मंदिर प्रांगण में आग जल रही थी । आग के एक ओर पांच या छह आदमी थे और एक ओर पांच या छह औरते । संख्या कोई निश्चित नही होती थी । आदमी और औरतो के पैरो में एक मघ्यम सी थिरकन और चाल थी जो गाने के बोल के साथ साथ आगे बढते जाते थे और आग के चारेा ओर चक्कर लगा रहे थे । ये बिलकुल मेरा डिस्कवरी में देखा गया नृत्य जैसा ही था जो कि अक्सर आदिवासी लोगो या फिर मणिपुरी या नागालैंड के लोग एक गोल गोल घेरे में घूमकर करते हैं
रात के ग्यारह बजे जब कि हम दोनो रूपकुंड की यात्रा से थककर सोये हुए थे ऐसे में कुंवर सिंह ने आकर एकदम से जगा दिया । पहले तो आंख ही नही खुल रही थी क्योंकि पहली रात स्लीपिंग बैग में गुजरी थी जिसमें बस आंख लग गयी थी । वैसे भी लकडी के तख्तो से बने फर्श पर कौन सा नींद आती है । यहां पर बिस्तर था और रजाई भी तो नींद तो बढिया आनी लाजिमी थी ।
वैसे तो कुंवर सिंह को हमने ही कहा था कि जब कार्यक्रम शुरू हो जाये तो हमें जगा देना पर अब जब वो जगाने आया तो मन नही कर रहा था जागने को । मुश्किल से दो घंटे सोये होंगे और फिर से जागना बडा मुश्किल था पर कुंवर सिंह ने जैसा बताया था उस तरह के कार्यक्रम को देखने के लिये हम जाग गये
बडा ही सुंदर और अदभुत कार्यक्रम था उस दिन जिसके मै और जाट देवता साक्षी बने । वैसे तो मुश्किल ही होता है कि ऐसे कार्यक्रम में कोई प्रोग्राम बनाकर पहुंचे क्योंकि लोग पर्यटन तो करना चाहते हैं पर ऐसे कार्यक्रमो को तो अपने आस पडोस में ही तवज्जो नही देते तो फिर 500 किलोमीटर दूर जाकर कैसे शामिल होंगे ।
कुछ लोगो के लिये हो सकता है कि ये कार्यक्रम रूचिकर ना हो क्योंकि यहां पर डीजे तो नही था जबकि हमारे यहां पर तो देवी के मंदिरो में नवरात्रो पर जो कार्यक्रम होते हैं उनमें कुछ लोगो की शिकायत रहती है कि वे रात भर सो नही पाये
यहां पर ना तो डी जे था ना ही सिंगल माइक । कार्यक्रम उनकी अपनी भाषा यानि पहाडी भाषा में ही था और मुझे उसे समझने के लिये बार बार कुंवर सिंह से पूछना पडता था । गांव के ज्यादातर मर्द और औरते यहां जमा थे । आज पहला ही दिन था कल से काफी और आस पडौस के लोग भी आने लगेंगें ।
मंदिर प्रांगण में आग जल रही थी । आग के एक ओर पांच या छह आदमी थे और एक ओर पांच या छह औरते । संख्या कोई निश्चित नही होती थी । आदमी और औरतो के पैरो में एक मघ्यम सी थिरकन और चाल थी जो गाने के बोल के साथ साथ आगे बढते जाते थे और आग के चारेा ओर चक्कर लगा रहे थे । ये बिलकुल मेरा डिस्कवरी में देखा गया नृत्य जैसा ही था जो कि अक्सर आदिवासी लोगो या फिर मणिपुरी या नागालैंड के लोग एक गोल गोल घेरे में घूमकर करते हैं
वैसे मै और जाट देवता पहले आग के पास बैठे फिर कुंवर सिंह के आग्रह पर हम दोनो उस गाने की मर्दो की टोली में भी कुछ देर रहे । मै इस कार्यक्रम का एक भी अंश नही छोडना चाहता था पर मेरे कैमरे में जो सैल थे वो इसकी इजाजत नही दे रहे थे सो मैने कुंवर सिंह से कहा तो उसने गांव का एक फोटोग्राफर शायद मोहन सिंह बिष्ट नाम था उसका , से मुझे सैल लेकर दिये । वो फोटोग्राफर उस कार्यक्रम की कवरेज कर रहा था और वो बीच बीच में अपने कैमरे की लाइट भी जलाता था । जब भी वो लाइट जलाता वीडियो बनाने के लिये मै भी फोटो खींच लेता ।
दो घंटे से भी ज्यादा हम लोग उस कार्यक्रम में रहे । पहले आग के पास गाने हुए उसके बाद मंदिर के आगे पांच लोग सफेद ड्रैस पहनकर बैठे जिन्हे देवी के रक्षक बताया गया । उन सबकी सफेद ड्रैस पर लाल रंग से उनके नाम लिखे थे । शायद अभी तो गांव वाले जानते हो पर जब बाहर से लोग आयेंगे तो वे याद रखे इसलिये
ं
दो घंटे बाद नारद मुनि का वेश धरकर एक आदमी आया । उसने पहाडी भाषा में लोगो का मनोरंजन करना शुरू किया । हमें समझ नही आ रहा था । फिर हम लोग काफी थके थे सो हमने सोने जाना उचित समझा क्योंकि हम कल सुबह जाने वाले थे ।
ऐसा कार्यक्रम मेरे जीवन का पहला कार्यक्रम था जो कि शांत और सुंदर था । इसमें कोई फूहडता नाम की चीज नही थी नही तो आजकल तो टीवी के सामने बैठना भी मुश्किल है
वैसे तो कुंवर सिंह को हमने ही कहा था कि जब कार्यक्रम शुरू हो जाये तो हमें जगा देना पर अब जब वो जगाने आया तो मन नही कर रहा था जागने को । मुश्किल से दो घंटे सोये होंगे और फिर से जागना बडा मुश्किल था पर कुंवर सिंह ने जैसा बताया था उस तरह के कार्यक्रम को देखने के लिये हम जाग गये
बडा ही सुंदर और अदभुत कार्यक्रम था उस दिन जिसके मै और जाट देवता साक्षी बने । वैसे तो मुश्किल ही होता है कि ऐसे कार्यक्रम में कोई प्रोग्राम बनाकर पहुंचे क्योंकि लोग पर्यटन तो करना चाहते हैं पर ऐसे कार्यक्रमो को तो अपने आस पडोस में ही तवज्जो नही देते तो फिर 500 किलोमीटर दूर जाकर कैसे शामिल होंगे ।
कुछ लोगो के लिये हो सकता है कि ये कार्यक्रम रूचिकर ना हो क्योंकि यहां पर डीजे तो नही था जबकि हमारे यहां पर तो देवी के मंदिरो में नवरात्रो पर जो कार्यक्रम होते हैं उनमें कुछ लोगो की शिकायत रहती है कि वे रात भर सो नही पाये
यहां पर ना तो डी जे था ना ही सिंगल माइक । कार्यक्रम उनकी अपनी भाषा यानि पहाडी भाषा में ही था और मुझे उसे समझने के लिये बार बार कुंवर सिंह से पूछना पडता था । गांव के ज्यादातर मर्द और औरते यहां जमा थे । आज पहला ही दिन था कल से काफी और आस पडौस के लोग भी आने लगेंगें ।
मंदिर प्रांगण में आग जल रही थी । आग के एक ओर पांच या छह आदमी थे और एक ओर पांच या छह औरते । संख्या कोई निश्चित नही होती थी । आदमी और औरतो के पैरो में एक मघ्यम सी थिरकन और चाल थी जो गाने के बोल के साथ साथ आगे बढते जाते थे और आग के चारेा ओर चक्कर लगा रहे थे । ये बिलकुल मेरा डिस्कवरी में देखा गया नृत्य जैसा ही था जो कि अक्सर आदिवासी लोगो या फिर मणिपुरी या नागालैंड के लोग एक गोल गोल घेरे में घूमकर करते हैं
वैसे मै और जाट देवता पहले आग के पास बैठे फिर कुंवर सिंह के आग्रह पर हम दोनो उस गाने की मर्दो की टोली में भी कुछ देर रहे । मै इस कार्यक्रम का एक भी अंश नही छोडना चाहता था पर मेरे कैमरे में जो सैल थे वो इसकी इजाजत नही दे रहे थे सो मैने कुंवर सिंह से कहा तो उसने गांव का एक फोटोग्राफर शायद मोहन सिंह बिष्ट नाम था उसका , से मुझे सैल लेकर दिये । वो फोटोग्राफर उस कार्यक्रम की कवरेज कर रहा था और वो बीच बीच में अपने कैमरे की लाइट भी जलाता था । जब भी वो लाइट जलाता वीडियो बनाने के लिये मै भी फोटो खींच लेता ।
दो घंटे से भी ज्यादा हम लोग उस कार्यक्रम में रहे । पहले आग के पास गाने हुए उसके बाद मंदिर के आगे पांच लोग सफेद ड्रैस पहनकर बैठे जिन्हे देवी के रक्षक बताया गया । उन सबकी सफेद ड्रैस पर लाल रंग से उनके नाम लिखे थे । शायद अभी तो गांव वाले जानते हो पर जब बाहर से लोग आयेंगे तो वे याद रखे इसलिये
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दो घंटे बाद नारद मुनि का वेश धरकर एक आदमी आया । उसने पहाडी भाषा में लोगो का मनोरंजन करना शुरू किया । हमें समझ नही आ रहा था । फिर हम लोग काफी थके थे सो हमने सोने जाना उचित समझा क्योंकि हम कल सुबह जाने वाले थे ।
ऐसा कार्यक्रम मेरे जीवन का पहला कार्यक्रम था जो कि शांत और सुंदर था । इसमें कोई फूहडता नाम की चीज नही थी नही तो आजकल तो टीवी के सामने बैठना भी मुश्किल है
अदभुत व यादगार लम्हा था। जो हमेशा याद रहेगा।
ReplyDeleteसब-कुछ कितना जीवन्त!
ReplyDeleteमज़ा आया आपकी इस यात्रा के संस्मरण को पढ़कर और फोटो देखकर। काश मैं भी कभी इस तरह की यात्रा के लिए समय निकाल पाता!!!
ReplyDeleteWah! Kitne sundar aur anokhe drushya hain. Shanti se manaye gaye parv aur karyakamo ka mazaa hi aur hota hai. Bahut khoob!
ReplyDeleteसुन्दर संस्मरण...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteआपकी यात्रा मंगलमय हो।
ReplyDeletehttp://yuvaam.blogspot.com/p/katha.html?m=0
jab neend aati hai to sthan nahi dekhti .रोचक प्रस्तुति .बहुत सुन्दर प्रस्तुति आभार सौतेली माँ की ही बुराई :सौतेले बाप का जिक्र नहीं आज की मांग यही मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ .
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