श्री हरमंदिर साहिब या स्वर्ण मंदिर अमृतसर का एक मुख्य गंतव्य एवं धार्मिक स्थल है । इसे पर्यटक स्थल कहा जाना सही नही होगा पर ये भी सच है...
श्री हरमंदिर साहिब या स्वर्ण मंदिर अमृतसर का एक मुख्य गंतव्य एवं धार्मिक स्थल है । इसे पर्यटक स्थल कहा जाना सही नही होगा पर ये भी सच है कि इस मंदिर को देखने के लिये दूसरे धर्मो के लोग शायद सिख धर्म से भी ज्यादा आते होंगे । इस मंदिर के चारो ओर ही अमृतसर शहर बसा हुआ है । दिन में 20 घंटे ये मंदिर खुला रहता है । ताजमहल के बाद भारत में सबसे ज्यादा पर्यटक इस गुरूद्धारे में ही आते होंगें
400 से अधिक वर्ष पुराने गृरूद्धारे का शिल्प बेमिसाल है । स्वर्ण की आभा होने के कारण इस मंदिर का नाम स्वर्ण मंदिर पडा । सरोवर के बीच में गुरूद्धारा है और उसमें गुरू ग्रंथ साहिब रखा है । जिसके पास हर समय गुरू वाणी का गान होता रहता है जो कि मन को शांति और सुकून देने वाला है । सरोवर के बीच में गुरूद्धारे तक जाने के लिये पुल बना है जिसमें बीच में रेलिंग लगी है एक रास्ता जाने का और एक आने का ।
इस मंदिर का निर्माण कुछ इस तरह से किया गया है कि सरोवर के बीच में मुख्य गुरूद्धारा है । सरोवर के चारो ओर चार दरवाजे हैं ।सरोवर में जो मछलियां हैं उनका शिकार नही किया जाता बल्कि यहां पर आने वाले श्रद्धालु उन्हे आटे की गोलियां खिलाते हैं ।
इस मंदिर का निर्माण कुछ इस तरह से किया गया है कि सरोवर के बीच में मुख्य गुरूद्धारा है । सरोवर के चारो ओर चार दरवाजे हैं ।सरोवर में जो मछलियां हैं उनका शिकार नही किया जाता बल्कि यहां पर आने वाले श्रद्धालु उन्हे आटे की गोलियां खिलाते हैं ।
सरोवर के चारो ओर गुरूद्धारा परिसर में रूकने के लिये भी काफी व्यवस्था है । हालांकि हम तो रूके नही तो हमने पता भी नही किया । पर यहां कुछ सुविधाये फ्री भी हैं और कुछ के लिये मामूली शुल्क भी लगता है । यहां पर गुरू जी का लंगर हर समय चलता है जो जाति , धर्म से परे सभी के लिये निशुल्क है ।
यहां पर कई तरह की सेवा हैं मंदिर में । लोग विश्व के कोने कोने से यहां पर आकर जूते उठाने से लेकर लंगर में बर्तन धोने तक अपनी सेवा देते हैं । मंदिर में यतीमखाने से लेकर नेत्रहीन विदयालय जैसी सुविधायें चलायी जा रही हैं । इसके लिये श्रद्धालु दान देकर इसमें सहयोग कर सकते हैं ।
कहते हैं कि एक बार गुरू नानक जी भाई मरदाना के साथ कहीं जा रहे थे तो एक स्थान पर सुंदर जगह देखकर कहा कि एक दिन यहां पर एक सरोवर होगा जिसका जल अमृत समान होगा और उसके चारो ओर एक शहर बसेगा । 1570 में तीसरे गुरू अमरदास जी ने उसी जगह पर आकर एक शहर बसाने की इच्छा जतायी । कुछ भूमि खरीदकर और कुछ दान में प्राप्त करके यहां पर शहर बसाया गया । यहीं पर उन्होने एक सरोवर बनवाया जिसे अमृत सरोवर कहा जाता था बाद में इसे अमृतसर कहा जाने लगा ।
बाद में गुरू अर्जुन देव जी ने यहां पर हरमंदिर साहब की स्थापना की जिसे कई बार मुस्लिम आक्रांताओ का हमला झेलना पडा । वर्तमान मंदिर की इमारत को महाराजा रणजीत सिंह जी ने बनवाया था । कुछ उन्होने और कुछ बाद में श्रद्धालुओ ने इस मंदिर पर सोने की परत चढायी जिसके बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर में वर्तमान मे 1600 किलोग्राम सोना मढा हुआ है ।
बाद में गुरू अर्जुन देव जी ने यहां पर हरमंदिर साहब की स्थापना की जिसे कई बार मुस्लिम आक्रांताओ का हमला झेलना पडा । वर्तमान मंदिर की इमारत को महाराजा रणजीत सिंह जी ने बनवाया था । कुछ उन्होने और कुछ बाद में श्रद्धालुओ ने इस मंदिर पर सोने की परत चढायी जिसके बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर में वर्तमान मे 1600 किलोग्राम सोना मढा हुआ है ।
गर्मी बहुत थी और साथ आये विशाल राठौड का भी और उनकी फैमिली का भी ऐसी गर्मी में बुरा हाल था । पर स्वर्ण मंदिर को देखकर गर्मी को भी भूलना पडा । स्वर्ण मंदिर का परिसर भी काफी बडा है और इसके सरोवर की एक परिक्रमा काफी लम्बी हो जाती है । पहले हमने श्री गुरू ग्रंथ साहिब के दर्शन किये और प्रसाद लिया । इसके बाद हम चल पडे अमृतसर के ही एक और दर्शनीय स्थान की ओर
बहोत हि सुंदर पोस्ट हे। मै जब भी आपका यात्रा वर्णन पढता हु, तो मुझे ऐसा लगता हे की मानो मै भी आपके साथ वहा पर उपस्थित हुं।
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