चन्द्रताल से बातल 16 किमी0 है जबकि उस मोड से जहां से चन्द्रताल के लिये 12 किमी0 का रास्ता कटता है वहां से 4 किमी0 । तापमान माइनस में जा चुका...
चन्द्रताल से बातल 16 किमी0 है जबकि उस मोड से जहां से चन्द्रताल के लिये 12 किमी0 का रास्ता कटता है वहां से 4 किमी0 । तापमान माइनस में जा चुका था । मै तो शंका भी कर रहा था मन में कि कहीं ये बंदे हमें रास्ते में ही ना छोड दें या कहें कि जगह नही मिली ।
बातल में एक रेस्ट हाउस भी है । हम जब पहुंचे तो घना अंधेरा था । एक छोटे से रैस्टोरेंट नुमा झौंपडी में पंहुचे तो तब तक एक गाडी भी हमसे पहले खडी थी । उसमें 7 या 8 आदमी थे । ढाबे वाले ने उस समय तो मना कर दिया पर फिर गाडी वाले रेस्ट हाउस की ओर चले गये तब ढाबे वाले ने हमारे लिये हां कर दी । ढाबे की बराबर में ही एक और झौंपडी में रूकने का इंतजाम था । यहां धरती पर एक चबूतरा सा बनाकर उस पर कपडे बिछा रखे थे ।यहीं पर नीचे ही दस पन्द्रह बिस्तर लगे थे ।
पचास रूपये में खाना और ठहरना तय हुआ । तब तक जाट देवता और राकेश आ गये । खाना बनाने को कह दिया । हमारे अलावा तीन चार ट्रक ड्राइवर और थे । ठंड बहुत ज्यादा थी और थकान उससे भी ज्यादा मै तो खाना खाते ही स्लीपिंग बैग खोलकर सो गया ।
सुबह उठकर देखा तो बाइक पर बर्फ जमी हुई थी । जहां मै सोया था वहां पर सिर्फ पन्नी ढकी थी । थकान की वजह से नींद तो आ गयी पर सुबह तक सिर में दर्द नही गया । सुबह सवेरे उठकर फ्रेश होने नदी के पास गये । इतने ठंडे पानी में फ्रेश होना भी गजब का था । यहीं पर बोर्ड लगा था । यहां कई पर्वतारोही अपनी जान गंवा चुके हैं उनकी समाधि और सब कुछ यहीं पर है ।
पिछली पोस्ट में मैने बताया था लोसर से मनाली तक के रास्ते में कोई गांव नही है यहां पर पडाव हैं जिनके नाम हैं जैसे बातल , छातडू , ग्राम्फू जहां पर सिर्फ एक या देा दुकान हैं जिससे कि ट्रक या अन्य वाहनो को आवश्यक ठहराव मिल जाये क्योंकि ये रास्ता इतना खराब है कि वाहनो की तो कब्र है ।
सुबह की धूप निकल चुकी थी पर अभी उपर की ओर थी । कम से कम 20 किलोमीटर जाकर छातडू में धूप सही से मिली । मैने अपने बैग से सेब निकालकर खाने शुरू कर दिये । छातडू में तो रेस्ट हाउस भी है । कल शाम हुई गर्मागर्मी अभी ताजा थी इसलिये जाट देवता और राकेश मुझे देखकर रूके नही आगे चलते गये । सेब खाकर मैने भी आगे का सफर शुरू किया ।
ये रास्ता वाहनो की कब्र इसलिये है क्योंकि यहां पर सडक है ही नही । यहां इतनी बर्फ पडती है कि रास्ता कभी बन ही नही पाता । रास्ता ना बने कोई बात नही पर यहां रास्ते में पत्थर और ज्यादातर जगहो पर नाले हैं जो कि पिघलती बर्फ से सीधे निकलकर आ रहे हैं
। उनकी तेजी बरसात में तो बहुत तेज होती होगी पर अभी तो कम ही थी फिर भी इतने लम्बे पैच को पार करना कई बार तो बडा मुश्किल था खास तौर पर बीच में पडे पत्थरो की वजह से कई बार बाइक का संतुलन गडबडा जाता था । इस रास्ते में पहली बार बाइक की ओर से डर लगा क्योंकि पत्थर उछल उछल कर लग रहे थे । अगर कोई बाइक के इंजन में गलत जगह लग जाये और कोई दिक्कत हो जाये तो क्या होगा ? यहां से मनाली तक लदकर ही जायेगी वो भी पता नही कब और कैसे ?
पर रास्ता चाहे जैसा हो नजारे तो बढिया थे बोला हां कि नही ?
मनु भाई आपने सही फैसला लिया ओर रात बातल मे काटी नही तो ठण्ड लग जाती ओर चार-पांच घण्टे खराब हो जाते आपके.फोटो बहुत सुन्दर उतारे हे आपने
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत जगह है . हम तो तस्वीरों से ही खुश हो लिए ...
ReplyDeleteदुर्गम मार्ग अब आया है
ReplyDeleteStunning Views.......thank you for sharing Manu.
ReplyDeleteBeautiful pictures you have here!
ReplyDeletemanu bhaii aapake foto lajawab hain ............aap aur sandeep ji yatra ka mahina aur taareekh bhi dalen to bhAUT achchha rahega .....
ReplyDeleteGreat post. I am also planning to go there from a long time.
ReplyDeleteBTW, this blog is really great and helpful.
फोटो तो अति सुन्दर है ,ऐसा लग रहा है कि हिमालय देव अपना अलग अलग पोज दे कर फोटो खिचवा रहे है / धन्यवाद
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