नीचे उतरने पर देखा कि नावे लगी हुई हैं जो दूसरे किनारे तक लाने ले जाने के बीस रूपये प्रति आदमी ले रही हैं तो हमने भी नाव की सवारी करने का फैसला किया
आगरा का किला देखने के बाद हमारा अगला काम था वापस अपने होटल पहुंचना । सो हम बस में बैठकर मथुरा पहुंच गये पर अभी दिन छिपने में काफी समय था सो हमने थोडा मथुरा में घूमने का निश्चय किया । मथुरा के पेडो के बारे में हमने काफी सुन रखा था पर हमारे एक मित्र ने हमें ये भी बताया था कि मथुरा का पेडा खाना या लाना तो केवल बृजवासी की दुकान का और आगरा का पेठा खाना तो पंछी वाले के यहां का ।
इसलिये हमने एक रिक्शा किया और बृजवासी की दुकान पर से पेडे लिये । वे वाकई बढिया थे पर हमारे बुढाना में भी ऐसे ही पेडे हरिया की दुकान पर मिलते हैं । हां मथुरा में ऐसी कई दुकाने हैं जो बृजवासी से मिलते जुलते नामो से पेडा बेचती हैंं । इसके बाद हम बाजार से पैदल ही निकल कर आ रहे थे तो नीचे घाट की ओर जाती सीढिया दिखायी दी । सोचा चलो यमुना जी को देखते हैं
नीचे उतरने पर देखा कि नावे लगी हुई हैं जो दूसरे किनारे तक लाने ले जाने के बीस रूपये प्रति आदमी ले रही हैं तो हमने भी नाव की सवारी करने का फैसला किया । शाम का समय था और दिन छिपने ही वाला था । हमारे पास कैमरा नही था । इस पूरी यात्रा के फोटो खींचे गये हैं नोकिया एन 70 मोबाईल से तो इतने ज्यादा बढिया नही आ पाये हैं । मथुरा के घाट काफी सुंदर हैं और यमुना के पानी के रंग की बात छोड दे तो यहां पर काफी कुछ वाराणसी जैसा भी लगता है
नाव में सवारी करने के बाद हम होटल पहुंचे और हमने आगे का विचार पहाडो की ओर चलने का बनाया क्योंकि हम गर्मी से काफी परेशान हो चुके थे ।
इसलिये हमने एक रिक्शा किया और बृजवासी की दुकान पर से पेडे लिये । वे वाकई बढिया थे पर हमारे बुढाना में भी ऐसे ही पेडे हरिया की दुकान पर मिलते हैं । हां मथुरा में ऐसी कई दुकाने हैं जो बृजवासी से मिलते जुलते नामो से पेडा बेचती हैंं । इसके बाद हम बाजार से पैदल ही निकल कर आ रहे थे तो नीचे घाट की ओर जाती सीढिया दिखायी दी । सोचा चलो यमुना जी को देखते हैं
नीचे उतरने पर देखा कि नावे लगी हुई हैं जो दूसरे किनारे तक लाने ले जाने के बीस रूपये प्रति आदमी ले रही हैं तो हमने भी नाव की सवारी करने का फैसला किया । शाम का समय था और दिन छिपने ही वाला था । हमारे पास कैमरा नही था । इस पूरी यात्रा के फोटो खींचे गये हैं नोकिया एन 70 मोबाईल से तो इतने ज्यादा बढिया नही आ पाये हैं । मथुरा के घाट काफी सुंदर हैं और यमुना के पानी के रंग की बात छोड दे तो यहां पर काफी कुछ वाराणसी जैसा भी लगता है
नाव में सवारी करने के बाद हम होटल पहुंचे और हमने आगे का विचार पहाडो की ओर चलने का बनाया क्योंकि हम गर्मी से काफी परेशान हो चुके थे ।
मनुजी क्या आप बता सकते है कि, मथुरा में यमुना नदी का पानी किसी हद तक दूषित है?
ReplyDeleteबाकी तो आपके ब्लाग के ही सहारे देश का भ्रमण कर लेता हूँ।