हिमाचल के मेले काफी प्रसिद्ध हैं । कुल्लू का दशहरा और पाराशर पर लगने वाले मेलो को देखने के लिये विदेशो से भी लोग आते हैं । पर कमोबेश हिमाचल के हर गांव में इसी तरह के मेले लगते हैं । जहां तक मैने कहीं पढा है और मुझे याद है कि हिमाचल में बाहरी लोगो के जमीन खरीदने पर पाबंदी है पता नही क्यों शायद इसीलिये अभी तक हिमाचल की सुंदर
fairs of himachal
हिमाचल के मेले काफी प्रसिद्ध हैं । कुल्लू का दशहरा और पाराशर पर लगने वाले मेलो को देखने के लिये विदेशो से भी लोग आते हैं । पर कमोबेश हिमाचल के हर गांव में इसी तरह के मेले लगते हैं । जहां तक मैने कहीं पढा है और मुझे याद है कि हिमाचल में बाहरी लोगो के जमीन खरीदने पर पाबंदी है पता नही क्यों शायद इसीलिये अभी तक हिमाचल की सुंदरता बनी हुई है ।
मै जिस मेले को देखने जंजैहली से वापिस तीन किलोमीटर चलकर आया था उसमें बगस्याड तक से भी देवता आये हुए थे और उनकी डोली रखी थी । उस डोली के साथ करीब 12 से 15 लोगो का जत्था था जिसमें पुजारी भी थे और उस गांव के निवासी भी जहां से ये देवता आये थे । 50 किलोमीटर की दूरी से भी देवता आते हैं मेलो में अन्य देवताओ से मिलन के लिये और उनकी चल डोली को लेकर वहां के पुजारी और अन्य लोग पैदल ही आते हैं । उन्हे किसी वाहन में नही लाया जाता । जब मै वापिस चला था जंजैहली से तब देव वापिस जा रहे थे । उसी दौरान बारिश आ गयी । मै भी बारिश से बचने के लिये एक जगह रूक गया लेकिन क्या मजाल जो वो जत्था जोकि देव को लेकर जा रहा था बारिश से घबराया हो या इधर उधर हुआ हो । अपने गांव के देवताओ के प्रति इन लोगो का समर्पण देखकर मै हैरान था ।
मै जिस मेले को देखने जंजैहली से वापिस तीन किलोमीटर चलकर आया था उसमें बगस्याड तक से भी देवता आये हुए थे और उनकी डोली रखी थी । उस डोली के साथ करीब 12 से 15 लोगो का जत्था था जिसमें पुजारी भी थे और उस गांव के निवासी भी जहां से ये देवता आये थे । 50 किलोमीटर की दूरी से भी देवता आते हैं मेलो में अन्य देवताओ से मिलन के लिये और उनकी चल डोली को लेकर वहां के पुजारी और अन्य लोग पैदल ही आते हैं । उन्हे किसी वाहन में नही लाया जाता । जब मै वापिस चला था जंजैहली से तब देव वापिस जा रहे थे । उसी दौरान बारिश आ गयी । मै भी बारिश से बचने के लिये एक जगह रूक गया लेकिन क्या मजाल जो वो जत्था जोकि देव को लेकर जा रहा था बारिश से घबराया हो या इधर उधर हुआ हो । अपने गांव के देवताओ के प्रति इन लोगो का समर्पण देखकर मै हैरान था ।
वैसे मेले में जंजैहली की साइड से लेकर बगस्याड की साइड तक के करीब दस किलोमीटर तक के लोग आये हुए थे । हमारे यहां के मेलो में ओर हिमाचल के मेले में मैने एक फर्क तो ये देखा कि हमारे यहां अगर मेला आधुनिक ना हो तो उसको छोटा मान लेते हैं । यहां के मेले में झूले तक नही थे आधुनिक मशीनो या खेलो की तो बात छोडो उसके बावजूद यहां के लोगो में इतना उत्साह था कि पूछो मत । कुछ लोग जहां देवताओ के दर्शन में व्यस्त् थे तो युवा अपने लिये आइसक्रीम और जलेबी में मजा ढूंढ रहे थे जो कि आइसक्रीम केवल एक जगह थी पर जलेबी तो ऐसे ही जमीन पर लकडी जलाकर और चार ईंटो पर कढाही रखकर उतारी जा रही थी । लडकियां अपनी पसंदीदा चूडी बिंदी वाली दुकान पर खरीददारी में बिजी थी । एक बात जो और मैने नोटिस की वो थी यहां पर लडके और लडकियो में खुलापन ।
जिस आधुनिकता की दुहाई टीवी में देते और दिखाते हैं उससे इतर यहां पर लडके और लडकियो में खुल कर बाते और हंसी मजाक हो रहा था और वो भी गांव के बडे और बूढो के सामने पर उसमें किसी तरह की अश्लीलता या गलत ना तो था और ना ही दिखता था इसीलिये उनकी आंखो में चोरी नही थी । मजा आ गया इस मेले को देखकर और उसमें घूमकर । मैने मेले का काफी देर तक मजा लिया और जब मुझे लगा कि आज जितना सफर मैने किया है उसके बाद मुझे आज जल्दी आराम करना चाहिये ताकि मै कल सुबह सवेरे शिकारी देवी के मंदिर तक जा सकूं तो मै चल पडा उसी होटल की ओर जहां से मै वापिस मेला देखने आया था ।
बस्तर के मेलों जैसा आभास हुआ। वहाँ भी मेले में आस पास के सभी देवता पधारते हैं।
ReplyDeleteGr8 last time I had visited Himachal the locals whom I had befriended had talked about these fairs in which the people took part...as a Yatra. It was wonderful reading about one and seeing pictures too. What u just said about the simple but open nature of boys and girls is worth appreciating and understanding. And u r right about the heart and mind being clear.
ReplyDeleteThanks for sharing ur yatras... I love taking this yatra with u although virtually.