me at kunzum la कुंजुम दर्रे से स्पीति घाटी में दाखिल हुआ जा सकता है । इस दर्रे का नाम कुंजुम माता क नाम पर पडा है जिनका यहां पर एक ...
me at kunzum la |
कुंजुम दर्रे से स्पीति घाटी में दाखिल हुआ जा सकता है । इस दर्रे का नाम कुंजुम माता क नाम पर पडा है जिनका यहां पर एक छोटा सा मंदिर भी बनाया हुआ है । यहा पर अत्याधिक कम तापमान हो जाता है क्योंकि यहां पर ग्लेशियर भी हैं । स्पीति की निचली कई घाटियो में पूरी गर्मियो में भी तापमान 20 डिग्री से उपर नही हो पाता वहीं सर्दियो में माइनस में भी चला जाता है ।
4551 मीटर की उंचाई पर स्थित इस दर्रे पर इस समय बर्फ तो नही थी पर ठंडी हवाऐं इस कदर थी कि विनचीटर के अलावा जैकेट भी निकालकर पहननी पडी थी । वास्तव मे यहां पर इस समय सूखी ठंड थी जिसमें जरा सी भी लापरवाही भारी पड सकती थी । जब हम कुंजुम दर्रे पर आ गये तो जाट और राकेश अपनी 500 सीसी की बाइक की वजह से पहले ही आ गये थे । मै उनसे करीब दस मिनट बाद में आया था । वे मेरे आते ही चल पडे और मुझसे भी राकेश कहने लगा कि चलो । मुझे अचानक बहुत गुस्सा आया । उस गुस्से का कारण पिछले एक दो दिन से चल रहा था । एक दो दिन क्या सच पूछो तो शुरू के दिन से ही । क्योंकि हमारा साथी राकेश अपने अलावा किसी और के हिसाब से एडजस्ट करने को मुश्किल से ही तैयार होता था । मैने पहले दिन गाजियाबाद से चंडीगढ तक बाइक चलाई वो भी पूरी रात जागकर जबकि वे बस से चंडीगढ पहुंचे और उसी दिन मना करने के बाद भी बडी मुश्किल से सराहन में रूकने के लिये राकेश को मनाया
दूसरे दिन भी ऐसा ही हुआ जब सांगला में बारिश पडने लगी तब भी राकेश चलने की जिद लगाये रहा तब बडी मुश्किल से समझा बुझाकर सांगला में कमरा लिया । तीसरे दिन भी ताबो की बजाय काजा में रूकने की जिद जबकि अगर हम वो जिद मान लेते तो ना तो ताबो देख पाते ना ही धनकर ।
एक दूसरा काम वो और कर देता था कि उसकी बाइक अक्सर दस या पांच मिनट पहले पहुंच जाया करती थी क्योंकि वो 500 सीसी थी और मेरी 100 तो कभी कभी जहां खडी चढाई होती वहां पर मुझे देर हो जाती तो मेरे जाते ही वो चलने को तैयार मिलते । अरे भाई मै आया हूं तो आपने मेरे आने का इंतजार किया ये अच्छी बात है पर मुझे पांच मिनट का समय तो दो कि जिस जगह आप आकर घूमफिरकर अपने फोटो ले चुके हो वहां मै भी कुछ देख सकूं ?
अगर मेरा इंतजार सिर्फ दिखाने के लिये कर रहे हो तो फिर मत करो कौन सा साथ रह गया फिर ? ऐसे तो मै अकेला ही इस सफर को कर रहा हूं । बस इसी गुस्से में मैने राकेश को जोर से चिल्लाकर बोल दिया कि आपको जाना है तो जाओ किसने रोका है ?
गुस्सा इसलिये भी आ रहा था कि मै अपने मन में सोच ही रहा था कि मेरे जाते ही वो चल देंगे और ऐसा ही हुआ । ये त्वरित और क्षणिक गुस्सा था ।
जाट ने समझाया कि अब जल्दी चलो यहां से क्योंकि साढे चार बज चुके थे और मौसम और ठंडा होता जा रहा था कुंजुम से आगे चलते ही उतराई शुरू हो जाती है जो बातल तक चलती है । सही में कहो तो मनाली की ओर से आते हुए ये गाटा लूप्स की चढाई है जो एक ही झटके में कुंजुम दर्रे पर पहुंचा देती है । इन्ही गाटा लूप्स से उतरकर एक बोर्ड आया जो कि चन्द्रताल की ओर जाने का इशारा कर रहा था ।
अब यहां पर एक और बार गमा गर्मी हो गयी
साढे चार बजे हम कुंजुम से चले थे तो चन्द्रताल अभी जायें या सुबह इस बात को लेकर संशय था । कुछ देर बहस के बाद सीधे चन्द्रताल की ओर निकल पडे और साढे पांच बजे बेहद ख्रराब और पथरीले छोटे और तंग केवल 12 किलोमीटर के रास्ते को नापकर हम चन्द्रताल पर जा पहुंचे थे
KINNAUR SPITI YATRA-
me at kunzum la |
and my friend |
यहां परिक्रमा करनी होती है |
ये मंदिर मेन रास्ते से थोडा हटकर है सामने दिखता हाइवे |
road to Chandrtal |
chandrtal road |
chandrtal road |
चन्द्रताल कैम्पिंग साइट |
Amazing pictures. I admire your grit in traversing the terrain on a bike.
ReplyDeleteToo good man. Dream destination it looks like !
ReplyDeleteManu ji, Mein aapki baaat se bilkul sehmat hoon, saath jaane ka matlab hota hai ki saath wale ka pura khyal rakha jaye phir kitni bhi der hi kyon na ho. Nahi to SAATH ka arth kya hai. Is se acchha hai ke akele hi jaya jaye, bar bar ki tention se to nijat milegi.
ReplyDeletePhotos kamaal hain.
Thanks.
कुन्जुम की ठन्ड़ी हवाये गजब थी
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