खडी चढाई , बर्फ से ढकी और पकडने के लिये कोई साधन भी नही , मेरे पास कोई डंडा नही था और मैने इधर उधर ढूंढने की कोशिश भी की पर कुछ भी ऐसा नही मिला । थोडा सा आगे चलने की कोशिश की तो पैर फिसलने लगे तब इस पक्की बर्फ को पार करने के लिये बैठ गया और थोडी दूर तक बैठकर ही बर्फ को पार कि
खडी चढाई , बर्फ से ढकी और पकडने के लिये कोई साधन भी नही , मेरे पास कोई
डंडा नही था और मैने इधर उधर ढूंढने की कोशिश भी की पर कुछ भी ऐसा नही मिला
। थोडा सा आगे चलने की कोशिश की तो पैर फिसलने लगे तब इस पक्की बर्फ को
पार करने के लिये बैठ गया और थोडी दूर तक बैठकर ही बर्फ को पार किया उसके
बाद बर्फ उपर उपर से नर्म सी मिलने लगी जिसमें मेरे पैर धंस सकते थे थोडे
से और मै चलने की स्थिति में आ गया था ।
मेरा ध्यान डंडा देखने में भी था
और नजारो को देखने में भी । कैमरे का सबसे ज्यादा डर था क्योकि फोटो खींचने
की वजह से उसे लटकाना तो मजबूरी थी पर ऐसी बर्फ में अगर गिर पडे तो कैमरे
में पानी वगैरा जा सकता है । मुझे याद है अभी मै दीपक के साथ उत्तराखंड गया
था तो उसके कैमरे पर हल्का सा पानी गिर गया और वो खराब हो गया था । शरारती
बच्चो ने होली खेलने के चक्कर में महंगा कैमरा खराब कर दिया था ।
आगे आगे चलते जाने पर हिम्मत भी बढ रही थी और रास्ता कम कठिन होता जा रहा
था । वो ऐसे कि किनारे पर मिटटी के पास बर्फ कम होती थी और वहां पर जूते
रखने के लायक मिटटी दिख जाती थी । हालांकि उसका नुकसान ये था कि पिघलती
बर्फ के पानी से भरपूर उस मिटटी में जूते रखते ही जूतो के नीचे काफी मिटटी
चिपक जाती थी और जूतो में वजन कर देती पर एक पैर को उसमें रखने पर कम से
कम फिसलने का डर नही था
कई जगह ये मिटटी पहाड की साईड में ना आकर खाई की साइड में आती थी जब मोड
आता था तब और कई बार खाई की साइड की ओर को बर्फ का पूरा ढालान होता था ।
कैसे? आप खुद फोटो देखकर समझ सकते हो
sikari davi kitni highte per hai aur Delhi se kitna km dur hai.aur kab yaha jana chaeya???
ReplyDeleteदेखकर ही सिहरन हो रही है भाई।
ReplyDeleteवाह... उम्दा, बेहतरीन चित्र...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteThe route seems dangerous..but beautiful!!
ReplyDeleteलगे रहो
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