठकर गये । रास्ते में पडने वाले बगलिहार बांध पर ड्राईवर ने हमें गाडी रोककर कढी चावल खिलवाये । बढिया थे पर उससे भी बढिया थी ड्राईवर की साफगोई जिसने बताया कि मेरे खाने का पैसा नही देना है आपको वो मेरे लिये फ्री है । यहां से हमने जवाहर टनल पार की और जैसे ही हमने जवाहर टनल पार की वैसे ही ठंडी हवाये लगने लगी और गाडी की खिडकियां बंद करनी पडी ।
इसी के साथ एक परेशानी और हो गयी कि थोडी दूर चलते ही कश्मीर के पुलिस वालो ने रोक लिया गाडी को । पहले तो हम निश्चिंत थे कि ड्राईवर गाडी के कागजात दिखा देगा पर जब वे हमारे पास आकर पूछताछ करने लगे तो हमने मामला समझा । हमारे ट्रैवल एजेंट ने बिलकुल नयी गाडी भेज दी थी जिसका अभी नम्बर भी नही मिला था और उसका टैक्सी का लाइसेंस भी नही था । ये तो कुछ भी नही है हमारे गाडी ड्राइवर का लाइसेंस भी एक्सपायर्ड पाया गया । हमारे उपर तो जैसे मुसीबत का पहाड टूट पडा था ।
ऐसे में पुलिस के उस अधिकारी ने हमें दिलासा दिया कि आप चिंता मत करो आपको कोई तकलीफ नही होने देंगे । उन्होने खट से चार हजार रूपये की रसीद काटी ड्राइवर की और तीन दिन के लिये हमारा कार्यक्रम पूछकर आगे के लिये वैलिड कर दिया और साथ ही अपना नम्बर भी दिया कि आगे कोई दिक्कत हो तो मुझे फोन कर देना ।
जब हम कश्मीर गये ये वो समय था जब यहां पर अमरनाथ यात्रा शुरू होने वाली थी और कश्मीर के अलगाव वादियो के चक्कर में यहां के युवा बहक कर आने जाने वाले फौजी वाहनो और पर्यटक वाहनो पर पथराव कर रहे थे । जिस रास्ते को हम जा रहे थे वहां पर हर बीस कदम पर हाईवे पर एक फौजी खडा था । बारिश , सर्दी से बेअसर उसकी चौकस निगाह चारो ओर थी । मै एक फौजी की कही बात को कभी नही भूल पाता । जाम लग गया तो मै गाडी से बाहर आ गया और एक फौजी से हाथ मिलाया । वो उत्तर प्रदेश से ही था । मैने उससे पूछा कि इतने सारे फौजी क्यों हैं यहां पर तो उसने अपनी देशी भाषा में कहा कि हम खडे हैं ताकि तुम अपनी पिकनिक मना पाओ .............ये जबाब मेरे कानो मे अभी भी गूंजता है
हमें श्रीनगर तक पहुंचनें में अंधेरा हो गया क्योंकि हम दोपहर के एक बजे के करीब चले थे कटरा से । पहली बार दिमाग से एक गलतफहमी दूर हुई कि श्रीनगर पहाडो में है । ये तो हमारे यहां के प्लेन जैसा ही है । चारो ओर निगाह दौडाओ तो खेत ही खेत । हां ज्यादा दूर निगाह डालो तो पहाड दिखते हैं । रात में पहले ड्राईवर ने अपने होटल में जाकर रूकवा दिया । ये होटल डल झील के पास ही था । कमरे में सीलन सी महसूस हुई क्योंकि यहां पर काफी ठंड रहती है इसलिये कमरो मे कपडे तो ठंडे रहेंगे ही ।
अगली सुबह सवेरे उठकर हम लोग बिना किसी को बताये डल झील की ओर चले गये । यहां पर घूमते घूमते एक दो नाव वालो से पूछा तो उनसे सौदेबाजी करके करीब 5 सौ रूपये में हमारा सौदा फिक्स हो गया डल झील को घूमने के लिये । हमारी बोट का नाम था सेवन हैवन सुपर डीलक्स । हम आराम से पांव फैलाकर बैठ गये और हमारा शिकारा चल पडा डल की सैर पर
डल झील के कई पहलूओ से भी हमारा नाविक हमें अवगत कराता जाता था । उसने हमें फलोटिंग लैंड यानि चलित जमीन भी दिखायी । फिर वो हमें डल के अंदर ही बनी मार्किट में भी ले गया जहां से मैने एक जैकेट खरीदी । रास्ते में घूमते घूमते एक नाव वाले ने अपनी नाव बराबर में सटा दी जैसे हमारे यूपी में तमंचे सटा देते हैं कनपटी से और मैडम को ज्वैलरी दिखानी शुरू कर दी । मेरे मना करने के बाद भी कि नही चाहिये ना तो मैडम ने देखनी बंद की और ना उसने दिखानी गोया मै कुछ था ही नही । फिर तो ली भी गयेी रिश्तेदारो को यहां की निशानी देने के नाम पर
यहां का जीवन देखने में सबसे ज्यादा मजा आता है । यहां स्कूल भी हैं झील के बीच मे ही और हर छोटे से छोटे काम के लिये अपनी नाव उठाते हैं लोग और चल पडते हैं । लडकियां आगे की पढाई के लिये छोटी पतली और लम्बी सी नाव को लेकर खुद ही जा रही थी । हमने स्टूपिड सा सवाल दागा अपने नाविक पर कि ये लडकियां किनारे पर नाव छोडकर ऐसे ही चली गयी । किसी ने इनकी नाव को उठा लिया तो ? नयी साब ऐसा नयी होता अमारे कश्मीर में
एक बात और बता दूं मै कि मेरे पास कैमरा नही था । क्योंकि हम तो सिर्फ और सिर्फ माता रानी के दर्शनो के लिये गये थे और हमारा ऐसा कोई इरादा भी नही था कि हम कश्मीर जायेंगे तो मेरे पास साधारण कैमरे वाला ही फोन था बिलकुल ही साधारण जिसके फोटो की मुझे खुद भी उम्मीद नही थी । वीजीए कैमरे वाले इस कैमरे से जो फोटो आ पाये वो मैने आपके सामने रख दिये हैं
भाई फोटो तो ठीक ठाक आए है फोन से, घुमते रहो घुमाते रहो
ReplyDeletebahut hi badiya!!
ReplyDeletehttp://hindustanisakhisaheli.blogspot.com/
behatreen post bhai ghumne ka program ekdum mast bana lete ho 3 din ka proper use kiya
ReplyDeleteवाह, सुन्दर चित्र। ईश्वर यहाँ शान्ति दे।
ReplyDeleteबढ़िया लेख मनु भाई, फोटो भी सुंदर आए है !
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