होली के दिन होली खेलकर हमें काफी मजा भी आया । शैतान बच्चो ने हमें भिगो दिया था । काफी देर बाद कपडे सूखे । उसके बाद शुरू हुआ सिलसिला गाडी को ...
होली के दिन होली खेलकर हमें काफी मजा भी आया । शैतान बच्चो ने हमें भिगो दिया था । काफी देर बाद कपडे सूखे । उसके बाद शुरू हुआ सिलसिला गाडी को खींचने का । चूंकि अगले दिन दुल्हैंडी का त्यौहार था और हम आज सुबह मुनस्यारी से चले थे तो ये तो हमें पता था कि हम आज रात में ही किसी समय दिल्ली तक पहुंचेंगें पर किस समय तक ये पता नही था । पाताल भुवनेश्वर से अल्मोडा का रास्ता सिंगल व पहाडी था ।
अल्मोडा शहर हम रात के आठ बजे के आसपास पहुंचे । यहां अल्मोडा शहर जब पांच किलोमीटर था तो एक मोड से पूरा शहर ही दिखायी दे रहा था । जगमग करता अल्मोडा शहर ऐसे दिख रहा था जैसे तारो भरा थाल
उसे देखकर मन में विचार आया कि ये नजारा हमें अल्मोडा जाकर थोडे ही ना मिलेगा तो गाडी वहीं पर रोक दी और उस नजारे का फोटो लेने के लिये कैमरे के साथ साथ ट्राइपाड भी निकाल लिया गया । यहां पर दीपक ने मुझे कई चीजे सिखायी । जैसे कि आप शहर की लाइटे देख रहे हो ये सब प्वांइट व शूट कैमरे से संभव ही नही है । इसे मैन्युअल मोड में शटर को काफी देर खुला रखकर लिया गया है । 15 सैकेंड तक शटर को खुला रखने से वो आराम से सारी लाइटो को पूरी तरह समेटता है । ये फोटो यहां कम्प्रेस करके लगाये गये है अन्यथा ओरिजनल फोटो में आपको बिलकुल अपनी आंखो जैसा दिखायी देगा । ट्राईपाड तो साथ में था ही और उपर चांद भी अपनी पूरी रौ में चांदनी बिखेर रहा था जैसे कह रहा हो कि कुछ फोटो अपने भी हो जायें ।
फिर एक लम्बा फोटो सेशन चंदा मामा का चला । कोशिश तो उसमें घुसने की थी पर 50 एक्स जूम थोडा कम पड गया । 100 एक्स शायद उन गढढो की हकीकत को ठीक से दिखा सके ?अल्मोडा शहर की लाइटो के साथ और भी प्रयोग हुए जैसे जानबूझकर उन लाइटो को धुंधला कर देना
इसके बाद अल्मोडा पहुंचे तो शहर तो सुनसान हो चुका था । इसे शायद दीवाली का असर कहें या कुछ और कि बस एक ही दुकान खुली मिली थी । हमें भूख लगी थी पर खाने को यहां रोटी नही थी
पर हां अल्मोडा की प्रसिद्ध बाल मिठाई थी । चाय के साथ बाल मिठाई ले ली । यहां बाल मिठाई को अब कई रूपो में बना दिया गया है जैसे चाकलेट में या अन्य कई तरह की । कुछ मिठाई घर के लिये पैक करवा ली । उसके बाद हम लोग आगे की ओर चले । अभी रात के नौ बज रहे थे और हम अल्मोडा थे । यानि दिल्ली का सफर शायद पूरी रात ही करना पडेगा ।
अल्मोडा शहर हम रात के आठ बजे के आसपास पहुंचे । यहां अल्मोडा शहर जब पांच किलोमीटर था तो एक मोड से पूरा शहर ही दिखायी दे रहा था । जगमग करता अल्मोडा शहर ऐसे दिख रहा था जैसे तारो भरा थाल
उसे देखकर मन में विचार आया कि ये नजारा हमें अल्मोडा जाकर थोडे ही ना मिलेगा तो गाडी वहीं पर रोक दी और उस नजारे का फोटो लेने के लिये कैमरे के साथ साथ ट्राइपाड भी निकाल लिया गया । यहां पर दीपक ने मुझे कई चीजे सिखायी । जैसे कि आप शहर की लाइटे देख रहे हो ये सब प्वांइट व शूट कैमरे से संभव ही नही है । इसे मैन्युअल मोड में शटर को काफी देर खुला रखकर लिया गया है । 15 सैकेंड तक शटर को खुला रखने से वो आराम से सारी लाइटो को पूरी तरह समेटता है । ये फोटो यहां कम्प्रेस करके लगाये गये है अन्यथा ओरिजनल फोटो में आपको बिलकुल अपनी आंखो जैसा दिखायी देगा । ट्राईपाड तो साथ में था ही और उपर चांद भी अपनी पूरी रौ में चांदनी बिखेर रहा था जैसे कह रहा हो कि कुछ फोटो अपने भी हो जायें ।
फिर एक लम्बा फोटो सेशन चंदा मामा का चला । कोशिश तो उसमें घुसने की थी पर 50 एक्स जूम थोडा कम पड गया । 100 एक्स शायद उन गढढो की हकीकत को ठीक से दिखा सके ?अल्मोडा शहर की लाइटो के साथ और भी प्रयोग हुए जैसे जानबूझकर उन लाइटो को धुंधला कर देना
इसके बाद अल्मोडा पहुंचे तो शहर तो सुनसान हो चुका था । इसे शायद दीवाली का असर कहें या कुछ और कि बस एक ही दुकान खुली मिली थी । हमें भूख लगी थी पर खाने को यहां रोटी नही थी
पर हां अल्मोडा की प्रसिद्ध बाल मिठाई थी । चाय के साथ बाल मिठाई ले ली । यहां बाल मिठाई को अब कई रूपो में बना दिया गया है जैसे चाकलेट में या अन्य कई तरह की । कुछ मिठाई घर के लिये पैक करवा ली । उसके बाद हम लोग आगे की ओर चले । अभी रात के नौ बज रहे थे और हम अल्मोडा थे । यानि दिल्ली का सफर शायद पूरी रात ही करना पडेगा ।
आकाश से मुग्ध करता चन्द्रमा, बहुत सुन्दर चित्र।
ReplyDeleteसुन्दर चित्र
ReplyDelete