गांव के प्राचीन मंदिर में, जो कि नंदादेवी राज जात यात्रा में सबसे अहम जगह रखता है , चिठठी और लेखन कार्य चल रहा था । मंदिर के प्रांगण में काफी लकडिया रखी थी जैसे कैम्प फायर किया जाता है और बहुत सारे लोग सफाई में लगे थे । कुछ आदमी चिठठी लिख रहे थे तो कुछ बन्दरवार बांध रहे थे । मैने अपने गाइड से पूछा तो उसने बताया कि नवरात्र शुरू हुए हैं
वाण गांव पहुंचे तो बस थोडा ही उजाला बचा था और गांव में घुसते ही कुछ अजीब सा महसूस हुआ । खाने की खुश्बू कहीं दूर से ही आने लगी थी । पता नही क्या माजरा है ।
जल्द ही दिखायी दे गया कि हमारे गांव में जाने के रास्ते में एक जगह काफी सारी औरते एक जगह एक बहुत बडी भटटी पर खाना बना रही थी ।
एक जगह सब्जी बन रही थी तो एक जगह रोटियां सेकी जा रही थी । शायद कोई शादी होगी ये सोचकर हम आगे चलते रहे पर आगे गांव के प्राचीन मंदिर में, जो कि नंदादेवी राज जात यात्रा में सबसे अहम जगह रखता है , चिठठी और लेखन कार्य चल रहा था । मंदिर के प्रांगण में काफी लकडिया रखी थी जैसे कैम्प फायर किया जाता है और बहुत सारे लोग सफाई में लगे थे । कुछ आदमी चिठठी लिख रहे थे तो कुछ बन्दरवार बांध रहे थे । मैने अपने गाइड से पूछा तो उसने बताया कि नवरात्र शुरू हुए हैं तो इस वजह से गांव में उत्सव की तैयारी शुरू हो गयी है ।
मैने पूछा कि उत्सव कैसा और किस किस तरह होता है तो उसने बताया कि इसी मंदिर प्रांगण में नंदा देवी की यात्रा की तरह अष्टमी के दिन मेला लगेगा जिसमें आस पडोस के गांवो और दूर दराज से भी काफी लोग आयेंगे । उन्ही के लिये निमंत्रण तैयार किये जा रहे हैं
इसके अलावा दूर दराज के गांवो के कुल देवताओ और देवियो की डोली भी उस दिन आयेंगी । आज इसी की शुरूआत है और आज से ही ये उत्सव शुरू है । आज रात से गावं के लोग इसमें आयेंगें और उसके बाद आस पास के लोग आने शुरू हो जाते हैं
मैने कुंवर सिंह से पूछा कि उत्सव में क्या होता है ? तो उसने बताया कि वो बहुत बढिया होता है और वो आपको खुद देखना पडेगा कि क्या होता है । मैने समय पूछा तो उसने बताया कि रात को करीब 9 बजे सब लोग अपना खाना आदि खाकर अपने घरो से चल देते हैं और मंदिर पर इकठठा होते हैं । कैम्प फायर यानि आग जलाई जाती है और उसके चारो और भजन गाना और नाटक आदि होते है । हम तो दिन भर के थके थे और रात को नौ बजे शुरू होने का मतलब था कि रात को बारह या एक बजे तक इस तरह के प्रोग्राम का खतम होना जो कि हमारे बस में नही था क्योंकि हमे कल सुबह वापिस चलना था घर के लिये पर जब कुंवर सिंह ने ज्यादा ही तारीफ की तो मैने उससे कहा कि तुम तो रहोगे यहां पर तो उसने कहा कि हां तो मैने उसे जिम्मेदारी दी कि जब कार्यक्रम शुरू हो जाये तो हम दोनो को जगा देना क्योंकि तब तक हम एक एक नींद भी ले लेंगे ।
कुंवर सिंह ने इस जिम्मेदारी को सहर्ष स्वीकार किया । वो भी हमारे साथ हमसे ज्यादा सामान लेकर चला था लेकिन उसको ना तो थकान थी और ना ही वो घर जा रहा था क्योंकि उसे तो मेला देखना था । बस हमने भी खाना बनवाया , खाया और सो गये जल्दी ही ।
जल्द ही दिखायी दे गया कि हमारे गांव में जाने के रास्ते में एक जगह काफी सारी औरते एक जगह एक बहुत बडी भटटी पर खाना बना रही थी ।
एक जगह सब्जी बन रही थी तो एक जगह रोटियां सेकी जा रही थी । शायद कोई शादी होगी ये सोचकर हम आगे चलते रहे पर आगे गांव के प्राचीन मंदिर में, जो कि नंदादेवी राज जात यात्रा में सबसे अहम जगह रखता है , चिठठी और लेखन कार्य चल रहा था । मंदिर के प्रांगण में काफी लकडिया रखी थी जैसे कैम्प फायर किया जाता है और बहुत सारे लोग सफाई में लगे थे । कुछ आदमी चिठठी लिख रहे थे तो कुछ बन्दरवार बांध रहे थे । मैने अपने गाइड से पूछा तो उसने बताया कि नवरात्र शुरू हुए हैं तो इस वजह से गांव में उत्सव की तैयारी शुरू हो गयी है ।
मैने पूछा कि उत्सव कैसा और किस किस तरह होता है तो उसने बताया कि इसी मंदिर प्रांगण में नंदा देवी की यात्रा की तरह अष्टमी के दिन मेला लगेगा जिसमें आस पडोस के गांवो और दूर दराज से भी काफी लोग आयेंगे । उन्ही के लिये निमंत्रण तैयार किये जा रहे हैं
इसके अलावा दूर दराज के गांवो के कुल देवताओ और देवियो की डोली भी उस दिन आयेंगी । आज इसी की शुरूआत है और आज से ही ये उत्सव शुरू है । आज रात से गावं के लोग इसमें आयेंगें और उसके बाद आस पास के लोग आने शुरू हो जाते हैं
मैने कुंवर सिंह से पूछा कि उत्सव में क्या होता है ? तो उसने बताया कि वो बहुत बढिया होता है और वो आपको खुद देखना पडेगा कि क्या होता है । मैने समय पूछा तो उसने बताया कि रात को करीब 9 बजे सब लोग अपना खाना आदि खाकर अपने घरो से चल देते हैं और मंदिर पर इकठठा होते हैं । कैम्प फायर यानि आग जलाई जाती है और उसके चारो और भजन गाना और नाटक आदि होते है । हम तो दिन भर के थके थे और रात को नौ बजे शुरू होने का मतलब था कि रात को बारह या एक बजे तक इस तरह के प्रोग्राम का खतम होना जो कि हमारे बस में नही था क्योंकि हमे कल सुबह वापिस चलना था घर के लिये पर जब कुंवर सिंह ने ज्यादा ही तारीफ की तो मैने उससे कहा कि तुम तो रहोगे यहां पर तो उसने कहा कि हां तो मैने उसे जिम्मेदारी दी कि जब कार्यक्रम शुरू हो जाये तो हम दोनो को जगा देना क्योंकि तब तक हम एक एक नींद भी ले लेंगे ।
कुंवर सिंह ने इस जिम्मेदारी को सहर्ष स्वीकार किया । वो भी हमारे साथ हमसे ज्यादा सामान लेकर चला था लेकिन उसको ना तो थकान थी और ना ही वो घर जा रहा था क्योंकि उसे तो मेला देखना था । बस हमने भी खाना बनवाया , खाया और सो गये जल्दी ही ।
मनमोहक चित्र....
ReplyDeleteरुपकुन्ड़ से ज्यादा यादगार तो वाण गाँव का यह उत्सव रहा था जिसने वहाँ के जीवन की झलक दिखायी।
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ReplyDeleteBlogVarta.com पहला हिंदी ब्लोग्गेर्स का मंच है जो ब्लॉग एग्रेगेटर के साथ साथ हिंदी कम्युनिटी वेबसाइट भी है! आज ही सदस्य बनें और अपना ब्लॉग जोड़ें!
ReplyDeleteधन्यवाद
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बढ़िया प्रस्तुति है भाई जी -
ReplyDeleteआभार आपका ||
गाँव की बात ही निराली होती है ....पोस्ट पढ़कर और तस्वीरें देखकर भूली बिसरी जाने कितनी ही यादें मानस पटल पर दस्तक दे जाती हैं ...बहुत बढ़िया ..सुक्रिया...
ReplyDeleteवाकई बहुत रोचक लगा.
ReplyDeleteपुरानी रीति रिवाजों/धर्म संस्कारों का आज भी निर्वाह करते रहना...कितना कुछ हमारे गाँवों ने अब भी संजो कर रखा गया है..शुक्र है कि आधुनिक हवाएँ इन्हें अभी छू नहीं पायी हैं.
मित्र
ReplyDeleteआपके साथ साथ हम भी घर बैठे यात्रा का आनन्द ले रहेँ हैँ।
जिस दिन जो भी पोस्ट आप समाप्त करेँ उस पर क्रमश: जरुर लिखेँ, क्योकि कभी कभी ऐसा लगता है कि आगे भी कुछ लिखा होगा है। पोस्ट समाप्ति का पता चल जाए।