जगन्नाथ जी का रथ 45 फीट उंचा 35 फीट चौडा और 35 फीट लम्बा और 16 पहियो का होता है । इसी प्रकार सुभद्रा जी का रथ 43 उंचा 33 चौडा 33 लम्बा और 12 पहियो का होता है । तीनो देवताओ को प्राण प्रतिष्ठा के बाद इन रथो में बिठाया जाता है । इसके लिये मंदिर से एक रास्ता ऐसा बनाया जाता है कि प्रतिमाये झूला सा झूलते हुए सीधे रथो तक आ जाती हैं ।
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इस बार की हमारी पुरी यात्रा काफी अलग थी । पहली बार जब हम पुरी गये तो पैकेज टूर में थे पर इस बार हमने तीन महीने पहले अपनी बुकिंग आदि करा ली थी तो ट्रेन से सीधा पुरी पहुंचे । हालांकि हमारा प्रोग्राम लम्बा था और पुरी उसमें पहला पडाव था सो हमने इतना ध्यान नही दिया था कि पुरी की रथयात्रा शुरू होने वाली है और उसके लिये रथ निर्माण का कार्य जोरो पर है । इसी वजह से हमें इस प्रक्रिया के बारे में जानने का मौका मिल गया हर साल तीनो रथो का नये सिरे से निर्माण किया जाता है । बसंत पंचमी के दिन से शुरूआत होती है और इन रथो के लिये लकडियां इकठठी की जाती हैं । अक्षय तृतीया के दिन से इन रथो का निर्माण शुरू हो जाता है । इन रथो को बनाने में कहीं भी लोहे का प्रयोग नही किया जाता । रथो के पहियो में या और किसी भी जगह जहां पर कील की जरूरत होती है वहां पर लकडी की ही कील लगायी जाती है और लकडी के हथौडे से ही ठोकी जाती हैं ।
इस यात्रा हेतु लकडी के तीन रथ बनाये जाते हैं । बलराम जी के लिये लाल और हरे रंग का रथ बनाया जाता है जिसका नाम तालध्वज होता है । सुभद्रा जी के लिये लाल और नीले रंग का दर्पदलन नाम का रथ बनाया जाता है । भगवान जगन्नाथ जी के लिये लाल और पीले रंग का नन्दीघोष नाम का रथ बनाया जाता है वैसे पहले समय में ऐसा भी कहा जाता है कि छह रथ भी बना करते थे लेकिन आजकल तो तीन रथो का ही निर्माण किया जाता है । रथयात्रा में प्रयुक्त रथो को हम दूर से देखकर पहचान सकते हैं कि कौन सा रथ किसका है
इस कार्य को करने वाले यानि रथ बनाने वाले पीढी दर पीढी इस काम को करते चले आ रहे हैं और इस बार तो जब हम पहुंचे थे तो उन्होने हडताल की धमकी भी दे रखी थी कि यदि उनका वेतन नही बढाया गया तो वे रथ निर्माण नही करेंगें । हर रथ की लम्बाई और चौडाई निर्धारित है ।
जगन्नाथ जी का रथ 45 फीट उंचा 35 फीट चौडा और 35 फीट लम्बा और 16 पहियो का होता है । इसी प्रकार सुभद्रा जी का रथ 43 उंचा 33 चौडा 33 लम्बा और 12 पहियो का होता है ।
तीनो देवताओ को प्राण प्रतिष्ठा के बाद इन रथो में बिठाया जाता है । इसके लिये मंदिर से एक रास्ता ऐसा बनाया जाता है कि प्रतिमाये झूला सा झूलते हुए सीधे रथो तक आ जाती हैं ।
भगवान जगन्नाथ जी को मंदिर से रथ पर लाने की प्रक्रिया को पोहंडी बिजे कहते हैं । मंदिर के पुजारी जोर जोर से घंटे और घडियाल बजाते हैं । सबसे पहले सुदर्शन चक्र और उसके बाद तीनो मूर्तियो को क्रमवार रथो तक पहुचाया जाता है । ।
इसके बाद पुरी के भूतपूर्व राजा या उनके वंशज रथ के सामने झाडू लगाते हुए चलते हैं जब तक वो ऐसा नही करते रथयात्रा शुरू नही होती ।
रथयात्रा को घोडो की बजाय आदमी खींचते हैं । एक बार में चार हजार के करीब भक्त इन रथो को खींचते हैं और इतनी होड होती है रथयात्रा में भाग लेने की कि कई बार इस मौके को पाने के लिये भगदड मचती है और कई जाने भी चली जाती हैं । पुरी की चौडी चौडी सडको पर निकलती हुई इस रथयात्रा में सुबह से शाम तक गुंडिचा मंदिर तक रथयात्रा पहुंचती है । इसलिये इस यात्रा को गुंडिचा रथयात्रा भी कहते हैं । गुंडिचा मंदिर पहुंच कर भगवान यहां पर नौ दिन तक आराम करते हैं । आठवे दिन रथो को सीधी किया जाता है घुमाकर और दशमी के दिन वापसी यात्रा शुरू होती है ।
वापस आने पर अगले दिन मंदिर के बाहर से दर्शन किये जा सकते हैं । बारहवे दिन भगवान को मंदिर में प्रवेश कराया जाता है । उनका सोने से श्रंगार किया जाता है ।
आपकी इस प्रविष्टि क़ी चर्चा सोमवार [22.4.2013] के 'एक गुज़ारिश चर्चामंच' 1222 पर लिंक क़ी गई है,अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए पधारे आपका स्वागत है |
ReplyDeleteसूचनार्थ..
very nice post awesome pics
ReplyDeleteI had been there as a child, hope I will make it again.
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