21 जून 2012 को हम चार भाईयो का विचार घूमने का बना । मै 20 जून को ही 20 दिन की यात्रा से घूमकर आया था नार्थ ईस्ट से और यहां पर प्रोग्रा...
21 जून 2012 को हम चार भाईयो का विचार घूमने का बना । मै 20 जून को ही 20 दिन की यात्रा से घूमकर आया था नार्थ ईस्ट से और यहां पर प्रोग्राम सब तैयार था बस मेरा इंतजार था । मै बुरी तरह थका हुआ था पर उसके बाद भी भाईयो की जिद के आगे ना नही कर सका । प्रोग्राम क्या था ये किसी को ज्यादा डिटेल में नही था बस एक ही मोटिव था कि इस जून की कडकती गर्मी से जहां भी राहत मिल जाये बस वहीं तक जाना है ।
यूं तो कहने के लिये हरिद्धार शहर धार्मिक रूप में गिना जाता है पर गर्मियो के दिनो में ठंडे ठंडे गंगाजल का आनंद उठाने के लिये लोग अक्सर हरिद्धार का रूख इसलिये भी करते हैं क्योंकि ये दिल्ली के पास है और कडी गर्मी में भी राहत देने वाला है । इसलिये हरिद्धार इस लिस्ट में सबसे पहले था । एक कारण ये भी था कि हरिद्धार पहाडो का प्रवेश द्धार है इसलिये भी शायद मेरे तीन ममेरे भाईयो ने सोचा होगा कि पहले हरिद्धार ही चलते हैं ।
बात तो सवेरे सवेरे उठकर चलने की हुई थी कम से कम पांच बजे की तैयारी थी पर सात बजे से पहले चलना नही हुआ । एक गाडी बुक कर ली गयी थी इंडिगो 8 रूपये प्रति किलोमीटर की दर पर । साथ में बाकी शर्ते भी थी जैसे कि ड्राइवर की नाइट , उसका खाना ,, टोल टैक्स आदि भी हमारे जिम्मे था । पर जब 4 आदमी इकठठे हो जायें तो गाडी कर लेने से बढिया कुछ नही होता क्योंकि ये समय बचाता है और जितना समय बचता है उसे घूमने में लगा सकते हैं । वैसे भी मेरे तीनो भाई कामकाजी हैं तो ज्यादा से ज्यादा 4 दिन का समय था उनके पास
सात बजे हम गाजियाबाद से चले और नेशनल हाईवे 58 पर मेरठ , खतौली , मु0नगर होते हुए पुरकाजी तक पहुंचे । मेरठ में हम बाईपास से निकले जहां से हरिद्धार की दूरी 138 किमी0 है । यहां सिवाया में 70 रू0 की एक साइड की टोल टैक्स की पर्ची कटती है कार की । सुबह साढे नौ बजे हम पुरकाजी में थे । यहां से एक रास्ता हरिद्धार के लिये वाया लक्सर होकर जाता है । यहां से लक्सर 32 किलोमीटर पडता है जबकि हरिद्धार 63 किलोमीटर पडता है । इस रास्ते से जाने का फायदा ये है कि आपको रूडकी जैसे बडे शहर में मिलने वाले ट्रैफिक से छुटकारा हो जाता है
BATH TOUR-
इस रास्ते पर करीब 15 किलोमीटर चलने के बाद एकमात्र ढाबा आता है फौजी ढाबा जो कि ग्राम सुल्तानपुर कन्हेरी के पास है । इस ढाबे पर गाडी रोक कर हमने घर से बनवाकर लाये हुए परांठो का आनंद लिया । परांठे तो अपने थे ही बस फौजी ढाबे से ठंडी ठंडी दही ले ली । इस आनंद भोग के क्या कहने थे । अब खाने की जरूरत किसे थी ? ये रास्ता गुरूकुल कांगडी के पास एक चौक पर हरिद्धार में प्रवेश करता है । हर की पौडी यहां से 5 किलोमीटर थी जो कि हमारा पहला लक्ष्य था
हर हर गंगे.
ReplyDeleteye to apna domestic tour hai... sabse pahle Delhi ke log yahi ka rukh karte hai???
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