मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार में बना है और उसके उपर श्री विष्णु भगवान के हाथ में सुशोभित रहने वाला सुर्दशन चक्र लगा है । इसे नीलचक्र भी कहा जाता है और ये अष्टधातु से बना हुआ है । मुख्य मंदिर काफी उंचे चबूतरे पर बना है । अंदर गर्भगृह में देवताओ की प्रतिमायें हैं । मुख्य द्धार पर दो सिंहो की मूर्तिया हैं । यहां की रसोई भारत की सबसे बडी रसोई है
हमारे धर्म में खंडित मूर्ति होते ही उसे सिला दिया जाता है यानि विर्सर्जित कर दिया जाता है पर केवल पुरी ही ऐसा स्थान है जहां पर खंडित मूर्तियो की पूजा की जाती है । वो भी हिंदुओ के सबसे पूजनीय चार धामो में से एक स्थान में ।
यहां पर भगवान जगन्नाथ के कान , पांव , हाथ के पंजे और पलके नही हैं ।
सुभद्रा जी और बलभद्र भगवान की पलके तो हैं लेकिन बाकी सब जगन्नाथ जी जैसा ही है । और यहां की मूर्तिया भी लकडी की हैं इसके बारे में एक रोचक कहानी कही जाती है ।
एक कथा के अनुसार मालवा नरेश इंद्रद्युम्न को स्वप्न में मूर्ति दिखायी दी । तब उसने कडी तपस्या की तो भगवान विष्णु ने उसे बताया कि पुरी के समुद्र तट पर जाये और वहां पर उसे एक बडी लकडी मिलेगी उस लकडी से इस मूर्ति का निर्माण कराये । राजा ने उस लकडी को खोज लिया पर उसके बाद बनाने की समस्या आई । ऐसे में भगवान विश्वकर्मा एक बढई के रूप में सामने आये और मूर्ति बनाने का प्रस्ताव रखा पर एक शर्त के साथ कि वे एक माह तक एक कमरे में बंद रहेंगे और यदि कोई भी वहां पर आया तो वे मूर्ति बनाना छोड देंगें । राजा ने बूढे की अवस्था को देखते हुए सोचा कि कहीं भूख प्यास से बूढा मर ना जाये इस कारण उत्सुकतावश वो कमरे में प्रवेश कर गये तो उन्हे वहां कोई नही मिला जबकि मूर्तिया अपूर्ण थी । पर तभी आकाश वाणी हुई कि मूर्तियो को ऐसे ही स्थापित कर दिया जाये तबसे वो मूर्तियां ऐसे ही हैं
मंदिर काफी बडे क्षेत्र में फैला है और उंची उंची चारदीवारी से घिरा है । स्थापत्य कला और शिल्प के आश्चर्य जनक प्रयोग से परिपूर्ण ये मंदिर भारत के भव्यतम स्थानो में से एक है ।
मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार में बना है और उसके उपर श्री विष्णु भगवान के हाथ में सुशोभित रहने वाला सुर्दशन चक्र लगा है । इसे नीलचक्र भी कहा जाता है और ये अष्टधातु से बना हुआ है ।
मुख्य मंदिर काफी उंचे चबूतरे पर बना है । अंदर गर्भगृह में देवताओ की प्रतिमायें हैं । मुख्य द्धार पर दो सिंहो की मूर्तिया हैं । यहां की रसोई भारत की सबसे बडी रसोई है इस रसोई में महाप्रसाद को तैयार करने में 500 रसोईये और 300 से ज्यादा सहयोगी काम करते हैं ।
इस मंदिर में बाहरी यानि गैर हिंदुओ का प्रवेश वर्जित है । विदेशी या विदेशी मूल के लोग नजदीक के उंचे स्थान से अवलोकन कर सकते हैं लेकिन मंदिर के अंदर नही जा सकते ।
अपनी इस दूसरी पुरी यात्रा में हमें काफी बाते और नयी पता चली । हालांकि दर्शन करने में भीड भाड तो ऐसी ही थी जैसी पहली बार थी । और मंदिर के अंदर पसीने में बुरी हालत हो जाती है । खैर इस बार हमारे साथ एक पंडा थे जिन्होने आराम से दर्शन करने में कुछ सहायता भी की । वैसे मेरा मन अब भी करता है कि फिर पुरी जाना हो क्योंकि यहां पर काफी कुछ अलग सा है जो मै आगे की पोस्टो में बताउंगा
पुरी के जगन्नाथ मंदिर का विवरण पढ़ना अच्छा लगा, धन्यवाद!
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