रिवालसर का बैसाखी मेला देश के उत्तरी हिस्से में काफी प्रसिद्ध है । मेले हमेशा से एकता का संदेश देते हैं और जब ऐसा मेला हो जो तीन धर्मो के संगम पर स्थित हो तो बात ही कुछ और होती है । रिवालसर में हिंदू , बौध और सिख धर्म के लोग ना केवल मिलजुल कर रहते हैं अपितु मेला भी मिल जुलकर म
रिवालसर का बैसाखी मेला देश के उत्तरी हिस्से में काफी प्रसिद्ध है । मेले हमेशा से एकता का संदेश देते हैं और जब ऐसा मेला हो जो तीन धर्मो के संगम पर स्थित हो तो बात ही कुछ और होती है । रिवालसर में हिंदू , बौध और सिख धर्म के लोग ना केवल मिलजुल कर रहते हैं अपितु मेला भी मिल जुलकर मनाते हैं
वैसे तो इस झील को पदम संभव झील भी कहते हैं पर इस नाम से केवल बौध धर्म के लोग ही पुकारते हैं प्रसिद्ध नाम तो इस झील का रिवालसर ही है । झील के एक किनारे पर गुरूद्धारा है जिस पर आज के दिन काफी सजावट थी । हो भी क्यों ना दूर दूर से सिख धर्मावलम्बी अपने त्यौहार को मनाने के लिये आये हुए थे । और इस मेले के रंग को देखने के लिये अन्य धर्मो के लोगो के साथ साथ ही हम जैसे घुमक्कड भी यहां पर तुक्के से पहुंच गये थे । झील के एक किनारे पर टाउन हाल से लेकर गुरूद्धारे तक काफी दुकाने लगी हुई थी । मै तो उसमें रूचि नही रखता पर बच्चो से बडो तक काफी लोग खरीद दारी में लगे हुए थे
गुरूद्धारा रिवालसर जाने के लिये काफी सीढियां चढनी पडती हैं यहां पर हर गुरूद्धारे की तरह रूकने की और लंगर की भी व्यवस्था है और ये काफी बडे परिसर में बना हुआ है । हांलाकि मै वहां पर नही रूका था पर गया जरूर । हां मैने गुरूद्धारे के अंदर फोटो नही खींचे क्योंकि वहां काफी भीड थी और मै देखने में ही रह गया ।
वैसे तो इस झील को पदम संभव झील भी कहते हैं पर इस नाम से केवल बौध धर्म के लोग ही पुकारते हैं प्रसिद्ध नाम तो इस झील का रिवालसर ही है । झील के एक किनारे पर गुरूद्धारा है जिस पर आज के दिन काफी सजावट थी । हो भी क्यों ना दूर दूर से सिख धर्मावलम्बी अपने त्यौहार को मनाने के लिये आये हुए थे । और इस मेले के रंग को देखने के लिये अन्य धर्मो के लोगो के साथ साथ ही हम जैसे घुमक्कड भी यहां पर तुक्के से पहुंच गये थे । झील के एक किनारे पर टाउन हाल से लेकर गुरूद्धारे तक काफी दुकाने लगी हुई थी । मै तो उसमें रूचि नही रखता पर बच्चो से बडो तक काफी लोग खरीद दारी में लगे हुए थे
गुरूद्धारा रिवालसर जाने के लिये काफी सीढियां चढनी पडती हैं यहां पर हर गुरूद्धारे की तरह रूकने की और लंगर की भी व्यवस्था है और ये काफी बडे परिसर में बना हुआ है । हांलाकि मै वहां पर नही रूका था पर गया जरूर । हां मैने गुरूद्धारे के अंदर फोटो नही खींचे क्योंकि वहां काफी भीड थी और मै देखने में ही रह गया ।
मनु जी राम राम. हिंदू, बोद्ध, सिक्ख, जैन ये कोई अलग अलग धर्म नहीं हैं. बल्कि एक ही फूल की कलियाँ हैं. ये सभी सनातन, वैदिक संस्कृति का ही अंग हैं..नाम साझे, तीर्थ साझे, त्यौहार साझे, संस्कार साझे, रोटी बेटी का सम्बन्ध, तो फिर ये अलग अलग कैसे हुए.
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