hard working lady of himachal जब मैने जंगल को पार कर लिया तो खुला मैदान आ गया । यहीं पर एक कृत्रिम झील बनाने की कोशिश की गयी है । बरसात ...
hard working lady of himachal
जब मैने जंगल को पार कर लिया तो खुला मैदान आ गया । यहीं पर एक कृत्रिम झील बनाने की कोशिश की गयी है । बरसात में ये झील पानी से भर जाती होगी । अंबाला वाले आदमी और उनके बच्चे उपर खडे कमर पर हाथ रखे आती औरतो को देख रहे थे । मै भी दो तीन मिनट के लिये यहां पर रूक गया । यहां से काफी बढिया नजारा था और मुझे आगे और भी बढिया नजारे की उम्मीद थी इसलिये अंबाला वालो से थोडा परिचय करके मै आगे की ओर बढ चला । तभी मुझे नीचे से आती एक औरत जो कि स्थानीय थी दिखायी दी । जिस जगह पर हम खडे थे यहां पर छोटा सा चार पांच दुकानो का बाजार सा था जो कि अभी नही खुला था । ये औरत मेन रास्ते से ना आकर नीचे गांव से पतली सी पगडंडी से सीधे चढकर आ रही थी । इसकी कमर पर बच्चा बंधा था और दोनो हाथो में सामान था । मै इसे देखकर रूक गया । मैने उसके अपने पास तक आने का इंतजार किया । मुझसे थोडी दूर जाकर उसने दुकान के पास अपना सामान रखा । मैने उससे पूछा कि क्या वो दुकान उसकी है उसके हां में जबाब देने पर मैने पूछा कि उसमें चाय मिलेगी क्या तो उसने बताया कि चाय और परांठा दोनो चीज मिल जायेगी । मैने कहा कि परांठा बनने में तो समय लगेगा तो उसने कहा कि आप मंदिर के दर्शन करके आओगे इतनी देर में मै परांठे तैयार कर देती हूं क्योंकि आटा वगैरा तो मै घर से ही मलकर लाई हूं बस पानी लेकर आना है । मुझे भी ये बात सही लगी । मैने उसे एक परांठा बनाने को कहा ।
उसकी पीठ पर बच्चा बंधा था जो कि सो रहा था । मैने उससे एक फोटो खींचने के लिये पूछा तो उसने सहर्ष हामी भर दी । अब मै मंदिर की ओर चल पडा
जब मैने जंगल को पार कर लिया तो खुला मैदान आ गया । यहीं पर एक कृत्रिम झील बनाने की कोशिश की गयी है । बरसात में ये झील पानी से भर जाती होगी । अंबाला वाले आदमी और उनके बच्चे उपर खडे कमर पर हाथ रखे आती औरतो को देख रहे थे । मै भी दो तीन मिनट के लिये यहां पर रूक गया । यहां से काफी बढिया नजारा था और मुझे आगे और भी बढिया नजारे की उम्मीद थी इसलिये अंबाला वालो से थोडा परिचय करके मै आगे की ओर बढ चला । तभी मुझे नीचे से आती एक औरत जो कि स्थानीय थी दिखायी दी । जिस जगह पर हम खडे थे यहां पर छोटा सा चार पांच दुकानो का बाजार सा था जो कि अभी नही खुला था । ये औरत मेन रास्ते से ना आकर नीचे गांव से पतली सी पगडंडी से सीधे चढकर आ रही थी । इसकी कमर पर बच्चा बंधा था और दोनो हाथो में सामान था । मै इसे देखकर रूक गया । मैने उसके अपने पास तक आने का इंतजार किया । मुझसे थोडी दूर जाकर उसने दुकान के पास अपना सामान रखा । मैने उससे पूछा कि क्या वो दुकान उसकी है उसके हां में जबाब देने पर मैने पूछा कि उसमें चाय मिलेगी क्या तो उसने बताया कि चाय और परांठा दोनो चीज मिल जायेगी । मैने कहा कि परांठा बनने में तो समय लगेगा तो उसने कहा कि आप मंदिर के दर्शन करके आओगे इतनी देर में मै परांठे तैयार कर देती हूं क्योंकि आटा वगैरा तो मै घर से ही मलकर लाई हूं बस पानी लेकर आना है । मुझे भी ये बात सही लगी । मैने उसे एक परांठा बनाने को कहा ।
उसकी पीठ पर बच्चा बंधा था जो कि सो रहा था । मैने उससे एक फोटो खींचने के लिये पूछा तो उसने सहर्ष हामी भर दी । अब मै मंदिर की ओर चल पडा
फोटो बहुत सुंदर हैं , मैन्नुअल मोड में नहीं लगते
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