केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की पूजा का निवास स्थान होता है उखीमठ छह माह के लिये । ये जगह रिषीकेश से लगभग 185 किलोमीटर दूर है । यहां भगवान शंकर की पांच सिरो वाली स्वर्ण मूर्ति स्थापित है । यहां का मंदिर नागर शैली में बना है और 32 कोनो से बना हुआ है ।
उखीमठ का नाम पहले उषामठ था जो बाद में उखीमठ हो गया । उखीमठ की समुद्र तल से उंचाई 4300 फुट है । यहां मेन रोड से एक रास्ता कटता है जिससे करीब एक किलोमीटर जाने के बाद मंदिर आता है । मंदिर में शीतकाल में भगवान केदारनाथ जी की पूजा होती है इसलिये शीतकाल में मंदिर ज्यादा गुलजार रहता है ।
हम जब गये तब तक भगवान केदारनाथ जी के कपाट बंद नही हुए थे इसलिये अभी यहां पर कोई नही था । वैसे हमारा इरादा नही था यहां पर जाने का पर जब उस रास्ते जा रहे थे तो रोड पर उखीमठ का बोर्ड देखकर जाने का मन बना लिया । मंदिर में कुछ देर रूके । अंदर मूर्ति का चित्र लेने की आज्ञा नही थी इसलिये चित्र नही लिया ।
केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की पूजा का निवास स्थान होता है उखीमठ छह माह के लिये । ये जगह रिषीकेश से लगभग 185 किलोमीटर दूर है । यहां भगवान शंकर की पांच सिरो वाली स्वर्ण मूर्ति स्थापित है । यहां का मंदिर नागर शैली में बना है और 32 कोनो से बना हुआ है ।
यहां के बारे में मान्यता है कि यहां पर बाणासुर की पुत्री उषा और कृष्ण के पौत्र अनिरूद्ध का विवाह हुआ था इसलिये भी इस जगह को पहले उषामठ कहा जाता था । स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी कुछ समय उखीमठ में बिताया था
मंदिर पर दक्षिण शैली का प्रभाव है और यहां का प्राकृतिक सौंदर्य उसमें चार चांद लगा देता है । गुप्तकाशी भी यहां से ज्यादा दूर नही है ।
रूकने के लिये यहां पर काफी सुविधाये हैं और प्राइवेट गेस्ट हाउस वगैरा काफी संख्या में हैं
यहां से रास्ता कटता है उखीमठ के लिये
मंदिर का प्रवेश द्धार
कभी जाना हुआ तो आप घुमक्कड़ों के लेख बहुत काम आयेंगे।
ReplyDeleteहमेशा की तरह अच्छी जानकारी और सुंदर चित्र
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