सुबह सवेरे साढे आठ बजे के करीब हम लोग गाडी में बैठ गये । गर्मी बहुत थी । हमारी यात्रा का पहला पडाव था श्री दुर्ग्याणा मंदिर जो कि बिलकुल स...
सुबह सवेरे साढे आठ बजे के करीब हम लोग गाडी में बैठ गये । गर्मी बहुत थी । हमारी यात्रा का पहला पडाव था श्री दुर्ग्याणा मंदिर जो कि बिलकुल स्वर्ण मंदिर की छोटी प्रतिकृति है । देवी को समर्पित यह मंदिर 16वी शताब्दी का बना है । देवी के साथ साथ इस मंदिर में राम दरबार और राधा कृष्ण की भी मूर्तिया हैं । माता के रूप को यहां पर शीतला देवी कहा जाता है । इनके मंदिर को 700 से भी अधिक वर्ष पुराना बताया जाता है ।
दुर्ग्याणा शब्द का स्त्रोत भवानी दुर्गा का नाम है । इस स्थान का महत्व इसलिये भी है क्योंकि यहां देवी की काफी मान्यता है और लोग रोगो से रक्षा और देवी का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिये देवी को दूध व जल चढाते हैं । चैत्र व अश्विन मास में तो यहां पर भारी भीड आती है माता के दर्शनो के लिये । मंदिर की दीवारो पर बने हुए चित्र कांगडा शैली का नमूना है । ये चित्र सदियो पुराने हैं ।
माता के मंदिर के सामने श्री लक्ष्मी नारायण जी का मंदिर है । इस मंदिर की स्थापना अमृतसर वासियो ने सन 1925 में धन एकत्र करके की थी । भारत के उज्ज्वल सितारे श्री मदन मोहन मालवीय जी ने अपने कर कमलो से व हिंदू रीति रिवाज से इसका उदघाटन किया । यह मंदिर एक सरोवर के मध्य बना है । पूरे मंदिर परिसर में संगमरमर लगा हुआ है । मुख्य मंदिर के द्धार का नीचे का भाग चांदी और उपर को सोने से मढा हुआ है ।
मंदिर के इस सरोवर में ठीक स्वर्ण मंदिर की तरह लाल रंग की मछलियां भी हैं जिन्हे लोग आटे की गोलियां खिलाते हैं । बच्चे यहां पर आकर काफी खुश थे
यह मंदिर पूरी तरह सिक्खो के पवित्र स्थल दरबार साहेब "स्वर्ण मंदिर " कि कलाकृति है --कहते है अमृतसर के धनी सेठ के मन में एक बार विचार आया कि सिक्खो कि तरह हम भी मंदिर बना सकते है और उसने हु -ब - हु स्वर्ण मंदिर कि नक़ल करके यह मंदिर कि स्थापना कि---जो हर दृष्टि से सामान है लेकिन, दरबार साहेब कि तरह साफ़ -सफाई से पूरी तरह महरूम है ----
ReplyDeleteNice pics ya! :)
ReplyDeleteRegards
Sammya